अखिलेश आर्येन्दु
कार्बन डार्इआक्साइड के उत्सर्जन का लगातार बढ़ना और इससे बढ़ता संकट आज दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। यह संकट इतना गहरा है कि इसे रोक पाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया है। वैज्ञानिकों के सामने इसे ठिकाने लगाने की एक बड़ी चुनौती है। गौरतलब है दुनिया के तकरीबन सभी मुल्क कार्बन और दूसरी विषैली गैसों को रोकने के मामले में कोर्इ सार्थक पहल करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका परिणाम यह वह रहा है कि वायुमंडल में कार्बन का प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है। ओजोन परत का छिद्र का लगातार बढ़ते जाना, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का लगातार बढ़ना, कर्इ नर्इ बीमारियों का पैदा होना और शहरी जिंदगी का असंतुलित होने जैसे तमाम बेतरतीब पहलू, कार्बन की देन माने जाने लगे हैं। लेकिन वैज्ञानिक इसकेा ठिकाने लगाने पर भी कर्इ सालों से शोध में लगे हुए हैं। इससे एक आशा जगी है कि आने वाले 50 सालों में कार्बन की एक बड़ी मात्रा वायुमंडल से कैप्चर करके इसे ठिकाने लगाने में कामयाबी मिल सकेगी। वैज्ञानिक इसमें कितने कामयाब होते हैं, यह तो आने वाले वक्त में ही पता चल सकेगा, लेकिन एक बड़ी उम्मीद तो वैज्ञानिकों ने जगा ही दी है।
मैसाचुसेटस इंस्टीटयूट आफ टेक्नालाजी के शोधकर्ताओं ने अपने गहन शोध से एक अल्पकालीन समाधान सुझाया है, जिसे अपनाकर कार्बन को कैप्चर करके उसे जमीन में दफनाया जा सकता है। इसकी शुरुआती लागत भी बहुत ज्यादा नहीं है। इससे पूरी कार्बन की मात्रा तो कैप्चर नहीं हो पाती है लेकिन उत्सर्जन में काफी हद तक कमी तो लाया ही जा सकता है। गौरतलब है दुनिया में हर साल 30 अरब टन कोयला उत्सर्जित होता है। इसमें 30 फीसदी बिजली बनाने के संयत्र से, 12 फीसदी वाहनों से और बाकी उद्योगों से उत्सर्जित होता है। गौरतलब है 30 फीसदी हिस्सा जो सीधे कोयले से उत्सर्जित होता है, उसे कार्बन कैप्चर एंड सिक्वेसट्रेशन यानी सीसीएस परियोजनाओं के जरिए काफी हद तक कम किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि इन परियोजाओं को दुनिया के सभी देश अपने यहां कड़ार्इ से लागू करें। लेकिन कर्इ जानकर इस परियोजना को ज्यादा खर्चीली कहकर आव्यवहारिक बता रहे हैं। उनका कहना है कार्बन के कैप्चर पर जो ऊर्जा खर्च होती है वह बहुत मंहगी है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि जो कार्बन की मात्रा सीधे वायुमंडल में डाली जाती है उसे यंत्र के जरिए जमीन में डाली जा सकती है। लेकिन तमाम वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले से ही मौजूद कार्बन की बहुत बड़ी मात्रा को तो कैप्चर करना एक बड़ी चुनौती है। दूसरी समस्या यह है कि बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां उद्योगों से निकली हुर्इ विषैली गैसों को कहीं और खपत करने के पक्ष में नहीं हैं। वे इस बेहद खर्चीली योजना को अमल में लाने के लिए ही तैयार नहीं हैं।
एक बड़ी समस्या कार्बन को जमीन में दबाने में यह है कि यह जमीन के अंदर हलचल पैदा करके विनाशकारी भूकम्प और सुनामी जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। लेकिन वैज्ञानिकों का एक वर्ग का मानना है कि जमीन के अंदर कार्बन की मात्रा अधिक होने से कोर्इ समस्या नहीं आएगी क्योंकि जमीन के अंदर कार्बन जाकर पानी के भंडारों में घुल जाती है। या चट्टानों से मिलकर कार्बोनेट खनिज बनाती है। लेकिन देखना यह है कि इतनी बड़ी तादाद कार्बन की क्या पाताल के पानी के साथ मिल जाएगा या कोर्इ बड़ी समस्या के रूप में सामने आएगा? एक बड़ी समस्या इससे तब पैदा हो सकती जब इसके विनाशकारी असर को वैज्ञानिक रोकने में असफल साबित होंगे। इसलिए कर्इ नजरिए से यह परियोजना बहुत मुफीद नहीं लगती है, अलबत्ता कनाडा, अलजीरिया, अमेरिका, नीदरलैंड और नार्वे में चलार्इ जा रही है। भारत जैसे तमाम विकासषील देषों में यह मुफीद नहीं लगती, क्योंकि इसपर लागत बहुत ज्यादा आती है। वैज्ञानिकों का एक वर्ग का मानना है कि इस परियोजना से एक लम्बे समय में वैश्विक तापमान को थोड़ा सा कम करने में मदद मिल सकती है। यदि एक या दो डिग्री तापमान ही कम किया जा सके तो भी तमाम उन समस्याओं से दुनिया को राहत मिल सकेगा जिसको लेकर वैज्ञानिक लगातार सचेत करते आ रहे हैं। गौरतलब है ओजोन का छिद्र 97 लाख वर्ग किमी तक पहुंच चुका है। इसकी वजह हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन की अधिक तादाद वायुमंडल में उत्सर्जित होने के कारण पैदा हुर्इ है। इस वजह से कार्बन की मात्रा पर अंकुश लगाना ही ओजोन परत के छिद्र को आगे बढ़ने या कम करने का एक मात्र विकल्प है।
दुनिया के वैज्ञानिक अभी तक कार्बन या वायुमंडल में व्याप्त विषैली गैसों के विनाशकारी असर को वैज्ञानिक तरीके से खत्म या कम करने में कोर्इ तरकीब इजाद नहीं कर सकें हैं। इसलिए कार्बन से ताल्लुक रखने वाली सभी तरह की समस्याएं घटने के बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। यदि कोर्इ तरीका सुझाया भी गया है तो वह व्यावहारिक नहीं है। उद्योगो, बिजली घरों, कार्बन और दूसरी विषैली गैसे उत्सर्जित करने वाले वाहन और अन्य तरीकों से कार्बन उत्सर्जित करने वाले कारकों पर एक सीमा तक ही अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसे में कार्बन को जमीन में दफनाने के अलावा और कोर्इ विकल्प दिखार्इ नहीं देता है। इसलिए इस पर गहन शोध किए जा रहे हैं। आने वाले वक्त में इसका कोर्इ मुकम्मल तरीका निकलेगा, ऐसी आशा की जानी चाहिए।
महोदय जब तक बदनीयत अमेरिका और उसके साथी देशों की मानसिकता और कार्यप्रणाली को ठिकाने नहीं लगाया जाएगा तबतक विश्व की किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं.