आयातित उदितराजी नेताओं के रंग से भाजपा बदरंग

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                                      मनोज ज्वाला
      भारत को कांग्रेस-मुक्त बनाने के अपने राजनीतिक अभियान की सफलता के
लिए भाजपा ने चुनावी लाभ-हानि के अनुसार खुद के सिद्धांतो से भी थोडा
समझौता कर जिन नीतियों और  नेताओं को एक रणनीति के तहत आत्मसात किया हुआ
है , उनसे उसका तात्कालिक अभीष्ट तो सिद्ध हुआ है , किन्तु अब अहित भी कम
नहीं हो रहा है । चुनावी जंग जीतने की सुनिश्चितता और कांग्रेस-उम्मीदवार
को हराने की गुणवत्ता से युक्त , किन्तु संघ के संस्कारों व हिन्दूत्व के
विचारों से सर्वथा अनभिज्ञ रहे अथवा संघ-भाजपा के अंध-विरोधी रहे नेताओं
या बुद्धिबाजों को अपने साथ ला कर उन्हें चुनावी टिकट दे कर सीधे संसद
में भेज देने से उसे दो तरह की क्षति का समाना करना पड रहा है । एक तो यह
कि ऐसे आयातित नेताओं को किसी क्षेत्र से सीधे सांसद बना देने अथवा इस
हेतु चुनावी टिकट दे देने से पार्टी के पुराने व निष्ठावान
नेताओं-कार्यकर्ताओं में असंतोष घर कर जाता है , जो स्वाभाविक भी है ।
कभी-कभी तो यह असंतोष बगावत में भी बदल जाता है , जिसका सीधा दुष्प्रभाव
चुनाव-परिणाम पर पडता है , भाजपा ने इसे भुगता भी है । दूसरा यह कि
विरोधाभासी परिवेश व विरोधी विचारधारा से आयातित नेता भाजपा के भीतर
कायदे से घुल-मिल भी नहीं पाता है , उसकी मौलिक नीतियों व मान्यताओं के
अनुसार आचरण  तो कर ही नहीं पाता ; बल्कि ठीक उसके विपरीत भाषण भी करने
लगता है और पूर्व की अपनी मूल वैचारिकी को पार्टी के भीतर-बाहर संगठन से
ले कर सरकार तक में क्रियान्वित कराने की मशक्कत करने लगता है । तब ऐसे
में उस आयातित नेता को शिरोधार्य कर लेने के बाद उसके दबाव में आ कर अपनी
नीतियों को परिवर्तित-क्रियान्वित करने के दौरान पार्टी से उसके बल-बूते
नये समर्थक तो जुटते नहीं , पुराने समर्थक भी उससे नाराज हो दूरी बनाने
लगते हैं । अभी हाल ही में सम्पन्न प्रादेशिक चुनावों में तीन राज्यों की
सत्ता से भाजपा को जो बेदखल हो जाना पडा , उसके मूल में यह भी एक कारण था
। इन्हीं उदितराजों के दबाव में आ कर एससी-एसटी मामले पर भाजपा-सरकार
द्वारा अध्यादेश जारी किये जाने के परिणामस्वरुप उन दोनों समुदायों से तो
उसे उनके मतों का इजाफा नहीं हुआ, किन्तु उसकी प्रतिक्रिया में उसके
परम्परागत समर्थकों ने उसे चेतावनी देने की योजना के तहत ‘नोटा’ का
इस्तेमाल कर सत्ता से कैसे झटक दिया , यह जगजाहिर है ।
         भाजपा को झटका देने वाले कारकों में इसके इन आयातित नेताओं की
कारगुजारियां भी रेखांकित किये जाने योग्य हैं , जो सार्वजनिक तौर पर यह
कहा करते हैं कि “मैं राजनीतिक रुप से भाजपा में हूं , सैद्धांतिक रुप से
नहीं” । आप समझ सकते हैं कि ऐसे नेता भाजपा की नैय्या के लिए भार हैं, या
पतवार हैं ? इतना ही नहीं, हिन्दुत्व के राम व गाय जिस भाजपा की राजनीति
के आधार-स्तम्भ रहे हैं, उसके विरुद्ध  वैश्विक अभियान का अहम हिस्सा रहा
कोई नेता अगर बाद में उसी पार्टी के टिकट से सांसद बन कर अब राम व हनुमान
का अस्तित्व नकारने और गौमांस-भक्षण करने की विकालत करता फिरता है , तो
उस आयातित नेता के ऐसे रंग से भाजपा की छवि बदरंग हो जाती है ।
         मैं भाजपा के एक ऐसे ही आयातित नेता उदितराज की बात बता रहा हूं
, जिन्होंने अभी हाल ही में यह सार्वजनिक बयान दिया है कि “मैं
अंबेदकरवादी हूं. मैं बुद्धिस्ट हूं. मैं बीजेपी में हूं पर आरएसएस में
नहीं हूं.  मेरा अपना स्टैंड है. मैं बीजेपी के साथ राजनीतिक रूप से हूं
, सैद्धांतिक रूप से नहीं । कहा जाता है कि जब तक आरएसएस की फिलॉसफी न
मानें तब तक बीजेपी के मेंबर नहीं हो सकते,  तो मेरे साथ ऐसा नहीं है ।”
मालूम हो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे उदित राज  हिन्दुओं के
धर्मान्तरण तथा सनातन धर्म के उन्मूलन और भारत के विखण्डन की विविध
योजनायें क्रियान्वित करने वाली अमेरिकी संस्थाओं के धन से  एक स्वयंसेवी
संस्था चलाते रहे हैं । ये महोदय ईसाई धर्मान्तरणकारी शक्तियों  द्वारा
भारत में सामाजिक विखण्डनकारी गतिविधियों को अंजाम देने के बावत
प्रायोजित जातीय भेदभाव विषयक झूठे-झूठे मामलों में विभिन्न अमेरिकी
आयोगों के समक्ष भारत सरकार के विरूद्ध  गवाहियां देते रहे हैं । अमेरिका
में रहने वाले एक प्रवासी भारतीय लेखक  राजीव मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक-
‘ब्रेकिंग इण्डिया’ में जातीयता के विषवमन से राजनीति करने वाले इस नेता
की पोल खोलते हुए लिखा है- “ अमेरिका की डी०एफ०एन० नामक संस्था भारत से
वक्ताओं और आन्दोलनकारियों को अमेरिकी सरकार के विभिन्न आयोगों ,
नीति-निर्धारक विचार मंचों एवं चर्चों के समक्ष गवाहियां देने के लिए
बुलाता है, जिसका स्पष्ट  उद्देश्य भारत में युएसए०के हस्तक्षेप को
अपरिहार्य बताना होता है । ऐसे ही एक आन्दोलनकारी हैं- उदितराज, जो अखिल
भारतीय अनुसूचित जाति-जनजाति महासंघ के अध्यक्ष हैं और भारत में हिन्दुओं
का धर्मान्तरण कराने के बाद विख्यात हुए । उनकी इस संस्था द्वारा आयोजित
एक तत्विषयक रैली का गुप्त सूत्रधार व धन-प्रदाता संगठन था ‘ऑल इण्डिया
क्रिश्चियन काउन्सिल” । तो उन्हीं अमेरिकी संस्थाओं के इशारे पर भारत की
राजनीति में दखल करने के लिए उदितराज ने‘इण्डियन जस्टिस पार्टी’ की
स्थापना की थी, लेकिन फरवरी 2014 में वे  उसे  भाजपा को निर्यात कर दिए ,
अर्थात अपनी पार्टी सहित स्वयं भी भाजपा में आयातित हो गए । फिर भाजपा ने
उन्हें टिकट दे दिया , तो वे उत्तर-पश्चिम दिल्ली से सांसद भी बन गए ।
किन्तु अपने यहां यह जो कहा गया है कि ‘गेरुआ पहन लेने मात्र से कोई योगी
नहीं हो जाता’ सो बिल्कुल सही कहा गया है और उदितराजों के लिए ही कहा गया
है । सांसद बन जाने के बाद उदितराज केवल इस उक्ति को चरितार्थ करने में
ही नहीं लगे हुए हैं , बल्कि यह भी सिद्ध करने में लगे हुए हैं कि ‘साज
बदल जाने से मीजाज नहीं बदल जाता’ । भाजपा में आने और उसी की वैसाखी से
संसद में जाने के बाद भी इनका मीजाज वही का वही रह गया- जातीयता के विष
से बजबजाता बदमीजाज । इनकी बदमीजाजी को बयां करने वाले इन्हीं के बयानों
की कुछ बानगी तो देखिए , जो भाजपा पर गाज गिराने के समान हैं । उदितराज
ने गौमांस-भक्षण की वकालत करते हुए अपने एक बयान में कहा है-  “बीफ
(गोमांस) खाने से ही उसेन बोल्ट ने 9 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीत लिए” ।
उन्होंने ओलम्पिक के दिनों में विश्वविख्यात धावक ‘उसेन बोल्ट’ को लेकर
अपने ट्विटर में ऐसा लिखा था- “बोल्ट गरीब थे और ट्रेनर ने उन्हें दोनों
बार बीफ  खाने की सलाह दी थी” । जाहिर है उदित के इस बयान का आशय अपने
समर्थकों को यह बताना है कि वे बीफ खायें और संघ-भाजपा की ओर से बीफ का
जो विरोध किया जाता है, सो गलत है । इसी तरह से उदित राज ने अभी हाल ही
में बीते विधानसभा-चुनावों के दौरान रामायण के हनुमान जी को नकार देने
वाला बयान देते हुए कहा कि “हनुमान का कोई अस्तित्व ही नहीं है , क्योंकि
साइंटिफिक व आर्क्योलाजिकल एविडेन्स या डीएनए टेस्ट अथवा कार्बन डेटिंग
जैसा कोई आधार नहीं है” । उदित के इस बयान पर देश के घोर धर्मनिरपेक्षी
कांग्रेसी नेता व भाजपा के धुर विरोधी कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने भी
आपत्ति जताई थी । गौरतलब है कि उदितराज द्वारा हनुमान जी को नकार देने का
मतलब राम जी को नकार देना भी है, जो भाजपा की राजनीति के केन्द्र में रहे
हैं  । जबकि  कांग्रेस-कम्युनिष्ट नेताओं की ओर से राम को काल्पनिक कहे
जाने पर भाजपा उन्हें जनता के बीच कठघरे में खडा करती रही है , किन्तु
अपने इस आयातित उदितराज के ऐसे बदमीजाज की गाज इत्मीनान से झेल रही है ।
वस्तुतः ऐसे आयातित नेता भाजपा ही नहीं , बल्कि हिन्दुत्व-प्रेरित
राष्ट्रवादी राजनीति के किसी भी सांचे में समायोजित हो ही नहीं सकते,
क्योंकि इनके मानस का निर्माण हिन्दू समाज के विखण्डन व भारत राष्ट्र के
विघटन पर आमदा पश्चिमी शक्तियों के धन बल बुद्धि नीति व नीयत से खाद पानी
हासिल कर निर्मित हुआ होता है । तभी तो उदितराज सरकार को यह भी सुझाव
देने से नहीं हिचकते कि केरल के बाढ-पीडितों को राहत पहुंचाने के लिए
पद्मनाभ मन्दिर की प्राचीन स्वर्ण-सम्पदा का इस्तेमाल किया जाए ।
हिन्दू-मन्दिरों की सम्पत्ति को गैर-हिन्दू प्रयोजन के लिए अधिग्रहित
करने की सलाह देते रहने वाले उदितराजों को चर्चों व मस्जीदों की अकूत
सम्पदायें या तो सूझती नहीं हैं या उनकी चर्चा करने की हिम्मत नहीं होती
। अतएव, भाजपा को चहिए कि वह ‘कांग्रेस-मुक्त भारत अभियान’ के चक्कर में
अभारतीय सोच वाले ऐसे उदितराजी नेताओं का आयात कर राष्ट्रवादी राजनीति की
अपनी जमीन को प्रदूषित करने से बचे ।
•       मनोज ज्वाला

10 COMMENTS

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  1. आ. इंसान जी की टिप्पणी नें ध्यान खींचा. आलेख भी पढा. नीति निर्धारकॊं के सामने समस्या तो होगी ही. मेरा अनुमान =>(१) राजनीति में आपको तात्कालिक लाभ और दूरगामी लाभ, इन दोनो पर विचार कर निर्णय लेना पडता है.(२) पॉवर में टिके/रहे बिना आप विशेष कुछ भी कर नहीं सकते. मात्र शाखा चला सकते हैं. (३) वैसे ये भा ज पा की अवश्य विवशता(?) होगी.(४) राजनीति में तात्कालिक समझौता स्वीकार्य मानता हूँ. (५) पर अंततोगत्वा सिद्धान्त ही लक्ष्य होना चाहिए. (६) यह राजनीति है; चाणक्य (की कूट) नीति मानी जा सकती है. पर इसे सत्यवादी हरिश्चंद्र की दृष्टि से मैं नहीं देखता.
    ***(ॐ)संघ इस विषय पर अवश्य ध्यान दे रहा होगा.*** राजनीति सर्पाकार मार्ग से आगे बढा करती है…सीधी रेखाएं मात्र भूमिति में होती है. नदी को भी पहाड के बगल से होकर आगे बढना पडता है.
    मनोज जी का आलेख सही चेतावनी है. Win the war not a battle. शिवाजी की नीति थी. मेरी अपनी मर्यादित बुद्धि से जो समझा वही लिखा है. टिप्पणियाँ पढने सिद्ध हूँ. आप विद्वानों को सादर नमन. इन्सान जी आप को भेजी इ मैल वापस आ जाती है. mjhaveri@umassd.edu पर एक मैल भेजिए.
    .

    • अधिकारी-वर्ग से दलित वर्ग में सक्रिय-प्रतिभागी से राजनीतिज्ञ उदित राज केवल अपने लिए ही अवसरवादी डॉ. उदित राज हैं| दरिद्र देश में अधिकारी-वर्ग की प्रतिभा और विशेषाधिकृत उपलब्धियां भी नौ कक्षा तक पढ़े एक तेजस्वी यादव के सामने फीकी पढ़ जाते देख कोई भी महत्वाकांक्षी व्यक्ति राजनीति के व्यवसाय में सेंध लगाने का प्रयास करेगा| और, स्वयं उदित राज के शब्दों में, “उदित राज की बड़ी आलोचना इस बात को लेकर हो रही है कि वे भाजपा चले गए हैं। क्या भारतीय जनता पार्टी में जाकर चापलूसी कर रहे हैं? या स्वयं के स्वार्थ की सिद्धि कर रहे हैं? बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर पूरे जीवन कांग्रेस को कोसते रहे। भारत-पाक बंटवारे के उपरांत जब उनकी संविधान सभा की सदस्यता समाप्त हुई तो कांग्रेस ने अपने महाराश्ट्र के मंत्री पीपुल जैकर का इस्तीफा दिलवाकर वहां से बाबा साहेब को चुनवाकर संविधान सभा में भेजा। उसके बाद बाबा साहेब को न केवल कानून मंत्री बनने का अवसर मिला बल्कि संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष भी बने। कांग्रेस में जाकर उन्होंने समाज के लिए किया तो डॉ उदित राज भारतीय जनता पार्टी में जाकर समाज की जो लड़ाई लड़ रहे हैं, कैसे गलत हैं?” कहते भाजपा में सेंध लगा आज सांसद बने बैठे है!

  2. उदित राज में चरित्र की दुर्बलता के रंग लिए मनोज ज्वाला जी अपने राजनैतिक निबंध भाजपा की बदरंगी अवश्य दिखाते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि युगपुरुष मोदी के नेतृत्व में भाजपा के नए स्वरूप का आयातित दलित-उद्धारक उदित राज द्वारा दलित-व्यापारी कांग्रेस को हराने की रणनीति रही थी| मैं समझता हूँ कि राष्ट्रीय राजनीतिक दल भाजपा पिछले सत्तर वर्षों से भारतीयों के माथे पर लगे दलित के लेबुल को उतार समाज में समावेशी प्रभार लाने में वचनबद्ध है| दो वर्षों से अधिक पहले दिए उनके वक्तव्य को मीडिया में उछालना उतना ही अनावश्यक है जितनी अगस्त १३, २०१३ के दिन भड़ास४मीडिया पर प्रकाशित उदित राज द्वारा चुनौती, “चारों शंकराचार्य मुझसे संवाद में जीत कर दिखाएं : उदित राज|” अरविन्द केजरीवाल उदित राज और अब कन्हैया कुमार, सब अवसरवादी हैं और इस कारण राजनीति में राष्ट्रविरोधी तत्वों के हाथों खेलते देश का सर्वनाश करने में वे कोई संकोच नहीं करेंगे| उन्हें रोकना होगा|

  3. SIR अपने बहुत ही अच्छा आर्टिकल लिखा है मै आपकी बात से सहमत हु आप इसी तरह पूरी मेहनत से पोस्ट डालते रहिये | लोगो को जागरूक करते रहिये | आपकी इस मेहनत को देख कर हममे भी जोश आया है |

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