भारत में असहिष्णुता मात्र एक भ्रम है !

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intolerenceनरेश भारतीय

आरोप लगाया जा रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है. नवीनतम आरोप लगाया है सिने अभिनेता आमिर खान ने. कुछ लोगों ने सिलसिलेवार अपने सम्मान वापस करने की नई प्रथा चलाई है. सनसनी पैदा करने के अभ्यस्त मीडिया ने गरमागरम बहसें शुरू कर दी हैं.
क्या सचमुच असहिष्णुता इतनी बढ़ गई है कि इसे सार्वजनिक चर्चा का विषय बना कर विश्व भर में देश की बढ़ती प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई जाए? क्या सच यह नहीं है कि श्री नरेंद्र मोदी के आगे बढ़ते कदम उनके राजनीतिक विरोधियों को रास नहीं आ रहे और वे अनावश्यक बहस में देशवासियों को उलझा कर भ्रम का वातावरण पैदा कर रहे हैं? सहिष्णुता का पैमाना राजनीति नहीं अपितु सामाजिक धरातल पर भिन्न मतावलंबियों के बीच परस्पर मेलजोल का स्तर ही हो सकता है.

बेशक कुछ गैरज़िम्मेवार राजनीतिक नेताओं ने भड़कीले ब्यान देकर साम्प्रदायिक एकता को भंग करने का दुष्प्रयास किया है. अगर किसी की भर्त्सना होनी चाहिए तो उनकी होनी चाहिए फिर वह चाहे कोई भी क्यों न हो. लेकिन देश के वर्तमान नेतृत्व को दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो समाज को टुकड़ों में बाँट कर देखने की बजाए समानता के व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए जुटा हुआ प्रतीत होता है. उसने वोट बैंक नष्ट करने में सफलता पाई है. इंसानों को इंसान और भारतीयों को सिर्फ भारतीय मान कर सबको विकास में भागीदार बनाने के लिए संकल्पबद्ध है.

यह अनर्गल प्रलाप जिसमें यह जतलाने का प्रयास किया जा रहा है कि समूचे भारत में असहिष्णुता इसलिए बढ़ रही है क्योंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं यह निश्चय ही सही नहीं है. विश्व में आज कोई भी इसे स्वीकार नहीं करेगा. आमिर खान जैसे प्रसिद्ध अभिनेताओं को चाहिए कि ऐसा भ्रम फैलाने में किसी की राजनीति का हथियार न बनें. वे समझदार हैं और एक प्रतिष्ठित नागरिक हैं. देश ने उन्हें मान सम्मान दिया है और उसके बदले में उनसे एक ज़िम्मेवाराना व्यवहार की ही उम्मीद की जानी चाहिए.

पिछले ६ दशकों में जिस प्रकार विगत शासक वर्ग ने समाज को एकता के सूत्र में बाँधने की बजाए अल्पसंख्यक राजनीति का स्वार्थपूर्ण खेल खेला है देश उसके दुष्प्रभावों को भोग रहा है. मुसलमानों को शेष समाज से अलग थलग रखने का काम उसने उन्हें वोट बैंक बना कर किया. उनके थोथे तुष्टीकरण की प्रक्रिया में उन्हें दिग्भ्रमित किया. उन्हें मात्र अपनी वोट के मोहरे माना. जातीय आधार पर आरक्षण देकर भी समाज को बांटे रखा. जातीय भेदभाव को समाप्त करने के स्थान पर विलगता भाव और पुष्ट होता चला गया. अब समानता कावास्तविक स्वरूप देने के प्रयासों को गलत ढंग से लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर कुछ लोग अपने खोए आधार को पुन: कायम करना चाहते हैं. इसमें मात्र उनका स्वार्थ निहित है.

देश की प्र्बुद्द्ध जनता को चाहिए कि गलत और सही के बीच के अंतर को पहचाने और भ्रम का शिकार न बने. आने वाला समय कड़ी परीक्षा का समय होने वाला है. देश प्रगति पथ पर तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है. साथ ही वैश्विक आतंकवाद के खूनी दरिंदों को रोकने के लिए विश्व तैयारी में जुट रहा है. भारत को उसमें भी अपनी भूमिका निभाने के लिए तत्पर रहना होगा क्योंकि भारत बरसों से आतंकवाद से जूझ रहा है जो उसके आगे बढ़ते कदमों को रोकने में सचेष्ट है. ऐसे वक्त पर देश में एकता और परस्पर सद्भाव के साथ साथ देश रक्षा का भार सबको साँझा करने की आवश्यकता है. हम सब सम्भलें और जो अपना है उसकी रक्षा करें.
व्यर्थ की बहसों में न उलझें.

6 COMMENTS

  1. इस आलेख को प्रत्येक भारतीय भाषा में अनुवादित कर प्रस्तुत करना चाहिए ताकि मीडिया द्वारा फैलाए झूठ को लोग भली भांति समझ सकें। लेखक को मेरा साधुवाद।

  2. श्री आर. के. सिंह और श्री एम. आर. अयंगर द्वारा व्यक्त चिंता एक जैसी है और हाल में कुछ उतावले लोगों के बयानों के कारण ऎसी चिंता देश के अनेक लोगों ने भी दिखाई है. जहाँ तक मेरी जानकारी है इसका संज्ञान उनसे सम्बंधित नेताओं ने लिया है और कुछ कदम भी उठाने की चेष्ठा की है. इस पर भी आपका यह कहना सही है कि कई ऐसे भी लोग हैं जो किसी के भी नियंत्रण में नहीं रहते और आए दिन असहिष्णुता का वातावरण पैदा करते हैं. मैं समझता हूँ कि ऐसे में सिवा धरातल से कुछ प्रबुद्ध लोगों द्वारा इन उतावले तत्वों की भर्त्सना करने के और कोई रास्ता नहीं है.

    यदि कुछ लोगों के वक्तव्यों से अशांति और साम्प्रदायिक सद्भाव को चोट पहुंचती है तो उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई अवश्य होनी चाहिए. हमारा समाज कुछ मामलों में अधिक संवेदनशील है इसलिए क्योंकि देशवासी किसी भी कीमत पर देश में शांति और सद्भाव को आंच नहीं आने देना चाहते. लेकिन असहिष्णुता का भ्रम फैला कर जब कोई व्यक्ति या पार्टी राजनीतिक लाभ लेना चाहे तो उसे भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. मैं आपसे पूर्णत: सहमत हूँ कि ध्यान इस बात पर भी दिए जाने की आवश्यकता है कि शासन सतर्क रहे और समय पर कदम उठा कर स्थिति को बिगड़ने से बचाए. निश्चय ही यह उसका कर्तव्य है.
    नरेश भारतीय

  3. नरेश भारतीय जी,आप विदेश में बैठे हुए हैं,अतः खबरें आपके पास छन कर आ रही हैं.इसीलिये आप शायद वास्तिवकता सेअवगत नहीं हो पा रहे हैं.मैं यह नहीं जानता कि नरेंद्र मोदी के आने के बाद भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है या घटी है,पर मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि हमारी स्वाभाविक असहिष्णुता अब जरा ज्यादा दिखने लगी है.इसका कारण हैं,वे लोग ,जो ऐसी संस्थाओं से जुड़े हैं,जिस पर काबू पाना मोदी सरकार के लिए संभव नहीं है. ऐसे भी हम कमजोरों के प्रति हमेशा असहिष्णु रहे हैं और बलवानों के सामने सहिष्णुता का दिखावा किया है..

  4. भारतीय जी ,
    आपने सही फरमाया कि भर्त्सना तो उनकी होनी चाहिए जिनने साम्प्रदायिक एकता को भंग करने का प्रयास किया है. किंतु यह भी माना जाए कि देश की सरकार की ओर से उसकी भर्त्सना तो नहीं हुई … तब क्या संदेश जा रहा है आम जनता में… उस पर यदि ऐसे लोग सराकर की प्रमुख दल के लोग हों तो… जवाब मेरे पास नहीं है… कृपया मार्गदर्शन करें.

    • श्री ऍम आर अयंगर जी, आपने और श्री आर सिंह ने जो कुछ भी कहा है मुझे स्पष्ट रूप से समझ में आता है. जानता हूँ देश में कुछ ऐसे लोग हैं जिन पर किसी का भी नियंत्रण कारगर सिद्ध नहीं हुआ है. जो भी मन में आता है कहते चले जाते हैं. जहाँ तक मेरे ध्यान में आया है जिसे आप स्वाभाविक असहिष्णुता कह रहे हैं वही तो नहीं होनी चाहिए. इसके बीज अभी भी भारत की उस ज़मीन में हैं जिस पर अनेक असहिष्णु विदेशियों ने कभी कहर ढाया था. लेकिन यह कदापि सही नहीं है कि अनंत काल के लिए हम उस कालखंड की कालिख, जो कब की मिट गई होनी चाहिए थी, उसको अनंत काल तक धोने का ढोंग करते रहें. इस कालिख को धोने का तरीका है देश के सभी नागरिकों के साथ समभाव का निर्माण.
      असहिष्णुता के कारण ही देश का एक बंटवारा हो चुका है. और बंटवारे के हालात पैदा न हों उसके लिए सभी पंथ सम्प्रदायों के
      स्वयम्भू अगुआओं को अपनी वाणी और करनी दोनों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है. मैं विदेश में अवश्य बैठा हूँ लेकिन मेरी जन्मभूमि और संस्कार भूमि भारत है. उसके कण कण से परिचित हूँ. मुझे भी पीड़ा होती है जब देखता हूँ कुछ गलत हो रहा है. हर रोग का इलाज करने में कोई भी सरकार कभी भी सक्षम नहीं होती. असहिष्णुता को सामाजिक धरातल पर अधिक प्रभावी तरीके से रोका जा सकता है. इसीलिए मैंने कहा उन सबकी की भर्त्सना करें जो इसके दोषी हैं.

      • भारतीय जी,
        आपकी टिप्पणी पढ़ी. और आपके विचार जाना.
        हमारी सहिष्णुता उनके पासरह गई है जिनका हम कुछ बिगाड़ नहीं सकते…पूर्वजों ने कहा हीहै…
        क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है…
        इसी लिए गरल वालों का ही ध्य.ान दिया जा रहा है…

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