प्रतिबंधित ‘सिमी’ का सगा भाई है ‘पीएफआई

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 -मनोज ज्वाला

नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ लंबे समय दिल्ली के
शाहीनबाग में आसमान सिर पर उठाने की मशक्कत कर रही
‘भाड़े की भीड़’ के पीछे काम कर रहे संगठन ‘पीएफआई’ का पूरा नाम पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया है। यह इसका छद्म नाम है। दरअसल यह एक जिहादी संगठन है। यह संगठन पुलिस जांच के घेरे में है। …और सबसे बड़ा तथ्य यह है कि यह संगठन प्रतिबंधित संगठन ‘सिमी’ का सगा भाई है। सिमी का पूरा नाम  स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया है। पुलिस मान रही है कि पीएफआई इस्लामी जेहाद का झंडाबरदार है। वह नगरिकता संशोधन अधिनियम की मुखालफत के बहाने देश भर
में मुसलमानों को बरगलाने के साथ उन्हें हिंसा की राह पर ले जाने के लिए सक्रिय है। इस बात की चर्चा है कि इसके शाहीनबाग क्षेत्र में पांच दफ्तर हैं। इस संगठन की भूमिका उत्तर
प्रदेश के कुछ स्थानों पर हुए हिंसक प्रदर्शनों में सामने आई है। उत्तर प्रदेश सरकार पीएफआई को कभी भी प्रतिबंधित कर सकती है। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस संगठन के असली चेहरे से अवगत कराया है।पीएफआई का गठन 2006 में हुआ था। कहने को यह खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का शुभचिंतक बताता है। हकीकत यह है कि यह चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। खुलासा हुआ है कि  पहले इसका
नाम ‘नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) था । तब  इसकी जडें केरल के कालीकट
में थीं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पीएफआई का मुख्यालय बेशक दिल्ली में है पर इसकी जिहादी योजनाओं का निर्धारण
और संचालन केरल से ही होता है । इसकी शाखाओं का विस्तार देश भर में हो
चुका है । इसने ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’, तमिलनाडु
के ‘मनिथा नीति पासराई’, गोवा के ‘सिटीजंस फोरम’, राजस्थान के
‘कम्युनिटी सोशल ऐंड एजुकेशनल सोसायटी’ , आंध्र प्रदेश के ‘एसोसिएशन ऑफ
सोशल जस्टिस’ आदि संगठनों के साथ मिलकर कई राज्यों में
अपनी पैठ बना ली है । यही नहीं पीएफआई ने महिलाओं और छात्रों के बीच घुसपैठ बनाने के लिए ‘नेशनल वीमेंस फ्रंट’ और विद्यार्थियों के लिए
‘कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया’ का गठन किया है। पीएफआई के संचालकों ने समाज और
शासन को भ्रमित रखने की चालाकी से इसका नाम ऐसा रखा है कि इसे
‘मुस्लिम-संगठन’ कतई न समझा जाए । यही नहीं उसकी जिहादी छवि पर नकाब ढका रहे इसके दिखावे के लिए भी काम होते रहते हैं। साल 2006 में दिल्ली के
रामलीला मैदान में ‘नेशनल पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन इसी रणनीति का हिस्सा था। देश और सरकार को धोखे में रखने के लिए यह खुद को न्याय, स्वतंत्रता और
सुरक्षा का पैरोकार बताता है। मुस्लिमों के अलावा हिन्दू-दलितों और आदिवासियों पर होने वाले कथित अत्याचार पर  मोर्चा खोलता रहता है । मगर इसकी ज्यादातर
गतिविधियां मुस्लिम समाज के इर्द-गिर्द मंडराती हैं। साम्प्रदायिक आधार पर सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को आरक्षण दिलाना भी
इसकी प्राथमिकताओं में शामिल है। इसके लिए यह कई बार आंदोलन कर चुका है।एक स्टिंग में पीएफआई के सदस्य यह तक स्वीकार कर चुके हैं कि खाड़ी देशों से हवाला के जरिये पैसा आता है। वह इस पैसे से भारत में धर्मांतरण का धंधा चलाते हैं । कुछ समय पहले केरल के कन्नूर जिले
में योग प्रशिक्षण शिविर की आड़ में मुस्लिम युवकों को आतंक और जिहाद के लिए
तैयार करने के मामले का खुलासा ‘एनआईए’ कर चुकी है। एनआईए ने यहां से देसी बम और आईईडी बनाने वाली सामग्री बरामद करने के साथ फर्जी पासपोर्ट एवं वीजा जब्त किए थे। सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी पीसी कटोच तो यहां तक कह चुके हैं कि पीएफआई के तार पाकिस्तानी खुफिया
एजेंसियों से जुड़े हैं। 2012 में केरल पुलिस ने केरल हाईकोर्ट को बताया था कि पीएफआई संगठन से संबद्ध लोग  हत्या के
27, हत्या की कोशिश के 86 और  साम्प्रदायिक दंगों के 106 मामलों
में शामिल है। इस संगठन के सदस्यों ने केरल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
के कार्यकर्ता एन. सचिन गोपाल और संघ के स्वयंसेवकों की हत्या की है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पीएफआई
का राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल हमीद पहले ‘सिमी’ का राष्ट्रीय सचिव था।‘सिमी’ के अनेक पूर्व पदाधिकारी इस वक्त पीएफआई में
विभिन्न पदों पर काबिज हैं । 1977 से सक्रिय ‘सिमी’ को 2001 में वाजपेयी सरकार ने प्रतिबंधित किया था। फिलवक्त देश के 23 राज्यों में पीएफआई सक्रिय है। पीएफआई के तार अल कायदा, जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे वैश्विक जिहादी-आतंकी संगठनों से होने के संकेत हैं। झारखंड के माओवादियों से भी इस संगठन का संबंध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार नक्सली रोना विल्सन का संबंध भी पीएफआई से रहा है। 2018 में झारखंड सरकार ने इसे प्रतिबंधित किया था। यह बात अलग है कि बाद में यह प्रतिबंध निरस्त हो गया। पीएफआई की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) उसकी राजनीतिक इकाई है। ‘एसडीपीआई’ केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में सक्रिय है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एसडीपीआई. ने कांग्रेस का समर्थन इस शर्त पर किया था कि सरकार बनने पर उसके समर्थकों के विरुद्ध दर्ज  मुकदमे वापस लिए जाएंगे । पश्चिम बंगाल में ‘मिल्ली इत्तेहाद परिषद’ और तमिलनाडु में ‘तमिल मुस्लिम मुनेत्र कडगम (टीएमएमके) आदि से पीएफआई से संबद्ध एसडीपीआई से गठबंधन है। पीएफआई पिछले दो साल से 15 अगस्त पर  ‘फ्रीडम परेड’ का आयोजन करने लगा है। ऐसी परेड केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के कई शहरों में आयोजित हो चुकी हैं।

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