राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार संघ साधना के तपोनिष्ठ ऋषिवर : श्री गुरुजी February 19, 2025 / February 24, 2025 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल आक्रमणों और वर्षों की परतन्त्रता के कारण कमजोर और दैन्य हो चुके हिन्दू समाज को संगठित करने के ध्येय से डॉ.हेडगेवार ने २७ सितम्बर सन् १९२५ विजयादशमी के दिन शक्ति की पूर्णता को मानकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन किया। जो हिन्दू समाज को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाने तथा राष्ट्रीयता के प्रखर […] Read more »
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारत की आत्मचेतना का मूर्त-रूप: छत्रपति शिवाजी February 19, 2025 / February 17, 2025 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment 19 फरवरी जन्मदिवस पर विशेष वीरेन्द्र सिंह परिहार प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने लिखा -‘‘जहाँगीर ने प्रयाग के वट वृक्ष को जड़ों से काट डाला था। उसकी जड़ों पर उबलता शीशा उड़ेंला था पर एक वर्ष के अंदर ही खाक हुए उन्ही जड़ों से वह वट फिर अंकुरित हुआ। दासता के शीश कवचों को दूर फ़ेंक कर बढ़ते-बढ़ते बनकर खड़ा हो सका। यह बात शिवाजी ने अपने जीवन में साबित कर दिखायी है।‘ प्रसिद्ध विचारक और संघ के पूर्व सरकार्यवाह हो.वि. शेषाद्रि के शब्दों में-‘‘स्वराज की बाती बुझ गई थी, धर्म अंतिम सांसे ले रहा था। हिमालय से रामवेश्वरम् तक सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक दासता का घना साम्राज्य फैल गया था। तभी पश्चिम तटीय सह्याद्रि के पहाड़ों के गर्भ में एक नवजात बालक का उदय हुआ। बाल्यावस्था में ही विदेशी बीजापुर बादशाह को उस लड़के ने मुजरा करना नामंजूर किया। आते-आते उसने बीजापुर के तख्त को जड़ो से हिलाया। भाग्यनगर के कुतुबशाह को झुका दिया। दिल्ली बादशाह के दिल में भी उस सह्याद्रि के बालक ने कंपकंपी पैदा की। ईरान के युवा बादशाह अब्बास द्वितीय ने तो पत्र लिखकर औरंगजेब की हंसी उड़ायी। ‘‘तुम खुद को आलमगीर यानी विश्व-सम्राट कहते हो, लेकिन एक छोटे सरदार के बेटे को जीतना तेरे लिए संभव नहीं हुआ। इस तरह से बीजापुर के एक सरदार संभाजी के बागी बेटे की कीर्ति हिन्दुस्तान के बाहर भी पहुंच चुकी थी। उसका खड़ग दुष्ट दुश्मनों का मारक एवं स्वराज तथा स्वधर्म का तारक बना। यह शिवाजी के संघर्ष का परिणाम था कि आगे उनके वंशजों ने बीजापुर सल्तनत को जड़ो से उखाड़कर फ़ेंक दिया। निजामशाही का अस्तित्व नाममात्र रहा। दिल्ली के विश्व सम्राट बादशाह को उसके साम्राज्य की राजधानी दिल्ली में निवृत्त कराते हुए उसे एक कोने में बिठा दिया। सह्याद्रि से निकले बौने टट्टू सिंधु प्रदेश पारकर आगे दौड़ पडें। उस बालक के वंशज अटक, काबुल, कंधार तक जाकर हिन्दुस्तान का विजयध्वज गाड़ कर आ गये।’’ शाहजी मुस्लिम सल्तनत बीजापुर के एक सरदार मात्र थे जिनके पास न तो कोई अपना राज्य था, न सेना थी और न किला ही था। उस पिता शाहजी एवं माता जीजाबाई के बेटे शिवाजी ने अपने दम-खम शूरता और बुद्धिमानी के बल पर जिस तरह से एक साम्राज्य की स्थापना कर दी, उसे सुनकर लोग आचंभित ही नहीं रह जाते, बल्कि दांतों तले उंगली भी दबा लेते है। 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी में जन्मे और पूना में पले-बढ़ें शिवाजी बचपन में साथियों के साथ माटी के किले बनाकर लड़ाई का खेल खेलना पंसद करते थे, इसी से पूत के पाव पालने में ही दिख गए थे। तभी तो दस वर्ष के शिवाजी जब अपने पिता के साथ बीजापुर दरबार में जाते है, तो बादशाह को सलाम तक नहीं करते। इतना ही नहीं, बीजापुर शहर में ही एक कसाई का हाथ इसलिए काट लेते है कि वह गाय की हत्या करने जा रहा था। ऐसे साहस और शौर्य के बचपन से ही साक्षात अवतरण थे, छत्रपति शिवाजी। यह बालक शिवाजी की संगठन-कौशल और नेतृत्व-क्षमता का ही कमाल था कि उन्होने 12 मावल प्रांतों के दीन-हीन, अशिक्षित, मावलों को संगठित कर एक श्रेष्ठ लड़ाकूओं में बदल दिया। माता जीजाबाई से प्राप्त संसकार और दादाजी कोंडदेव के मार्गदर्शन का ही यह कमाल था कि एक विधवा से बलात्कार के चलते वह बदफैली के पाटिल का हाथ-पाव कटवा लेते है जबकि उस वक्त सामर्थ्यवान लोगों के लिए यह साधारण बात थी। शिवाजी की यह चतुरता और शौर्य की ही विशेतषता है कि 16 वर्ष की उम्र में ही बगैर रक्तपात के बीजापुर के दुलक्षित दुर्ग तोरणगढ़ में तोरण बांध देते है। बीजापुर द्वारा सर कलम किए जाने की धमकी के बाबजूद क्रमशः कोंडाणा ,शिरवल,सुभानमंगल जैसे किलों पर अधिकार कर लेते है। जब बीजापुर दरबार शिवाजी को निबटाने के लिए दुर्दांत अफजल खान को भेजता है, और वह शिवाजी के राज्य में हत्या, आगजनी, विध्वंस, बलात्कार का तांडव करता है। पर शिवाजी सामने लड़ना उचित न समझने के कारण प्रतापगढ़ के किले में ही रहते है, और युक्तिपूर्वक अफजल खान को प्रतापगढ़ के पायते में बुलाकर 16 नवम्बर 1959 को सिर्फ उसका ही नहीं, उसकी अधिकांश सेना को यमलोक भेज देते है। बीजापुर दरबार द्वारा भारी सेना के साथ पुनः सिद्दी जौहर के द्वारा हमला किये जाने पर और पन्हालगढ़ में शिवाजी की 04 माह तक घेराबंदी किए जाने पर कैसे असीम साहस तथा युक्ति बाजीप्रभु देशपाण्डे जैसे साथियों के बलिदान के चलते वह पन्हालगढ़ से विशालगढ़ पहुंच जाते है, और सिद्दी जौहर के आक्रमण को निष्फल कर देते है, जो विश्व-इतिहास की अविस्मरणीय घटना है। पर शिवाजी के ऊपर सिर्फ सिद्दी जौहर का ही हमला नहीं होता। औरंगजेब का सिपहसालार शाइस्ताखान भी इसी बीच शिवाजी के राज में आंतक मचाता पुणे के लाल किलें में डेरा डाल दिया था, जहां शिवाजी का बचपन बीता था। 6 अप्रैल 1663 की आधी रात दो हजार सेना के साथ शिवाजी लालमहल में घुस गए और एक लाख सेना का जहां पहरा था, वहां तूफान बरपा दिया। स्वतः शाइस्ता खान की तीन उंगलिया कट गई, एक बेटा और कई बेगमों के साथ कई सैनिक मारे गये। इसका नतीजा यह हुआ कि शाइस्ता खान तुरंत ही औरंगाबाद निकल गया।इस तरह से दो साल जो-जो स्वराज को क्षति पहुंचाई गई थी, उसकी प्रतिपूर्ति के लिए शिवाजी ने औरंगजेब के सबसे समृद्ध बंदरगाह सूरत को भरपूर लूटा। औरंगजेब द्वारा मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए भेजने पर शिवाजी उनसे समझौता कर लेते है, और औरंगजेब से मिलने दिल्ली चले जाते है। पर औरंगजेब उन्हे बंदी बनाकर जान से मरवाने को सोच रहा होता है, तो शिवाजी अपनी युक्ति और साहस से पुत्र संभाजी समेत मिठाई के टोकरों में बैठकर औरंगजेब की कैद से निकल आते है और अपने राज्य पहुंच जाते है। निःसन्देह उपरोक्त सभी घटनाएं दुर्लभ ही नहीं, असंभव भी प्रतीत होती है। इसके पश्चात् तो शिवाजी ने बीजापुर को तो खुले युद्धों में हराया ही, दिंडौरी और सालेर के खुले युद्धों में शिवाजी ने औरंगजेब की सेनाओं को शिकस्त दी और अपना स्वतंत्र राज्याभिषेक कराया, जिसकी राजधानी रायगढ़ थी। यह बात अलग है कि सतत् युद्धों में जर्जर होने के चलते उनकी मृत्यु 50 वर्ष की उम्र में 1680 में हो गई। छत्रपति का कार्य सही अर्थो में ध्येयनिष्ठा से अभिमंत्रित था। उज्जवल राष्ट्रीय ध्येय में ही उसका मूल छिपा था। अनेक बार शिवाजी को स्वराज से बहुत दूर रहना पड़ा था। पन्हालगढ, आगरा, में उन्हे महीनों तक प्राणसंकटों से भरे दिगबंधनों में रहना पड़ा। तत्पश्चात् दक्षिण दिग्विजय के लिए निकलने पर दो वर्षो के दीर्घकाल तक वे स्वराज से दूर रहे। पर ऐसे किसी भी समय में स्वराज के शासन में गडबड़ी या शौथिल्य निर्माण नहीं हुआ। स्वराज के हरेक प्रजा के हृदय में उन्होने अपनी स्वतः की भक्ति के बदले स्वराज-स्वधर्म के अनुसार ध्येयनिष्ठा की कल्पना की थी। इसलिए ऐसे विषम प्रसंगों में भी राज्य का कारोबार कडाई तथा सुचारू रूप से चला था। उस दौर में प्रलोभन या प्राणभय से एक बार मुसलमान बनने पर उसे हिन्दू धर्म में वापस लेने को कोई धर्माचार्य तैयार नही होते थे। ऐसे में ऐसा व्यक्ति सदा के लिए हिन्दू समाज से विच्छिन्न ही नहीं हो जाता था, बल्कि हिन्दू समाज का ही नाश करने वाले खड़ें दुश्मनों के साथ मिल भी जाता था। विद्यारण्य स्वामी के पश्चात् जिन्होंने हरिहर और बुक्का को पुनः हिन्दू धर्म में लेकर विशाल विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कराई थे, ऐसे संकट को पहचानने और उसका परिहार करने वाले उस दौर में केवल शिवाजी ही थे। उन्होंने धर्मान्तरिंतों का शुद्धिकरण करने का क्रम चलाकर अकल्पित मानसिक क्रांति का सूत्रपात किया। बीजापुर बादशाह द्वारा धर्मान्तरित बालाजी निबांलकर तथा औरंगजेब द्वारा धर्मान्तरित कराए हुए नेताजी पालकर का शुद्धिकरण कराते हुए हिन्दू धर्म में पुनः लिया। दूसरे लोग पीछे हटेंगे, इसलिए उनके साथ अपने ही परिवार वालों के रक्त-संबंध बढाकर शिवाजी महाराज ने समाज को एक नयी धर्म दृष्टि प्रदान की।इतना ही नहीं धर्म के नाम पर हिन्दू समाज की सुरक्षा तथा सामथ्र्य को संकट उत्पन्न करने वाले सब बंधनों का उन्हांने उन्मूलन किया। समुद्र-प्रयाण को लेकर जो धार्मिक विरोध की अंध श्रद्धा थी। उसे उखाड़कर फेंकने के लिए उन्होने स्वयं समुद्र-प्रयाण कर सागर तट से अंदर जाकर जलदुर्गो का निर्माण कराया। समर नौकाओं में बैठकर संचार करते हुए सागर पराक्रम की उज्जवल परंपराओं को स्थापित किया। मुसमलमान बादशाहों द्वारा तब प्रचालित पद्धति जागीर देने की थी। ऐसी स्थिति में जागीरों के सूबेदार ही उनके सैनिकों और प्रजा के निष्ठा के प्रथम केन्द्र थे। शिवाजी महाराज के राज्य में ऐसे अनेक जागीरगदार, देशमुख, देशपाण्डे थे। एक राज्य के अंदर अनेक राज्यों की अवस्था स्वराज के लिए कभी भी विपत्तिजनक बन सकती थी। परन्तु जागीरदारी प्रथा को समाप्त करना कोई आसान काम नहीं था परन्तु महाराज ने अपना कठोर निर्णय ले ही लिया तथा उसे सफल बनाया। जागीरे रद्द कर जमीनें गरीब किसानो को बाँट दी। अपने समधी पिलाजी शिर्के द्वारा मांगे जाने पर भी जागीर नहीं दी। इससे जनसामान्य में स्वराज के प्रति आत्मीयता बढी, उत्पादन बढ़ा और स्वराज की सुरक्षा के लिए अपायकारी ऐसे जागीरदारों का भी अंत हुआ। सर्वसाधारण किसानों का स्वामिभान से जीना संभव हुआ। स्वाभिमान याने व्यक्ति अभिमान ऐसा भ्रम सिर्फ उस समय ही नहीं, आज भी मौजूद है। बातों-बातों में ही हथियार निकलकर झगड़ा करना, और मरने, मारने के लिए तैयार होना, कुछ ऐसा ही स्वाभिमान उस वक्त था। मध्ययुग में इस तरह के स्वाभिमान को लेकर राजपूत एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते थे। स्वाभिमान का अर्थ ऐसी राष्ट्रघातक व्यक्ति प्रतिष्ठा की जगह राष्ट्रपोषक स्वाभिमान ऐसा शिवाजी ने सिखाया। उन्होने ‘‘शठं प्रति साठ्यम’’नीति का पालन कर शत्रुओं को भरपूर मजा चखाया। एकाकी धर्मयुद्ध की जगह दुश्मनों के अनुसार अपनी नीति अपनायी। छत्रपति ने क्षात्रधर्म की संकल्पना को ही बदल दिया। हौताम्य की जगह उन्होने विजयोपासना की सार्थक नीति का प्रचलन किया। साम, दांम, दण्ड और भेद नीति में वह पूरे प्रवीण थे। समयानुसार कब पीछे हटना और कब हमला कर देना, इसके लिए प्रतिमान उन्होने गढे़ थे। हरेक बार समर संचालन का सूत्र वह अपने पास ही रखते थे। शत्रु पर अचानक हमला कर उसके संभलने तक फरार हो जाने का तंत्र था उनका गनिमी काबा, (गुरिलायुद्ध) इसी के चलते उनकी छोटी-छोटी टोलियां बडी फौजों को भी ठिकाने लगा सकी। दुर्गो की रचना में उन्होने जो कौशल दिखाया, उसे देखकर अंग्रेज इतिहासकार भी आश्चर्यचकित रह गए। तस्वीर का दूसरा बड़ा पहलू यह है कि सभी श्रेष्ठ मानवीय आदर्शो को प्रतिष्ठापित करने की परंपरा उन्होने आरंभ की। राज्याभिषेक के पश्चात् प्राचीन भारतीय अष्ट प्रधान पद्धति उन्होने लागू किया। उनका स्वराज हिंदवी और हिन्दू जीवन मूल्यों से ओत-प्रोत होने पर भी स्वराज निष्ठ होने पर मुसलमानों और ईसाइयों को भी पुरूस्कार मिलता था। शत्रु स्त्रियों के बारे में उनका मान-सम्मान, पूज्यभाव लोक विख्यात हैं। इस संबंध में कल्याण के सूबेदार के सौन्दर्यवती बहू की घटना सभी को पता है, जिसे पकड़कर लाए जाने पर उन्होने ससम्मान वापस भेज दिया था। इसके साथ कुरान और मस्जिद को कहीं भी अपवित्र न किया जाए, उनके सम्मान और पवित्रता का पूरा ख्याल रखा जाए, इसकी सराहना मुस्लिम इतिहासकारों ने खुले दिल से की है। सेना का आक्रमण करते समय देहातों में खड़ी फसल को हाथ नहीं लगाना, बाजारों में अन्यों जैसे ही पैसे देकर समान खरीदना। यदि किसी ने अवज्ञा की तो उसे कठोर सजा। ऐसे कल्याणकारी नीतियां छत्रपति की थी। गोवा को दो बार उन्होने बुरी तरह से लूटा, लेकिन पादरियों, मौलवियों, महिलाओं, बच्चें को तनिक भी धक्का नहीं लगा। सामान्य जनता, गरीबों को तिल-मात्र भी कष्ट नहीं पहुंचना चाहिए ऐसा उनका आदेश था। इतना ही नहीं शहर के परोपकारी धनवानों को भी लूट से मुक्त रखा गया। व्यक्तियों के चयन तथा उनके गुण-परीक्षण में तो छत्रपति बडें ही निष्णात थे। उनकी न्याय-निष्ठुरता, गुण-ग्राहकता, अनुशासनिक कठोरता आदि सें जनसामान्य की उनके प्रति निष्ठा हजार गुना बढ़ गई। न्याय-निष्ठुरता का आलम यह कि उन्हांेने अपने पुत्र संभाजी को भी दण्डित करने से नहीं छोड़ा। इसके बावजूद भी वृत्ति से वह महायोगी। स्वयं का ही कमाया हुआ समूचा राज्य समर्थ रामदास की झोली में डालकर फकीर जैसे निकल जाने को तैयार (राज्य शिवाजी का नहीं, राज्य धर्म का है।)ऐसे स्थितिप्रज्ञ राजर्षि थे वह। अति श्रेष्ठ देशभक्त, संयमी, धर्मशील मातृभक्त, पितृभक्त, गुरूभक्त थे। तभी तो कवि परमानन्द ने संस्कृत में शिवाजी जीवनचरित्र शिवभारत लिखा। कवि भूषण तो हिन्दू छत्रपति का गुणगान करने दौड़ते हुए उत्तर से दक्षिण आ गए थे। ‘‘काशी जी कला जाती, मथुरा मस्जिद होती, शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सबकी।’’ स्वयं गुरू समर्थ गुरू रामदास ने ही शिष्य का गौरवगान इस तरह किया – ‘‘आचारशील, विचारशील, न्यायशील, धर्मशील सर्वज्ञ सुशील जाणता राजा (जाणता यानी ज्ञानी) यशवंत, कीतिवंत, वरदवंत, सामथ्र्यवंत, प्राणवंत, नीतिवंत, जाणता राजा।।’’ जब भारत ही नहीं, पूरी दुनिया सामंतवाद के चंगुल में थी, उन्होंने अपने हिन्दवी स्वराज्य में शोषक सामंती तंत्र का अंत कर किसानों, व्यापारियों तथा समाज के अन्य तबकों न्याययुक्त शासन दिया था। उनके सामने सम्पूर्ण भारत का नक्शा था। तभी तो तात्कालीन पुर्तगाली गवर्नर ने शिवाजी को एक मंत्री से बातचीत के आधार पर यह उद्धृत किया है कि कैलाश मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक यह सम्पूर्ण देश हमारा है और इसे हम मुक्त कराकर रहेंगे। यह शिवाजी का ही दूरदृष्टि थी कि नेताजी पालकर और बालाजी निंबालकर जो मुस्लिम बन गए थे, उन्हें सिर्फ शिवाजी हिन्दू धर्म में ही वापस नहीं लाए, बल्कि निंबालकर के बेटे के साथ अपनी बेटी का विवाह कर एक अदभुत उदाहरण प्रस्तुत किया। आंग्ल तथा पुर्तगाली इतिहासकारों ने शिवाजी की तुलना अल-सिकंदर, सीजर, हाॅनिबल जैसे विश्वविख्यांत योद्धाओं से की है। तथापि उन सबको पहले ही सुसज्जित, प्रशिक्षित सेना, राज्य, राजकोष, आदि उपलब्ध थे। लेकिन शिवाजी महाराज ने इन सबका निर्माण बेचारे गरीब मावलों के बलवूते किया। दूसरे सभी अवर्णनीय परपीड़न, संहार, अत्याचार, करने में पीछे नहीं हटे, जबकि छत्रपति धर्मान्धता, विध्वंस, इत्यादि का नाश कर, शांति, धर्म, न्याय की प्रतिष्ठापना की। इग्लैण्ड के एक सार्वजनिक संस्था ने ‘‘विश्व का सर्वश्रेष्ठ वीर पुरूष कौन?’’ ऐसा प्रश्न विविध देशों को भेज दिया। अंत में शिवाजी ही उस लोकोत्तर पदवी के लिए सर्वदृष्टि से योग्य पुरूष है, ऐसा उसने निर्णय दिया। तभी तो महर्षि अरविंद की काव्य प्रतिभा और विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोंर की भावपूर्ण रसधारा के लिए भी छत्रपति का स्मरण प्रेरणा स्त्रोत बना।’’ नेता जी सुभाषचन्द्र बोस ने कहा था कि भारत के स्वातंत्र्य समर के लिए एकमात्र आदर्श के रूप में आज हमें शिवाजी का स्मरण करना चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम के लिए वीर सावरकर, शिवाजी के भावचित्रों के सामने खडे अपने क्रांतिकारी संगठन के सदस्यो को शपथ दिलाते थे। लोकमान्य तिलक ने सामान्य जनता के हृदय में स्वातंत्रय की ज्योति प्रज्वलित करने हेतु शिवाजी उत्सव प्रचलित किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक केशवराय बलिराम हेडेगवार ने शिवाजी के राज्यारोहण के उत्सव का सही संदेश समाज के मन में पहुंचाने के लिए हिन्दू साम्राज्य दिवोत्सव का रूप देकर प्रचलित किया। आज भी राष्ट्र की जो परिस्थितियां है, उनके समुचित समाधान के लिए समर्थ गुरू रामदास के अनुसार – ‘‘सुमिरन करिए शिवराज के रूप का, सुमिरन करिए शिवराज के प्रताप का।।’’ छत्रपति शिवाजी स्मारक का मुम्बई के पास अरब सागर में हजार बाधाओं के बाद भी प्रधानमंत्री द्वारा नए वर्ष में आधारशिला रख दी गई, जलपूजन हो गया। इसकी लागत 3600 करोड़ रूपये होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार शिवाजी महाराज साहस, बहादुरी और सुशासन की मिसाल हैं। इसलिए यह उनके लिए एक उचित श्रद्धांजलि है। करीब 15 एकड़ के द्वीप पर प्रस्तावित स्मारक समुद्र तट से डेढ किलोमीटर अंदर होगा। दुनिया में कहीं भी इतनी उॅची मूर्ति नहीं है। घोड़े पर बैठे हुए छत्रपति शिवाजी के पुतले की उॅचाई 114.4 मीटर है। ये स्मारक करीब 13 हेक्टेयर की चट्टान पर बनाया जाएगा। यहाँ एक समय में दस हजार लोग एक साथ आ सकते हैं। इस स्मारक पर एक एम्पीथिएटर, मंदिर, फूड कोर्ट, लाइब्रेरी, आडियो गाइडेट टूर, थ्री-डी फिल्म, एक्वेरियम जैसी सुविधाएं होंगी। इसके विरोधियों को यह नहीं पता कि यह पर्यटकों के लिए भी कितना बड़ा स्मारक-स्थल हो जाएगा। आर्थिक दृष्टि से इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा एवं करोड़ों की आय होगी। इस तरह से राष्ट्र ने अपने एक महानतम् सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त की। शिवाजी से ही प्रेरणा लेकर वियतनाम ने ऐसी रणनीति बनाई कि अमेरिका जैसी महाशक्ति को वहां से भागना पड़ा। यह बात आज से कई वर्षों पूर्व वियतनाम के प्रधानमंत्री बता चुके हैं कि यदि हमने शिवाजी महाराज के जीवन का अध्ययन नहीं किया होता तो अमेरिका जैसा अजगर हमें निगल गया होता। हमें इस बात की प्रेरणा मिली कि यदि शिवाजी औरंगजेब के साम्राज्य को चारोंखाने चित्त कर सकते थे तो हम अमेरिका को क्यों नहीं कर सकते। तभी तो योद्धा, सन्यासी कहे जाने वाले विवेकानन्द ने कहा था-‘‘ गहन कालिमा के क्षणों में अवतार धारण कर अधर्म का विनाश कर, धर्म राज्य की स्थापना करने वाला युगपुरूष था-वह प्रत्यक्ष शिवाजी का अवतार। भारत की आत्मचेतना का मूर्त रूप था वह, भारत के भव्य भवितव्य का आशादीप था वह।’’ वीरेन्द्र सिंह परिहार Read more » Embodiment of India's self-consciousness Embodiment of India's self-consciousness: Chhatrapati Shivaji छत्रपति शिवाजी
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार शिवाजी महाराज और इतिहासकारों की मक्कारी February 18, 2025 / February 18, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment अंग्रेज व मुस्लिम इतिहासकारों ने शिवाजी को औरंगजेब की नजरों से देखते हुए ‘पहाड़ी चूहा’ या एक लुटेरा सिद्घ करने का प्रयास किया है। अत्यंत दु:ख की बात ये रही है कि इन्हीं इतिहासकारों की नकल करते हुए कम्युनिस्ट और कांग्रेसी इतिहासकारों ने भी शिवाजी के साथ न्याय नही किया। छल, छदम के द्वारा कलम […] Read more » Shivaji Maharaj and the deceit of historians शिवाजी महाराज
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लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार रैदास युगपुरुष और युगस्रष्टा सिद्ध संत थे February 11, 2025 / February 13, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment संत रविदास जयन्ती- 12 फरवरी, 2025ललित गर्गमहामना संत रविदास कहो या रैदास-भारतीय संत परम्परा, भक्ति आन्दोलन और संत-साहित्य के जहां महान् हस्ताक्षर है, वहीं वे अलौकिक-सिद्ध संत, समाज सुधारक, साधक और कवि हैं। दुनियाभर के संत-महात्माओं में उनका विशिष्ट स्थान है। सद्गुरु रामानंद के पारस स्पर्श ने चर्मकार रैदास को भारत वर्ष का महान चमत्कारी […] Read more » Raidas was a proven saint of the era and the creator of the era. संत रविदास जयन्ती- 12 फरवरी
शख्सियत समाज साक्षात्कार हमारा तो फील्ड ही चुनौतियों से भरा है – डिटेक्टिव गुरू राहुल राय गुप्ता February 6, 2025 / February 6, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment नीतू गुप्ता आपने एजेंट विनोद, जग्गा जासूस, डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी, पोशम पा, डैशिंग डिटेक्टिव, बादशाह, हसीन दिलरूबा, बॉबी जासूस जैसी जासूसी पर आधारित फिल्मों में जासूसों को देखा होगा। आज हमने एक असली जासूस से बात की। ये जासूस हैं, सीक्रेट वॉच डिटेक्टिव्स प्रा. लि. के सीईओ राहुल राय गुप्ता, जो डिटेक्टिव गुरू के नाम […] Read more » Detective Guru Rahul Rai Gupta डिटेक्टिव गुरू राहुल राय गुप्ता
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारत माता की महान सपूत स्वामी विवेकानंद January 12, 2025 / January 15, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment आधुनिक विश्व को भारतीयता से परिचित कराने वाले नरेन्द्र नाथ दत्त उर्फ स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकत्ता में हुआ। वह दौर पश्चिम के अंधानुकरण और स्वसंस्कृति के प्रति हीनभावना का था। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों में आत्मसम्मान और गौरव का भाव भरा। 1893 में अमेरिका के शिकागो में […] Read more »
शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी विवेकानंद: युवाओं के प्रेरणास्रोत January 12, 2025 / January 14, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment राष्ट्रीय युवा दिवस / स्वामी विवेकानंद जयंती (12 जनवरी) – योगेश कुमार गोयलवर्तमान परिवेश में समाज में चारों तरफ अपराधों तथा भ्रष्टाचार का जो मकड़जाल फैल चुका है, वह घुन बनकर न सिर्फ देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है बल्कि युवा वर्ग भी भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के इस दूषित माहौल में हताश […] Read more » स्वामी विवेकानंद
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारतीयता के पर्याय-स्वामी विवेकानंद January 11, 2025 / January 15, 2025 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment वीरेन्द्र सिंह परिहार स्वामी विवेकानन्द उस समय अमेरिका और यूरोपियन देशों में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की ध्वजा फहराकर और भारतवर्ष का दौरा करके कलकत्ता वापस आए ही थे, और अपने देशी-विदेशी सहकारियों के साथ बेलूड़ में रामकृष्ण परमहंस मठ की योजना में संलग्न थे। इन्ही दिनों कलकत्ता नगर में महामारी प्लेग का प्रकोप फैला। […] Read more » Synonym of Indianness – Swami Vivekananda भारतीयता के पर्याय-स्वामी विवेकानंद
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी विवेकानंद: विकसितभारत @2047के पथप्रदर्शक व प्रेरणास्त्रोत January 11, 2025 / January 14, 2025 by डॉ. पवन सिंह मलिक | Leave a Comment स्वामी विवेकानंद: बस वही जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं – डॉ. पवन सिंह ‘ओ मेरे बहादुरों इस सोच को अपने दिल से निकाल दो की तुम कमजोर हो। तुम्हारी आत्मा अमर,पवित्र और सनातन है। तुम केवल एक विषय नहीं हो, तुम केवल एक शरीर मात्र नहीं हो’। यह कथन है लाखों – करोड़ों दिलों की धड़कन […] Read more » स्वामी विवेकानंद
लेख शख्सियत युवाओं के प्रेरणास्त्रोत – स्वामी विवेकानंद January 8, 2025 / January 8, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन स्वामी विवेकानन्द संभवतः भारत के एकमात्र ऐसे संत हैं जो अध्यात्म, दर्शन और देशभक्ति जैसे गंभीर गुणों के साथ-साथ युवा शक्ति के भी प्रतीक हैं। उनकी छवि भले ही एक धर्मपुरूष और कर्मयोगी की है किन्तु उनका वास्तविक उद्देश्य अपने देश के युवाओं को रचनात्मक कर्म का मार्ग दिखाकर विश्व में भारत के […] Read more »
राजनीति शख्सियत कल्याण सिंह ने श्री राम जन्मभूमि और धर्म के लिए सत्ता का त्याग किया January 5, 2025 / January 7, 2025 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (कल्याण सिंह जी की 93वीं जन्म-जयंती पर विशेष आलेख) भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत और भारतीय राजनीति में भगवान श्री रामचंद्र जी के हनुमान हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह ऐसे नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति में अनेकों मिसाल पेश की हैं। हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह का राजनीतिक व व्यक्तिगत जीवन हमेशा से बेदाग रहा है। कल्याण सिंह के कुशल प्रशासन की मिसालें तब तक दी जायेंगी जब तक ये संसार रहेगा। कल्याण सिंह ने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के नेता’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर हिन्दू युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह का व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। कल्याण सिंह को भारतीय राजनीति में बाबूजी के रूप में जाना जाता था। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी सन् 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ जनपद की अतरौली तहसील के मढ़ौली ग्राम के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ। कल्याण सिंह के पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम सीता देवी था। कल्याण सिंह में बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमता थी। कल्याण सिंह बचपन में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए थे और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की शाखाओं में भाग लेने लगे थे। कल्याण सिंह ने विपरीत परिस्थितियों में कड़ी मेहनत कर अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद कल्याण सिंह ने अध्यापक की नौकरी की। और साथ-साथ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ कर राजनीति के गुण भी सीखते रहे। कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में रहकर गांव-गांव जाकर लोगों में जागरुकता पैदा करते रहे। कल्याण सिंह का विवाह रामवती देवी से हुआ। कल्याण सिंह के दो संतान है। एक पुत्र और एक पुत्री, पुत्र का नाम राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया है और पुत्री का नाम प्रभा वर्मा है। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया वर्तमान में उत्तर प्रदेश की एटा लोकसभा सीट से संसद सदस्य हैं। कल्याण सिंह ने अपना पहला विधानसभा चुनाव अतरौली से जीतकर 1967 में उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे। कल्याण सिंह 1967 से लगातार 1980 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच देश में आपातकाल के समय कल्याण सिंह 1975-76 में 21 महीने जेल में रहे। इस बीच कल्याण सिंह को अलीगढ़ और बनारस की जेलों में रखा गया। आपातकाल समाप्त होने के बाद 1977 में रामनरेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। जिसमें कल्याण सिंह को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। सन् 1980 के उत्तर प्रदेश के चुनावों में कल्याण सिंह विधानसभा का चुनाव हार गये। भाजपा के गठन के बाद कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश का संगठन महामंत्री बनाया गया। इस बीच कल्याण सिंह ने गाँव-गाँव, घर-घर जाकर भाजपा को उत्तर प्रदेश में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। कल्याण सिंह 1985 से लेकर 2004 तक लगातार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस बीच कल्याण सिंह दो बार भाजपा के उत्तर प्रदेश से प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में राम मंदिर आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन में कल्याण सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ। और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनायी। जिसमे कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही। और कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों द्वारा अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया। कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये 6 दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। यहीं से भाजपा को कल्याण सिंह के रूप में हिंदुत्ववादी चेहरा मिल गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ के अतरौली और एटा के कासगंज से विधायक निर्वाचित हुये। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनायी। और उत्तर प्रदेश विधान सभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने। इसके बाद कल्याण सिंह 1997 से 1999 तक पुनः दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल में कानून व्यवस्था एक दम मजबूत थी। इसलिए आज तक उत्तर प्रदेश में लोग कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल की मिसाल देते हैं। 1998 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में 58 सीटें जीती। 1999 में भाजपा से मतभेद के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी। कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। 2002 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने दम पर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से लड़ा और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के चार विधायक चुने गए और कल्याण सिंह ने बड़े स्तर पर पूरे प्रदेश में भाजपा को नुकसान पहुँचाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश की जमीन पर भाजपा कई वर्षो तक कल्याण सिंह की उथल पुथल का और भाजपा के नकारा नेताओं की साजिश का शिकार बनी रही। लेकिन इसका फायदा न कल्याण सिंह को मिल पाया न भगवा पार्टी को। भाजपा और कल्याण सिंह दोनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर चले गए। 2004 में कल्याण सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के आमंत्रण पर भाजपा में वापसी तो कर ली लेकिन, उनको वो पॉवर नहीं मिली जो मंदिर आन्दोलन के समय उनके पास थी। 2004 के आम चुनावों में उन्होंने बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा। और कल्याण सिंह पहली बार बुलंदशहर लोकसभा सीट से संसद पहुंचे। 2007 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में लड़ा। कहने को भाजपा ने 2007 में कल्याण सिंह को भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तो बना दिया लेकिन नाम का, जिसके पास ना तो उम्मीदवार तय करने की पावर थी और ना ही उनके अंडर में उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रबंधन था। इसलिए वो चुनाव में कुछ अच्छा नहीं कर सके। इसके बाद 2009 में पुनः अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मतभेदों के कारण भाजपा का दामन छोड कर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नजदीकियां बढ़ा लीं। 2009 के लोकसभा चुनावों में एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये। फिर 2009 लोकसभा चुनाव खत्म होते ही मुलायम ने कल्याण से नाता तोड़ लिया। क्योंकि कल्याण सिंह की बजह से मुस्लिम समुदाय के लोग उनसे नाता तोड़ चुके थे। इसके बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी का गठन किया जो कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कुछ विशेष नहीं कर सकी। लेकिन मुलायम के परम्परागत वोट उनके पास वापस आ गए। इसके बाद 2013 में कल्याण सिंह की भाजपा में पुनः वापसी हुई और कल्याण सिंह का परंपरागत लोधी-राजपूत वोट भी भाजपा से जुड़ गया। और 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के कहने पर कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में भाजपा का खूब प्रचार किया। भाजपा ने अकेले अपने दम पर 80 लोकसभा सीटों से 71 लोकसभा सीटें जीतीं। और नरेंद्र मोदी देश के यशस्वी प्रधानमंत्री बनें। इसके बाद किसी समय देश के भावी प्रधानमंत्री कहे जाने वाले कल्याण सिंह को राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया। इसके बाद कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। लेकिन राजस्थान का राज्यपाल रहते हुए भी कल्याण सिंह का दखल उत्तर प्रदेश की राजनीति में रहा। कल्याण सिंह ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में अपना 05 साल का कार्यकाल पूरा किया और 08 सितम्बर 2019 तक कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल रहे। इसके बाद कल्याण सिंह ने 09 सितम्बर 2019 को लखनऊ में भाजपा की पुनः सदस्यता ली और फिर से भाजपाई हो गए। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कल्याण सिंह का अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावी दखल रहा। 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के अधिकतर प्रत्याशी कल्याण सिंह का जयपुर राजभवन में आशीर्वाद लेने जाते रहे। इसी से पता चलता है कि कल्याण सिंह जनमानस में कितने लोकप्रिय रहे है। लोग कल्याण सिंह सरकार की आज भी मिसालें देते हैं। क्योंकि कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के सीएम थे तब राज्य में काफी सुधार और विकास की चीजें हुई थीं। जिससे उनकी लोकप्रियता पिछड़ों सहित सर्वणों में भी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने भाषणों में कल्याण सरकार के कुशल प्रशासन की मिसाल देते हैं। कल्याण सिंह अपने समय पर उत्तर प्रदेश के हिंदुत्ववादी सर्वमान्य नेता थे। उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीति, कुशल प्रशासन और हिंदुत्ववादी छवि के लिए जाने वाले श्रीराम के भक्त कल्याण सिंह ने (21 अगस्त 2021) को 89 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के योद्धा, धर्म के लिए सत्ता का त्याग करने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी की आज 93वीं जन्म-जयंती है। जब जब धर्म के लिए त्याग की चर्चा होगी श्री कल्याण सिंह जी के नाम का विशेष उल्लेख होगा। अयोध्या में आज भव्य रामलला के मंदिर की जो परिकल्पना साकार हुयी है उसमें भी स्वर्गीय श्री कल्याण सिंह जी का योगदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। लेखक ब्रह्मानंद राजपूत Read more » कल्याण सिंह