Category: शख्सियत

प्रसिद्ध व्यक्तित्व का परिचय

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सरदार पटेल जयंती-राष्ट्रीय एकता दिवस

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अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्होंने देश का बंटवारा भी कर दिया । पाकिस्तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्पी साध गए। उस समय नेहरू के लिए भी रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी । इस तरह एक दृढ़ इच्छाशक्ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था।

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आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन: डा. धर्मवीर

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६ अक्टूबर २०१६ को दिवंगत ‘वेद, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन: डा. धर्मवीर’ मनमोहन कुमार आर्य ऋषि भक्त डा. धर्मवीर जी आर्यसमाज के बहुमुखी प्रतिभा के धनी शीर्षस्थ विद्वान थे। आप आर्यसमाज के प्रगल्भ वक्ता, प्रतिष्ठित लेखक, सम्पादक, पत्रकार, वेद-पारायण यज्ञों का ब्रह्मत्व करने वाले यज्ञ मर्मज्ञ, धर्मोपेदेशक, आर्यसमाज के […]

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मानव सेवा का अद्भुत प्रेरणादायक उदाहरण : पं. रुलिया राम

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प्रा. जिज्ञासु जी ने इस घटना पर लिखा है कि डाक्टर दीवानचन्द जी ने पं. रलाराम जी का पुण्य स्मरण करते हुए लिखा है कि ‘प्लेग के रोगियों की सेवा में उन्हें उतनी-सी ही झिझक होती थी जितनी ज्वर के रोगियों से हमें होती है।’ पण्डित जी की लोक-सेवा की प्यास कभी बुझती ही न थी। एक लेखक ने उनके पवित्र भावों के विषय में यथार्थ ही लिखा है ‘पण्डित जी में त्याग था, उत्साह था, प्रचार के लिए जोश था परन्तु एक गुण पण्डित जी को परमात्मा की ओर से ऐसा मिला था जो किसी-किसी को ही मिलता है। वह है प्रबल एवं निष्काम सेवा-भाव।’ उनके जीवन काल में किसी सज्जन ने कहा था, ‘रुलिया राम जी को प्रत्येक दिन शरीर व आयु की दृष्टि से वृद्ध तथा दुर्बल बनाता है परन्तु प्रत्येक आनेवाला दिन उनके सेवा-भाव को जवान बना देता है।’

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जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख – एक तुलनात्मक विश्लेषण

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नानाजी अक्सर राजा राम की तुलना में वनवासी राम की अधिक प्रशंसा करते थे । उनका कहना था कि राजा के रूप में राम इसलिए अधिक सफल हुए, क्योंकि उन्होंने वन में रहते हुए गरीबी को जाना, समझा | इसीलिए नानाजी ने भी राजनीति से विराम लेकर गरीब वर्गों के उत्थान के लिए अपना जीवन खपाने का निर्णय लिया । दीन दयाल शोध संस्थान भी बनाया तो चित्रकूट में, जहाँ वनवास के दौरान भगवान राम ने अपना समय व्यतीत किया । अपने चित्रकूट प्रवास के दौरान नानाजी ने वहां के पिछड़ेपन, अशिक्षा और अंधविश्वास में डूबी जनता का मूक रुदन अनुभव किया ।

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