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वरदान हैं नए कृषि कानून

  • श्याम सुंदर भाटिया

काश्तकारों ने नए कानूनों को लेकर पदमश्री श्री भारत भूषण त्यागी से उनका नजरिया जाना हालांकि पदमश्री की राय इन कानूनों की मुखालफत करने वालों से एकदम जुदा है। उन्होंने इन कानून को किसानों के लिए वरदान बताते हुए कहा, ये महज कानून ही नहीं बल्कि किसान भाइयों के लिए स्वर्णिम द्वार के मानिंद साबित होंगे। पदमश्री श्री त्यागी इन कानूनों में किए गए प्रावधानों में सुर से सुर मिलाते हैं। कहते हैं, इससे न केवल उत्पादों की लागत घटेगी बल्कि आय में भी वृद्धि होगी। एक देश-एक बाजार को धरतीपुत्रों का भाग्यविधाता बताते हुए कहते हैं, इससे वे शोषण मुक्त हो जायेंगे। कानूनों की आड़ में हो रही जमकर सियासत की आलोचना करते हैं। पदमश्री कहते हैं, एमएसपी किसानों और उपभोगताओं दोनों के हित में है। नए कानूनों से राष्ट्र, उत्पादक और उपभोक्ता तीनों खुशहाल होंगे। जमाखोरी खत्म होगी। लॉबिंग की विदाई हो जाएगी। विकेन्द्रीयकरण होगा। पदमश्री श्री कहते है, दरअसल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विरोध भी जायज नहीं है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का डिजाइन समझना होगा। सच्चाई यह है, इसमें किसानों की साझेदारी होती है। सरकार की भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर पैनी नजर होती है। काश्तकारों को केवल प्रोडक्ट बेस फार्मिंग की मानसिकता को त्यागना होगा। यदि किसान सच में खुशहाल होना चाहता है तो उसे बाजार की बारीकियों को भी समझना होगा।

श्री त्यागी नए कानूनों को नोटबंदी के मानिंद कमीशन बंदी करार देते हुए कहते हैं, इससे पूरे देश के 135 करोड़ लोगों पर सकारात्मक असर पड़ेगा, जबकि पुराने कानूनों के चलते 73 सालों में धरतीपुत्रों की स्थिति बद से बदतर हो गई। काश्तकार अब तक ग्राहक से सीधे तौर पर नहीं मिल सकते थे। आढ़ती ही फसलों को खरीदते और दाम भी  वे ही तय करते। देश का दुर्भाग्य यह है, वाजिब मूल्यों पर खरीद-फरोख्त न होने पर आपने किसी भी  मंडी के आढ़ती को आत्महत्या करते नहीं सुना होगा, जबकि काश्तकारों को चौतरफा खुदकुशी करते सुना होगा।

पदमश्री बोले, कोई भी कंपनी अपने उत्पाद का दाम खुद ही तय करती है, लेकिन काश्तकार ऐसा नहीं कर पाते हैं। हकीक़त में सारा का सारा रिस्क किसान की उठाता है, जबकि मंडी के आढ़ती का कोई भी रिस्क नहीं होता है। 73 बरसों से यह ही व्यवस्था है, किसान अपना माल मंडी में बेचेगा। मंडी से ही बाहर जाएगा। गेहूं की खरीददारी में तो कानून को ठेंगा दिखाते हुए 40 प्रतिशत गेहूं मंडी से बाहर ही बिक जाता रहा है। अब सरकार ने इस गैर कानूनी काम को कानूनी जामा पहना दिया है।

धरतीपुत्रों को पहले एक स्टेट से दूसरे स्टेट में माल बेचने में दुश्वारियां ही दुश्वारियां होती थीं, लेकिन अब नए कानूनों से क्रांतिकारी बदलाव होंगे। अब शॉपिंग मॉल, रिलायंस मार्ट, जियो मार्ट किसानों से सीधे खरीददारी कर सकेंगे। खरीददारी के वक्त इनके सामने पहले लॉ आड़े आता था। ये कारोबारी अब खेत से ही सीधे मॉल ले लेंगे। ऐसे में किसानों का भाड़ा भी बचेगा और एमएसपी या उससे अधिक दाम भी मिलेगा। सच यह है, इस नए कानून के बाद किसानों की सूरत और सीरत दोनों ही बदल जाएंगी। धरतीपुत्रों की बल्ले -बल्ले होगी जबकि देशभर के करीब मंडी आढ़ती घाटे में रहेंगे।  पदमश्री इन बिलों का विरोध करने से पहले किसानों को खेती की समीक्षा करने की सलाह देते हैं। मसलन लागत यानी ट्रैक्टर, खाद, बीज, दवा सबकी खरीददारी बाजार से ही होती है। श्री त्यागी कहते हैं, कड़वा सच यह है- खेती से पहले, खेती के बाद और परिवार चलाने के लिए बाजार पर ही निर्भर हैं। गॉव-खेती शोषण के चंगुल में फंसी हैं। वह अपनी यह बेशकीमती सलाह देना भी नहीं भूलते हैं, जैविक खेती करते हुए कृषक उत्पादक संघों के जरिए अपनी कंपनी भी खड़ी कर सकते हैं। काश्तकारों को अपनी कंपनी खोलने से कतई डरने की जरुरत नहीं है।             

खेती प्रेम के प्रति भी उन्होंने खुलकर गुफ़्तगू की। बोले, जब मैंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की, तब मेरे परिवार वालों ने खेती करने के लिए कहा। उस समय मुझे खेती के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं थी, लेकिन धीरे धीरे यह बात जरुर पता चली कि शुद्ध भोजन, हवा और पानी ये मनुष्य की मौलिक जरुरतें हैं। साथ-साथ लोग गांव से शहर की तरफ पलायन करते हैं। मैंने सोचा कि क्यों न गांव में ही ऐसे विकल्प खोजे जाएं, जिससे पलायन से बचा जा सके। मुझे खेती करने की प्रेरणा माता-पिता से मिली। जैविक खेती के प्रबल पैरोकार एवं आत्मविश्वास के लबरेज श्री त्यागी कहते हैं, उत्तर प्रदेश में 100 प्रतिशत आर्गेनिक खेती होने लगेगी। आर्गेनिक खेती समझ के साथ की जाए। काश्तकारों ने अभी तक इनपुट्स पर काम किया है। मतलब अभी तक हम खेती को बाजार से जोड़ते थे, लेकिन खेती को सीधे-सीधे प्रकृति से जोड़ें तो बहुत जल्द ही काश्तकारों की किस्मत बहुर जाएगी। छोटे किसान आर्गेनिक खेती को महंगा न समझें बल्कि इसको वरदान समझें। हम अभ्यस्त हो गए हैं कि हम खेती की सभी चीजें बाज़ार से खरीद कर लाते हैं, लेकिन आर्गेनिक खेती में आपको बाज़ार जाने की कोई जरुरत ही नहीं पड़ेगी, इसलिए मैं यह कहना चाहूंगा कि आर्गेनिक खेती में लागत खरीदनी नहीं है। यह प्रोडक्ट मैनेजमेंट है। इनपुट मैनेजमेंट नहीं है। मेरा मानना यह है कि यह छोटे किसानों के लिए वरदान है। ये योजनाएं मध्यम किसानों के लिए वरदान हैं। मल्टीपल टाइप खेती को करना जरुरी है। प्रकृति के नियम को देखा जाए तो अधिक फसलें एक साथ उगती हैं, इसलिए मैं अपनी खेती में 9 से 10 फसलें एक साथ करता हूं , लेकिन इसके विज्ञान को समझना जरूरी है। जैसे कितनी दूरी पर किस बीज को किस समय लगाया जाए, इसके बारे में पता होना चाहिए। क्लाइमेट जोन के हिसाब से ही बीजों को लगाएं।

पद्मश्री आगे कहते हैं, प्रकृति मौसम के साथ चीजें उगाने की इजाजत देती है, लेकिन हम बेमौसम चीजें उगाना चाहते हैं। इसीलिए जितनी जल्दी इसे बंद कर देंगे, खेती कमाई देने लगेगी। जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। खेती के अध्ययन और अभ्यास दोनों  को अलग नजरिए से देखना चाहिए। अध्ययन का मतलब प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था से है और अभ्यास का मतलब जल-वायु मौसम, खेती और आबोहवा को  देखकर करना है। इंजीनियर्स छोटा – सा पुल बनाते हैं तो उसका पूरा खाका तैयार करते हैं । फिर किसान क्यों  नहीं, जमीन, बीज, उत्पादन और मार्किट का पूरा ब्योरा रखे। खासकर जैविक खेती के मामले में किसान को चाहिए पूरी डी.पी.आर. – डिलेट प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाए। यह सही मायने में शोध जैसा कार्य है, इसीलिए हमें  खेती का पूरा लेखा-जोखा रखना चाहिए। किसान को पता होना चाहिए की खेती में क्या पैदा होने वाला है और जो पैदा होगा वह बेचा कहां जाए। कृषि पवित्रता और ईमानदारी का काम है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहां स्वायत्त किसान के रूप में स्वयं को स्थापित करना है। प्रकृति के साथ चलें। विरोध उचित नहीं है शोषण के बावजूद किसान समाज और बाजार को बहुत कुछ देता है।

पदमश्री श्री त्यागी कहते हैं कि यदि आप 100 काश्तकारों से बात करेंगे तो 90 प्रतिशत लोगों का जवाब होगा कि कृषि कार्य घाटे का सौदा है। लागत ज्यादा और मुनाफा कम लेकिन मैं कहता हूँ कि धरती सोना उगलती थी और उगलती है। इसके लिए आपको पांच बातें समझनी होगी- उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रमाणीकरण, बाजार और पांचवी अहम बात है प्रकृति। यदि ये बातें आपकी समझ में आ गयीं ,तो मिश्रित एवं सहफसली खेती करके साल में एक औसत किसानी से चार गुना आय की जा सकती है। किसान बहुत होशियार है, उसे कुछ खेती का तरीका बताने की जरुरत नहीं है, जरुरत है तो उसकी समझ विकसित करने की, क्योंकि  खेती प्रकृति का दिया उपहार है, इसीलिए उसे प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था समझना होगा। प्रकृति में एक साथ कई चींजे एक साथ पैदा होने का नियम है। हम कहीं गेंहू तो कहीं गन्ना ही गन्ना उगाते हैं। प्रकृति में कीड़े पैदा होने का नियम है तो हम उन्हें मारते क्यों है? प्रकृति में खरपतवार होना तय है तो हम उसे नष्ट क्यों करते हैं, इसीलिए कीड़े ज्यादा उगते हैं। खरपतवार होता है यानी हम प्रकृति का विरोध कर खेती करना चाहते है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच युद्ध जैसा है। जितनी जल्दी इसे बंद कर देंगे,खेती कमाई देने लगेगी।

उल्लेखनीय है, श्री त्यागी 1974 के दिल्ली यूनिवर्सिटी से गणित, भौतिक और रसायन विज्ञान में स्नातक हैं। राष्ट्रपति ने 16 मार्च, 2019 को उन्हें जैविक खेती में अमूल्य योगदान के लिए पदमश्री अवार्ड से सम्मानित किया। सम्मान समारोह के तुरंत बाद श्री त्यागी बोले, यह अवार्ड किसानों और जैविक खेती को समर्पित है। दिल्ली से करीब सौ किलोमीटर दूर यूपी के बुलंदशहर की स्याना तहसील के गॉव बीटा के बाशिंदे श्री त्यागी के पास 50 बीघा जमीन है। एक अनुमान के मुताबिक वह हर माह पांच सौ से लेकर एक हजार तक  काश्तकारों को जैविक और मल्टीपिल खेती के गुर सिखाते हैं। वह अब तक एक लाख किसानों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। 

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