दलाली की भेंट चढ़ा हेलीकॉप्टर सौदा

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-अरविंद जयतिलक-  helicopter
आखिरकार 3,600 करोड़ रुपए का वीवीआइपी हेलीकॉप्टर सौदा दलाली की भेंट चढ़ ही गया। सरकार ने एंग्लो-इतालवी कंपनी अगस्ता-वेस्टलैंड कंपनी को खरीद सौदे से पहले हुए इंटिग्रिटी संधि के उलंघन का हवाला देकर सौदे को रद्द कर दिया। साथ ही कंपनी की तीन हजार करोड़ रुपए की बैंक गारंटी भी जब्त कर ली है। सौदे के रद्द होने के बाद सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि क्या सरकार इतालवी कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करेगी? क्या सरकार कंपनी को इंटीग्रिटी संधि तोड़ने का दोशी मान उससे हर्जाना वसूल कर पाएगी? सवाल इसलिए कि यूपीए सरकार ने 2005 में रक्षा सौदे की खरीद-फरोख्त की नई प्रक्रिया में इंटीग्रटी क्लॉज (ईमानदी का क्लॉज) लागू किया है, जिसके मुताबिक अगर पता चल जाए कि सौदे में दलाली ली गयी तो सौदा रद्द किया जा सकता है और उस कंपनी से सभी संबंध तोड़ते हुए उसे ब्लैक लिस्टेड भी किया जाएगा। हालांकि इतालवी कंपनी कई बार कह चुकी है कि इस समझौते में कोई रिश्वत नहीं दी गयी। लेकिन सच यह है कि इटली में ही हुई जांच में तीन दलालों का नाम उभरकर सामने आया और इन दलालों ने सौदे को अंजाम देने के लिए भारतीय अधिकारियों को 360 करोड़ रुपए की रिश्वत दी है। सवाल आगे भी जाते हैं। वह यह कि सौदे के करार के तहत पहले ही भारत आ चुके अब उन तीन हेलिकॉप्टरों का क्या होगा, जिसे चलाने के लिए अन्य दूसरे उपरकरण भारत के पास मौजूद नहीं हैं? क्या भारत उन हेलीकॉप्टरों को वापस करेगा? सवाल सौदे में ली गयी 360 करोड़ रुपए की दलाली की जांच और रिश्वतखोरों की सजा को लेकर भी है। कहना कठिन है कि अब इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होगा। गौरतलब है कि 8 फरवरी 2010 को भारत ने अगस्ता-वेस्टलैंड के साथ यह डील की थी। तब 12 हेलीकॉप्टरों के लिए करीब 3600 करोड़ रुपए चुकाने की घोषणा हुई। उसी समय इस डील को महंगा बता सवाल उठे थे। अमेरिका ने कीमतों की वजह से ही इन हेलीकॉप्टरों को नहीं खरीदा और उसने अपने पुराने हेलीकॉप्टरों को ही अपग्रेड करना जरुरी समझा। लेकिन भारत सरकार ने इतनी महंगी डील क्यों की गई, यह आज भी रहस्य है। उल्लेखनीय है कि 2005-07 के दौरान वायुसेना प्रमुख रहे एसपी त्यागी और उनके रिश्तेदार भी आरोपों के घेरे में हैं। आरोप है कि हेलीकॉप्टर बनाने वाली कंपनी फिनमेकैनिका एयरोस्पेस ने बिचौलिए गुड्डो राल्फ हाशके के जरिए उनके पास दलाली की रकम पहुंचायी। सेबी के रिकार्ड के अनुसार, हाशके 2009 तक एमजीएफ एमार के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर में शामिल था जिसमें राहुल गांधी के अति निकटस्थ कनिष्क सिंह की हिस्सेदारी भी बतायी जाती है। बिचौलिए हाशके ने स्वीकारा है कि दलाली के रूप में उसे सौदे का 3.5 फीसदी यानी 20 मिलियन यूरो (144 करोड़ रुपए) मिला और उसका 60 फीसदी हिस्सा यानी 12 मिलियान यूरो त्यागी बंधुओं (संजीव, डोक्सा व संदीप त्यागी) तक पहुंचाया। दलाली की रकम ट्यनीशिया के रास्ते भारत भेजी गयी। तब वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी ने स्वीकार किया कि बिचौलिए से उनकी मुलाकात हुई और जांचकर्ताओं द्वारा जिन तीन लोगों का नाम लिया गया वे उनके रिश्तेदार हैं।

गौरतलब है कि आरोपी तीन लोगों में एक एसपी त्यागी का भतीजा भी है जिसने उन्हें बिचौलिए कार्लो गेरोसा से मिलवाया था। त्यागी की दलील रही कि उनकी मुलाकात दलाली के सिलसिले में नहीं बल्कि हेलीकॉप्टर के तकनीकी पहलू को समझने के लिए हुई। मजे की बात यह कि जब लोकसभा में विपक्षी दलों ने इस मसले पर सरकार से असलियत जानना चाहा तो रक्षा राज्यमंत्री पल्लम राजू यह कहते सुने गए कि हेलीकॉप्टर सौदा पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें किसी तरह की दलाली नहीं खायी गयी। अब सरकार को जवाब देना होगा कि फिर सौदे को रद्द क्यों किया गया ? इतालवी कंपनी के सीईओ और चेयरमैन गियुसिपी ओरसी पर आरोप है कि उसने वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों की डील हासिल करने के लिए दलालों की मदद ली और इसके लिए उनको 51 मिलियन यूरो यानी 350 करोड़ रुपए दलाली के रूप में दिए। दलाली का मामला सतह पर तब उभरा जब बिचौलिए हाशके और उसके बिजनेस पार्टनर कार्लो गेरोसा के बीच रकम को लेकर झगड़ा हुआ। इस झगड़े की भनक इटली सरकार को लगी और मीडिया ने इसे तूल दे दिया। जानना जरूरी है कि अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी में इटली सरकार की भी 30 फीसदी की हिस्सेदारी है। इटली सरकार की हिम्मत और ईमानदारी की दाद देनी चाहिए कि उसने अपनी ही कंपनी के सीईओ को गिरफ्तार की। उसे इस बात की भी चिंता नहीं रही कि इससे इटली की साख को धक्का पहुंचेगा। लेकिन दुखद है कि तब भारत सरकार ने इससे सबक लेने और रिश्वतखोरों को धरपकड़ के बजाए उस पर ओछी राजनीति करती देखी गयी। उसने दलील दी कि सौदे के शर्तों में बदलाव वाजपेयी सरकार के दौरान हुआ, इसलिए इस दलाली के खेल के लिए यूपीए सरकार जिम्मेदार नहीं है। लेकिन सवाल सिर्फ सौदे के शर्तों में बदलाव का ही नहीं, बल्कि दलाली में खाए गए रकम को लेकर भी है। निश्चित रूप से वाजपेयी सरकार के दौरान अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए हेलीकॉप्टर खरीदने का मूल प्रस्ताव आया और वायुसेना ने निर्णय लिया कि हेलीकॉप्टरों की 18 हजार फुट ऊंचे उड़ सकने की क्षमता होनी चाहिए। यह भी सही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने वायुसेना प्रमुख को पत्र लिखकर सौदे के शर्तों पर चिंता जतायी और सुझाव दिया कि एकल विक्रेता प्रस्ताव उचित नहीं है। अगर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को लगा कि सौदे में प्रतियोगिता पैदा करने के लिए हेलीकॉप्टर के छः हजार मीटर तक उड़ने की अनिवार्यता को घटाकर साढ़े चार हजार मीटर किया जाना जरुरी है तो यह अनुति नहीं था। उन्होंने ऐसा इसलिए सुझाव दिया कि उस समय केवल एक ही कंपनी 18 हजार फुट तक की ऊंचाई तक उड़ने वाले हेलीकॉप्टर बनाती थी। लेकिन दुर्भाग्य है कि यूपीए सरकार ब्रजेश मिश्रा के सुझाव को राजनीतिक रंग देकर दलाली के मुद्दे को नेपथ्य में ढकेलने की कोशिश की। गौर करने वाली बात यह है कि 2004 में एनडीए सरकार चली गयी और शर्तों में बदलाव पर अमल 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुआ। तथ्य यह भी कि इटली की जांच एजेंसी ने 2005 से 2011 के बीच ही दलाली की बात कही। अब सरकार सौदे को रद्द कर चाहे जितनी ईमानदारी का प्रदर्शन करे लेकिन वह इस सच्चाई से इनकार नहीं कर सकती कि उसके नाक के नीचे ही हेलीकॉप्टर सौदे में दलालों ने अपनी कारस्तानी को अंजाम दिया और वह मूकदर्शक बनी रही। जब अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी और भारत के रक्षा मंत्रालय के बीच 2010 में हेलीकॉप्टर सौदा हुआ तब क्या सरकार को इस सौदे पर सतर्क दृष्टि नहीं रखना चाहिए था? देश जानना चाहता है कि उसे हेलीकॉप्टर सौदे में दलालों की संलिप्तता की जानकारी क्यों नहीं मिली? खुफिया एजेंसियां क्या करती रही? सवाल यह भी कि जब देश में पहले भी रक्षा सौदों में गड़बडि़यां और घोटाले हो चुके हैं, के बावजूद भी उसने सबक क्यों नहीं ली? उचित होता कि सत्ता में आने के बाद ही यूपीए सरकार हथियारों और सुरक्षा उपकरणों की खरीद के लिए ठोस पारदर्शी नीति बनाती। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब सरकार अपनी नाक बचाने के लिए हेलीकॉप्टर सौदा रद्द करे या कंपनियों को काली सूची में डाले उसकी छवि सुधरने वाली नहीं है। लेकिन उसके इस फैसले से भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की रफ्तार जरुर थमेगी। अगर सरकार इतालवी एयरोस्पेस कंपनी फिनमैकेनिका जो अगस्ता-वेस्टलैंड की प्रमुख कंपनी है को ब्लैक लिस्टेड करती है तो सेना के आधुनिकीकरण अभियान को झटका लग सकता है। इसलिए कि यह कंपनी सैन्य क्षेत्र में काफी अनुबंध के तहत काम कर रही है। उसका भारत में सालाना 30 से 40 करोड़ डॉलर का कारोबार है। उसको ब्लैक लिस्टेड किए जाने से सैन्य उपकरण बनाने वाली अन्य वैश्विक कंपनियां भारत से अनुबंध करने से पहले दस बार सोचेंगी। इससे फिर भारत को भविष्य की सैन्य जरूरतों को पूरा करना कठिन होगा। रक्षा सौदे का अपने अंजाम पर न पहुंचना यूपीए सरकार की नाकामी ही है। सवाल तो उठेगा ही कि जब वह एक दर्जन हेलीकॉप्टर खरीद को अंजाम नहीं दे सकती तो फिर बड़े रक्षा सौदे को फलीभूत कैसे करेगी?

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