-डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
दिल्ली स्थित कनाडा के दूतावास में फतेह सिंह को अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया है। हर देश को अधिकार होता है कि वह किसी दूसरे देश के नागरिक को अपने देश में आने की अनुमति दे या ना दे। इस अधिकार को लेकर कनाडा सरकार के इस निर्णय पर आपत्ति नही की जा सकती। परंतु फतेह सिंह को वीजा न देने के लिए कनाडा उच्चायोग ने जो कारण गिनाये हैं वे आपत्तिजनक ही नहीं बल्कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप भी कहा जायेगा। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह भारत के सीमा सुरक्षा बल में काम करता रहा है और सीमा सुरक्षा बल भारत में क्रूरतापूर्ण ढंग से लोगों की हत्या करता है। खास कर अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को निर्दयता से मारता है, जो मानव अधिकारों का हनन है। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह जानता था कि भारत सरकार का सीमा सुरक्षा बल इस प्रकार का हत्यारा बल है€लेकिन फिर भी उसने अपने आप को इस बल से जोडे रखा€। ध्यान रहे फतेह सिंह को इस बल से रिटायर्ड हुए दस वर्ष हो चुके हैं। कनाडा सरकार ने सीमा सुरक्षा बल को सीधे-सीधे आतंकवादी संगठन नहीं कहा लेकिन इस बल के लिए जो विशेषण प्रयोग किए हैं उसका अर्थ लगभग यही निकलता है।
भारतीय सेना के सेवानिवृत्ता जनरल ए. एस. बाहिया को कनाडा सरकार ने यह कह कर वीजा नहीं दिया कि बाहिया जम्मू-कश्मीर में तैनात रहे हैं और वहां भारतीय सेना ने वहां के निवासियों पर और खासकर मुसलमानों पर अमानवीय अत्याचार किए हैं। बाहिया तो सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं लेकिन कनाडा सरकार ने भारतीय सेना में कार्यरत तीन अन्य ब्रिगेडियरों को यह कहते हुए वीजा नही दिया कि उनकी भी जम्मू-कश्मीर में तैनाती रही है और वहां भारतीय सेना की भूमिका हत्यारी सेना की भूमिका ही रही है। अब यह भी पता चला है कि इंटेलिजेंसे ब्यूरो के एक सेवानिवृत्ता अधिकारी एस. एस. सिध्दू को यह कहकर वीजा देने से इनकार किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो जासूसी के आपत्तिाजनक काम में संलग्न रहा है।
जैसा कि उपर हमने कहा है कि किसको वीजा देना है किसको नही देना यह कनाडा सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है इसको चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन कनाडा सरकार इस अधिकार की आड में योजनापूर्ण ढंग से भारतीय सेना, सीमा सुरक्षा बल और भारत के अन्य सुरक्षाा संगठनों को बदनाम करने का सुनियोजित प्रयास कर रहा है। यह वीजा न देने की असंबंधित घटनाएं नहीं हैं बल्कि अमेरिका और कनाडा द्वारा आपस में मिलकर सोची-समझी साजिश है जिसके तहत भाारतीय सेना को आतंकवादी सेना के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। ध्यान में रहना चाहिए कि कुछ साल पहले अमेरिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री को वीजा देने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि मोदी गुजरात में मुसलामानों के कथित नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। तब दिल्ली में कुछ बुजदिल नेता तालियां पीट-पीट कर जश्न मना रहे थे कि अब तो नरेंद्र मोदी का अपराध सिद्ध हो गया है। और यही लोग अमेरिका की सरकार को बधाई पत्र लिख रहे थे उस समय विवेकशील विद्वानों ने कहा था कि मोदी को वीजा न देने के कारण गिनाने के पीछे अमेरिका सरकार का लक्ष्य भारत की संवैधानिक संस्थाओं को अपराधी सिध्दा करना है। अमेरिका यह सिध्दा करना चाहता है कि भारत में भी सत्ता धीरे-धीरे अनियंत्रित हो रही है। अब कनाडा सरकार के इस व्यवहार से यह अशंका सत्य सिद्ध हो रही है। कनाडा सरकार वास्तव में अमेरिका की छाया सरकार ही है€। अमेरिकी हितों की पूर्ति के लिए ही उसकी विदेश नीति बनती है। आजकल अमेरिका भारत को पाक के समकक्ष रखने के प्रयास में लगा हुआ है। भारतीय सेना सीमा सुरक्षा बल और इंटेलिजेंस ब्यूरो को बदनाम करना ही नहीं, बल्कि उसे अनियंत्रित हत्यारों के गिरोह के रूप में चित्रित करना इस साजिस का हिस्सा है।
ताजुब है कि सरकारी स्तर पर कनाडा के इस व्यवहार पर जिस प्रकार कि प्रतिक्रिया होनी चाहिए वह नहीं हुई। मीडिया में उस प्रकार का उफान नहीं आया जैसा इस संवेदनशील विषय पर आना चाहिए था। भारत सरकार ने कनाडा सरकार से इस विषय पर क्षमा याचना के लिए कहा है। हो सकता है हफ्ता दस दिन में कनाडा सरकार का कोई छुटभैया क्षमा याचना की खाना पूरी भी कर दे और उस खाना पूरी से प्रसन्न होकर भारत का विदेश मंत्रालय अपना पीठ भी थपथपाना शुरू कर दे ऐसी घटनाओं पर भारत जैसे देश को प्रतिक्रिया करना शोभा नहीं देता बल्कि उसे तुरंत इस पर क्रिया करनी चाहिए। उस क्रिया से उचित संदेश भी जाएगा और कनाडा सरकार भारत के संवैंधानिक संस्थाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणीयां भी नहीं कर पायेगी। रिकार्ड के लिए यह कहना बहुत जरूरी है कि आज कल कनाडा में जिन लोगों की सरकार है उन लोगों के पूर्वजों ने कनाडा के लाखों मूल निवासियों के क्रूरतापूर्ण हत्या करके इस देश को हथियाया हुआ है। आज भी कनाडा में रेड इंडियंस के साथ जो दुर्व्यवहार होता है उसे अमानवीय ही कहा जाएगा। कनाडा में काले लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है और उनके साथ नौकरियों में ही नहीं सभी स्थानों पर भेदभाव किया जाता है। जिन मुसलमानों के हितों की चिंता कनाडा सरकार को तंग कर रही है उन मुसलमानों से खुद कनाडा में जो व्यवहार होता है वह सरकार के तथा कथित मानवाधिकार प्रेम पर तमाचा है। आईडी कार्ड पर मुसलमान नाम देखकर हीं कनाडा की पुलिस व्यक्ति को इस प्रकार घेर लेती है मानो वह जन्माजात अपराधी हो। दिल्ली में कनाडा सरकार का दूतावास भारतीय सेना पर इस प्रकार के टिप्पणियां करके अपने नापाक इरादों को जाहिर कर रहा है। पंजाब के कुछ पुलिस अधिकारियों को दूतावास ने यह कहकर वीजा नहीं दिया कि पंजाब पुलिस ने आतंकवाद के दौर में अमानुषिक अत्याचार किए। सभी जानते हैं कि पंजाब में आतंकवादियों को कनाडा की शह प्राप्त थी। वहां से पैसा भी आता था और दूसरे प्रकार का समर्थन भी। पंजाब पुलिस ने प्रदेश से आतंकवाद को समाप्त कर दिया इसलिए अमेरिका और उसको पिछलग्गू कनाडा दोनों ही हताश हैं। पंजाब को लेकर उनकी योजना असफल हो गयी और अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह कनाडा सरकार पंजाब पुलिस को ही आतंकवाद बता रही है। भारत सरकार को चाहिए कि दिल्ली स्थित कनाडा दूतावास के अधिकारियों पर देश के संवेदनशील क्षेत्रों में जाने पर प्रतिबंध लगाये और कनाडा दूतावास कि गतिविधियों की सूक्ष्म जांच करवाये क्योंकि दूतावास के इस व्यवहार से दाल में कहीं ज्यादा काला नजर आ रहा है।
डॉ. अग्निहोत्री जी ने जायज चिंता जाहिर की है.
भारत देश अपनी बहेड कमजोर राजनेतिक इक्षाशक्ति के लिए भी जाना जाता है. दूसरे देश को बधाई देने में तो हम हमेशा अव्वल रहते है. अपने अपमान का भी हम सही जवाब देते है, किन्तु हमारे देश में उसका तुरंत प्रतिकूल विरोध दर्ज नहीं कराया जाता है. विरोध होता है भी तो इतना कमजोर या हलके स्तर से जैसे की कही हमारी रोटी मिलना बंद नहीं हो जाय. हम आत्म निर्भर है, हमारे यहाँ रोटी, कपडा, माकन,, विज्ञानं, कला, खेल, मनोरंजन – क्या नहीं है. फिर क्यों हम डर रहे है. सच से हम भागते क्यों है…