
—विनय कुमार विनायक
जबतक दिकभ्रमित होकर,
हम काटते रहेंगे अपने हाथ-पांव
तबतक कमजोर प्रतिद्वंदी भी
बांटता रहेगा देश, नगर और गांव!
आज हम फिर से पंगु हैं
एक राजा भोज तो अनेक गंगू हैं
ऐसे में कोई कैसे समझे
कि कभी हम थे जगतगुरु के दावेदार
वोल्गा से गंगा तक सारे थे रिश्तेदार!
आज हम देख रहे एक पिता के पुत्र चार
पहला कुलीन ब्राह्मण चौथा हीन हरिजन लाचार!
जगतगुरु के किस गुर पर करें शान!
आज पंजाब की एक मां जनती
एक देह से तीन-तीन नस्ल की संतान!
एक जय श्री राम के वंशज!
दूसरा सत श्री अकाल गुरु के लाल!
तीसरा खुदा के खिदमतगार
कोई नहीं किसी को भाई रुप में स्वीकार!
तुर्रा यह कि पूर्व का एक बंगबंधु
जब कहता जय मां तारा,
दूसरा पश्चिम को निहार लगाता
अल्लाह हो अकबर का नारा!
आज जाति सही, मजहब सही,
सही फिरकापरस्ती, धर्म बड़ा
बाप छोटा, मां का महत्व नहीं,
यही आज की हमारी संस्कृति।
—विनय कुमार विनायक