इस्तीफे के बाद खाली सीट पर अपनी पसंद का सांसद बनाना चाहते हैं आजम

संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की रिक्त दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों के लिए के लिए जुलाई में मतदान होना है. इसमें से एक सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दूसरी सीट आजम खान के लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के कारण खाली हुई है. दोनों ने ही विधायकी का चुनाव जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. अखिलेश यादव जहां आजमगढ़ से सांसद थे वही आजम खान रामपुर से. आजमगढ़ से डिंपल यादव के चुनाव लड़ाए जाने की चर्चा है, वहीं रामपुर से आजम की जगह कौन चुनाव लड़ेगा? यह तय नहीं हो पा रहा है. वैसे उम्मीद यही थी कि आजम की जगाह उनके किसी पसंद के ही नेता को चुनाव लड़ाया जाएगा, लेकिन आजम ने जिस तरह से अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, उसको देखते हुए कोई भी विश्वास के साथ यह नहीं कह सकता है की रामपुर लोकसभा के उपचुनाव के लिए कौन अखिलेश यादव की पसंद बनेगा.राजनीति के गलियारों में चर्चा यह भी है कि आजम की अखिलेश यादव से नाराजगी की असली वजह रामपुर लोकसभा उप चुनाव ही हैं. आजम खान इस समय दबाव की राजनीति कर रहे हैं, वह जानते हैं कि समाजवादी पार्टी ही नहीं अन्य किसी दल में भी उनके कद का कोई मुस्लिम नेता नहीं है. समाजवादी पार्टी में आजम के बाद मुस्लिम चेहरे के रूप में संभल के सांसद शफीक उर रहमान बर्क और मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन ही नजर आते हैं. वह भी आजम खान के साथ नजर आ रहे हैं.संभल के सांसद बर्क भी आजम के सुर में सुर मिलाते हुए अखिलेश को लेकर सख्त बयान दे चुके हैं, जो अखिलेश की परेशानी बढ़ाने के लिए काफी है। वहीं मुरादाबाद से सांसद एस. टी. हसन भी आजम खान प्रकरण से खुश नहीं नजर आ रहे हैं। यह और बात है कि इन दोनों नेताओं का प्रभाव केवल इनके इलाके और जिले तक ही सीमित है। दिग्गज नेता अहमद हसन के निधन और आजम खान की नाराजगी के बाद समाजवादी पार्टी में मुस्लिम लीडरशिप खाली नजर आ रही है।
प्रदेश में अन्य मुस्लिम नेताओं की बात की जाए तो अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबली ही नजर आते हैं,पर योगी सरकार का बुलडोजर चलने के बाद इनकी हैसियत ना के बराबर हो गई है,हालांकि अंसारी फैमिली में अफजाल अंसारी सांसद हैं, जबकि मुख्तार के बेटे अब्बास और बड़े भाई सिगबुतल्लाह के बेटे मन्नू अंसारी इस बार विधायक चुने गए हैं। पूर्व विधायक इमरान मसूद और पीस पार्टी बनाकर सियासक कर रहे डॉक्टर अयूब के सितारे भी गर्दिश में ही नजर आ रहे हैं। वहीं कैराना विधायक नाहिद हसन जेल में हैं.
खैर, बात मुस्लिम बहुल सीटों की की जाए तो उत्तर प्रदेश विधान विधानसभा की 403 सीटों में से करीब 150 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी आबादी है। सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं। जयंत भी आजम खान के परिवार से मिलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर्स को साधना चाहते हैं। इसीलिए शिवपाल यादव से लेकर कांग्रेस और आजाद समाज पार्टी भी आजम पर डोरे डालने में लगी है। ओवैसी सपा से नाराज आजम को खुला निमंत्रण दे चुके हैं.
लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में मुसलमानों की अखिलेश-मुलायम से नाराजगी की वजह से यूपी का सियासी गणित दिलचस्प हो गया है। आजम के मीडिया सलाहकार शानू ने ईद तक आजम के बाहर आने की उम्मीद जाहिर कर दी है। लेकिन ऐसा हो ना सका. इसी के बाद आजम खान के विधायक पुत्र अब्दुल्ला ने एक ट्वीट करके अखिलेश को खूब खरी खरी सुनाई, गौरतलब हो आजम को एक मुकदमे को छोड़कर सभी में जमानत मिल चुकी है. ईद पर आजम के समर्थकों ने अखिलेश को निशाने पर लिया तो वहीं शिवपाल यादव का दर्द भी ईद की मुबारकबाद देते समय सामने आ गया. उन्होंने कहा जिसको हमने सीचा उन्होंने ही हमको रौन्द दिया. उधर,रामपुर के गलियारों में जो चर्चा है उसके अनुसार यदि अखिलेश बगावती तेवर दिखा रहे आजम खान को आश्वासन दे दें कि रामपुर लोकसभा चुनाव के लिए उनकी पसंद का प्रत्याशी मैदान में उतारा जाएगा तो आजम की नाराजगी काफी कम हो सकती है.आजम खां के इस्तीफा देने के कारण रामपुर लोकसभा सीट पर जुलाई तक उपचुनाव होना है। आजम खां इस सीट पर अपने परिवार से ही टिकट चाहते हैं। अभी तक अखिलेश ने कोई वादा नहीं किया है कि उनके परिवार से ही किसी को टिकट देंगे। जाहिर सी बात है कि आजम खां अखिलेश से पक्का वादा चाहते हैं और जब तक यह वादा मिल नहीं जाता, उनकी नाराजगी बनी रहेगी।रामपुर से दस बार के एमएलए आजम खान फिलहाल सीतापुर जेल में हैं। वह 2019 में रामपुर से सांसद चुने गए थे। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में विधायक का चुनाव लड़े। उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि सूबे से सत्ता परिवर्तन होगा और सपा सरकार आने पर आजम को रिहाई होगी। सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की आस भी थी, लेकिन आजम तो चुनाव जीते लेकिन सपा सत्ता में आने से वंचित रह गई।तब माना गया कि समाजवादी पार्टी आजम खान को विधानसभा में नेता विपक्ष बनाएगी, उसके बाद आजम के ऊपर कानूनी शिकंजा ढीला पड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने सांसद का पद भी छोड़ दिया, लेकिन अखिलेश यादव खुद नेता विपक्ष बन गए। इससे आजम समर्थकों मे नाराजगी सामने आई। उनके मीडिया प्रभारी फसाहत शानू ने बाकायदा मीडिया के सामने सपा और अखिलेश पर आजम का साथ नहीं देने का आरोप लगाया। उसके बाद जगह-जगह से आजम की रिहाई की आवाज उठने लगीं। सूबे के कई सपाइयों ने अपने पद से आजम के पक्ष में इस्तीफा दे दिया।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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