
—विनय कुमार विनायक
जातिवाद बड़ी समस्या है भारतदेश की,
कभी धर्म के नाम लड़ाई, कभी वर्ण के,
एक जाति ने दूसरी जाति की हत्या की,
कभी शस्त्र के साथ लड़े,कभी शास्त्र से!
भारत सदा कराह रहा जाति विषदंत से,
गुरु परशुराम और द्रोण भी कहां कम थे,
महादंभी व अताताई रावण,कौरव,कंश से,
पक्षधर नहीं धर्म के, बल्कि वर्ण-वंश के!
महाभारत नहीं राज्य बंटवारे का रण था,
कर्ण नहीं अपने छोटे भाई का दुश्मन था,
जाति-वर्ण ही कर्ण के दुःख का कारण था,
खून के बड़प्पन ने कराया खून का खून!
जातिवाद आज भारत में जस का तस है,
जातिवाद की वजह से सब तहस-नहस है,
अब भी देस में जातिवादी लोग गा रहे हैं,
अपनी जाति के, अपराधी की विरुदावली!
मानवता के हत्यारे भगवान कहे जाते हैं,
जाति-वर्ण के नाम, अपमान सहे जाते हैं,
आज परिचय नहीं, सिर्फ नाम और काम,
जाति जान करके ही इनाम दिए जाते हैं!
जातिवाद ने बर्बाद किया है भारतजन के,
भूत भविष्य वर्तमान को, सुर-असुर होकर,
कभी आर्य-अनार्य, ब्राह्मण-श्रमण बनकर,
कभी सवर्ण-असवर्ण, जातियों में बंट कर!
जब पश्चिमी देश बना रहा था चन्द्रयान,
उड़ा रहा था वायुयान, भेज रहा था राकेट
अंतरिक्ष के मंगल चन्द्रमा ग्रह-उपग्रहों में,
तब हम बच्चों को चंदामामा पढ़ा रहे थे!
बनाई नहीं हमनें एक सुई, सिलाई मशीन,
बल्व,टीवी,रेल,कार,फ्रीजर, फोन, कम्प्यूटर,
किन्तु हम खुद को जगतगुरु बता रहे थे,
और गुरुवर शिष्य की अंगूठा कटा रहे थे!
आज भी कटे अंगूठे का, औचित्य बताते,
ढोल, गंवार, शूद्र,पशु,नारी समझाई जाती,
व्याख्याता वही,जो तुलसी की धुन सुनते,
करते नहीं कोई अनुष्ठान, लीक से हटके!
नारी रक्षी कृष्ण को पर नारी प्रेमी बताके,
कभी सगुण वासना, कभी निर्गुण उपासना,
योगेश्वर के चरित्र हनन की कविता पढ़ाते,
सच्ची बातें कच्चे मन को पढ़ाए कब कौन?
असद् की दुहाई से सद विचार नहीं पनपते!