राकेश कुमार आर्य

राकेश कुमार आर्य

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उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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लेखक - राकेश कुमार आर्य - के पोस्ट :

राजनीति

केेजरीवाल जी! पहले दिल्ली संभालो

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करके केजरीवाल अपने आपको मोदी के समान स्तर का राजनेता बनाने का अतार्किक प्रयास कर रहे हैं। माना कि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को बड़े से बड़ा पद लेने का संवैधानिक अधिकार है, परंतु इस अधिकार की अपनी सीमाएं हैं और उन सीमाओं की पवित्रता इसमें है कि आप जितने बड़े पद को लेना चाहते हैं उतने ही बड़े अनुपात में आपके साथ जनाधार होना चाहिए। यह जनाधार किसी भी राजनेता को तभी मिलता है जब लोग उसके कार्य को प्रशंसा देने लगते हैं। यदि केजरीवाल जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली के दिल को जीतने में असफल हो रहे हैं तो मानना पड़ेगा कि वह प्रधानमंत्री मोदी से बराबरी करके न केवल अपनी ऊर्जा को नष्ट कर रहे हैं, अपितु अपनी अपने आपको उपहास का पात्र भी बना रहे हैं।

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विविधा

स्वामी रामदेव जी और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली

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बाबा रामदेव जी जैसे लोगों द्वारा भारतीय धर्म और संस्कृति की मचाई गयी धूम के परिणामस्वरूप अब जाकर विश्व की आंखें खुल रही हैं, और उसे धीरे-धीरे पता चल रहा है कि भारत की मान्यताएं ही महान हैं, सत्य हैं और अकाट्य हैं। विश्व ने एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली के माध्यम से अपनी जेब कटवाकर देख लिया और यह समझ लिया कि यह चिकित्सा प्रणाली तो हमें सिवाय मारने के और कुछ कर नहीं रही है और यदि हमने इसका पीछा नहीं छोड़ा तो यह हमारा सर्वनाश कर देगी। यही कारण है कि लोग जीवित और स्वस्थ रहने के लिए अपने सारे जातीय पूर्वाग्रहों और साम्प्रदायिक मान्यताओं को तिलांजलि देकर भारत के आयुर्वेद की शरण में आ रहे हैं।

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राजनीति

कौन जीता कौन हारा

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इन चुनाव परिणामों की गंभीरता से समीक्षा की जानी अपेक्षित है। सर्वप्रथम हम उत्तर प्रदेश पर आते हैं, यहां की जनता ने सपा के परिवारवाद, पारिवारिक कलह, साम्प्रदायिक तुष्टिकरण की नीति, शासन प्रमुख का जातिवादी दृष्टिकोण पर अपना नकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया है। इसी प्रकार बसपा के खुरपा व बुरका के समीकरण को सिरे से नकार दिया है। कुमारी मायावती ने इन चुनावों को पूर्णतया साम्प्रदायिक आधार पर लड़ते हुए मुस्लिम मतों को अपने साथ लाने हेतु 100 से अधिक टिकट मुस्लिम प्रत्याशियों को दिये।

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