कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म शिव प्रकाश-पुंज स्वरूप हैं July 14, 2025 / July 14, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सनातन भारतीय संस्कृति में सावन का महीना व्रत और पूजा का महीना है। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह का आरंभ 11 जुलाई 2025 को हो चुका है और समापन पूर्णिमा तिथि यानी 9 अगस्त 2025 को होगा। ऐसे में इस बार सावन में 30 नहीं, बल्कि 29 दिन के होंगे। शिवपुराण और अन्य भारतीय […] Read more » Shiva is the embodiment of light शिव प्रकाश-पुंज स्वरूप हैं
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म भगवान भोलेनाथ को “मनाने” चले भक्त कावड़िये July 11, 2025 / July 11, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment प्रदीप कुमार वर्मा मन में भगवान भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा। जुबान पर बम बम भोले का जय घोष। कंधों पर पवित्र गंगाजल से भरी कावड़। और गंगाजल को शिव मंदिर में चढ़ाने का जुनून। सावन के महीने में पवित्र कावड़ यात्रा का यही नजारा इन दिनों दिखाई पड़ रहा है। आदि देव महादेव की […] Read more » कावड़ कांवड़ यात्रा
धर्म-अध्यात्म चातुर्मास है अध्यात्म की फसल उगाने का अवसर July 11, 2025 / July 11, 2025 by बरुण कुमार सिंह | Leave a Comment चातुर्मास शुभारंभ-06 जुलाई 2025 पर विशेष– मंत्र महर्षि डॉ. योगभूषण महाराज – सृष्टि का चक्र अनवरत गतिशील है-गर्मी, वर्षा और शीत ऋतु इसका पर्याय हैं। इन्हीं ऋतुओं में से एक वर्षा ऋतु-न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक जगत के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन धर्म में इस अवधि को “चातुर्मास” या […] Read more » चातुर्मास
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म घुरती मेला का संघर्ष : क्या हम अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं? July 10, 2025 / July 10, 2025 by अशोक कुमार झा | Leave a Comment अशोक कुमार झा रांची की धरती न केवल जंगलों, जल और जनजातीय आत्मा की पहचान रही है, बल्कि यहां की परंपराएं और सांस्कृतिक मेलों ने सदियों से इस धरती की आत्मा को जीवित रखा है। इन्हीं परंपराओं में एक “घुरती रथ मेला” भी है, जो न केवल एक धार्मिक आयोजन है बल्कि आदिवासी और स्थानीय ग्रामीण जीवनशैली का उत्सव भी है। हर वर्ष यह […] Read more » Ghurti Mela घुरती मेला
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म भक्तों के फौजदारी मामले की सुनवाई करते हैं बाबा बासुकीनाथ July 7, 2025 / July 7, 2025 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment कुमार कृष्णन श्रावण माह भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव तो ‘संहारक’ है, सृजन कर्ता और ‘नव निर्माण कर्ता’ भी है। ‘शिव’ अर्थात कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक, सर्वश्रेयस्कर ‘कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’ है। जो हमेशा योगमुद्रा में विराजमान रहते है और हमें जीवन में योगस्थ, जीवंत और जागृत रहने की शिक्षा देते है। पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष के विनाशकारी प्रभावों से इस धरा को सुरक्षित रखने के लिये भगवान शिव में उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया और पूरी पृथ्वी को विषाक्त होने से; प्रदूषित होने से बचा लिया। भगवान शिव ने विष शमन करने के लिये अपने सिर पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा को धारण किया तथा सभी देवताओं ने माँ गंगा का पवित्र जल उनके मस्तक पर डाला ताकि उनका शरीर शीतल रहे तथा विष की उष्णता कम हो जाये। चूंकि ये घटना श्रावण मास के दौरान हुई थीं, इसलिए श्रावण में शिवजी को माँ गंगा का पवित्र जल अर्पित कर शिवाभिषेक किया जाता है, कांवड यात्रा इसी का प्रतीक है। शिवाभिषेक से तात्पर्य दिव्यता को आत्मसात कर आत्मा को प्रकाशित करना है। प्रतीकात्मक रूप से शिवलिंग पर पवित्र जल अर्पित करने का उद्देश्य है कि हमारे अन्दर की और वातावरण की नकारात्मकता दूर हो तथा सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में सकारात्मकता का समावेश हो। तीर्थ नगरी देवधर स्थित द्वादश ज्योर्तिलिंग बाबा बैधनाथ और सुलतानगंज की उत्तर वाहिनी गंगा तट पर स्थित बाबा अजगैबीनाथ के साथ दुमका जिला में सुरभ्य वातावरण में स्थित बाबा बासुकीनाथ धाम की गणना बिहार और झारखंड ही नहीं, वरन् राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख शैव-स्थल के रूप में होती है। देवघर-दुमका मुख्य मार्ग पर स्थित इस पावन धाम में श्रावणी- मेला के दौरान केसरिया वस्त्रधारी कांवरिया तीर्थयात्रियों की खास चहल-पहल रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि बासुकीनाथ की पूजा के बिना बाबा बैद्यनाथ की पूजा अधूरी है। यही कारण है कि भक्तगण बाबा बैद्यनाथ की पूजा के साथ साथ यहां आकर नागेश ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात बाबा बासुकीनाथ की आराधना करते हैं। सावन के महीने में तो हजारों लाखों भक्तगण सुलतानगंज-अजगैबीनाथ से उत्तरवाहिनी गंगा का पवित्र जल अपने कांवरों में भरते हैं। फिर एक सौ किलोमीटर से भी अधिक पहाड़ी जंगली रास्ते पैदल पारकर इसे देवघर में बैधनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाते हैं। इसके बाद वे बासुकीनाथ आकर नागेश ज्योतिर्लिंग पर जल-अर्पण करते हैं। भगवान शिव औघड़दानी कहलाते हैं। भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर तुरंत वरदान देनेवाले। तभी तो शिवभक्तों की नजरों में यहां भगवान शंकर की अदालत लगती है। शिव-भक्त मानते हैं कि जहां (बैद्यनाथ धाम) भगवान शंकर की दीवानी अदालत है, वही बासुकीनाथ धाम उनकी फौजदारी अदालत है। बाबा बासुकीनाथ के दरबार में मांगी गयी मुरादों की तुरंत सुनवाई होती है। यही कारण है कि साल के बारहों महीने यहां देश के कोने-कोने से भक्तों का आवागमन जारी रहता है। प्राचीन काल में बासुकीनाथ घने जंगलों से घिरा था। उन दिनों यह क्षेत्र दारूक-वन कहलाता था। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दास्क-बन में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्वरूप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का निवास था। शिव पुराण में वर्णित है कि दारूक-बन दारूक नाम के असुर के अधीन था। कहते हैं, इसी दारूक-बन के नाम पर संताल परगना प्रमंडल के मुख्यालय दुमका का नाम पड़ा है। बासुकीनाथ शिवर्लिंग के आविर्भाव की कथा अत्यंत निराली है। एक बार की बात है- बासु नाम का एक व्यक्ति कंद की खोज में भूमि खोद रहा था। उसके शस्त्र से शिवलिंग पर चोट पड़ी। बस क्या था- उससे रक्त की धार बह चली। बासु यह दृश्य देखकर भयभीत हो गया। उसी क्षण भगवान शंकर ने उसे आकाशवाणी के द्वारा धीरज दिया – डरो मत, यहां मेरा निवास है। भगवान भोलेनाथ की वाणी सुन बासु श्रद्धा-भक्ति से अभिभूत हो गया और उसी समय से उस लिंग की मूर्ति्-पूजन करने लगा। बासु द्वारा पूजित होने के कारण उनका नाम बासुकीनाथ पड़ गया। उसी समय से यहां शिव-पूजन की जो परम्परा शुरू हुई, वो आज तक विद्यमान है। आज यहां भगवान भोले शंकर और माता पार्वती का विशाल मंदिर है। मुख्य मंदिर के बगल में शिव गंगा है जहां भक्तगण स्नान कर अपने आराध्य को बेल-पत्र, पुष्प और गंगाजल समर्पित करते हैं तथा अपने कष्ट क्लेशों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। यह माना जाता है कि वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई। हिंदुओं के कई ग्रंथों में सागर मंथन का वर्णन किया गया है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया था। बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास भी सागर मंथन से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को माध्यम बनाया गया था। इन्हीं वासुकी नाग ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। यही कारण है कि यहाँ विराजमान भगवान शिव को बासुकीनाथ कहा जाता है इसके अलावा मंदिर के विषय में एक स्थानीय मान्यता भी है। कहा जाता है कि यह स्थान कभी एक हरे-भरे वन क्षेत्र से आच्छादित था जिसे दारुक वन कहा जाता था। कुछ समय के बाद यहाँ मनुष्य बस गए जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दारुक वन पर निर्भर थे। ये मनुष्य कंदमूल की तलाश में वन क्षेत्र में आया करते थे। इसी क्रम में एक बार बासुकी नाम का एक व्यक्ति भी भोजन की तलाश में जंगल आया। उसने कंदमूल प्राप्त करने के लिए जमीन को खोदना शुरू किया। तभी अचानक एक स्थान से खून बहने लगा। बासुकी घबराकर वहाँ से जाने लगा तब आकाशवाणी हुई और बासुकी को यह आदेशित किया गया कि वह उस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना प्रारंभ करे। बासुकी ने जमीन से प्रकट हुए भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग की पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी, तब से यहाँ स्थित भगवान शिव बासुकीनाथ कहलाए। भगवान भोले शंकर की महिमा अपरंमपार है। वे देवों के देव महादेव कहलाते हैं। वे व्याघ्र चर्म धारण करते हैं, नंदी की सवारी करते हैं, शरीर में भूत-भभूत लगाते हैं, श्माशान में वास करते हैं, फिर भी औघड़दानी कहलाते हैं। दिल से जो कुछ भी मांगों, बाबा जरूर देगे। जैसे भगवान भोले शंकर, वैसे उनके भक्तगण! बाबा हैं कि उन्हें किसी प्रकार के साज-बाज से कोई मतलब नहीं, और भक्त हैं कि दुनिया के सारे आभूषण और अलंकार उनपर न्यौछावर करने के लिये तत्पर! अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिये! भक्त और भगवान की यह ठिठोली ही तो भारतीय धर्म और संस्कृति का वैशिष्ट्य है। श्रावण मास में शिव पूजन के अलावा यहां की महाश्रृगांरी भी अनुपम है। कहते हैं कि कलियुग में वसुधैव कुटुम्बकम तथा सर्वे भवंतु सुखिनः जैसी उक्तियों को प्रतिपादित करने के लिये शिव की उपासना से बढ़कर अन्य कोई मार्ग नहीं हैं! और, शिव की उपासना की सर्वोत्तम विधि है – महाश्रृगांर का आयोजन! गंगाजल घी, दूध दही, बेलपत्र आदि शिव की प्रिय वस्तुओं को अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का सबसे उत्तम उपाय। तभी तो साल के मांगलिक अवसरों पर भक्तगण बाबा बासुकीनाथ की महाश्रृगांरी और महामस्तकाभिषेक का आयोजन करते हैं। महाश्रृंगार के दिन बासुकीनाथ की शिव-नगरी नयी-नवेली दुलहन की तरह सज उठती है-मानों स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया हो। लगता है देव -लोक के सभी देवी— देवता पृथ्वी-लोक पर अवतरित हो गये हैं- भगवान भूतनाथ की रूप-सज्जा देखने के लिये। आये भी क्यों नहीं। देवों के देव महादेव की महाश्रृगांरी जो है। शिव का स्वरूप विराट् है किंतु इनकी आराधना अत्यंत सरल भी है और कठिन भी। इनकी महाश्रृंगारी तो और भी कठिन। आखिर जगत के स्वामी के महाश्रृगांर की जो बात है। इस हेतु साधन जुटायें भी तो कैसे पर, भगवान की लीला की तरह भक्तों की भक्ति भी न्यारी होती है। शिव की आराधना में उनके श्रृंगार हेतु भक्त मानों अपनी सारी निष्ठा ही लगा देते हैं और, शिव की स्रष्टि की श्रेष्टतम् सामग्रियां लाकर शिव को ही समर्पित करतें हैं। श्रावण माह प्रकृति और पर्यावरण की समृद्धि, नैसर्गिक सौन्द्रर्य के संवर्धन और संतुलित जीवन का संदेश देता है। नैसर्गिक सौन्द्रर्य के संवर्द्धन के लिये शिवाभिषेक के साथ धराभिषेक; धरती अभिषेक नितांत आवश्यक है। वास्तव में देखे तो श्रावण मास प्रकृति को सुनने, समझने और प्रकृतिमय जीवन जीने का संदेश देता है। बासुकीनाथ मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है जिसे वन गंगा या शिवगंगा भी कहा जाता है। इसका जल श्रद्धालुओं के लिए दुमका स्थित बासुकीनाथ मंदिर का इलाका पूरे सावन में बोल-बम के नारों से गुंजायमान रहता है। बासुकीनाथ पहुँचने के लिए निकटतम हवाईअड्डा देवघर है। यहां से 54 किलोमीटर की दूरी है। राँची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट है जो मंदिर से लगभग 280-300 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा कोलकाता का नेताजी सुभास चंद्र बोस हवाईअड्डा भी यहाँ से लगभग 320 किमी की दूरी पर है। बासुकीनाथ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दुमका है जो लगभग 25 किमी है और बासुकीनाथ से जसीडीह रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 50 किमी है। बासुकीनाथ, दुमका-देवघर राज्य राजमार्ग पर स्थित है। झारखंड के कई शहरों से बासुकीनाथ पहुँचने के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है। बासुकीनाथ, राँची से लगभग 294 किमी और धनबाद से लगभग 130 किमी की दूरी पर स्थित है। कुमार कृष्णन Read more » बाबा बासुकीनाथ
धर्म-अध्यात्म शख्सियत स्वामी विवेकानंद: विचारों के युगदृष्टा, युवाओं के पथप्रदर्शक July 3, 2025 / July 3, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि (4 जुलाई) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलस्वामी विवेकानंद सदैव युवाओं के प्रेरणास्रोत और आदर्श व्यक्त्वि के धनी माने जाते रहे हैं, जिन्हें उनके ओजस्वी विचारों और आदर्शों के कारण ही जाना जाता है। वे आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि थे और खासकर भारतीय युवाओं के लिए उनसे बढ़कर भारतीय नवजागरण का अग्रदूत […] Read more » स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म अमरनाथ यात्रा : देश और दुनिया में आस्था और श्रद्धा की अनूठी “मिसाल” July 2, 2025 / July 2, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment तीन जुलाई से शुरू हो रही पवित्र अमरनाथ यात्रा पर विशेष…. प्रदीप कुमार वर्मा जय बाबा बर्फानी,भूखे को अन्न प्यासे को पानी। चलो अमरनाथ दर्शन को। जय हो बाबा अमरेश्वर। यह भक्तों के भाव के साथ जय घोष है अमरनाथ यात्रा का। हिंदू धर्म की प्रमुख धार्मिक यात्रा के रूप में देश और दुनिया में […] Read more » अमरनाथ यात्रा
टेक्नोलॉजी धर्म-अध्यात्म वैश्विक स्पेस एक्सप्लोरेश में बड़ा कदम है-मिशन एक्सिओम-4 June 30, 2025 / June 30, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत निरंतर अपने झंडे गाड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित वाणिज्यिक मिशन एक्सिओम-4 के जरिये भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंचना भारत के ‘नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम’ के लिए संभावनाओं का एक नया द्वार है। कितनी बड़ी बात है […] Read more » big step in global space exploration Mission Axiom-4 मिशन एक्सिओम-4
चिंतन धर्म-अध्यात्म राम जन्म के हेतु अनेका June 24, 2025 / June 24, 2025 by डॉ. नीरज भारद्वाज | Leave a Comment डॉ. नीरज भारद्वाज राम शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में रामचरितमानस का जाप शुरू हो जाता है। राम नाम एक मंत्र है, जिसने भी इसे जपा, भजा और गाया वह इस आवागमन के चक्कर से मुक्त हो गया। इस चराचर जगत में श्रीराम की ही महिमा है। भगवान श्रीराम के प्रकट होने से लेकर उनके […] Read more » राम जन्म भूमि
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म इंस्टाग्राम संस्कृति में तीर्थयात्रा बनाम पर्यटन June 11, 2025 / June 11, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment सचिन त्रिपाठी आज की दुनिया में जहां हर क्षण एक स्टोरी है, हर भाव एक फिल्टर में ढलता है, वहां तीर्थयात्रा और पर्यटन के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। यह वह युग है, जहां नयनाभिराम दृश्य नयन नहीं, लेंस से देखे जाते हैं; और जहां यात्रा का उद्देश्य आत्मशांति नहीं, ‘एंगेजमेंट’ होता है। […] Read more » इंस्टाग्राम संस्कृति
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म गंगा तेरा पानी अमृत … June 4, 2025 / June 4, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment गंगा दशहरा विशेष : डॉ० घनश्याम बादल इस बार पर्यावरण दिवस एवं गंगा दशहरा एक साथ पड़ रहे हैं. जहां पर्यावरण दिवस भौतिक शुद्धता का प्रतीक है जिससे प्रदूषण पर चोट की जाती है और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लिया जाता है, यही हमारी संस्कृति भी है और जीवन शैली भी। जब बात धर्म एवं संस्कृति की […] Read more » Ganga your water is nectar… गंगा तेरा पानी अमृत
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म गंगा दशहरा : मां गंगा के धरती पर “अवतरण” का पर्व June 4, 2025 / June 4, 2025 by प्रदीप कुमार वर्मा | Leave a Comment गंगा दशहरा पर्व पर विशेष… प्रदीप कुमार वर्मा मां गंगा में पवित्र स्नान का पर्व। दशों दिशाओं के शुभ होने से शुभ कार्य का पर्व। हिंदू धर्म में दान और पुण्य का पावन पर्व। और पतित पावनी मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का पर्व। देश और दुनिया में हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। ब्रह्म पुराण व वाराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में गर करण, वृष के सूर्य व कन्या के चन्द्रमा में गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। सप्तमी को स्वर्ग से आने के बाद तेज वेग को थामने के लिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में मां गंगा को धारण किया। जिसके बाद ज्येष्ठ महीने की दशमी को जटाओं से पृथ्वी पर अवतरित किया था। इस मुहूर्त में स्नान, दान व मंत्र जाप का पूर्ण शुभ फल प्राप्त होता है। इस खास दिन पर मां गंगा और शिवजी की पूजा-उपासना से जाने-अनजाने में हुए कष्टों से छुटकारा मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गंगा दशहरा मनाने की परंपरा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है। राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी। जबकि, दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी। केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ। उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ। एक बार राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया। राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन देवराज इंद्र ने छलपूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। सुमति के 60 हजार पुत्रों को घोड़े के चुराने की सूचना मिली तो सभी घोड़े को ढूंढने लगे। तभी वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़ा बंधा देखा तो आक्रोश में घोड़ा चुराने की निंदा करते हुए कपिल मुनि का अपमान किया। यह सब देख तपस्या में बैठे कपिल मुनि ने जैसे ही आंख खोली तो आंखों से ज्वाला निकली,जिसने राजा के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया और उनकी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही। राजा सगर जानते थे कि उनके पुत्रों ने जो किया है, उसका परिणाम यही होना था। लिहाजा सभी के मोक्ष के लिए कोई उपाय खोजने बेहद जरूरी था। मोक्षदायिनी गंगा के द्वारा ही सभी पुत्रों की मुक्ति संभव थी। इसलिए राजा सागर सहित उनके वंश के अन्य राजाओं द्वारा पवित्र गंगा मैया को धरती पर लाने के प्रयास शुरू हुए। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा सगर के वंशज भगीरथ ने अपनी तपस्या से मां गंगा को धरती पर अवतरित कराया था। गंगा जब पहली बार मैदानी क्षेत्र में दाखिल हुई, तब जाकर हजारों सालों से रखी राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों का विसर्जन हो पाया और राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली। यही कारण है कि आज भी देश के कोने-कोने से लोग अस्थि विसर्जन और कर्मकांड करने के लिए हरिद्वार आते हैं। यही नहीं हिंदू धर्म में गंगा दशहरा के दिन दान और गंगा स्नान का बड़ा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार गंगा में स्नान करने से सभी प्रकार के पाप, दोष, रोग और विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। वहीं, मान्यता यह भी है कि गंगा दशहरा पर अन्न, भोजन और जल समेत आदि चीजों का दान करता है तो उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। दशहरा पर्व पर गंगा स्नान के माध्यम से 10 तरह के पापों की मुक्ति का विधान शास्त्रों में है। गंगा दशहरा पर पितरों के लिए दान का विशेष महत्व है। इस दिन पितरों के नाम से दान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं इस दिन गरीबों और जरूरतमदों को फल, जूता, चप्पल, छाता, घड़ा और वस्त्र दान करने का भी विधान है। आचार्य पंडित श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि इस बार सबसे खास बात यह है कि गंगा दशहरा पर चार शुभ संयोग बन रहे हैँ। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजन करने से दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव जल तीर्थ जाना संभव न हो तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद मां गंगा का ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप करें। पतित पावनी गंगा को मोक्ष दायिनी कहा गया है। इसी वजह से मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य को मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, उसके पूर्वजों को भी शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा दशहरा के दिन सभी गंगा मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। वहीं,इस दिन मोक्षदायिनी गंगा मैया का विधिवत पूजन-अर्चना भी किया जाता है। गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऎसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है। गंगा दशहरे का फल ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है। प्रदीप कुमार वर्मा Read more » गंगा दशहरा