डॉ अजय खेमरिया
लोहिया और अम्बेडकर का नाम तो अब मत लीजिये जिल्लेइलाही!* ( डा.अजय खेमरिया) डॉ राममनोहर लोहिया और बाबा साहब अम्बेडकर का देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की सियासत में महत्व किसी से छिपा नही है दोनो सत्ता प्राप्ति के कल तक दो बड़े प्रतीक थे और इस देश मे प्रतीकों के राजनीतिक महत्व को आप आसानी से समझ सकते है राजीव गांधी इंदिरा जी के हत्या के बाद सहानुभूति के प्रतीक बन कर 400 से ज्यादा सीटें ले आये थे।खैर फिलहाल आप समझिये डॉ लोहिया औऱ अम्बेडकर के प्रतीकों को ।कल तक दो अलग अलग वर्ग के लिये सत्ता का विचार शास्त्र थे आज दोनो एक होकर एक तीसरे से सत्ता छिनने के लिये समवेत है लोहिया औऱ अम्बेडकर के स्वयं भू अनुयायी अब यूपी की सियासी धरती पर बीजेपी के दो ऐसे लोगों से सत्ता हथियाने के लिये एकजुट जो बिना परिवार वाले है एक घोषित सन्यासी है दूसरा सन्यासी जैसा सांसारिक। अगर आत्मा का अस्तित्व गीता के अनुसार अविनाशी है तो समझ सकते है क्या हाल हो रहा होगा दोनो महान आत्माओं का।’द हिन्दू’ अखबार की कल की रिपोर्ट कहती है कि जिस बंगले को सुश्री मायावती ने 24 साल बाद खाली किया है उसे सजाने ,विस्तारित करने के लिये यूपी के सरकारी खजाने से 86 करोड़ रूपये खर्च किये गए है उसमें खुद की आदमकद प्रतिमाएं लगाने के साथ तमाम सुख सुविद्याये है जो किसी पंचतारा होटल में ही होती है।इसे दो बड़े बंगलो को मिलाकर बनाया गया है।सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बड़ी मुश्किल से मायावती ने इसे खाली किया है।इसी तरह पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मुलायम सिंह ने भी अपने दोनों आलीशान बंगले सभी दाव खारिज हो जाने के बाद खाली किये है -विदेश में पढ़े लिखे अखिलेश ने बंगला खाली करते समय जो कृत्य किया वह उनकी मौलिकता को दर्शा गया लखनऊ से छपी रिपोर्टो के मुताबिक अखिलेश ने बंगले में लगी सभी कीमती चीजे उखड़वा ली,यहॉ तक कि इटालियन टाइल्स से बनाये गए स्विमिंग पूल से टाइल्स तक उखड़वा ली और ये सब सामान अंसल प्लाजा में बन रहे अपने नए बंगले में फिट कराने भेज दी। अब आप इसे क्या चरित्र कहेंगे?दो ऐसे शख्स जिन्हें यूपी की जनता ने अपना मालिक बनाया वे उसी जनता के सामान को इस तरह समेट कर ले जा रहे है ।सवाल यह है कि यूपी की जनता ने मुख्यमंत्री चुना थे या अपने महाराजा? लोकधन की इस बर्बादी इस मनमानी धन खरची का अधिकार संसदीय राजनीति ने किस प्रावधान के तहत दिया है?70 के दशक में वियतनाम के राष्ट्रपति जब भारत आये थे तब हमारे अखबारों में उनके घर के फोटो छपे थे बांस के बम्बू से बना था उनका घर। जब पत्रकारों ने उनसे राष्ट्रपति भवन में घर का सवाल किया तो उन्होंने कहा था कि मेरा देश गरीब है वहाँ लोगो के पास इतना धन नही की वे इतने आलीशान घरों में रह सके इसलिये वे अपने साधारण घर मे ही रहते है।पर हमारे नेताओं ने क्या अपनाया जहाँ गोरी हुकूमत के वायसराय रहते थे वहां औऱ भी विलासिता जुटाकर राष्ट्रपति को बिठा दिया।जो डॉ राममनोहर लोहिया जीवन भर बराबरी के लिये लड़ते रहे रानी और मेहतरानी के बजूद को बराबरी पर खड़ा करते रहे उन्ही लोहिया के उत्तराधिकारी करोड़ो के सरकारी बंगलो में ठसक के साथ रहना चाहते है और नही रह पाते है तो टाइल्स तक उखाड़कर ले जाते है.लोहिया जीवन भर सादगी का प्रतीक रहे आज भी उनका परिवार यूपी के किसी कस्बे में छोटी सी परचून की दुकान चलाकर जीविकोपार्जन करता है लोहिया जब इस संसार से विदा हुए तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 13 रुपए थे और सम्पति के नाम पर बस कुछ किताबें थी लेकिन उनके राजनीतिक वारिसों पर अथाह सम्पति है जितना बड़ा परिवार है उसी अनुपात में दौलत है ,जिस समता के लिये वे लड़े उसे आप आज सैफई के समाजवाद से कैसे जोड़ सकते है?याद कीजिये मुलायम सिंह के जन्मदिन पर लन्दन से बग्गी बुलबाई गई थी औऱ सैफई महोत्सव की चकाचोंध में पेरिस की नाइट भी फीकी पड़ जाती है।इस सेफियन समाजवाद में लोहिया आखिर कहां टिकते है?सच तो यही है कि लोहिया टिक भी नही सकते।लेकिन उनके नाम पर सब कुछ टिका है अखिलेश मुलायम औऱ सैफई से निकले नए समाजवादी सामंतों का।सवाल फिर लोहियावाद का है क्या कोई लोहियावादी सरकारी इमारतों से इस तरह सामान उखाड़कर ले जा सकता है?जबाब भी लोहिया ही है इस तथ्य के साथ कि लोहियावादी अब इस देश की सियासत में सिर्फ म्यूजियम आइटम है,इससे अधिक कुछ नही।लेकिन यह भी समझना औऱ स्वीकार्य करना ही होगा कि सामाजिक न्याय के नाम पर हमारी राजनीतिक व्यवस्था में लोहिया औऱ डॉ आंबेडकर के प्रतीक अभी आगे भी चलेंगे,औऱ 86 करोड़ से सजे बंगलों को खाली करने के नाम पर मायावती ,अखिलेश ,जैसे दलित,पिछड़ों को स्थापित करते रहेगे।बाबा साहब ने सदैव सादगी के साथ इस बात पर जोर दिया था कि जब तक भारत मे हर नागरिक हर दूसरे नागरिक से बराबर की हैसियत नही अर्जित करेगा हमारी आजादी पूरी नही होगी। 86 करोड़ से सिर्फ सजाए गए बंगले में 24 साल से रह रही दलित नेता मायावती 4 बार यूपी की सीएम रही कभी उस वियतनामी राष्ट्रपति की तरह सोच लेती तो शायद उन्हें बंगला खाली करने के लिये कांशीराम यादगार विश्राम भवन का बोर्ड नही टांगना पड़ता क्योंकि तब दलित समाज खुद बराबरी से खड़ा होकर उन्हें ऐसे बंगले ऑफर कर रहा होता। लेकिन 4 बार सीएम रहकर भी मायावती ने सिर्फ अपने लिए महल बनाये औऱ प्रतीकों का दुरुपयोग कर सत्ता के समीकरण गढ़े है संभव है कल वे फिर इसी बंगले में सीएम बनकर लौट आएं क्योंकि ये देश आज भी परिपक्व जम्हूरियत को नही सीख पाया है भले ही इन 24 वर्ष में किसी दलित की हिम्मत न हुई हो इस बंगले की ओर देखने तक कि तो क्या हुआ जब वोट की बात आएगी तो ये सुप्रीम कोर्ट अदृश्य हो जाएगा और दलित की बेटी को घर निकाला देने की बात सत्ता के लिये दलितों को एक कर देगी,कमोबेश अखिलेश भी टाइल्स की चोरी को पिछड़ो की गरीबी से जोड़कर उस मोदी और योगी से सवाल पूछकर सीना चौड़ाकर जबाब मांगते भी नजर आ सकते है जिनके परिजन गरीबी में गुजर बसर कर रहे है इसे भुलाकर की उनके घर का कोई प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी है।शायद यही मौजूदा संसदीय राजनीति की ताकत है जिसे हम चोरी और सीना जोरी भी कह सकते है।