काबुल में बम फटते रहेंगे

काबुल में हुए बम-विस्फोट में लगभग 100 लोग मारे गए और चार सौ घायल हुए। यह बम-विस्फोट पिछले 20 वर्षों में सबसे भयानक था। यह कब हुआ ? तब जबकि अफगान लोग रमजान के उपवास रखे हुए हैं। रोज़ादार इंसानों की हत्या करने वाले लोग अपने आपको मुसलमान कहें तो उनको शर्म आनी चाहिए। ये हत्यारे तालिबान हों या दाएश के लोग, ये मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ये किन्हें मार रहे हैं ? मुसलमानों को।

काबुल के प्रसिद्ध मोहल्ले वजीर अकबर खान की एक-एक गली मेरी छानी हुई है। वहीं विस्फोट हुआ। वहां कई दूतावास हैं। कड़ी सुरक्षा है। विदेशी और गैर-मुस्लिम दो-चार हैं जो हताहत हुए हैं बाकी सभी काबुल के बाशिंदे मुसलमान हैं। पठान, ताजिक, हजारा हैं। भारतीय दूतावास भी वहीं है। शायद भारत को डराने के लिए यह विस्फोट किया गया है। पहले भी काबुल, जलालाबाद और हेरात के हमारे दूतावासों पर हमला हुआ है। हमारे लोगों को जरंज-दिलाराम सड़क पर भी पहले मारा गया है। यह सिलसिला बंद होता नहीं दिखता।

अफगान सरकार ने इस हमले के लिए भी पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है और पाकिस्तान सरकार इससे साफ-साफ इंकार कर रही है। ये दोनों देश ऐसे हैं कि उनके बीच न तो कोई सुपरिभाषित और सुनियंत्रित सीमा है और न ही कोई मर्यादा है। सीमांत पर रहने वाले कबीले अपनी मर्जी के मालिक हैं। दोनों पक्ष उन्हें अपने-अपने स्वार्थों के लिए इस्तेमाल करते रहते हैं।

अफगानिस्तान में शांति तभी हो सकती है जबकि वहां बाहरी हस्तक्षेप बंद हो। पहले रुसी हस्तक्षेप और फिर अमेरिकी हस्तक्षेप ने अफगानिस्तान की राजनीति को चौपट कर दिया है। अफगान लोग आजाद तबियत के लोग हैं। अफगानिस्तान में मेरी दर्जनों यात्राओं के दौरान सभी पक्षों से मैंने यह जानने की कोशिश की है कि आम पठान लोग पिछले 37—38 साल में बनी काबुल की सरकारों को पूरी तरह क्यों नहीं स्वीकार करते हैं ? वे बबरक कारमल और नजीबुल्लाह सरकारों को रुसी कठपुतलियां कहते रहे और करज़ई व अशरफ गनी सरकारों को अमेरिकी कठपुतलियां मानते रहे हैं। जब तक अफगानिस्तान से सारी विदेशी फौजें वापस नहीं होंगी और शुद्ध स्वदेशी सरकार स्थापित नहीं होगी, ये बम-विस्फोट होते रहेंगे।

 

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