इतिहास साक्षी रहा है कि बहुत से अवसरों पर गंगा किनारे बसे नगर प्राचीनतम नगर पाटलिपुत्र ने भारत के इतिहास की दशा और दिशा परिवर्तित की है। पाटलिपुत्र का एतिहासिक व तात्कालिक महत्व सदा जीवित ही नही अपितु चैतन्य व जागृत रहा है। मौर्यों के समय, गुप्तवंश के समय, मुगलों के समय, गुरु गोविंदसिंग के समय, अंग्रेजों के समय और आज स्वतंत्र भारत मे भी पटना का अपना जलवा है ! पाटलिपुत्र की चर्चा गौतम बुद्ध के व चाणक्य के आख्यानों में प्रमुखता से है तो मेगस्थनीज, फाह्यान, अबुल फजल जैसे चिंतकों के लेखन में भी है। तब का प्राचीन पाटलिपुत्र ही आज का पटना है। आज बिहार में सत्ता परिवर्तन के समय यह एक अवसर और है जब पाटलिपुत्र राष्ट्र के इतिहास में अपनी भूमिका को पुनः निभाने जा रहा है।नीतिश का लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़कर त्यागपत्र देना और फिर नरेंद्र मोदी के साथ आ खड़ा होना और भाजपा संग पुनः सरकार बना लेना, बस एक दल परिवर्तन या सत्ता परिवर्तन मात्र नही है! यह घटना इससे भी बहुत आगे की है। इस घटना की धमक और चमक आने वाले दो वर्षों तक सुनाई व दिखाई पड़ती रहेगी। पटना की इस घटना ने 2019 के लोकसभा चुनावों की नियति, नियत व निर्णय को तय कर दिया है। भाजपा के मिशन 2019 में चार सौ प्लस की कहानी की सूत्रधार है यह घटना। इस घटना के नायक भले ही आज नीतिश कुमार दिख रहे हों किंतु आने वाला समय उन्हेंं खलनायक सिद्ध करने हेतु कमर बांधे तत्पर बैठा हुआ है।
हाल ही में देश भर के सेकुलरों व भाजपा विरोधी रणनीतिकारों की “आंखों का तारा” “राजदुलारा” व आशाओं के केंद्र बन गए नीतिश के इतिहास पर गौर करें इसके पूर्व यह भी गांठ बांध लेवें कि समय भाजपा सहित सभी के अपराध लिखने वाला है, तटस्थों के भी!! मोदी-शाह की जोड़ी ने यह दुस्साहस कर लिया है, हां, समय के साथ साथ भाजपा का यह अपराध यदि रणनीति सिद्ध हुआ (यह होना अवश्यम्भावी है) तब यह पाप नही पूण्य माना जायेगा। तो तनिक दीर्घ इतिहास नही बल्कि बस दो तीन बरस की घटनाओं पर ही जरा गौर करें –
2013 में नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री बनने के अभियान में जैसे ही भाजपा व राजग में अपने नाम पर सहमति बनाई गई पर नीतीश कुमार नें एनडीए से बाहर का रास्ता नाप लिया। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात नीतीश ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। मुख्यमंत्री पद छोड़ने का कारण बताया गया कि वे देश भर में कम्युनल फोर्सेस के विरुद्ध बिगुल बजायेंगे व बिहार के आगामी चुनाव की तैयारी गांव गांव में घूम घूमकर करेंगे, तब नीतिश की बातों, अभिनय व अदाओं ने ऐसा जादू दिखाया था कि बड़े बड़े राजनीतिज्ञ, सियासती खलीफा और सत्ता के धुरंधर नीतिश की पालकी को देव पालकी की तरह झुक झुक कर श्रद्धापूर्वक उठा रहे थे। इसके बाद 2015 में आएं तो नीतिश नरेंद्र मोदी के विरुद्ध “महागठबंधन” का नेतृत्व करते हुए दिखे और बिहार में लालू व कांग्रेस की सवारी करके ऐतिहासिक जीत प्राप्त किये। अब इन तीन वर्षों की तीन घटनाओं के बाद वे स्वाभाविक रूप से देश भर के सेकुलरी जमात के निजाम नही बल्कि राजदुलारा बन गए!! बस यहीं पर देश के कमजोर व छिन्न भिन्न हो गए विपक्ष से चूक हो गई!!! देश का विपक्ष नितीश के विषय में वह बात भूल गया – “ऐसा कोई सगा नही जिसे नीतिश ने ठगा नहीं”. राहूल गांधी व लालू प्रसाद यादव की जुगलबंदी “ब्रांड नीतिश” की राजनीति की पिछली घटनाओं व राजनैतिक छापामारी का आकलन नही कर पाई। स्मरण रहे कि इन राजनैतिक छापामारियों से भाजपा का नेतृत्व कर रहे नरेंद्र मोदी व अमित शाह को
भी बचकर चलना होगा।
घटना न. 1- 1994 में नीतिश कुमार ने लालू यादव से अलग रास्ता अपनाया और “समता पार्टी” का गठन किया। यहां से लालू के विरुद्ध हो गए ब्रांड के रूप में नीतिश ने अपनी अलग पहचान स्थापित की और बिहार में एक राजनैतिक ब्रांड बन गए। घटना न. 2 – 1996 में इस समाजवादी और लोहियावाद का परचम लहरानें वाले सेकुलर नेता ने अपना रंग और समता पहचान बदली और समता पार्टी का
भाजपा के साथ गठजोड़ हो गया। इस गठबंधन से ही नीतिश कुमार 1998-99 में केंद्र की भाजपानीत सरकार में मंत्री बने। घटना न. 3 वर्ष 2005 – बिहार में नीतिश की समता पार्टी व भाजपा का बिहार में नया राजनैतिक प्रयोग हुआ जिसके बाद अगले आठ सालों तक नीतीश बिहार में इस गठजोड़ के मुख्यमंत्री रहे। अब यदि हम एक दशक के मध्य थोड़े थोड़े अंतराल में हुई इन आधा दर्जन घटनाओं का अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि नीतिश बला के अवसरवादी हैं। लालू यादव ने एक समय पर, हर सरकार में मंत्री बन जाने वाले रामविलास पासवान पर व्यंग्य कसते हुए हुए उन्हें आदमी नही बल्कि “दिशा सूचक यंत्र” बताया था। आज नीतीश कुमार निस्संदेह इस अद्भुत उपाधि के वास्तविक अधिकारी हैं। कहा जा सकता है कि सत्ता की सुगंध किस दिशा से आने वाली है, यह पता करना हो तो नीतिश का मुंह किस ओर है उससे पता कर लीजिये।
नीतिश भाजपा के इस प्रहसन की पटकथा लगभग एक वर्ष पूर्व से ही लिखी जा रही थी। नीतिश द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की सराहना, नोटबंदी की प्रसंशा फिर 5 जन. 17 को मोदी व शाह का गुरु गोविंदसिंग जयंती पर नीतिश के साथ मंच साझा करना और फिर पटाक्षेपी घटना के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में श्री रामनाथ कोविन्द का समर्थन ये सब इस कथा माला के ही मोती थे। इसमें लालू के भरष्टाचारों की जांच, सीबीआई जैसे क्षेपक बड़े ही आवश्यक तत्व बने। अब देश का विपक्ष बड़ी ही उहापोह में हैं। पूर्व से लकवाग्रस्त कांग्रेस, ममता बनर्जी व वामपंथी अब लालू को न तो निगल पाएंगे और न ही उगल पाएंगे।
ऐसा नही है कि भाजपा से विलग होने के बाद नितीश ने राष्ट्रीय परिदृश्य में स्थापित होने के गंभीर प्रयास नही किये। जब नीतिश ने 2014 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी और जीतनराम को मुख्यमंत्री बनाया था तबके उनके तेवर, तुनक और तीव्रता को याद कीजिये जरा। लगता था कि अगले ही पल वे पूरे भारत को वामन बनकर तीन पगों से नाप लेंगे। यदि उनका जीतनराम मांझी वाला उपक्रम सफल हो गया होता तो नीतिश लालू को कालू ही समझते व कालू ही पुकारते रहते।
इस कालखंड में ही तनिक वह समय भी याद करिये जब नीतिश निहायत ही घोर हिन्दुविरोधी बनकर यह उद्घोष कर बैठे थे कि “कोई हिन्दूवादी नेता इस देश का प्रधानमंत्री नही बन सकता”! तब कांग्रेसियों सहित समूचे विपक्षी दलों ने नीतिश के इस वाक्य को अपनी पंचलाइन बनाकर “मोदी तोड़” अभियान छेड़ दिया था। इससे भी और आगे जाकर इशरत जहां को बिहार की बेटी कहने वाले नीतिश की जिव्हा अब भारत माता की जय बोलते समय कितनी लड़खडायेगी यह भी अब ध्यान देनें योग्य होगा। एक समय नितीश ने मोदी को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि प्रधानमंत्री बनने हेतु टोपी पहनना आवश्यक है। तनिक वह समय व अभियान भी स्मरण कीजिये जब नीतिश “संघ मुक्त भारत” के लिए पूरे देश का प्रवास व नेतृत्व करने को उदधृत व उत्सुक दिख रहे थे। तब की उनकी भाषा व बोली को जरा याद कीजिये।।मेरा आजका आकलन है कि उस बोली को चाहे जो भूल जाये किंतु मोदी-शाह की जोड़ी नही भूलने वाली है और नीतिश को उस बोली का परिणाम अतिशीघ्र भुगतना ही होगा। कुछ अति उत्साही लोग बिहार के घटनाक्रम को “घर वापसी” तो कुछ लोग “सुबह के भूले और सांझ को लौटे” जैसी सुंदर सुंदर संज्ञा दे रहें हैं, किन्तु ऐसा कतई नही है। पिछले तीन वर्षों से मोदी विरोधी व संघ विरोधी राजनीति का चेहरा बन गए नीतीश का यूं पलटी मारना आगामी वर्ष दो वर्ष में ही एक औऱ उद्धव को जन्म देने वाला सिद्ध होगा। नीतिश को अब देश को तो कोई जवाब देने की आवश्यकता ही नही है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर अब वेअप्रासांगिक हैं किंतु बिहार की जनता अवश्य उनका निर्मम हिसाब किताब करने वाली है। यह तो तय है कि 400+ का नारा देने वाली भाजपा न तो नीतिश संग उतना ही रहेगी जितना वह आज उद्धव संग खड़ी दिखती है। मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने “मिशन 2019” का न केवल बड़ा कांटा निकाल दिया है बल्कि शेष विपक्ष को पक्षाघात की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। बिहार ने 2019 की रूपरेखा लिख दी है जो केवल पढ़ सकते हैं वे केवल इस कथा को पढ़ेंगे और आगे बढ़ेंगे, जो इस कथा को समझ सकते हैं वे इसे समझेंगे और ज्ञानी कहलायेंगे किंतु जो इस कथा के मर्म व सार को ग्रहण करेंगे उन्हें “महाप्रसाद” की प्राप्ति होगी। सार यह कि भाजपा राजप्रासाद में महाप्रसाद प्राप्ति हेतु तैयार रहे और शेष विपक्ष अब वनगमन, भूमि शयन व कंद मूल भक्षण हेतु!!!