प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने प्रायः सभी महत्वपूर्ण विदेशी दौरों में नरेन्द्र मोदी ने यह बात हरेक अंतर राष्ट्रीय फोरम पर उठाई है कि भारत अपने नागरिकों के विदेशी बंकोंग में जमा काले धन को जल्द से जल्द वापस लाना चाहता है. हाल ही में आस्ट्रेलिया दौरे में भी ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में और वहीँ ग्रुप- 20 की बैठकों में भी मोदी ने काला धन वापसी का मुद्दा जोर शोर से उठाया. इससे यह उम्मीद तो मजबूत होने लगी है कि यह सरकार पिछली केन्द्र सरकार की तरह काला धन वापसी के लिए मामले को टालने या ठंडा करने की गुस्ताखी तो कतई नहीं करेगी. मोदी संभवतः इस जन-भावना को भली-भांति महसूस करते होंगे कि यदि इस बार जनता की उम्मीदों से खिलवाड किया गया, तो जनता के आक्रोश को रोकना असंभव हो जायेगा. मोदी के कार्य और व्यवहार को लेकर चाहे कितनी भी आलोचना होती रही, लेकिन जनता को उनसे उम्मीदें हैं, और मोदी सरकार को इस पर खरा उतरने का भारी दबाव है.
तमाम वादों और शोर शराबे के बाद नरेंद्र मोदी जब प्रधान मंत्री बने, तो करोड़ों देशवासियों को यह उम्मीद बांधने लगी थी कि अब व्यवस्था सुधरेगी. मोदी ने कुछ सख्त कदम भी उठाये. उनके नतीजे भी दिखने लगे. यह भी नज़र आने लगा कि अब भ्रष्टाचार के लिए गुंजाइश नहीं है. सब कुछ ठीक होने लगा, लेकिन भाजपा के सब वादों में से एकदम खास, यानि काला-धन वापसी का वादा कहीं फुस्स हो रहा था. आनन-फानन में सरकार ने कुछ खातेदारों के नाम भी उजागर कर दिए. एकबारगी लगा कि यह तो खोदा पहाड़ और निकली चुहिया- जैसी बात हो गई.
आखिरकार अदालत की चाबुक निकली और जब सर्वोच्च न्यायालय ने दो टूक शब्दों में अपना फरमान सुनाया कि सरकार खातेदारों के नाम लिफाफे में बंद करके अदालत में जमा करे. अदालत खुद ही देख लेगी कि कौन खातेदार सही है और किसके खाते की जाँच करना जरुरी है. दरअसल सरकार इस तर्क के सहारे बचने की पतली गली खोज रही थी कि विदेशों में पैसा रखने वाले सभी खातेदार कालाधन रखने के दोषी नहीं हो सकते. सही भी है. लेकिन शब्दों के तमाम जमा- कह्र्च के बाद भी सरकार जिस तरह से एक दो तीन खातेदारों के नाम उजागर कर रही थी, उससे नीयत में खोट का अंदेशा बढ़ रहा था. यह तो मोदी सरकार की छवि के लिए ही ठीक हुआ कि सभी छः सौ सत्ताईस खातेदारों के नाम सर्वोच्च अदालत को सौंप दिए गए. अदालत भी यह समझती है कि यदि किसी उद्योगपति ने अपनी वास्तविक कमाई को विदेशी खता में जमा किया है तो उसे काला धन के मामले में लपेटा नहीं जा सकता. अदालत ने ठीक ही कहा कि सरकार यह चिंता करना छोड़ दे कि सभी खातेदारों में कौन वास्तव में काला धन रखने का दोषी है. इसकी न जांच तो सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एस.आई.टी.)कर लेगी.
अदालत की इस सख्त चाबुक से चोट खाने पर आखिरकार केंद्र सरकार ने स्विस बैंक में अकाउंट रखने वाले 627 भारतीयों के नाम सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र द्वारा पेश की गई सूची के सीलबंद लिफाफे को नहीं खोला और कहा कि इसे केवल विशेष जांच दल (एसआईटी) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ही खोलें। सर्वोच्च अदालत ने यह साफ़ कहा है कि एसआईटी एक महीने के भीतर स्थिति स्पष्ट करे और अपनी स्टेटस रिपोर्ट दे साथ ही 31 मार्च 2015 तक इन खातों की जांच पूरी कर करे। सरकार द्वारा दिए गए सीलबंद लिफाफे में तीन दस्तावेज हैं, जिसमें सरकार का फ्रांसीसी सरकार के साथ हुआ पत्र व्यवहार, नामों की सूची और स्टेटस रिपोर्ट शामिल हैं। अदालत को सरकार के अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने यह भी बताया है कि खाताधारकों के बारे में ब्योरा वर्ष 2006 का है, जिसे फ्रांसीसी सरकार ने वर्ष 2011 में केंद्र सरकार को भेजा था।
अदालत को दी गई सूची में चार तरह की सूचनाएं हैं- नाम, पता, खाता नंबर और खाते में जमा राशि। नाम और पते के मिलान के बाद 136 लोगों या प्रतिष्ठानों ने अपना खाता होने की बात कबूल कर ली है। हालांकि, इनमें से कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन वे आयकर और जुर्माना चुकाने को तैयार हैं। 418 में से 12 पते कोलकाता के हैं, लेकिन छह ने ही माना है कि यह उनका खाता है। खाताधारकों की लिस्ट में सबसे ज्यादा रकम वाला अकाउंट 1.8 करोड़ डॉलर वाला है, जो देश के दो नामी उद्योगपतियों के नाम से है। इस सूची में सबसे ज्यादा नाम मेहता और पटेल सरनेम वाले हैं। इस आधार पर अब यह कहा जा सकता है कि कालाधन की वापसी के लिए सरकार को जो करना था, वह कर चुकी है. मोदी सरकार को इस बात का श्रेय देना होगा कि उसने नामों की सूची में किसी तरह का हेरफेर नहीं किया, और न ही किसी नाम को छिपाने की कोशिश की. अब यह बात साफ़ हो गई है कि गेंद अदालत के पाले में है और सरकार द्वारा गठित एस.आई.टी. खुद ही इन खातेदारों की जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी. शायद काला धन वापसी लिए अदालत की यह सख्ती जरुरी ही थी. अदालत की पहल देश के लिए निश्चित ही दूरगामी और ऐतिहासिक साबित होगी. इस बीच प्रधानमंत्री भी अपने सभी विदेशी दौरों में वहां के राष्ट्र प्रमुखों से यह आग्रह कर रहे हैं कि उनके देश के साथ भारत और अन्य देशों की जो संधि हुई है, उसमें जरुरी संशोधन करते हुए काला धन के मामले में किसी भी देश को वांछित जानकारी अवश्य उपलब्ध कराएं. अभी तक जापान, स्विट्जरलैंड सहित कुछ देश मोदी के इस प्रस्ताव पर सहमत भी हो गए हैं. हाल ही में प्रधान मंत्री के आस्टेलिया दौरे में वहां के प्रधान मंत्री ने भी भारत को इस मामले में सहयोग का भरोसा दिलाया है, इस आधार पर यह सम्भावना प्रबल होने लगी है कि अब देश में काला धन वापस लाने के प्रयासों को गति मिलेगी.
काले धनका (Critical Path) “निर्णायक पथ” पूरा जाँच ले।
(१)
बँन्क की सूची २००६ की है। अभी ही २०१४ चल रहा है। अर्थात ८ वर्ष की अवधि में खाता धारकों को स्विस बॅन्क ने हीं समय दिया है।(बॅन्क ढोंगी है)
(२)
इन ८ वर्षों में से (७+) वर्ष मोदी जी का शासन नहीं था। बॅन्क ने खाताधारकों को अवसर दिया, ये नम्बर वालें खातों से, धन निकाल,अन्य, देशों में निवेश या खाता खोल सकते हैं।
(३)
निवेश ही किया होगा। छोटा खाता खोल भी सकते हैं।
(४)
दक्षिण अमरिका के १२-१५ बनाना रिपब्लिक भूखे हैं, निवेश के। दूसरा पासपोर्ट भी देते हैं।
(५)
शंका है, वहाँ काफी अपराधी छिपकर पैसों से विलासी जीवन जीते हैं।
(६)
काला धन भारत आने की विशेष अपेक्षा नहीं । कानून भी ढोंग कर रहा है। कानून संतोषा अवश्य जाएगा। पर चिडिया कब की खेत चुग चुकी है।
(७)
पर जिन खाता धारकों के नाम मिलते हैं। वे धन को संबंधियों में बाँटना चाहेंगे, उसका निर्णायक पथ(कठिन है) ढूंढा जाए। और हर बिन्दु पर, उसे निष्क्रिय किया जाए।
(८)
बहुत आशा नहीं रखता। कानून से ये चतुर लोग वकीलों से परामर्श लेकर ही छूट जाएंगे।
इस सारे बखेडे का बडा अपराधी यु पी ए है।
(९)
मोदी का दोष बिलकुल नहीं मानता।मोदी अपनी सारी शक्तियाँ राष्ट्र के कल्याण में लगा रहा है।
(१०)
नामों को प्रकट भी नहीं किए जा सकते। क्या कानून हैं?
(११)
मुझे काला धन वापस आने की संभावना दिखाई नहीं देती।
यदि अन्य देश भी मान जाएं जिसका सम्भव कम है, तो भविष्य के लिए कुछ हो सकता है।
(१२)
८ वर्षॊं में सारे खाता धारक वहां जा जा कर खातों को “स्वच्छ ” करके आए हैं।
और सोनिया गांधी भी निजी बहाना बनाकर क्या क्या कर, करवा कर वापस आयी थीं।
मैं विशेष संभव नहीं देखता।
पर दोष भी मोदी जी को बिलकुल नहीं देता। सारे मानव सुलभ प्रयास वें कर रहे हैं।
लेखक को धन्यवाद