उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान का रौब मुख्यमंत्री से कम नहीं समझा गया। बिगड़ैल आज़म खान जब जब सत्ता में रहें अपनी सरकारी अकड़ में मानवीय संवेदनाओं को भूल जाते रहें।कल (16 मार्च 2017) जो वीडियो वायरल हुआ उसमें जिस प्रकार अपने चुनावी जीत का प्रमाण पत्र लेने ( 11 मार्च की शाम को ) जाने पर कीचड भरें मार्ग के कारण उन्होंने वहां के रिटर्निंग अधिकारी (अभय कुमार गुप्ता) एसडीएम सदर, रामपुर को डॉट लगाते हुए यहां तक कह दिया कि “अभी तो हम मंत्री है और आपके विरुद्ध कार्यवाही कर सकते है”।उन्होंने यह भी कहा कि “आप तो कूडें के ढेर में पड़े हुए थे, रोये थे, आप इतनी जल्दी नज़र बदलते हो” इत्यादि ।
आज़म खान के विवादों की सूची बहुत लंबी है सर्वप्रथम जब ये 1990 में पहली बार मंत्री बने थे तब भी अपने अधीनस्थ अधिकारी ओंकारनाथ सिंह से गुत्थम-गुत्था हुई थी और उनको निलंबित कर दिया गया था। आज़म खान के राज्य अधिकारियों व कर्मचारियों के प्रति अभ्रद व्यवहार से पीड़ित सचिवालय संघ 2013 के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह सरकार को अवगत कराते रहें। नवम्बर 2013 के ही एक समाचार के अनुसार प्रदेश के दो प्रमुख सचिव व एक विशेष सचिव सहित कुछ निजी कर्मचारियों ने तो इनके साथ काम करने को ही मना कर दिया था। भारत माता को डायन कहने वाले नगर विकास मंत्री आजम खान हिन्दू अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए कभी किसी को मुर्गा बनाते है तो किसी को कान पकड़ कर बैठक लगवाते है और चांटा मारना व डाट-डपट करना तो उनके लिये सामान्य बात है । अधिक मूड खराब होने पर उसके लिये जिम्मेदार व्यक्ति को निलंबित करना आज़म खान के बिगड़े स्वभाव को दर्शाता है । एक बार 18 दिसम्बर 2012 को हावड़ा मेल से आजम खान अपने स्टाफ के साथ लखनऊ से रामपुर जा रहें थे तो रामपुर के निकट ए.सी. स्लीपर कोच के अटेंडेंट निर्मल यादव को बिस्तर गंदे होने पर डांट लगाई परंतु अटेंडेंट के यह कहने पर की उसके पास ऐसे ही बिस्तर है , आज़म खान ने उसे थप्पड़ जड़ दिया और कान पकडवा कर 50 बैठके लगवायी । इतना ही नही मंत्री के समर्थकों ने बाकी अटेंडेंटो को मुर्गा बनाया उनकी पिटाई की व माफ़ी मांगने पर छोड़ा था। निर्मल यादव इस घटना से इतने पीड़ित हुए कि वे कुछ दिन छुट्टी लेकर कोलकत्ता अपने घर पर रहें । इन पीड़ित रेल स्टाफ ने जीआरपी थाने अमृतसर में 20 दिसम्बर को रिपोर्ट भी लिखवायी थी ।
वैसे उनकी मानसिकता को समझने के लिए 8 फरवरी 2012 को पिछले चुनावों की गोरखपुर में हुई एक सभा में मुसलमानों को भड़काते हुए उन्होंने जो कहा था वह पर्याप्त है कि “बदलाव लाओ और सपा सरकार के गुजरे उस कार्यकाल (2002 से 2007) को याद करो जब थाने के लोग “दाढ़ी” पर हाथ धरने से डरते थे”।( दैनिक जागरण 08.02.2012)। आज़म खान प्रदेश में दादागिरी दिखाते हुए मुसलमानों को भी दबंग बने रहने के लिए कहते थे। वे अधिकारियों के लिए उनसे कहते थे कि “अधिकारी न आपके रिश्तेदार है और न मेरे, आप चाबुक हाथ मे रखिये वह सब सुनेंगे “।( दैनिक जागरण 31.01.2013) ।
पिछले वर्षों के समाचार पत्र गवाह है कि इनके कार्यकाल में जितने भी छोटे-बड़े साम्प्रदायिक दंगे हुए लगभग सभी में हिंदुओं का ही एकतरफा सरकारी उत्पीड़न हुआ । साथ ही दंगो के अतिरिक्त अन्य सामान्य दुर्घटनाओं में भी मुस्लिम समुदाय पर जम कर सरकारी कोष लुटाया गया। उत्तर प्रदेश में इनकी तुलना औरंगजेब जैसे शासक से की जाय तो थोड़ी अतिश्योक्ति हो सकती है।