भारत की एकता और अखंडता को तार-तार करने के लिए देश के भीतर एक नहीं अनेकों ऐसे संगठन सक्रिय हैं , जिनका भारतीयता से कोई लेना-देना नहीं है । इनके विषय में सच तो यह है कि ये संगठन भारतीयता का विनाश करने में ही अपना लाभ देखते हैं । इन्हीं में से एक संगठन या राजनीतिक दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी ) है । जिसके विषय में अमरीका के विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह संगठन विश्व का छठा सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन है।
इस रिपोर्ट में भारत की एकता और अखंडता के दृष्टिगत चिंता व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया गया है कि भारत चरमपंथ से बुरी तरह प्रभावित विश्व का चौथा देश है । जम्मू-कश्मीर में पिछले वर्ष 57% चरमपंथी घटनाएं हुई हैं । अमरीकी विदेश मंत्रालय ने अभी हाल ही में 1 नवम्बर को जारी की गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीपीआई (एम) पर 2018 में 177 चरमपंथी घटनाओं में 311 लोगों की जान लेने का आरोप लगा था । जबकि गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार समूह ने 240 हत्याओं और 833 हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया था ।
इस रिपोर्ट में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को तालिबान (अफ़ग़ानिस्तान), इस्लामिक स्टेट, अल शबाब (अफ्रीका), बोको हराम (अफ्रीका) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ फिलीपींस के बाद छठा सबसे खूंखार चरमपंथी संगठन बताया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) या भाकपा माओवादी भारत का एक प्रमुख भूमिगत नक्सली संगठन है। इस संगठन का भारतीयता , भारतीय संस्कृति और भारतीय सामाजिक परंपराओं में कोई विश्वास नहीं है । स्पष्ट है कि अपने विशेष चिंतन को भारत में लागू करने और थोपने के लिए यह हिंसात्मक गतिविधियों में किसी भी स्थिति तक जा सकता है ।
इस संगठन की स्थापना दो खूंखार नक्सली संगठनों के परस्पर विलय के बाद 21 सितम्बर 2004 को हुई थी । जब माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर अर्थात एमसीसी और भाकपा माले, पीपुल्सवार ने परस्पर विलय कर लिया था । ये दोनों ही संगठन हिंसात्मक गतिविधियों में विश्वास रखते हैं , और हिंसा के आधार पर सत्ता परिवर्तन को पूर्णतया वैधानिक मानते हैं । स्पष्ट है कि अपनी ऐसी सोच के कारण देश की मुख्यधारा में रहकर कार्य करने में इनका कोई विश्वास नहीं है । यह भूमिगत रहकर देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध कार्य करना चाहते हैं । जिससे देश अराजकता का शिकार हो और उसमें से तथाकथित ‘लाल क्रांति ‘ के माध्यम से इनके लिए अनुकूल अवसर उपलब्ध हों ।
21 सितंबर 2004 को परस्पर विलय करने के उपरांत भी इन दोनों दलों के विलय की आधिकारिक घोषणा उसी वर्ष 14 अक्टूबर को की गयी। विलय के पश्चात परस्पर समन्वय स्थापित कर अपने ‘ लक्ष्य की पूर्त्ति ‘ के लिए दोनों संगठनों की एक तदर्थ केन्द्रीय समिति बनी । जिसका महासचिव पीपुल्स वार नेता गणपति को बनाया गया। जिस समय इन दोनों संगठनों का परस्पर विलय हो रहा था , उस समय केंद्र में कॉंग्रेस की मनमोहन सरकार कार्य कर रही थी। 22 जून,2009 को भारत की मनमोहन सरकार ने भाकपा माओवादी को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह निर्णय सचमुच ऐतिहासिक ही कहा जाएगा , क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी किया था वह जनसामान्य में बनी अपनी छवि के विरुद्ध किया था । लोग उन्हें रिमोट से नियंत्रित प्रधानमंत्री के रूप में देखते थे और यह भी मानते रहे थे कि वह जो कुछ भी करेंगे , सोनिया की बिना सहमति से ही करेंगे । इसके उपरांत भी उन्होंने हिंसक गतिविधियों में विश्वास रखने वाले इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर एक साहसिक और सराहनीय कार्य किया ।
प्रधानमंत्री मनमोहन के द्वारा भाकपा माओवादी पर प्रतिबंध लगाने से यह स्पष्ट हो गया था कि अब भाकपा माओवादी के कार्यकर्ताओं पर यूएपीए के तहत कार्रवाई हो सकेगी । आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा जैसे राज्यों में पहले से ही इस संगठन पर प्रतिबंध लागू था। देशव्यापी प्रतिबंध लगने के बाद रैलियों, आमसभा और दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई। साथ ही उनके कार्यालय और बैंक अकाउंट भी जब्त कर लिए गए । गृह मंत्रालय में उच्चस्तरीय बैठक के बाद माओवादियों को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया गया। मनमोहन सरकार ने ये फैसला ऐसे समय में लिया था जब पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में सुरक्षा बल के जवान माओवादियों से लोहा ले रहे थे ।
अमेरिका की ओर से जारी की गई उपरोक्त रिपोर्ट से हमारे देश के विपक्षी दलों को शिक्षा लेनी चाहिए । अभी तक ये विपक्षी दल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत के विरोध में काम करने वाले राजनीतिक दलों या संगठनों को भी संवैधानिक रूप से काम करने वाले संगठन या दल होने का प्रमाण पत्र देते आए हैं । जिसे पूर्णतया अनुचित ही कहा जाएगा । संसार के अन्य किसी भी देश में देश के विरुद्ध काम करने वाले लोगों को देश का शत्रु माना जाता है , परंतु भारत में देश के विरुद्ध काम करने वालों को ‘ देशभक्त ‘ जैसा सम्मान दिया जाता है । इसे केवल सोच का अंतर नहीं कहा जा सकता अपितु इसके पीछे बहुत गहरा षड्यंत्र है । इस षड्यंत्र में सम्मिलित लोग भारत के विरोध में काम करने वाले लोगों को इसलिए प्रोत्साहित करते हैं कि भारत एक दिन टुकड़ों टुकड़ों में खंडित हो जाए ।
अब समय आ गया है जब भारत के नेतृत्व को और विपक्ष को सांझा प्रयास करते हुए उन सभी संगठनों के विरुद्ध एक स्वर से आवाज उठानी होगी जो भारत की एकता और अखंडता के शत्रु हैं । अमेरिका की ओर से जारी की गई इस रिपोर्ट को देश के सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए।