भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की निरूपम विभूति: चन्द्रशेखर आजाद

chandrashekhar-azadअजीत कुमार सिंह
चन्द्रशेखर आजाद के जन्मदिवस पर विशेष
भारत की स्वतंत्रता के लिए न जाने कितने वीरों ने अपनी जान तक न्यौछावर कर दिया। उनमें से अनेक वीरों के नाम भी ज्ञात नहीं है। जिन वीरों के नाम ज्ञात भी है, उन्हें आज हम भूल जैसे गए हैं। उनके आदर्श से आज की युवा पीढ़ी अनजान है।इन विभूतियों के नाम केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित रह गया है।
भारत का इतिहास रहा है कि यहाँ कई महापुरुष हुए, जिन्होंने देश की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। कई महापुरुषों ने भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए अपने प्राणो की आहुति दी।उन्ही में से एक वीर शहीद-ए-आजम “चन्द्रशेखर आजाद” भी हैं।जिन्होनें अंग्रेजी हुकूमत की नींद हराम कर दी थी।
चन्द्रशेखर अजाद का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। आजाद के माता श्रीमति जागरानी देवी ने कभी सपनों में भी सोचा नहीं होगा कि आगे चलकर उनका लाल भारत का इतना बड़ा क्रांतिकारी बनेगा। आजाद के पिता श्री सीताराम तिवारी भीषण अकाल पड़ने के कारण अपने एक रिश्तेदार का सहारा लेकर “अलीराजपुर” रियासत के ग्राम भावरा में जा बसे थे। इस समय “भावरा” मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में पड़ता है। अंग्रेजी शासन मे पले बढ़े आजाद की रगों मे शुरू से ही अंग्रेजों के प्रति नफरत थी।
चन्द्रशेखर आजाद बचपन से दृढ़ निश्चयी थे।
एक बार आदिवासी गाँव भावरा के कुछ बच्चे मिलकर दीपावली की खुशियाँ मना रहे थे। किसी बालक के पास फुलझाड़ियां, किसी के पास पटाखे थे। बालक चन्द्रशेखर खड़े खड़े अपने साथियों को खुशियाँ मनाते देख रहे थे। जिस बालक के पास माचिस थी, वह माचिस निकालता और एक छोर को पकड़कर डरते डरते माचिस से रगड़ता और रंगीन रोशनी निकलती तो डरकर उसे जमीन पर फेंक देता। बालक चन्द्रशेखर से देखा नहीं गया, वह बोला – “तुम डर के मारे एक तीली जलाकर भी अपने हाथ में पकड़े नहीं रह सकते । मैं सारी तीलियों को एक साथ जलाकर उन्हें हाथ में पकड़े रह सकता हूँ” जिस बालक के पास माचिस थी, उसने वह चन्द्रशेखर को दे दी और कहा – “जो कुछ भी कहा है, वह करके दिखाओ तब जानूँ।” बालक चन्द्रशेखर ने माचिस की सारी तीलियाँ निकालकर अपने हाथों मे ले ली। उसने तीलियों की गड्डी माचिस से रगड़ दी। भक्क से सारी तीलियाँ जल उठी। वे तीलियाँ जलकर चन्द्रशेखर की हथेली को जलाने लगी। असह्य होने पर भी चन्द्रशेखर ने तीलियों को उस समय तक नही छोड़ा जब तक की उनकी रंगीन रौशनी समाप्त नही हो गई।
उक्त घटना से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि चन्द्रशेखर बचपन से ही कितने कठोर और दृढ़निश्चयी थें।
चन्द्रशेखर आजाद बड़े होकर संस्कृत सीखने बनारस जा पहुँचे। उनके फूफा पंडित शिवविनायक मिश्र बनारस में ही रहते थे, उनके द्वारा आजाद को कुछ सहारा मिला तथा संस्कृत विद्यापीठ में दाखिला लेकर संस्कृत अध्ययन करने लगे।
उन दिनों (1921) में बनारस में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आंदोलन की लहर चल रही थी। 1919 में हुए अमृतसर के जालियाँवाला बाग नरसंहार ने देश के युवकों को उद्वेलित कर दिया था। यह आग असहयोग आंदोलन मे ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सड़क पर उतर आये। असहयोग आंदोलन में चन्द्रशेखर ने भी सक्रिय योगदान किया। इस दौरान चन्द्रशेखर भी एक दिन धरना देते हुए पकड़े गये। उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने में पेश किया। जहां मजिस्ट्रेट ने चन्द्रशेखर से व्यक्तिगत जानकारी के बारे में सवाल पूछना शुरू किया-
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम आजाद है।”
“तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?”
“मेरे पिता का नाम स्वाधीन है।”
“तुम्हारा घर कहाँ है?
“मेरा घर जेलखाना है।”
मजिस्ट्रेट इन उत्तरों से चिढ़ गया और 15 बेंत मारने की सजा सुनायी। जल्लाद जितनी बार बेंत मारता चन्द्रशेखर हर बार “भारत माता की जय” बोलता। बालक चन्द्रशेखर की चमड़ी उधड़ गयी परंतु अंतिम तक वह “भारत माता की जय” बोलता रहा।
इस घटना के पश्चात बालक चन्द्रशेखर अब चन्द्रशेखर आजाद कहलाने लगा।
सन 1922 में गाँधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन को एकाएक बंद कर देने के कारण आजाद की विचारधारा मे बदलाव आ गया। और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गये। तभी वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। आजाद क्रांतिकारी बनने के बाद सबसे पहले 1 अगस्त 1925 को चर्चित “काकोरी कांड” (लखनउ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर लखनउ सवारी गाड़ी को रोककर उसमे रखा अंग्रेजी खजाना लूट लिया।) को अंजाम दिया। बाद मे एक एक करके सभी क्रांतिकारी पकड़े गए पर आजाद कभी भी पुलिस के हाथ नही आया।
इसके बाद 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” का गठन किया। चन्द्रशेखर इस दल के कमांडर थे। वे घूम घूम कर इस दल के कार्य को आगे बढ़ाते रहे। भगत सिंह व उनके साथियों ने लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सांडर्स को मार कर लिया। फिर दिल्ली एसेम्बली मंs बम धमाका भी किया। अंग्रेज आजाद को तो नही पकड़ पाये लेकिन बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी पर लटकाकर मार दिया।
4 क्रांतिकारियों को फाँसी और 16 को कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर आजाद ने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारियों को एकत्र कर फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया गया। सभी ने मिलकर एक नया लक्ष्य निर्धारित किया – “हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी वह फैसला है जीत या मौत”
दिल्ली एसेम्बली बम कांड मे आरोपित भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को फाँसी की सजा सुनाये जाने पर आजाद काफी आहत हुए। वे उत्तर प्रदेश के हरदोई जेल में बंद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद जाकर पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिले । आजाद ने पं. नेहरू से आग्रह किया कि गाँधी जी पर लॉर्ड इरवीन से इन तीनों की फाँसी को उम्रकैद में बदलवाने का जोर डालें। नेहरूजी ने जब बात नही मानी तो आजाद ने नेहरूजी से काफी बहस भी की। इस पर नेहरूजी ने आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे भुनभुनाते हुए बाहर निकल गये।
अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखबीर से इन सब घटनाओं के बारे मे चर्चा कर ही रहे थे कि सीआईडी के एसएसपी नॉट बाबर ने भारी पुलिस बल के साथ अल्फ्रेड पार्क में बैठे चन्द्रशेखर आजाद को चारों ओर से घेर लिया। दोनो ओर से भयंकर गोलीबारी हुई। जब आजाद के पिस्तौल में शेष एक गोली बची तो उन्होने अंग्रेजो के हाथो गिरफ्तार होकर मरने की अपेक्षा स्वयं पर गोली चला दी, उन्होंने ने कहा था कि मेरा नाम आजाद है, मैं आजाद हूँ और आजाद ही रहूँगा। और इस परिकल्पना को आखिरकार उन्होंने सिद्ध कर दिखाया तथा भारत माता का यह अनुपम लाल सदा सदा के लिए इस दुनियां से आजाद हो गया।
चन्द्रशेखर आजाद भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की निरूपम विभूति है। भारत की स्वतंत्रता के लिए उनका अनन्य देशप्रेम, अदम्य साहस, प्रशंसनीय चरित्रबल देश के युवाओं को शाश्वत आदर्श प्रेरणा प्रेम देता रहेगा। आजाद का राष्ट्रप्रेम वंदनीय है। इस वीर शिरोमणि को भारतीय समाज हमेशा याद करेगा।
जय हिन्द! जय भारत!!

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लेखक अजीत कुमार सिंह, झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले, भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर लिंग में से एक, बाबा की नगरी बैद्यनाथधाम, देवघर के रहने वाले हैं। इनकी स्नातक तक शिक्षा-दीक्षा यहीं पर हुई, दिल्ली से इन्होंने पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिप्लोमा किया। छात्रजीवन से ही लेखन में विशेष रूचि रहने के कारण समसामयिक मुद्दों पर विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं, बेबसाइट आदि में नियमित लेख प्रकाशित होते रहते हैं। देवघर और रांची में विभिन्न समाचार पत्र से जुड़कर समाचार संकलन आदि का काम किया। वर्तमान में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से प्रकाशित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का मुखपत्र "राष्ट्रीय छात्रशक्ति" मासिक पत्रिका में बतौर सहायक-संपादक कार्यरत हैं। संपर्क सूत्र- 8745028927/882928265

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