चिंतन धर्म-अध्यात्म व्रत, तप, तीर्थ व दान का वैदिक सत्य स्वरूप December 25, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on व्रत, तप, तीर्थ व दान का वैदिक सत्य स्वरूप मनमोहन कुमार आर्य भारत में सबसे अधिक पुरानी, आज भी प्रासंगिक, सर्वाधिक लाभप्रद व सत्य मूल्यों पर आधारित धर्म व संस्कृति ‘‘वैदिक धर्म व संस्कृति” ही है। महाभारत काल के बाद अज्ञान व अंधविश्वास उत्पन्न हुए और इसका नाम वैदिक धर्म से बदल कर हिन्दू धर्म हो गया। हम सभी हिन्दू परिवारों में उत्पन्न हुए […] Read more » Featured तप तीर्थ व दान का वैदिक सत्य स्वरूप व्रत
धर्म-अध्यात्म ईश्वर के कृतज्ञ सभी मनुष्यों को वैदिक विधि से ईश्वर-स्तुति करनी चाहिये December 22, 2015 by मनमोहन आर्य | 4 Comments on ईश्वर के कृतज्ञ सभी मनुष्यों को वैदिक विधि से ईश्वर-स्तुति करनी चाहिये मनुष्य विज्ञान की नई-नई खोजों के वर्तमान युग में ईश्वर व अपनी जीवात्मा के मूल स्वरुप को भूल बैठा है। आज ईश्वर को मानना व नाना प्रकार के मत-मतान्तरों प्रचलित विधि से उसकी स्तुति व प्रार्थना करना एक प्रकार का फैशन सा लगता है। कोई भी काम करने से पहले उसका यथेष्ट ज्ञान व विधि […] Read more » ईश्वर के कृतज्ञ सभी मनुष्यों को वैदिक विधि से ईश्वर-स्तुति करनी चाहिये
धर्म-अध्यात्म वैदिक धर्म व संस्कृति के सर्वाधिक प्रेमी December 22, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment स्वामी विरजानन्द और स्वामी दयानन्द वैदिक धर्म व संस्कृति के सर्वाधिक प्रेमी ऐतिहासिक देशवासी मनमोहन कुमार आर्य धर्म व संस्कृति के इतिहास पर दृष्टि डालने पर यह तथ्य प्रकट होता है कि महाभारत काल में ह्रासोन्मुख वैदिक धर्म व संस्कृति दिन प्रतिदिन पतनोन्मुख होती गई। महाभारत युद्ध का समय लगभग पांच हजार वर्ष एक सौ […] Read more »
धर्म-अध्यात्म निःस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देती है गीता December 22, 2015 by अशोक “प्रवृद्ध” | 1 Comment on निःस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देती है गीता अशोक “प्रवृद्ध” महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अपने कर्तव्य से विमुख अर्जुन को उसके कर्तव्य का भान कराने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का प्रवचन किया था । श्रीमद्भगवद्गीता वैराग्य अर्थात भक्तिप्रधान अवतारवाद का ग्रन्थ नहीं अपितु कर्मयोग का ग्रन्थ है , हाँ इसमें अध्यात्म का समावेश अवश्य है । कलियुग के प्रारंभ होने के […] Read more » holy book gita गीता
धर्म-अध्यात्म ईश्वर सबको हर क्षण देखता है और सभी कर्मों का यथोचित फल देता है December 20, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on ईश्वर सबको हर क्षण देखता है और सभी कर्मों का यथोचित फल देता है मनमोहन कुमार आर्य बहुत से अज्ञानियों के लिए यह संसार एक पहेली है। संसार की जनसंख्या लगभग 7 अरब बताई जाती है परन्तु इनमें से अधिकांश लोगों को न तो अपने स्वरुप का और न हि अपने जीवन के उद्देश्य व लक्ष्य का ज्ञान है। उन्हें इस संसार को बनाने वाले व हमें व अन्य […] Read more » Featured ईश्वर सबको हर क्षण देखता है सभी कर्मों का यथोचित फल देता है
धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्य December 18, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्य महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के दलितोद्धार कार्यों पर स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी का प्रेरणादायक उपदेश सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक सभी वैदिक सनातनधर्मी स्वयं आर्य कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे। तब तक हिन्दुओं शब्द का अस्तित्व भी संसार में नहीं था। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत आने पर यह शब्द […] Read more » आर्यसमाज दलितोद्धार कार्य महर्षि दयानन्
धर्म-अध्यात्म मर्यादा पुरुषोत्तम राम का विश्व के महापुरुषों में सर्वोत्तम स्मरणीय चरित्र December 18, 2015 / December 18, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य यदि किसी मनुष्य को धर्म का साक्षात् स्वरुप देखना हो तो उसे वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करना चाहिये। श्री राम का चरित्र वस्तुतः आदर्श धर्मात्मा का जीवन चरित्र है। महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना करके वस्तुतः श्री रामचन्द्र जी के काल में प्रचलित धर्म व संस्कृति को ही प्रचारित व प्रसारित […] Read more » Featured मर्यादा पुरुषोत्तम राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम का विश्व के महापुरुषों में सर्वोत्तम स्मरणीय चरित्र
धर्म-अध्यात्म आर्य जाति नहीं गुण सूचक शब्द है। December 17, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on आर्य जाति नहीं गुण सूचक शब्द है। सृष्टि के आदि काल व उसके बाद के समय में आर्य, दास तथा दस्यु आदि कोई मुनष्यों की जातियां नहीं थीं, और न ही इनके बीच हुए किसी युद्ध व युद्धों का वर्णन वेदों में है। वेद में आर्य आदि शब्द गुणवाचक हैं, जातिवाचक नहीं। जाति तो संसार के सभी मनुष्यों की एक है और […] Read more » Featured आर्य जाति नहीं गुण सूचक शब्द है।
धर्म-अध्यात्म समाज प्रगति का सूचक है बुद्धिवाद December 15, 2015 / December 15, 2015 by अशोक “प्रवृद्ध” | 1 Comment on प्रगति का सूचक है बुद्धिवाद अशोक “प्रवृद्ध” मजहब और धर्म भिन्न-भिन्न हैं । धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति के आचरण से होता है और मजहब कुछ रहन-सहन के विधि-विधानों और कुछ श्रद्धा से स्वीकार की गई मान्यताओं का नाम है ।आचरण में भी जब बुद्धि का बहिष्कार कर केवल श्रद्धा के अधीन स्वीकार किया जाता है तो यह मजहब ही […] Read more » Featured प्रगति का सूचक बुद्धिवाद
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म एक देव में त्रिदेव भगवान दत्तात्रेय December 14, 2015 by अशोक “प्रवृद्ध” | 1 Comment on एक देव में त्रिदेव भगवान दत्तात्रेय अशोक “प्रवृद्ध” पौराणिक मान्यतानुसार एक देव में त्रिदेव कहे जाने वाले भगवान के चौबीस अवतारों में छठा अवतार हैं भगवान दत्तात्रेय। सप्तऋषि मंडल के तेजोदीप्त तारों में दमकने वाले एकमात्र युगल सती-अनसूया और महर्षि अत्रि के पुत्र दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु और श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा […] Read more » Featured एक देव में त्रिदेव एक देव में त्रिदेव भगवान दत्तात्रेय भगवान दत्तात्रेय
धर्म-अध्यात्म पुराणों के अग्राह्य विधानों पर स्वामी दयानन्द व स्वामी वेदानन्द के उपदेश December 14, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य मनुष्य का जीवन सत्य व असत्य को जानकर सत्य का पालन व आचरण करने तथा असत्य का त्याग करने का नाम है। परमात्मा ने मनुष्यों को वेदों का ज्ञान व बुद्धि सत्यासत्य के निर्णयार्थ वा विवेक के लिए ही दी है जिसका सभी को सदुपयोग करना चाहिये। जो नहीं करता वह मनुष्य […] Read more » Featured पुराणों के अग्राह्य विधानों पर स्वामी दयानन्द स्वामी वेदानन्द के उपदेश
धर्म-अध्यात्म शख्सियत पंडित सत्यानन्द शास्त्री का परिचय और उनकी साहित्य साधना December 13, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment एक दिन प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी की मेहता जैमिनी पर पुस्तक में स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी पर कुछ शब्द पढ़े जिसमें कहा गया था कि आर्य संन्यासी विज्ञानानन्द जी ने उनसे एक बार स्वामी वेदानन्द जी का जीवनचरित लिखने का आग्रह किया था। वह भी इसे तैयार करना चाहते थे परन्तु अपनी व्यस्तताओं के कारण […] Read more » ‘पंडित सत्यानन्द शास्त्री साहित्य साधना