बच्चों का पन्ना दादी बोली January 15, 2013 / January 15, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on दादी बोली जितनी ज्यादा बूढ़ी दादी, दादा उससे ज्यादा| दादी कहती ‘मैं’ शहजादी, और दादा शह्जादा| दादी का यह गणित, नातियों पोतों को न भाता| बूढ़े लोगों को क्यों माने, शहजादी ,शहजादा| दादी बोली,अरे बुढ़ापा, नहीं उमर से आता| जिनका तन मन निर्मल होता, वही युवा कहलाता| Read more »
बच्चों का पन्ना चूहों की चतुराई January 15, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment देखे जब दो दर्जन चूहे, कंडेक्टर घबराया| सारे थे बस में सवार, पर टिकिट एक कटवाया| बोला दो दर्जन हो तुम सब, सबको टिकिट लगेगा| एक टिकिट में सब जा पायें, यह तो नहीं चलेगा| कंडेक्टर की बातें सुनकर, चूहे आगे आये| दे दो अलग अलग टिकटें,कह, आगे नोट बढ़ाये| पर चूहों […] Read more »
बच्चों का पन्ना छक्का January 2, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव “दादाजी मैं छक्का मारूंगा”अमित ने क्रिकेट बेट लहराते हुये मुझसे कहा|वह एक हाथ में बाल लिये था”,बोला प्लीज़ बाँलिंग करो न दादाजी|” “अरे! अरे! इस कमरे में छक्का, नहीं नहीं यहां थोड़े ही छक्का मारा जाता है कमरे में कहीं क्रिकेट खेलते हैं क्या?|यहाँ टी. वी. रखा है, फ्रिज है, कूलर रखा है, […] Read more » story for children
बच्चों का पन्ना बाल कहानी – कीरत तीरथ January 2, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव धरमपुरा रियासत के एक गांव में कीरत तीरथ नाम के दो सगे भाई रहते थे। किसी गंभीर बीमारी के चलते उनके पिता मल्थूराम का स्वर्गवास पांच साल पूर्व ही हो चुका था। माँ ने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा किया था और दोनों का विवाह भी बड़ी धूम धाम से कर दिया था। […] Read more » story for kids
बच्चों का पन्ना कहां जांयें हम December 18, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment भालू चीता शेर सियार सब, रहने आये शहर में| बोले’अब तो सभी रहेंगे, यहीं आपके घर में|’ तरुवर सारे काट लिये हैं , नहीं बचे जंगल हैं| जहाँ देखिये वहीं दिख रहे, बंगले और महल हैं| अब तो अपना नहीं ठिकाना, लटके सभी अधर में| भालू चीता शेर सियार सब, रहने आये शहर में| […] Read more » कहां जांयें हम
बच्चों का पन्ना हाथी और चूहा December 17, 2012 / December 17, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment दो चूहों को बीच सड़क पर, मिल गये हाथी दादा| एक चूहा दूजे से बोला, क्या है भाई इरादा? कई दिनों से हाथ सुस्त हैं, कसरत न हो पाई| क्यों न हम हाथी दादा की, कर दें आज धुनाई| बोला तभी दूसरा चूहा, उचित नहीं यह बात| दो जब मिलकर किसी अकेले , पर करते […] Read more » हाथी और चूहा
बच्चों का पन्ना हमारी माँ अगर होती December 17, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा| फटकने दुख नहीं देती ,हमारे पास में पापा|| सुबह उठकर हमें वह दूध ,हँस हँस कर पिलाती थी| डबल रोटी या बिस्कुट ,साथ में ,हमको खिलाती थी| अगर होती सुबह से ही ,कभी की उठ चुकी होती| हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा| […] Read more » हमारी माँ अगर होती
बच्चों का पन्ना वही सफलता पाता है December 17, 2012 / December 17, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment पीपल मेरे पूज्य पिताजी, तुलसी मेरी माता है| बरगद को दादा कहने से, मन पुलकित हो जाता है| बगिया में जो आम लगा है, उससे पुश्तैनी नाता, कहो बुआ खट्टी इमली को, मजा तब बहुत आता है| घर में लगा बबूल पुराना, वह रिश्ते का चाचा है| “मैं हूँ बेटे मामा तेरा,” यह […] Read more » वही सफलता पाता है
बच्चों का पन्ना हाथी मामा December 16, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment हाथी मामा पहिन पजामा, पहुंच गये स्कूल| जैसे ही पढ़ने वह बैठे, टूट गया स्टूल| चित्त गिरे धरती पर मामा, कुछ भी समझ न पाये| पसर गये फिर धीरे धीरे, पैरों को फैलाये| जैसे तैसे दो चूहों ने, मिलकर उन्हें उठाया| गरम गरम काफी का प्याला, लाकर एक पिलाया| Read more »
बच्चों का पन्ना प्रजातंत्र का राजा December 16, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment एक कहानी बड़ी पुरानी, कहती रहती नानी| शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी| कभी शेर ने बकरी को, न घूरा न गुर्राया| बकरी ने जब भी जी चाहा, उससे हाथ मिलाया| शेर भाई बकरी दीदी के ,जब तब घर हो आते| बकरी के बच्चे मामा को, गुड़ की चाय पिलाते| बकरी भी […] Read more » प्रजातंत्र का राजा
बच्चों का पन्ना चूहा भाई December 15, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सुबह सुबह चूहा भाई ने, संपादक को डांटा| “चार लेख भेजे थे मैंने, नहीं एक भी छापा|” संपादक ने एक पत्रिका, उसकी तरफ बढ़ाई| बोला”इसमें आप छपे हैं, इसको पढ़ लो भाई|” मुख्य पृष्ठ पर ज्योंहि उनको, बिल्ली पड़ी दिखाई| डर के मारे दौड़ लगाकर, भागे चूहा भाई| Read more »
बच्चों का पन्ना खुला पुस्तकालय जंगल में December 15, 2012 / December 15, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बालवाटिका पढ़ पढ़कर, कालू बंदर हो गये विद्वान| इसी बात का हाथीजी ने ,शेर चचा का खींचा ध्यान| देखो तो यह कालू बंदर, पढ़ लिखकर हो गया महान| हम तो मात्र हिलाते रह गये ,अपने पूँछ गला और कान| बाल वटिका बुलवाने का ,खुलकर किया गया एलान| शाल ओढ़ाकर बंदरजी का, किया गोष्ठी में सम्मान| […] Read more » खुला पुस्तकालय जंगल में