आर्थिकी राजनीति ग्रामीण भारत को खुशहाल बनाने वाला बजट February 3, 2020 / February 3, 2020 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गव इसमें दो राय नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा बही-खाता ग्रामीण भारत के चौतरफा विकास का स्पष्ट संकेत देता है। इसमें सबसे अधिक घोषणाएं ग्राम, कृषि और किसान केंद्रित हैं। कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र एवं विकास के लिए 4.06 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इनमें से […] Read more » बजट 2020
आर्थिकी राजनीति बजट में किस क्षेत्र को क्या मिला? February 3, 2020 / February 3, 2020 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment आम बजट में घोषणाओं के निहितार्थ – योगेश कुमार गोयल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पेश किए गए आम बजट को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिली हैं। शेयर बाजार तो इस बजट के बाद धड़ाम से नीचे गिरा। सेंसेक्स 987.96 अंकों की गिरावट के […] Read more » budget 20 आम बजट
आर्थिकी राजनीति असंतुलित आर्थिक संरचना पर मंथन जरूरी January 22, 2020 / January 22, 2020 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग-दावोस में चल रहे वल्र्ड इकनॉमिक फोरम में ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट ‘टाइम टू केयर’ में समृद्धि के नाम पर पनप रहे नये नजरिया, विसंगतिपूर्ण आर्थिक संरचना एवं अमीरी गरीबी के बीच बढ़ते फासले की तथ्यपरक प्रभावी प्रस्तुति देते हुए इसे घातक बताया है। आज दुनिया की समृद्धि कुछ लोगों तक केन्द्रित हो गयी […] Read more » Necessary brainstorming on unbalanced economic structure unbalanced economic structure असंतुलित आर्थिक संरचना
आर्थिकी आम-बजट में राहत की उम्मीदें December 19, 2019 / December 19, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, व्यापार की टूटती सांसें, आर्थिक सुस्ती एवं विकास की रफ्तार में लगातार आ रही गिरावट चिंता एवं चिन्तन का कारण है। जनता महंगाई एवं नवीन आर्थिक परिवर्तनों से जार-जार है, लोग बढ़ती महंगाई को लेकर चिंतित हैं, वे चाहते हैं कि आयकर सीमा बढ़ाई जानी चाहिए। वित्तमंत्री से […] Read more » Expectations of relief in general budget आम-बजट में राहत
आर्थिकी विविधा पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की दौड़ में बाधाएं December 19, 2019 / December 19, 2019 by दुलीचंद कालीरमन | Leave a Comment दुलीचंद कालीरमन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को वर्ष 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कई अर्थशास्त्रियों को दूर की कौड़ी लगता है. वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है. वैसे 2 ट्रिलियन डॉलर से तीन ट्रिलियन डॉलर का सफर तय करने में पांच वर्ष लगे.वर्ष 2014 में जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना कार्यभार संभाला था तो भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 11वीं अर्थव्यवस्था थी, जो वर्ष 2019 तक आते-आते पांचवें या छठे स्थान पर आ गई है. अपने लिए लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ना सकारात्मकता का उदाहरण है. लेकिन वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की दौड़ में कई बाधाएं खड़ी है, जिससे जिनको पार करना वर्तमान सरकार के लिए चुनौती भरा कार्य है. अगर हम तकनीकी तौर पर नहीं बल्कि व्यवहारिक पक्ष पर विचार करें तो अर्थव्यवस्था के चार ही पक्ष है. पहला सरकार, दूसरा उद्योग जगत, तीसरा बैंकिंग व्यवस्था और चौथा सामान्य नागरिक. सरकार को देश में विकास कार्यों तथा प्रशासन के संचालन के लिए राजस्व की जरूरत होती है. जिसे वह कर के रूप में उद्योग जगत तथा सामान्य जन से संग्रहित करती है. उद्योग जगत में से जीएसटी तथा कारपोरेट टैक्स के रूप में तथा सामान्य जन से आयकर के रूप में राजस्व आता है. 1 जुलाई 2017 से वस्तु तथा सेवा कर लागू हुआ है. इसे कई प्रकार के करो को एक कर में बदलने के लिए लागू किया गया था और यह कहा गया था कि इससे कर संग्रहण में सुविधा होगी तथा कर संग्रहण सस्ता भी होगा. लेकिन वस्तु तथा सेवा कर के लागू होने के बाद अभी भी इसमें कई समस्याएं हैं. जिसके कारण राजस्व में कमी बनी हुई है. अभी भी फर्जी ई-वे बिल तथा बोगस कंपनियों द्वारा टैक्स रिबेट के नाम पर घोटाले की दिन की खबरें आए दिन अखबारों में छपती हैं. राज्यों को भी कर राजस्व में घाटा हो रहा है तथा जीएसटी कानून के कारण केंद्र सरकार को राज्यों के कर घाटे की भरपाई करनी पड़ रही है. जीएसटी कानून के बेहतर कार्यान्वयन से ही राजस्व संग्रहण में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है. वर्तमान में जीडीपी यानी ‘सकल घरेलू विकास दर’ निरंतर गिर रही है. वर्ष की दूसरी तिमाही तिमाही में यह 4.5% पर आ चुकी है. भारतीय रिजर्व बैंक में अभी हाल ही में चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर अनुमान घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है जो पहले 6.9 प्रतिशत था. उद्योग जगत के ज्यादातर क्षेत्र मंदी की मार में निर्यात लगातार गिर रहा है. घरेलू मोर्चे से भी मांग की कमी का रोना रोया जा रहा है. पिछले बजट में सरकार ने अपने राजस्व संग्रह को बढ़ाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स को बढ़ावा बढ़ाया था. लेकिन उद्योग जगत के कमजोर प्रदर्शन से को देखते हुए इसे फिर से कम कर दिया गया है. कॉरपोरेट टैक्स में यह कमी इसी उम्मीद से की गई है कि इससे उद्योग अपनी गतिविधियों को बढ़ाएंगे तथा निर्यात को बढ़ाकर रोजगार की नई संभावनाएं बनेंगी. निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा भी भारत में आएगी. यह कितना कारगर होगा यह आने वाला समय ही बताएगा. अर्थव्यवस्था का तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग व्यवस्था है. पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने में यह क्षेत्र बाकी के तीन क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य करता है. सरकार, उद्योग, व जन सामान्य का भरोसा बैंकिंग व्यवस्था पर होगा तभी अर्थव्यवस्था पटरी पर चल पड़ेगी. लेकिन खेद का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग व्यवस्था में आम आदमी का विश्वास कम हुआ है. जिस प्रकार विजय माल्या, नीरव मोदी, चौकसे आदि ने बैंकों में हजारों करोड रुपए का चूना लगाया है उससे आम आदमी का विश्वास उद्योगपतियों, सरकार तथा बैंकिंग व्यवस्था से हिला है. जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात नहीं है. हाल ही में मुंबई के “पीएमसी बैंक घोटाला” भी इसी कड़ी का एक उदाहरण है. वर्तमान आर्थिक मंदी के दौर में रिजर्व बैंक लगातार कई बार रेपो रेट में कमी करके कर्ज़ों को सस्ता करने का प्रयास कर चुका है. जिससे तरलता की कमी को दूर किया जा सके तथा घरेलू स्तर पर मांग में तेजी आ सके. रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों का पुन:पूंजीकरण भी इस व्यवस्था को सुदृढ़ करने का एक प्रयास है. पिछले कुछ सालों में गैर निष्पादित ऋणों के बढ़ते आंकड़ों पर भी कुछ अंकुश लगा है. दिवालिया कानून जैसी प्रक्रिया से भी इस क्षेत्र में आम आदमी का विश्वास थोड़ा मजबूत हुआ है. लेकिन इसमें अभी भी काफी कुछ किया जाना शेष है. भारत जैसे देश में, जिसकी आबादी 130 करोड़ से ऊपर है, वहां पर मांग में कमी (जैसा उद्योग जगत द्वारा कहा जाता है) समझ में नहीं आती है. जबकि यह मांग की कमी नहीं अपितु आय में कमी है. हम सब जानते हैं कि आबादी का 50% हिस्सा कृषि पर निर्भर है. समय के साथ-साथ फसलों का लागत मूल्य लगातार बढ़ रहा है. लेकिन किसानों को उनकी फसलों का उचित एवं लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित किया जाता है लेकिन किसान की पूरी फसल उस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आज भी नहीं बिक रही. इससे कृषि मजदूर की आय पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. वर्तमान में प्याज की कीमतें ₹150 प्रति किलो तक पहुंच गई थी. लेकिन क्या इसका लाभ प्याज के उत्पादक किसानों को मिला है? इसका जवाब सभी जानते हैं. आज भी फलों और सब्जियों के विपणन तथा भंडारण में सरकार द्वारा बहुत कम प्रयास किए गए है. एक आम किसान के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वह उनका भंडारण कर सके. इससे बिचौलियों की पौ-बारह होती है तथा आम किसान अपने आप को ठगा सा महसूस करता है. उसका भरोसा पूरी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था से उठ जाता है. फिर किसान आंदोलनों को राजनीतिक दल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उपयोग करते हैं. अगर कॉर्पोरेट टैक्स की माफी के नाम पर 1.45 लाख करोड रुपए उद्योगपतियों को दिए जा सकते हैं, तो क्या देश की आधी आबादी जो कृषि पर निर्भर है, उसकी आर्थिक मदद नहीं की जा सकती? जिससे मांग में तेजी आएगी, इससे उनके जीवन स्तर के साथ-साथ उद्योग भी की मंदी को भी दूर किया जा सके. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने व्यक्तिगत आयकर में भी कुछ छूट देने के संकेत आगामी बजट में दिए हैं. इससे नकदी का प्रवाह बढ़ेगा और पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की दौड़ में मंजिल पर पहुंचने में मदद मिलेगी. इसके लिए जरूरी है कि हम आर्थिक नीतियों का निर्धारण करते समय देश में आर्थिक स्थिति के व्यवहारिक पक्ष पर भी ध्यान देकर उसी के अनुसार निर्णय लेंगे, तो ही धरातल पर फर्क स्पष्ट दिखाई देगा अन्यथा किताबी बातें किताबों तक ही रह जाती है, Read more » Five trillion economy race hurdles पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था
आर्थिकी राजनीति बिगड़ती अर्थव्यवस्था का जिम्मेदार पश्चिमी व्यवसायिकरण December 6, 2019 / December 6, 2019 by आनंद जोनवार | 1 Comment on बिगड़ती अर्थव्यवस्था का जिम्मेदार पश्चिमी व्यवसायिकरण गुलामी से आजादी मिलने के बाद भारत के भाग्य में भूख मिली और हाथ में गरीबी । स्वंत्रत भारत पंचवर्षीय योजनाओं से विकास की रफ्तार पकड़ ही रहा था कि दुनिया में पूंजीवाद निजीकरण व्यक्तिगत पाश्चत्य अर्थव्यवस्था ने वैश्वीकरण के नाम पर विकास की पटरी पर चलने की शुरुआत करने वाले गरीब देशों में अपनी […] Read more » deterioating economy पश्चिमी व्यवसायिकरण बिगड़ती अर्थव्यवस्था बैलगाड़ी वाली अर्थात ग्रामीण मजबूत अर्थव्यवस्था
आर्थिकी राजनीति आर्थिक मंदी से पूरी तरह बेखबर दिख रहे हुक्मरान! December 4, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment लिमटी खरे देश इस समय आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। विपक्ष के द्वारा बोथरी तलवारों से किए जा रहे प्रहारों का हुक्मरानों पर कोई अंतर नहीं पड़ रहा है। सरकारों के द्वारा आर्थिक मंदी को सिरे से नकारते हुए अपने अपने हिसाब से […] Read more » आर्थिक मंदी
आर्थिकी लेख अब गरीबी नहीं, अमीरी समस्या है December 4, 2019 / December 4, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-देश की प्रति व्यक्ति आय मार्च 2019 को समाप्त वित्त वर्ष में 10 प्रतिशत बढ़कर 10,534 रुपये महीना पहुंच जाने का अनुमान है। इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 में मासिक प्रति व्यक्ति आय 9,580 रुपये थी। प्रति व्यक्ति औसत आय का बढ़ना देश की समृद्धि का स्वाभाविक संकेत है। आम आदमी की औसत […] Read more » difference increasing between poverty snd rich poverty अमीर और ज्यादा अमीर गरीब और ज्यादा गरीब गरीबी प्रति व्यक्ति औसत आय
आर्थिकी विश्ववार्ता क्या हम मन्दी के दौर में फंस रहे हैं? December 3, 2019 / December 3, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ः ललित गर्ग:-देश में आर्थिक सुस्ती एवं विकास की रफ्तार में लगातार आ रही गिरावट चिंता एवं चिन्तन का कारण है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि-दर की लगातार छठी बार गिरावट होना असामान्य आर्थिक घटना है। इस तिमाही में जीडीपी दर 4.5 प्रतिशत […] Read more » मन्दी के दौर
आर्थिकी वीडियो खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सही कारगर नीतियों की संजीवनी बूटी कब ! December 3, 2019 / December 3, 2019 by दीपक कुमार त्यागी | Leave a Comment दीपक कुमार त्यागीभारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों को शुक्रवार 29 नवंबर को उस समय तगड़ा झटका लगा जब केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, लम्बे समय से मंदी की मार झेलने से बेहाल भारत की अर्थव्यवस्था में ताजा जारी किये गये आकड़ों के अनुसार और गिरावट […] Read more » खस्ताहाल अर्थव्यवस्था विकास दर में भारी गिरावट
आर्थिकी विश्ववार्ता मनमानी अब और नहीं October 11, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment इ. राजेश पाठक सन २००८ में अमेरिका एक आर्थिक मंदी के दौर से गुजर चुका है. अपनी बहुचर्चित किताब, ‘मुद्रा की माया:विश्व का वित्तीय इतिहास’ में लेखक नायल फर्गुसन् ने इस पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि इसका कारण ये नहीं था कि अमेरिका की कंपनियों से निर्माण में कोई गलतियां हुई […] Read more » आर्थिक मंदी
आर्थिकी हमारे विचार August 29, 2019 / August 29, 2019 by डॉ. हेमेंद्र कुमार राजपूत | Leave a Comment डाॅ हेमन्त कुमार फिलहाल अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है और मंदी का अंदेशा उभर आया है, इसलिए रिजर्व बैंक की ओर से वित्तीय रूप से सरकार के हाथ मजबूत करने की पहल को उपयुक्त समय पर उठाया गया कदम ही कहा जाएगा। यदि अर्थव्यवस्था की सुस्ती और गहराने के बाद रिजर्व बैंक […] Read more » Indian Economy world economy