यूं ज़ख्म भीड़ में खोले हो
इक बात कहूं? तुम भोले हो
मरहम न कोई लायेगा
बस नमक छिड़क कर जायेगा
तुम व्यर्थ वेदना झेलोगे
ना कोई गले लगायेगा
वो मन को क्या बहला सकते
जिनकी सीरत में शोले हो
इक बात कहूं? तुम भोले हो
चेहरों पे चेहरे लायें हैं
ये पास तेरे जो आयें है
बे-गरज नहीं कोई ताल्लुख
कुछ मन में आश लगायें है
है असली चेहरे छुपे हुए
तुम किस सूरत पर डोले हो
इक बात कहूं? तुम भोले हो
इस भीड़़ में वो भी आये हैं
बिन बात जो मुंह फुलाएं हैं
किस बात की उनको नाराजी
किस बात से सदमा खायें है
उनकी नजरों में नफरत और
तुम सदा प्यार से बोले हो
इक बात कहूं? तुम भोले हो
जब अंधकार छा जाता है
तब वही रोशनी लाता है
तुम मुश्किल में हो? याद करो
वो सब को पार लगाता है
वो हाथ पकड़के चलता है
जब उर में बने फफोले हों
इक बात कहूं? तुम भोले हो
डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’