Category: आर्थिकी

आर्थिकी राजनीति

ऑनलाइन भुगतान के मामले में भारत के यूपीआई ने अमेरिका के वीजा को पीछे छोड़ा

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हाल ही के समय में भारत, विभिन्न क्षेत्रों में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नित नए रिकार्ड बना रहा है। कुछ क्षेत्रों में तो अब भारत पूरे विश्व का नेतृत्व करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने बैंकिंग व्यवहारों के मामले में तो जैसे क्रांति ही ला दी है। अभी हाल ही में आर्थिक क्षेत्र में बैंकिंग व्यवहारों के मामले में भारत के यूनफाईड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) ने अमेरिका के 67 वर्ष पुराने वीजा एवं मास्टर कार्ड के पेमेंट सिस्टम को प्रतिदिन होने वाले आर्थिक व्यवहारों की संख्या के मामले में वैश्विक स्तर पर पीछे छोड़ दिया है। वैश्विक स्तर पर अब भारत विश्व का सबसे बड़ा रियल टाइम पेमेंट नेटवर्क बन गया है।  भारत में वर्ष 2016 के पहिले ऑनलाइन पेमेंट का मतलब होता था केवल वीजा और मास्टर कार्ड। वीजा और मास्टर कार्ड को चलाने वाली अमेरिका की ये दोनों कंपनिया पूरी दुनिया में ऑनलाइन पेमेंट का एकाधिकार रखती थीं। वीजा की शुरुआत, अमेरिका में वर्ष 1958 में हुई थी और धीमे धीमे यह कंपनी 200 से अधिक देशों में फैल गई और ऑनलाइन भुगतान के मामले में पूरे विश्व पर अपना एकाधिकार जमा लिया। वैश्विक स्तर पर इस कम्पनी को चुनौती देने के उद्देश्य से भारत ने वर्ष 2016 में अपना पेमेंट सिस्टम, यूपीआई के रूप में, विकसित किया और वर्ष 2025 आते आते भारत का यूपीआई सिस्टम आज पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। यूपीआई पेमेंट सिस्टम के माध्यम से ओनलाइन बैकिंग व्यवहार चुटकी बजाते ही हो जाते है। आज सब्जी वाले, चाय वाले, सहायता प्राप्त करने वाले नागरिक एवं छोटी छोटी राशि के आर्थिक व्यवहार करने वाले नागरिकों के लिए यूपीआई सिस्टम ने ऑनलाइन बैंकिंग व्यवहार करने को बहुत आसान बना दिया है। आज भारत के यूपीआई सिस्टम के माध्यम से प्रतिदिन 65 करोड़ से अधिक व्यवहार (1800 करोड़ से अधिक व्यवहार प्रति माह) हो रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वीजा कार्ड से माध्यम से प्रतिदिन 63.9 करोड़ व्यवहार हो रहे हैं। इस प्रकार, भारत के यूपीआई ने दैनिक व्यवहारों के मामले में 67 वर्ष पुराने अमेरिका के वीजा को पीछे छोड़ दिया है। भारत में केंद्र सरकार की यह सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक है। भारत अब इस मामले में पूरी दुनिया का लीडर बन गया है। भारत ने यह उपलब्धि केवल 9 वर्षों में ही प्राप्त की है। विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत के यूपीआई सिस्टम की अत्यधिक प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह नई तकनीकी का चमत्कार है एवं यह सिस्टम अत्यधिक प्रभावशाली है। भारत का यूपीआई सिस्टम भारत को वैश्विक बैंकिंग नक्शे पर एक बहुत बड़ी शक्ति बना सकता है।    भारत में यूपीआई की सफलता की नींव दरअसल केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई कई आर्थिक योजनाओं के माध्यम से पड़ी है। समस्त नागरिकों के आधार कार्ड बनाने के पश्चात जब आधार कार्ड को नागरिकों के बैंक खातों से जोड़ा गया और केंद्र सरकार द्वारा देश के गरीब वर्ग की सहायता के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत सहायता राशि को सीधे ही नागरिकों के बैंक खातों में जमा किया जाने लगा तब एक सुदृद्ध पेमेंट सिस्टम की आवश्यकता महसूस हुई और ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के रूप में यूपीआई का जन्म वर्ष 2016 में हुआ। यूपीआई को आधार कार्ड एवं प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत बैंकों में खोले गए खातों से जोड़ दिया गया। नागरिकों के मोबाइल क्रमांक और आधार कार्ड को बैंक खातों से जोड़कर यूपीआई सिस्टम के माध्यम से आर्थिक एवं लेन-देन व्यवहारों को आसान बना दिया गया। भारत में आज लगभग 80 प्रतिशत युवा एवं बुजुर्ग जनसंख्या का विभिन्न बैकों के खाता खोला जा चुका है। यूपीआई के माध्यम से केवल कुछ ही मिनटों में एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में राशि का अंतरण किया जा सकता है। ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम के रूप में यूपीआई के आने के बाद तो अब भारत के नागरिक एटीएम कार्ड, डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड को भी भूलने लगे हैं।  भारत से बाहर अन्य देशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक भी अपनी बचत को यूपीआई के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में ऑनलाइन राशि का अंतरण चंद मिनटों में कर सकते हैं। पूर्व में, बैंकिंग चेनल के माध्यम से एक देश के बैंक खाते से दूसरे देश के बैंक खाते में राशि का अंतरण करने में 2 से 3 दिन का समय लग जाता था तथा विदेशी बैकों द्वारा इस प्रकार के अंतरण राशि पर खर्च भी वसूला जाता है। अब यूपीआई के माध्यम से कुछ ही मिनटों में राशि एक देश के बैंक खाते से दूसरे देश के बैंक खाते में अंतरित हो जाती है। इससे भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण भी हो रहा है। विश्व के अन्य देशों में पढ़ाई के लिए गए छात्रों को अपने खर्च चलाने एवं विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में फीस की राशि यूपीआई सिस्टम से जमा कराने में बहुत आसानी होगी। जिस भी देश में भारतीय मूल में नागरिकों की संख्या अधिक है उन देशों में भारत के यूपीआई सिस्टम को लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। आज 13,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि इन देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा प्रतिवर्ष भारत में भेजी जा रही हैं। वैश्विक स्तर पर भारत के यूपीआई सिस्टम की स्वीकार्यता बढ़ने से अमेरिकी डॉलर पर भारत की निर्भरता भी कम होगी, इससे भारतीय रुपए की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी और डीडोलराईजेशन की प्रक्रिया तेज होगी।      भारत ने यूपीआई के प्रतिदिन होने वाले व्यवहारों की संख्या के मामले में आज अमेरिका, चीन एवं पूरे यूरोप को पीछे छोड़ दिया है। वर्तमान में भारत के यूपीआई सिस्टम का विश्व के 7 देशों यथा यूनाइटेड अरब अमीरात, फ्रान्स, ओमान, मारीशस, श्रीलंका, भूटान एवं नेपाल में उपयोग हो रहा है। इन देशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक यूपीआई के माध्यम से सीधे ही भारत के साथ आर्थिक व्यवहार कर रहे हैं। दक्षिणपूर्वीय देशों यथा मलेशिया, थाइलैंड, फिलिपींस, वियतमान, सिंगापुर, कम्बोडिया, दक्षिण कोरिया, जापान, ताईवान एवं हांगकांग आदि भी भारत के यूपीआई सिस्टम के उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयास कर रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम, आस्ट्रेलिया एवं यूरोपीयन देशों ने भी भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में लागू करने की इच्छा जताई है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस एवं नामीबिया यात्रा के दौरान इन दोनों देशों ने भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में शुरू करने के लिए भारत से निवेदन किया है। पूरे विश्व में अब कई देशों का विश्वास भारत के यूपीआई सिस्टम पर बढ़ रहा है और यदि ये देश भारत के यूपीआई सिस्टम को अपने देश में लागू कर देते हैं तो इससे भारत में विदेशी निवेश की राशि में भी तेज गति से वृद्धि होने की सम्भावना बढ़ जाएगी।  प्रहलाद सबनानी

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आर्थिकी लेख समाज सार्थक पहल

मध्यमवर्गीय परिवार नहीं फंसे ऋण के जाल में

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हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 50 आधार बिंदुओं की कमी की है। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र के बैंकों, सरकारी क्षेत्र के बैंकों एवं क्रेडिट कार्ड कम्पनियों सहित अन्य वित्तीय संस्थानों ने भी अपने ग्राहकों को प्रदान की जा रही ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी की घोषणा करना प्रारम्भ कर दिया है ताकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कमी का लाभ शीघ्र ही भारत में ऋणदाताओं तक पहुंच सके एवं इससे अंततः देश की अर्थव्यवस्था को बल मिल सके। भारत में चूंकि अब मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में आ गई है, अतः आगे आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में और अधिक कमी की जा सकती है। इस प्रकार, बहुत सम्भव है ऋणराशि पर लागू ब्याज दरों में कमी के बाद कई नागरिक जिन्होंने पूर्व में कभी बैंकों से ऋण नहीं लिया है, वे भी ऋण लेने का प्रयास करें। बैंक से ऋण लेने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि इस ऋण को चुकता करने की क्षमता भी ऋणदाता में होनी चाहिए अर्थात ऋणदाता की पर्याप्त मासिक आय होनी चाहिए ताकि बैकों द्वारा प्रदत्त ऋण की किश्त एवं ब्याज का भुगतान पूर्व निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके। इस संदर्भ में विशेष रूप से युवा ऋणदाताओं द्वारा क्रेडिट कार्ड के उपयोग पश्चात संबंधित राशि का भुगतान समय सीमा के अंदर अवश्य करना चाहिए क्योंकि अन्यथा क्रेडिट कार्ड एजेंसी द्वारा चूक की गई राशि पर भारी मात्रा में ब्याज वसूला जाता है, जिससे युवा ऋणदाता ऋण के जाल में फंस जाते हैं।     बैकों से लिए गए ऋण की मासिक किश्त एवं इस ऋणराशि पर ब्याज का भुगतान यदि निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं किया जाता है तो चूककर्ता ऋणदाता से बैकों द्वारा दंडात्मक ब्याज की वसूली की जाती है। इसी प्रकार, कई नागरिक जो क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं एवं इस क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की गई राशि का भुगतान यदि वे निर्धारित समय सीमा के अंदर नहीं कर पाते हैं तो इस राशि पर चूक किए गए क्रेडिट कार्ड धारकों से भारी भरकम ब्याज की दर से दंड वसूला जाता है। कभी कभी तो दंड की यह दर 18 प्रतिशत से 24 प्रतिशत के बीच रहती है। क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने वाले नागरिक कई बार इस उच्च ब्याज दर पर वसूली जाने वाली दंड की राशि से अनभिज्ञ रहते हैं। अतः बैंकों से ली जाने वाली ऋणराशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का समय पर भुगतान करने के प्रति ऋणदाताओं को सजग रहने की आवश्यकता है।  कुल मिलाकर यह ऋणदाताओं के हित में है कि वे बैंक से लिए जाने वाले ऋण की राशि तथा ब्याज की राशि एवं क्रेडिट कार्ड के विरुद्ध उपयोग की जाने वाली राशि का पूर्व निर्धारित एवं उचित समय सीमा के अंदर भुगतान करें क्योंकि अन्यथा की स्थिति में उस चूककर्ता नागरिक की क्रेडिट रेटिंग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है एवं आगे आने वाले समय में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है एवं बहुत सम्भव है कि भविष्य में उसे किसी भी वित्तीय संस्थान से ऋण प्राप्त ही न हो सके।         ऋणदाता यदि किसी प्रामाणिक कारणवश अपनी किश्त एवं ब्याज का बैंकों अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को समय पर भुगतान नहीं कर पाता है और उसका ऋण खाता यदि गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित हो जाता है तो इस संदर्भ में चूककर्ता ऋणदाता द्वारा बैकों को समझौता प्रस्ताव दिए जाने का प्रावधान भी है। इस समझौता प्रस्ताव के माध्यम से चूककर्ता ऋणदाता द्वारा सम्बंधित बैंक अथवा क्रेडिट कार्ड कम्पनी को मासिक किश्त एवं ब्याज की राशि को पुनर्निर्धारित किए जाने के सम्बंध में निवेदन किया जा सकता है। परंतु, यदि ऋणदाता ऋण की पूरी राशि, ब्याज सहित, अदा करने में सक्षम नहीं है तो चूक की गई राशि में से कुछ राशि की छूट प्राप्त करने एवं शेष राशि को एकमुश्त अथवा किश्तों में अदा करने के सम्बंध में भी समझौता प्रस्ताव दे सकता है। ऋण की राशि अथवा ब्याज की राशि के सम्बंध के प्राप्त की गई छूट की राशि का रिकार्ड बनता है एवं समझौता प्रस्ताव के अंतर्गत प्राप्त छूट के चलते भविष्य में उस ऋणदाता को बैकों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, इस बात का ध्यान चूककर्ता ऋणदाता को रखना चाहिए। अतः जहां तक सम्भव को ऋणदाता द्वारा समझौता प्रस्ताव से भी बचा जाना चाहिए एवं अपनी ऋण की निर्धारित किश्तों एवं ब्याज का निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत भुगतान करना ही सबसे अच्छा रास्ता अथवा विकल्प है।       भारत में तेज गति से हो रही आर्थिक प्रगति के चलते मध्यमवर्गीय नागरिकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, जिनके द्वारा चार पहिया वाहनों, स्कूटर, फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन एवं मकान आदि आस्तियों को खरीदने हेतु बैकों अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लिया जा रहा है। कई बार मध्यमवर्गीय परिवार एक दूसरे की देखा देखी आपस में होड़ करते हुए भी कई उत्पादों को खरीदने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं, चाहे उस उत्पाद विशेष की आवश्यकता हो अथवा नहीं। उदाहरण के लिए एक पड़ौसी ने यदि अपने चार पहिया वाहन का एकदम नया मॉडल खरीदा है तो जिस पड़ौसी के पास पूर्व में ही चार पहिया वाहन उपलब्ध है वह पुराने मॉडल के वाहन को बेचकर पड़ौसी द्वारा खरीदे गए नए मॉडल के चार पहिया वाहन को खरीदने का प्रयास करता है और बैंक के ऋण के जाल में फंस जाता है। यह नव धनाडय वर्ग यदि बैक से लिए गए ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का निर्धारित समय सीमा के अंदर भुगतान नहीं कर पाता है तो उस नागरिक विशेष के वित्तीय रिकार्ड पर धब्बा लग सकता है जिससे उसके लिए उसके शेष जीवन में बैकों एवं अन्य वित्तीय संस्थानों से पुनः ऋण लेने में कठिनाई आ सकती है। अतः बैकों से ऋण प्राप्त करने वाले नागरिकों को ऋण की किश्त का समय पर भुगतना करना स्वयं उनके हित में हैं, ताकि भारत में तेज हो रही आर्थिक प्रगति का लाभ आगे आने वाले समय में भी समस्त नागरिक ले सकें।   भारत में तो यह कहा भी जाता है कि जिसके पास जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारने चाहिए। अर्थात,  नागरिकों को बैंकों से ऋण लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऋण की किश्त एवं ब्याज की राशि का भुगतान करने लायक उनकी अतिरिक्त आय होनी चाहिए, ताकि ऋण की किश्तों एवं ब्याज की राशि का भुगतान निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जा सके एवं उनका ऋण खाता गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित नहीं हो।  प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी राजनीति

भारत की आर्थिक प्रगति में अब तो ईश्वर भी सहयोग कर रहा है

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कुछ दिनों पूर्व भारत में दो विशेष घटनाएं हुईं, परंतु देश के मीडिया में उनका पर्याप्त वर्णन होता हुआ दिखाई नहीं दिया है। प्रथम, भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र में कच्चे तेल के अपार भंडार होने का पता लगा है, कहा जा रहा है कि कच्चे तेल का यह भंडार इतनी भारी मात्रा में है कि भारत, कच्चे तेल सम्बंधी, न केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाएगा बल्कि कच्चे तेल का निर्यात करने की स्थिति में भी आ जाएगा। यदि भारत को कच्चे तेल की उपलब्धि पर्याप्त मात्रा में हो जाती है तो इसका प्रसंस्करण कर, डीजल एवं पेट्रोल के रूप में, पूरी दुनिया की खपत को पूरा करने की क्षमता को भी भारत विकसित कर सकता है। भारत में विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी गुजरात के जामनगर में पूर्व में ही स्थापित है। अतः कच्चे तेल के साथ साथ डीजल एवं पेट्रोल का भी भारत सबसे बड़ा निर्यातक देश बन सकता है। जैसा कि दावा किया जा रहा है, यदि यह दावा सच्चाई के धरातल पर खरा उतरता है तो आगे आने वाले समय में भारत का विश्व में पुनः “सोने की चिड़िया” बनना लगभग तय है। भारत आज पूरे विश्व में कच्चे तेल का चीन एवं अमेरिका के बाद सबसे बड़ा आयातक देश है और विदेशी व्यापार के अंतर्गत भी कच्चे तेल के आयात पर ही सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है। कच्चे तेल का उत्पादन यदि भारत में ही होने लगता है तो न केवल इसके आयात पर होने वाले भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा के खर्च को बचाया जा सकेगा बल्कि पेट्रोल एवं डीजल के निर्यात से विदेशी मुद्रा का भारी मात्रा में अर्जन भी किया जा सकेगा। जिसके कारण, भारत में विदेशी मुद्रा के भंडार में अतुलनीय बचत एवं संचय होता हुआ दिखाई देगा और इस प्रकार भारत विश्व में विदेशी मुद्रा का सबसे बड़ा संचयक देश बन सकता है।  वर्तमान में भारत कच्चे तेल की अपनी कुल आवश्यकता का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा लगभग 42 देशों से प्रतिवर्ष आयात करता है। भारत कच्चे तेल की अपनी कुल खरीद का 46 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम एशिया के देशों से आयात करता है। वर्तमान में भारत द्वारा कच्चे तेल एवं गैस के आयात पर 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि खर्च प्रतिवर्ष किया जा रहा है। भारत सरकार के पेट्रोलीयम मंत्री श्री हरदीपसिंह जी पुरी ने जानकारी प्रदान की है कि अंडमान एवं निकोबार के समुद्री क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस का बहुत बड़ा भंडार मिला है। एक अनुमान के अनुसार यह भंडार 12 अरब बैरल (2 लाख करोड़ लीटर) का हो सकता है जो हाल ही में गुयाना में मिले कच्चे तेल के भंडार जितना ही बड़ा है। गुयाना में 11.6 अरब बैरल कच्चे तेल एवं गैस के भंडार पाए गए है। इस भंडार के बाद गुयाना कच्चे तेल के उत्पादन के मामले में विश्व में शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है जबकि अभी ग़ुयाना का विश्व में 17वां स्थान है।   वर्ष 1947 में प्राप्त हुई राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद के लगभग 70 वर्षों तक भारत की समुद्री सीमा की  क्षमता का उपयोग करने का गम्भीर प्रयास किया ही नहीं गया था। हाल ही में भारत सरकार द्वारा इस संदर्भ में किए गए प्रयास सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के समुद्री क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस के भारी मात्रा में जो भंडार मिले हैं उनका अन्वेषण का कार्य समाप्त हो चुका है एवं अब ड्रिलिंग का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। ड्रिलिंग का कार्य समाप्त होने के बाद कच्चे तेल एवं गैस के भंडारण का सही आंकलन पूर्ण कर लिया जाएगा। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में आधारभूत संरचना का विकास भी बहुत तेज गति से किया जा रहा है। इंडोनेशिया के सुमात्रा क्षेत्र के समुद्रीय इलाकों से भी भारी मात्रा में कच्चा तेल निकाला जा रहा है तथा भारत का अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह भी इंडोनेशिया से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इसके कारण यह आंकलन किया जा रहा है कि अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के समुद्रीय क्षेत्र में भी कच्चे तेल एवं गैस के अपार भंडार मौजूद हो सकते है। हर्ष का विषय यह भी है कि इस क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस के साथ साथ अन्य दुर्लभ भौतिक खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल/मेटल) के भारी मात्रा में मिलने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है। भारी मात्रा में मिलने जा रहे कच्चे तेल के चलते भारत अपनी परिष्करण क्षमता को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। चूंकि चीन ने कुछ दुर्लभ भौतिक खनिज पदार्थों का भारत को निर्यात करना बंद कर दिया है अतः भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में इन पदार्थों का मिलना भारत के लिए बहुत बड़ी खुशखबर है। पूर्व में भी भारत में कच्चे तेल एवं गैस के भंडार का पता चला था, जैसे बॉम्बे हाई, काकीनाड़ा, बलिया एवं समस्तिपुर, आदि। इन समस्त स्थानों पर कच्चे तेल को निकालने के संबंच में आवश्यक कार्य प्रारम्भ हो चुका है। दरअसल, इस कार्य में पूंजीगत खर्च बहुत अधिक मात्रा में होता है। जापान, रूस एवं अमेरिका से तकनीकी सहायता प्राप्त करने के लिए इन देशों की बड़ी कम्पनियों के साथ करार करने के प्रयास भी भारत सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। भारत का समुद्रीय क्षेत्र 5 लाख किलोमीटर का है। इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल के समुद्रीय इलाके में भी खोज जारी है एवं इस क्षेत्र में भी कच्चे तेल एवं गैस के भंडार मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। अंडमान एवं निकोबार क्षेत्र में कच्चे तेल का उत्पादन प्रारम्भ होने के पश्चात आगामी लगभग 70 वर्षों तक भारत को कच्चे तेल के आयात की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।  द्वितीय शुभ समाचार यह प्राप्त हुआ है कि भारत के कर्नाटक राज्य में कोलार क्षेत्र में स्थित अपनी सोने की खदानों में भारत एक बार पुनः खनन की प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के सम्बंध में विचार कर रहा है। कोलार गोल्ड फील्ड (KGF) को वर्ष 2001 में खनन की दृष्टि से बंद कर दिया गया था। परंतु, अब 25 वर्ष पश्चात स्वर्ण की इन खदानों में खनन की प्रक्रिया को पुनः प्रारम्भ किए जाने के प्रयास किए जा रहे है। इस संदर्भ में कर्नाटक सरकार ने भी अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। आज पूरे विश्व में सोने की कीमतें आसमान छूते हुए दिखाई दे रही है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार में वृद्धि करते हुए दिखाई दे रहे हैं क्योंकि अमेरिकी डॉलर पर इन देशों का विश्वास कुछ कम होता जा रहा है। बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में अमेरिकी डॉलर के बाद एक बार पुनः स्वर्ण मुद्राएं ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले व्यापार के भुगतान का माध्यम बनें। ऐसे समय में भारत के कोलार क्षेत्र में स्थित स्वर्ण की खदानों में एक बार पुनः खनन की प्रक्रिया को प्रारम्भ करना एक अति महत्वपूर्ण निर्णय कहा जा सकता है। कोलार स्थित स्वर्ण की इन खदानों में 750 किलोग्राम स्वर्ण की प्राप्ति की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। प्राचीन काल में कोलार गोल्ड फील्ड को गोल्डन सिटी आफ इंडिया कहा जाता था।  प्राचीन काल में में भारत को “सोने की चिड़िया” कहा जाता था। एक अनुमान के अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास 25,000 से 26,000 टन स्वर्ण का भंडार है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत की महिलाओं के पास स्वर्ण का जितना भंडार है लगभग उतना ही भंडार पूरे विश्व में अन्य देशों के पास है। अर्थात, पूरे विश्व में उपलब्ध स्वर्ण का आधा भाग भारतीय महिलाओं के पास आज भी उपलब्ध है। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में स्थापित अपनी सत्ता के खंडकाल के दौरान लगभग 900 टन स्वर्ण, कोलार की खदानों से निकालकर, ब्रिटेन लेकर जाया गया था। भारत की केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक, के पास आज 880 टन स्वर्ण के भंडार हैं, जो कि भारत के 69,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का 12 प्रतिशत हिस्सा है। हाल ही के समय में विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बढ़ा है अतः भारत का स्वर्णिम काल पुनः प्रारम्भ हो रहा है। विश्व के विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के पास आज 36,000 टन स्वर्ण का भंडार हैं, जबकि इनमे से कई देशों के केंद्रीय बैंक अभी भी स्वर्ण की खरीदी करते जा रहे हैं। स्वर्ण भंडार की दृष्टि से भारत का आज विश्व में 8वां स्थान है। चीन एवं रूस स्वर्ण के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं फिर भी ये दोनों देश स्वर्ण का आयात भी जारी रखे हुए हैं। लगातार, पिछले 3 वर्षों से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक लगभग 1,000 टन स्वर्ण की खरीद प्रतिवर्ष कर रहे हैं। स्वर्ण की खरीदी का यह कार्य रुकने वाला नहीं है आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। अतः भारत सरकार द्वारा भी कोलार गोल्ड फील्ड में स्वर्ण के खनन का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। स्वर्ण के भंडार बढ़ने के साथ भारत, रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण कर सकता है। साथ ही, स्वर्ण के भंडार बढ़ने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत भी बढ़ती जाएगी।  कुल मिलाकर, अब यह कहा जा सकता है कि ईश्वरीय कृपा से एवं उक्त कारणों के चलते भारत को विश्व में एक बार पुनः “सोने की चिड़िया” बनाया जा सकता है। प्रहलाद सबनानी 

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आर्थिकी राजनीति

भारत आध्यात्म एवं युवाओं के बल पर प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में अतुलनीय वृद्धि कर सकता है

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जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और संभवत आगामी लगभग दो वर्षों के अंदर जर्मनी की अर्थव्यवस्था से आगे निकलकर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की अपनी अपनी विशेषताएं हैं, जिसके  आधार पर यह अर्थव्यवस्थाएं विश्व में उच्च स्थान पर पहुंची हैं एवं इस स्थान पर बनी हुई हैं। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में आज भी कई विकसित देश भारत से आगे हैं। इन समस्त देशों के बीच चूंकि भारत की आबादी सबसे अधिक अर्थात 140 करोड़ नागरिकों से अधिक है, इसलिए भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद बहुत कम है। अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 30.51 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति ब्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 89,110 अमेरिकी डॉलर हैं। इसी प्रकार, चीन के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 19.23 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 13,690 अमेरिकी डॉलर है और जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.74 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 55,910 अमेरिकी डॉलर है। यह तीनों देश सकल घरेलू उत्पाद के आकार के मामले में आज भारत से आगे हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.19 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है तथा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद केवल 2,880 अमेरिकी डॉलर है। भारत के पीछे आने वाले देशों में हालांकि सकल घरेलू उत्पाद का आकार कम जरूर है परंतु प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में यह देश भारत से बहुत आगे हैं। जैसे जापान के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.18 लाख करोड़ है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 33,960 अमेरिकी डॉलर है। ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.84 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 54,950 अमेरिकी डॉलर है। फ्रान्स के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.21 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 46,390 अमेरिकी डॉलर है। इटली के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.42 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 41,090 अमेरिकी डॉलर है। कनाडा के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.23 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 53,560 अमेरिकी डॉलर है। ब्राजील के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 2.13 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 9,960 अमेरिकी डॉलर है।  सकल घरेलू उत्पाद के आकार के मामले में विश्व की सबसे बड़ी 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत शामिल होकर चौथे स्थान पहुंच जरूर गया है परंतु प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भारत इन सभी अर्थव्यवस्थाओं से अभी भी बहुत पीछे है। इस सबके पीछे सबसे बड़े कारणों में शामिल है भारत द्वारा वर्ष 1947 में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात, आर्थिक विकास की दौड़ में बहुत अधिक देर के बाद शामिल होना। भारत में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की शुरुआत वर्ष 1991 में प्रारम्भ जरूर हुई परंतु इसमें इस क्षेत्र में तेजी से कार्य वर्ष 2014 के बाद ही प्रारम्भ हो सका है। इसके बाद, पिछले 11 वर्षों में परिणाम हमारे सामने हैं और भारत विश्व की 11वीं अर्थव्यवस्था से छलांग लगते हुए आज 4थी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। दूसरे, इन देशों की तुलना में भारत की जनसंख्या का बहुत अधिक होना, जिसके चलते सकल घरेलू उत्पाद का आकार तो लगातार बढ़ रहा है परंतु प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अभी भी अत्यधिक दबाव में है। अमेरिका में तो आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम 1940 में ही प्रारम्भ हो गए थे एवं चीन में वर्ष 1960 से प्रारम्भ हुए। अतः भारत इस मामले में विश्व के विकसित देशों से बहुत अधिक पिछड़ गया है। परंतु, अब भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में तेजी से कमी हो रही है तथा साथ ही अतिधनाडय एवं मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, जिससे अब उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे आने वाली समय में भारत में भी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में तेज गति से वृद्धि होगी।    विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका में सेवा क्षेत्र इसकी सबसे बढ़ी ताकत है। अमेरिका में केवल 2 प्रतिशत आबादी ही कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और अमेरिका की अधिकतम आबादी उच्च तकनीकी का उपयोग करती है जिसके कारण अमेरिका में उत्पादकता अपने उच्चत्तम स्तर पर है। पेट्रोलीयम पदार्थों एवं रक्षा उत्पादों के निर्यात के मामले में अमेरिका आज पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है। वर्ष 2024 में अमेरिका ने 2.08 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के बराबर का सामान अन्य देशों को निर्यात किया है, जो चीन के बाद विश्व के दूसरे स्थान पर है। तकनीकी वर्चस्व, बौद्धिक सम्पदा एवं प्रौद्योगिकी नवाचार ने अमेरिका को विकास के मामले में बहुत आगे पहुंचा दिया है। टेक्निकल नवाचार से जुड़ी विश्व की पांच शीर्ष कम्पनियों में से चार, यथा एप्पल, एनवीडिया, माक्रोसोफ्ट एवं अल्फाबेट, अमेरिका की कम्पनियां हैं। इन कम्पनियों का संयुक्त बाजार मूल्य 12 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक है, जो विश्व के कई देशों के सकल घरेलू उत्पाद से बहुत अधिक है। अतः अमेरिका के नागरिकों ने बहुत तेजी से धन सम्पदा का संग्रहण किया है इसी के चलते प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अमेरिका में बहुत अधिक है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1944 में अमेरिका के ब्रेटन वुड्ज नामक स्थान पर हुई एतिहासिक बैठक में विश्व के 44 देशों ने वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के नए ढांचे पर सहमति जताते हुए अपने देश की मुद्रा को अमेरिकी डॉलर से जोड़ दिया था। इसके बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिकी डॉलर का दबदबा बना हुआ है। आज विश्व का लगभग 80 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग लेन देन अमेरिकी डॉलर में होता है। अमेरिका के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को पूरे विश्व का विनिर्माण केंद्र कहा जाता है क्योंकि आज पूरे विश्व के औद्योगिक उत्पादन का 31 प्रतिशत हिस्सा चीन में निर्मित होता है। चीन में पूरे विश्व की लगभग समस्त कम्पनियों ने अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित की हुई हैं। चीन के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण इकाईयों का योगदान 27 प्रतिशत से अधिक हैं। पूरे विश्व में आज उत्पादों के निर्यात के मामले में प्रथम स्थान पर है। विभिन्न उत्पादों का निर्यात चीन की आर्थिक शक्ति का प्रमुख आधार है। सस्ती  श्रम लागत के चलते चीन में उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम होती है। वर्ष 2024 में चीन का कुल निर्यात 3.57 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का रहा है।  विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अर्थात जर्मनी ने पिछले एक वर्ष में 25,000 पेटेंट अर्जित किए हैं। जर्मनी को, ऑटोमोबाइल उद्योग ने, पूरे विश्व में एक नई पहचान दी है। चार पहिया वाहनों के उत्पादन एवं निर्यात के मामले में जर्मनी पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर है। जर्मनी में निर्मित चार पहिया वाहनों का 70 प्रतिशत हिस्सा निर्यात होता है। यूरोपीय यूनियन के देशों की सड़कों पर दौड़ने वाली हर तीसरी कार जर्मनी में निर्मित होती है। जर्मनी विश्व का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जिसने 2024 में 1.66 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के बराबर राशि के उत्पाद एवं सेवाओं का निर्यात किया था। मुख्य निर्यात वस्तुओं में मोटर वाहनों के अलावा मशीनरी, रसायन और इलेक्ट्रिक उत्पाद शामिल हैं। आज भारत सकल घरेलू उत्पाद के आकार के मामले में विश्व में चौथे पर पहुंच गया है परंतु भारत को प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में जबरदस्त सुधार करने की आवश्यकता है। भारत पूरे विश्व में आध्यात्म के मामले में सबसे आगे है अतः भारत को धार्मिक पर्यटन को सबसे तेज गति से आगे बढ़ाते हुए युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर निर्मित करने चाहिए जिससे नागरिकों की आय में वृद्धि करना आसान हो। दूसरे, भारत में 80 करोड़ आबादी का युवा (35 वर्ष से कम आयु) होना भी विकास के इंजिन के रूप में कार्य कर सकता है। भारत की विशाल आबादी ने भारत को विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में अपना योगदान दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था में विविधता झलकती है और यह केवल कुछ क्षेत्रों पर निर्भर नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान 16 प्रतिशत है तथा रोजगार के अधिकतम अवसर भी कृषि क्षेत्र से ही निकलते हैं, जिसके चलते प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद विपरीत रूप से प्रभावित होता है। सेवा क्षेत्र का योगदान 60 प्रतिशत से अधिक है परंतु, विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाने की आवश्यकता है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत में 81 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है अर्थात विदेशी निवेशक भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना करते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास बढ़ा है। आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी 694 अरब अमेरिकी डॉलर की आंकड़े को पार कर गया है। आगे आने वाले समय में अब विश्वास किया जा सकता है कि भारत में भी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में तेज गति से वृद्धि होती हुई दिखाई देगी।  प्रहलाद सबनानी 

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