कला-संस्कृति वर्तमान में भारतीय संस्कृति पर हिन्दी फिल्मों का बुरा प्रभाव June 12, 2014 by विकास कुमार | 1 Comment on वर्तमान में भारतीय संस्कृति पर हिन्दी फिल्मों का बुरा प्रभाव -विकास कुमार- भारतीय संस्कृति पर वर्तमान समय में हिन्दी फिल्मों का बुरा प्रभाव पढ़ रहा हैं| आजकल आने वाली लगभग सभी फिल्मों में हिन्दी फिल्मों में अश्लीलता, चरित्रहीनता आदि बातो को दर्शाया जा रहा है| जिसका हमारे देश के युवाओं पर बुरा प्रभाव पढ़ रहा है| फ़िल्म निर्माता अपने लाभ के लिये फिल्मो में अश्लीलता […] Read more » फिल्म का प्रभाव भारतीय संस्कृति संस्कृति प्रभाव हिन्दी फिल्म
कला-संस्कृति ‘क्या हम मनुष्य हैं?’ June 4, 2014 / June 4, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- मनुष्य कौन है, कौन नहीं? मनुष्य किसे कहते हैं व मनुष्य की परिभाषा क्या हैं? हम समझते हैं कि यदि सभी मत-मतान्तरों के व्यक्तियों से इसकी परिभाषा बताने को कहा जाये तो सब अपनी-अपनी अलग परिभाषा करेंगे। वह सब ठीक भी हो सकती हैं परन्तु हम अनुभव करते हैं कि सर्वांगपूर्ण परिभाषा […] Read more » ‘क्या हम मनुष्य हैं?’ मनुष्य मनुष्य जीवन
कला-संस्कृति यदि आर्य समाज स्थापित न होता तो क्या होता? May 13, 2014 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on यदि आर्य समाज स्थापित न होता तो क्या होता? -मनमोहन कुमार आर्य- इस समय वेद व सृष्टि सम्वत् 1,96,08,53,115 आरम्भ हो रहा है। द्वापर युग की समाप्ति पर लगभग 5,000 वर्ष पूर्व महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। इस प्रकार लगभग 1,96,08,48,00 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध तक सारे भूमण्डल पर एक ही वैदिक धर्म व संस्कृति विद्यमान थी। महाभारत युद्ध से धर्म व संस्कृति […] Read more » आर्य आर्य समाज आर्य समाज का महत्व
कला-संस्कृति विराट भारत – समाज अपना May 8, 2014 by कन्हैया झा | Leave a Comment -कन्हैया झा- संस्कृत के शब्द विराट का अर्थ है “एक ऐसा विशाल जिसमें सब चमकते हैं”. इसी शब्द से जुड़े अन्य शब्द सम्राट, एकराट (मनुष्य), राष्ट्र आदि हैं. अर्थात विराट भारत की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जिसका तंत्र सभी को सुख देने में समर्थ है. “सर्वे भवन्तु सुखिनः” श्रृंखला के पिछले ९ लेखों […] Read more » इंडिया भारत भारतीय समाज भारतीय संस्कृति विराट भारत
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म धर्मयुक्त अर्थोपार्जन से सर्वे भवन्तु सुखिन: April 24, 2014 / April 24, 2014 by कन्हैया झा | Leave a Comment -कन्हैया झा- आज से 5000 वर्ष पूर्व सिन्धु-घाटी सभ्यता के समृद्ध शहरों से मिस्र एवं फारस के शहरों से व्यापार होता था. इन शहरों के व्यापारियों को “पणि” कहा जाता था, जो संभवतः कालांतर में वणिक अथवा व्यापारी शब्द में परिवर्तित हुआ. शायद इन्हीं व्यापारियों के कारण भारत को “सोने की चिड़िया” भी कहा गया […] Read more » धर्मयुक्त अर्थोपार्जन सर्वे भवन्तु सुखिन:
कला-संस्कृति ‘राष्ट्र’ आराधन कैसे हो? April 23, 2014 by विनोद कुमार सर्वोदय | Leave a Comment -विनोद कुमार सर्वोदय- क्या कारण है कि प्रायः सभी राजनैतिक दल चुनावों में एक-दूसरे को मुस्लिम विरोधी व स्वयं को उनका सबसे बडा हितैषी कहते नहीं थकते? वे मुस्लिम वोट पाने के लिये संविधान की मूल भावनाओं का अनादर करते हुये मुसलमानों को विशेष अधिकार देते जा रहे है। इस मानसिकता को समझते हुये मुस्लिम […] Read more » ‘राष्ट्र’ आराधन कैसे हो? Nation राष्ट्र
कला-संस्कृति साहित्य में राष्ट्रीय धारा ही मुख्यधारा का वैकल्पिक औजार April 11, 2014 by आशीष आशू | Leave a Comment जाति, नस्ल, धर्म व संप्रदाय की पूर्ण आहूति ही राष्ट्रीय धारा का शंखनाद -आशीष आशू- साहित्य में कई धाराओं या विचारों का समावेश होता है. एक पाठक के लिए साहित्य, समाज में व्याप्त अच्छे व बुरे गतिविधियों या चलन को जानने व समझने का माध्यम होता है. पाठक किसी भी लेखक व रचनाकार की दृष्टि […] Read more » national existence in literature साहित्य में राष्ट्रीय धारा ही मुख्यधारा का वैकल्पिक औजार
कला-संस्कृति ‘सृष्टि-वेदोत्पत्ति का इतिहास व वैदिक वर्ण-जन्म-जाति व्यवस्था’ April 11, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- हमारी सृष्टि 1,96,08,53,114 वर्ष पुरानी है। यह सत्य है कि यह सृष्टि इससे अधिक और न कम पुरानी है। इसका कारण है कि हमारे पूवर्जाें ने सृष्टि के आरम्भ से ही काल गणना करना आरम्भ कर दिया था। वह बीत रहे दिन को जोड़ते जाते थे। यह रहस्यपूर्ण व आष्चर्यजनक लगता है, […] Read more » ‘सृष्टि-वेदोत्पत्ति का इतिहास व वैदिक वर्ण-जन्म-जाति व्यवस्था’ Arya history of Ved
कला-संस्कृति आर्य-द्राविड़ की धारणा का झूठ March 24, 2014 by राकेश कुमार आर्य | 2 Comments on आर्य-द्राविड़ की धारणा का झूठ -राकेश कुमार आर्य- भारत में आर्यों को विदेशी बताने वालों ने ही यहां गोरे-काले अथवा आर्य-द्राविड़ का भेद उत्पन्न किया। जिससे यह बात सिद्घ हो सके कि भारत में तो प्राचीन काल से ही गोरे-काले का भेद रहा है और यहां जातीय संघर्ष भी प्राचीन काल से ही रहा है। इसके लिए देवासुर संग्राम को […] Read more » False with Arya-Dravid emotion आर्य-द्राविड़ की धारणा का झूठ
कला-संस्कृति मीना, मीणा, मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि सभी पर्यायवाची शब्द February 27, 2014 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 10 Comments on मीना, मीणा, मैना, मैणा, मेंना, मैंणा आदि सभी पर्यायवाची शब्द -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’- जब पहली बार जिस किसी ने भी ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने के लिए किसी बाबू या किसी पीए या पीएस को आदेश दिये तो उसने ‘मीणा’ शब्द को अंग्रेजी में Meena के बजाय Mina लिखा और इसी Mina नाम से विधिक प्रक्रिया के बाद ‘मीणा’ जाति का जनजाति […] Read more » details of Mina caste मीणा मीना मेंना मैणा मैंणा आदि सभी पर्यायवाची शब्द मैना
कला-संस्कृति ‘ईश्वर के सच्चे पुत्र व सन्देशवाहक वेदज्ञ महर्षि दयानन्द’ February 17, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने जीवन में जो कार्य किया, उससे वह ईश्वर के सच्चे पुत्र व ईश्वर के सन्देशवाहक कहे जा सकते हैं। स्वयं महर्षि दयानन्द की विचारधारा के अनुसार संसार में जन्म लेने वाला हर प्राणी व इस ब्रह्माण्ड में जितनी भी जीवात्मायें हैं, वह सब ईश्वर की पुत्र […] Read more » ‘ईश्वर के सच्चे पुत्र व सन्देशवाहक वेदज्ञ महर्षि दयानन्द’ maharshi dayanand saraswati
कला-संस्कृति स्वयं विषपान कर संसार को अमृत पिलाने वाला अनोखा ऋषि दयानन्द सरस्वती February 15, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- महर्षि दयानन्द का शिवरात्रि से गहरा ऐतिहासिक सम्बन्ध है। शिवरात्रि के व्रत ने ही बालक मूलशंकर को सच्चे शिव अर्थात् सृष्टि के रचयिता ईश्वर की खोज करने की प्रेरणा की। घर व परिवारजनों के बीच रहकर वह अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते थे। इसके लिए उन्हें ऐसे विद्वानों, आचार्यो, […] Read more » Swami Dayanand Saraswati स्वयं विषपान कर संसार को अमृत पिलाने वाला अनोखा ऋषि दयानन्द सरस्वती