भारत बलूचिस्तान का बहुत प्राचीन हिंगलाज माता मंदिर

हिंगलाज
हिंगलाज
हिंगलाज

डा. राधेश्याम द्विवेदी
पौराणिक मान्यता:-बलूचिस्तान की जमीन पर दुर्गम पहाड़ियों के बीच हिंगलाज माता का मंदिर बसा है। 51 शक्ति पीठ में सबसे प्रमुख है शक्तिपीठ। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यहां सती का सिर गिरा था। इसके बावजूद भारत में भक्त हिंगलाज शक्ति पीठ के दर्शन के लिए तरसते हैं।प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद बलोच नेता अपनी तकलीफ दुनिया के सामने आने पर खुश हैं। उनका कहना है कि भारत को इसलिए भी बलोच लोगों की मदद करनी चाहिए क्योंकि दोनों जगह के लोगों का रिश्ता बहुत पुराना-बहुत प्राचीन है। बलूचिस्तान राज्य मंज हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में स्थित हिंगलाज माता मंदिर हिन्दू भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र और प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है। पाकिस्तान की मां हिंगलाज देवी, मुस्लिम भी सम्मान देते हैं। जब भगवान शंकर माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव नृत्य करने लगे, तो ब्रह्माण्ड को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के मृत शरीर को 51 भागों में काट दिया। मान्यतानुसार हिंगलाज ही वह जगह है जहां माता का सिर गिरा था। यहां माता सती कोटटरी रूप में जबकि भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। माता हिंगलाज मंदिर में पूजा-उपासना का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके हैं। जनश्रुति है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तप किया था। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां मौजूद है।
प्राचीन दर्शनीय प्रतिमा:- हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान में भी पूजी जाती हैं देवी मां, पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में स्थित मां हिंगलाज मंदिर में हिंगलाज शक्तिपीठ की प्रतिरूप देवी की प्राचीन दर्शनीय प्रतिमा विराजमान हैं। माता हिंगलाज की ख्याति सिर्फ कराची और पाकिस्तान ही नहीं अपितु पूरे भारत में है। कराची जिले के बाड़ी कलां में विराजमान माता का मंदिर सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है।माता का मन्दिर यहां इतना विख्यात है कि यहां वर्ष भर मेले जैसा माहौल रहता है। नवरात्रि के दौरान तो यहां पर नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है। सिंध-कराची के लाखों सिंधी श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से 120 कि॰मी॰ उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।
इतिहास:- एक लोकगाथानुसार चारणों की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज थी, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत चिरजाए अवश्य मिलती है। प्रसिद्ध है कि सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है-
“सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥“
ये देवी सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने 8वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़(मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया। ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी। ये सब परम सुन्दरियां थी। कहते है कि इनकी सुन्दरता पर सिंध का यवन बादशाह हमीर सुमरा मुग्ध था। इसी कारण उसने अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता के मना करने पर बादशाह ने उनको कैद कर लिया। यह देखकर छ: देवियाँ टू सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गईं। एक बहिन काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश में ‘तांतणियादरा’ नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी। यह भावनगर कि कुलदेवी मानी जाती हैं, ओर समस्त काठियावाड़ में भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है। जब आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन इनके स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान में ही बस गए। इन्होने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे तेमडेजी भी कहते है। आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से बीस मील दूर एक पहाडी पर बना है। 15वीं शताब्दी में राजस्थान अनेक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। जागीरदारों में परस्पर बड़ी खींचतान थी और एक दूसरे को रियासतो में लुट खसोट करते थे, जनता में त्राहि त्राहि मची हुई थी। इस कष्ट के निवारणार्थ ही महाशक्ति हिंगलाज ने सुआप गाँव के चारण मेहाजी की धर्मपत्नी देवलदेवी के गर्भ से श्री करणीजी के रूप में अवतार ग्रहण किया- “आसोज मास उज्जवल पक्ष सातम शुक्रवार। चौदह सौ चम्मालवे करणी लियो अवतार॥“
मंदिर दर्शन को कैसे जाएं :– इस सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए दो मार्ग हैं – एक पहाड़ी तथा दूसरा मरुस्थली। यात्री जत्था कराची से चल कर लसबेल पहुंचता है और फिर लयारी। माता हिंगलाज देवी की यात्रा कठिन है क्योंकि रास्ता काफी ऊबड़-खाबड़ है। इसके दूर-दूर तक आबादी का कोई नामो-निशान तक नजर नहीं आता। रास्ते में कई बरसाती नाले तथा कुएं भी मिलते हैं। इसके आगे रेत की एक शुष्क बरसाती नदी है। इस इलाके की सबसे बड़ी नदी हिंगोल है जिसके निकट चंद्रकूप पहाड़ हैं। चंद्रकूप तथा हिंगोल नदी के मध्य लगभग 15 मील का फासला है। हिंगोल में यात्री अपने सिर के बाल कटवा कर पूजा करते हैं तथा यज्ञोपवीत पहनते हैं। उसके बाद गीत गाकर अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति करते हैं।मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल चलना पड़ता है क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है इसलिए ट्रक या जीप पर ही यात्रा की जा सकती है। हिंगोल नदी के किनारे से यात्री माता हिंगलाज देवी का गुणगान करते हुए चलते हैं। इससे आगे आसापुरा नामक स्थान आता है। यहां यात्री विश्राम करते हैं। यात्रा के वस्त्र उतार कर स्नान करके साफ कपड़े पहन कर पुराने कपड़े गरीबों तथा जरूरतमंदों के हवाले कर देते हैं। इससे थोड़ा आगे काली माता का मंदिर है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह मंदिर 2000 वर्ष पूर्व भी यहीं विद्यमान था। इस मंदिर में आराधना करने के बाद यात्री हिंगलाज देवी के लिए रवाना होते हैं। यात्री चढ़ाई करके पहाड़ पर जाते हैं जहां मीठे पानी के तीन कुएं हैं। इन कुंओं का पवित्र जल मन को शुद्ध करके पापों से मुक्ति दिलाता है। इसके निकट ही पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है जिसका कोई दरवाजा नहीं। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं। हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं। सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का रूप हैं।

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