नेपाल का व्यवहार और भारत की चीन नीति

नेपाल के भारत के साथ सदियों पुराने सम्बन्ध हैं दोनों की सांस्कृतिक भूमि एक ही है। यह सम्बन्ध उसी प्रकार के हैं जिस प्रकार के सम्बन्ध भारत के तिब्बत के साथ रहे हैं। तिब्बत और नेपाल ऐसे दो पड़ोसी देश हैं जो भारत को आत्मीय ही नहीं बल्कि सहोदर मानते हैं। एक जैसी सांस्कृतिक धारा और मूल्यों का प्रसार इस सम्पूर्ण क्षेत्र में है। इसका उदगम स्थान हिमालय को ही मानना चाहिए। भारत को घेरने की रणनीति के तहत चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और अब नेपाल को घेरने की फिराक में है। बहुत से ऐसे देश हैं जो भारत और चीन के बीच में पड़ते हैं दक्षिण पूर्व ऐशिया के अनेक देश ऐसे ही हैं। म्यांमार की सीमा तो दोनों देशों से लगती है इसके माध्यम से ही पूरा दक्षिण पूर्व ऐशिया जैसे थाईलैण्ड, मलेशिया, सिगापुर, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया और कोरिया जैसे देश इससे जुडे हुए हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत का सांस्कृतिक धरातल भी एक जैसा ही है, परन्तु अब चीन नई तकनीक व नई ऊर्जा प्राप्त कर अपनी विस्तारवादी नीतियों और साम्राज्यवादी चेतना को नए सिरे से लागू कर रहा है। इन सभी छोटे देशों के आगे तीन विकल्प खुले हैं। प्रथम विकल्प तो भारत के साथ खड़े होने का है। द्वितीय विकल्प चीन के साथ खडे होने का है। परन्तु इन देशों के इतिहास इस बात के गवाह हैं कि चीन इन देशों को या तो हड़प्प कर लेना चाहता है या फिर आपना उपनिवेश बनाकर रखना चाहता है। इसलिए स्वाभाविक स्थिति में यह देश चीन के साथ खड़े नहीं हो सकते। भारत के साथ इनके आन्तिरक सांस्कृतिक रिश्ते हैं। परन्तु प्रश्न यह है कि चीन अब अपनी सीमाओं पर दादागिरी कर रहा है। रूस जैसे बड़े देश से उसने समझौता कर लिया और छोट देशों को वो धकिया रहा है। इस स्थिति में यह छोटे देश कहा जाएं? क्या भारत उनको चीन के खिलाफ अभय दान दे सकता है ?

चीन में साम्यवादी पार्टी द्वारा सत्ता सम्भालने के तुरन्त बाद चीन ने भी इस पूरी परिस्थिति पर विचार किया था। तब वह भी इस नतीजे पर पहुंचा था, कि यह सभी देश सामान्य परिस्थितियों में भारत के साथ जायेंगे इसलिए उसने एक लम्बी रणनीति के तहत भारत को ही अपमानित करने का निर्णय कर लिया। 1962 को भारत पर किया गया आक्रमण इसका गवाह है। बाद में चीन सरकार ने स्वंय भी स्वीकार किया था कि भारत पर आक्रमण करने का उसका एक मात्र लक्ष्य उसे सबक सिखाना था। दूभार्गय से भारत इस युद्व में पराजित हुआ। 1962 के बाद चीन अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाता गया लेकिन भारत सरकार चीन के बारे में उसी प्रकार की ढुलमुल नीति का शिकार रही। अब इन सभी देशों के आगे मुख्य प्रश्न यह हो गया है कि जो भारत चीन से अपनी ही रक्षा नहीं कर पा रहा है वह इन छोटे देशों की भला क्या रक्षा करेंगे ? नेपाल के व्यवहार को इसी पृष्ठभूमि में समझने की जरूरत है। चीन, नेपाल में पिछले लम्बे अर्से से भारत विराधी भावानाए ही नहीं भड़का रहा बल्कि उसने माओवादियों के रूप में एक शस्त्र सेना भी खड़ी कर ली है। चीन जानता है कि इस सेना के बावजूद पूरे नेपाल को अपने पक्ष में करना इतना आसान नहीं है। इसलिए अब माओवादी नेपाल में जातिय घृणा और क्षेत्रिय अलगाव को हवा दे रहे हैं। नेपाल में सरकार चाहे कोई भी हो चाहे वैचारिक आधार पर वह चीन के समर्थन में हो या उसके विरोध में, वह चीन को नाराज करने की स्थिति में नहीं हैं। नेपाल जानता है कि चीन नेपाल को अपना उपनिवेश बनाना चाहता है, लेकिन आखिर नेपाल चीन को आंखें किस के बलबूते पर दिखाए? संकट की घड़ी में जब भारत तिब्बत की रक्षा नहीं कर पाया तो वह नेपाल की रक्षा क्या करेगा? नेपाल ने अभी घोषणा की है कि उसकी सेना चीन से प्रशिक्षण प्राप्त करेगी। चीन नेपाल को सैनिक साज समान भी मुहैया करवा रहा है। माओवादी वहां चीन की शय पर ही समान्तर सरकार की स्थापना कर रहे हैं। पशुपति नाथ के मन्दिर से उन्होंने भारतीय पुजारियों को भगा कर शताब्दियों पुरानी परम्परा का तोड़ने का प्रयास किया है।

नेपाल के मधेसी यदि चीन के खिलाफ और माओवादियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो, भारत सरकार और भी घबरा जाती है। इस पूरे घटनाक्रम में नेपाल को दोष देने का कोई लाभ नहीं है। दिल्ली के साउथ ब्लाक के बाबू इस बात पर तो लाल होते हैं कि नेपाल जैसा छोटा सा देश भारत के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है। लेकिन यदि नेपाल की रक्षा के लिए चीन से आंख मिलाने के साहस की बात हो तो यह मुतियाते हैं। तिब्बत में इनके मुतियाने की दुर्गन्ध अभी तक फैली हुई है। भारत के छोटे पड़ोसी देश इसी दुर्गन्ध से घबरा कर अतीविवश्ता में चीन के साथ बगलगीर होने लगते हैं। इस स्थिति को पलटने के लिए जरूरी है कि भारत सरकार, चीन की घुड़कियों से घबराकर मुतियाना बन्द करे। यह तभी सम्भव है यदि इसका शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा। उसके लिए जरूरी है कि यह शक्ति अर्जन करे। शक्ति अर्जन करने के लिए भी इच्छा शक्ति बहुत जरूरी है। नेपाल के व्यवहार को इसी पष्ठभूमि को समझा जा सकता है। नेपाल को गाली देने का कोई लाभ नहीं है।

– डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

2 COMMENTS

  1. जिस देश एक जाति विशेष [हाँन ] का बोलबाला है ,बाकि अन्य जाति को दोयम दर्जा प्राप्त है ,जहां जनसँख्या नियंत्रण के लिए जाति के हिसाब से अलग अलग कानून है ,जहां अन्य जातियों का दमन किया जाता है ,जिस देश में मिडिया पर पाबन्दी है ,जिस देश में मानवाधिकार का खुलेआम उलंघन किया जाता है.,जो देश लोकतंत्र विरोधी है ,जहाँ विरोधिओं का पाशविक तरीके से दमन किया जाता है और जहाँ राजनैतिक विरोधियों की जेल में हत्या की जाती है ,उस देश का साथ किसी भी देश के लिए बुरा होगा .नेपाल हो या अमरीका ,सबों के साथ चीन बुरा सलूक करेगा ,जैसा की ‘हिंदी चीनी भाई भाई” का नारा लगाते हुए 1962 में भारत के साथ कर चुका है.

  2. असल मैं भारत को अपनी चीननिति बदलनी चाहिए. तभी समस्या का हल हो पायेगा.

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