आर्थिकी लेख क्या भारत कभी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन पाएगा June 10, 2024 / June 10, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार श्री एंग्स मेडिसिन के अनुसार वर्ष 1820 तक भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, 1820 आते आते चीन भारत से आगे निकल गया था। 1820 से 1870 के बीच चीन एवं भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पूरे विश्व में सबसे आगे थे। वर्ष 1870 से 1900 के बीच ब्रिटेन विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया परंतु ब्रिटेन पर यह ताज अधिक समय तक नहीं टिक सका क्योंकि इसके तुरंत बाद अमेरिका विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया था। इसके बाद तो आर्थिक प्रगति के मामले में अमेरिका एवं यूरोपीयन देश लगातार आगे बढ़ते रहे, विकसित अर्थव्यवस्थाएं बने और एशिया के देशों (विशेष रूप से भारत एवं चीन) का वर्चस्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग समाप्त सा हो गया था। परंतु, अब एक बार पुनः समय चक्र बदल रहा है एवं अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों की अर्थव्यस्थाएं आर्थिक विकास के मामले में ढलान पर दिखाई दे रही हैं एवं एशिया के देश, विशेष रूप से भारत एवं चीन, पुनः तेज गति से आर्थिक प्रगति करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपना दबदबा कायम करते नजर आ रहे हैं। आज अमेरिकी अर्थव्यस्था का आकार लगभग 25 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है और चीन की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 18 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2035 से 2040 के बीच चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं अमेरिका दूसरे नम्बर पर आ जाएगा और भारत तीसरे नम्बर पर आ जाएगा। परंतु, इसके बाद क्या भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नम्बर पर आ पाएगा। इस तरह की चर्चाएं आजकल आर्थिक जगत में होने लगी हैं। आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व में 11वां स्थान था जो आज 3.70 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के आकार के साथ विश्व में 5वें स्थान पर आ गई है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2026 में भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी अर्थव्यवस्था से आगे निकलकर विश्व में चौथे स्थान पर आ जाएगी। इसी प्रकार वर्ष 2027 में जापानी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरे स्थान पर आ जाएगी। गोल्ड्मन सच्स के अनुसार, अगले चार वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा। इसी प्रकार, ब्लूम्बर्ग के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था आगामी वर्षों में लगातार 6 प्रतिशत से अधिक की विकास दर हासिल करता रहेगा, और अमेरिका एवं चीन की आर्थिक विकास दर से आगे बना रहेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास दर के तेज गति से आगे रहने के पीछे जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें शामिल हैं – भारतीय जनसंख्या में वृद्धि होते रहना (अमेरिका एवं चीन में जनसंख्या वृद्धि दर लगातार कम हो रही है), इससे भारतीय घरेलू बाजार मजबूत बना रहेगा एवं उत्पादों की मांग भी भारत में तेज गति से आगे बढ़ती रहेगी। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की आबादी बढ़ कर 170 करोड़ नागरिकों की हो जाएगी, इससे भारत अपने आप में विश्व का सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। वर्ष 2024 में भारत में उपभोक्ता विश्वास सूचकांक 98.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दूसरे, भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए भी केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अत्यधिक मात्रा में पूंजी निवेश किया जा रहा है। भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित श्रेणी में लाने के लिए केवल रोड ही नहीं बल्कि रेल्वे, एयरपोर्ट, ऊर्जा एवं जल व्यवस्था को विकसित करने के लिए भी भरपूर पूंजी निवेश किया जा रहा है। भारत में आज भी श्रमिक लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है, इससे कई विदेशी कम्पनियां अब चीन के स्थान पर भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयों को स्थापित कर रही हैं इससे भारत के औद्योगिक विकास को गति मिल रही है। भारत ने भी कई उद्योग क्षेत्रों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की है जिसका लाभ विश्व की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां उठा रही हैं एवं अपनी औद्योगिक इकाईयां भारत में स्थापित कर रही हैं। तीसरे भारत में आज 140 करोड़ की जनसंख्या में से 100 करोड़ से अधिक नागरिक युवा एवं कार्य कर सकने वाले नागरिकों की श्रेणी में शामिल हैं। इतनी बड़ी मात्रा में श्रमिकों की उपलब्धि किसी भी अन्य देश में नहीं है। अन्य विकसित देशों, चीन सहित, में कार्य कर सकने वाले नागरिकों की संख्या लगातार कम हो रही है क्योंकि इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। किसी भी देश में युवा जनसंख्या का अधिक होने से न केवल श्रमिक के रूप में इनकी उपलब्धि आसान बनी रहती है बल्कि इनके माध्यम से देश में उत्पादों की मांग में भी वृद्धि दर्ज होती है तथा युवा जनसंख्या की उत्पादकता भी अधिक होती है जिससे उत्पादन लागत कम हो सकती है। साथ ही, युवाओं द्वारा नवाचार भी अधिक मात्रा में किया जा सकता है। यह सब कारण हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरे विश्व में एक चमकता सितारा बनाने में सहायक हो रहे हैं। हाल ही के समय में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदला भी है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना बन रही है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है। भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8.2 प्रतिशत की रही है और यह वित्तीय वर्ष 2023-24 की समस्त तिमाहियों में लगातार तेज गति से बढ़ती रही है। पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं। अब आगे आने वाले कालचक्र में वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में परिस्थितियां लगातार भारत के पक्ष में होती दिखाई दे रही हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान लगातार बढ़ते जाने की प्रबल संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » Will India ever become the world's second largest economy
आर्थिकी राजनीति भारत में गरीबी उन्मूलन पर पूर्व में गम्भीरता से ध्यान ही नहीं दिया गया May 9, 2024 / May 9, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में आई भारी कमी के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं विकसित देशों के कई वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों ने भारत की आर्थिक नीतियों की मुक्त कंठ से सराहना की है। यह सब दरअसल भारत में तेज गति से हुए वित्तीय समावेशन के चलते सम्भव हुआ है। याद करें वर्ष 1947, जब देश ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उस समय देश की अधिकतम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थी। जबकि, भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है एवं भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु, पहिले अरब से आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने भारत को जमकर लूटा तथा देश के नागरिकों को गरीबी की ओर धकेल दिया। भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे तो बहुत लगे परंतु, गरीबी नहीं हटी। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ राजनैतिक दलों ने कई बार सता हासिल की किंतु देश से गरीबी हटाने के गम्भीर प्रयास शायद कभी नहीं हुए और गरीब वर्ग को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को वर्ष 2014 में लागू किया गया जिसके माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है। एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाख रुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को सफलता पूर्वक लागू करने के बाद प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना (Direct Benefit Transfer Scheme) को भी लागू किया गया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थ चलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि को सीधे ही हितग्राहियों के बचत खातों में जमा कर दिया जाता है। इससे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 100 प्रतिशत लाभ की राशि सीधे ही उनके हाथों में पहुंच जाती है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत, वर्ष 2013 के बाद से 31 मार्च 2022 तक, 24.8 लाख करोड़ रुपए की राशि सीधे ही लाभार्थियों के बचत खातों में जमा की जा चुकी है, इसमें अकेले वित्तीय वर्ष 2021-22 में ही 6.3 लाख करोड़ रुपए की राशि लाभार्थियों के बचत खातों में हस्तांतरित की गई थी। वर्ष 2014 के पूर्व तक जब इन लाभार्थियों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में नहीं खुले थे तब तक कांग्रेस एवं अन्य सरकारों के शासनकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि सामान्यतः नकद राशि के रूप में इन लाभार्थियों को उपलब्ध कराई जाती थी। आपको शायद ध्यान होगा कि एक बार देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी ने कहा था कि केंद्र सरकार से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि के एक रुपए में से केवल 16 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंच पाते हैं। शेष 84 पैसे इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र की जेब में पहुंच जाते है। अब आप स्वयं आंकलन करें कि यदि बैंक में 50 करोड़ लाभार्थियों के बचत खाते नहीं खुले होते और यदि उक्त वर्णित केवल 8 वर्षों के दौरान उपलब्ध कराई गई 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न लाभार्थियों को नकद राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती तो इन लाभार्थियों के पास केवल 4 लाख करोड़ रुपए की राशि ही पहुंच पाती एवं शेष 21 लाख करोड़ रुपए की राशि इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र के पास ही रह जाती। अब आप आगे एक और कल्पना कर लीजिये कि पिछले 70 वर्षों के दौरान कितनी भारी भरकम राशि इन गरीब हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पाई होगी। इस राशि का आकार शायद आपकी कल्पना से भी परे है। सहायता की यह राशि यदि गरीबों तक पहुंच गई होती तो शायद हो सकता है कि देश से अभी तक गरीबी भी दूर हो चुकी होती। अब जब प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत सहायता की राशि हितग्राहियों के खातों में सीधे ही पहुंच रही है तो देश से गरीबी भी तेजी से कम होती दिखाई दे रही है, जिसकी तारीफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक्त कंठ से हो रही है। पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। न केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इन बचत खातों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है और बचत की यह भारी भरकम राशि बैंकों द्वारा देश के आर्थिक विकास में उपयोग की जा रही है। इस प्रकार, भारत का गरीब वर्ग भी इन बैंक खातों के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देता हुआ दिखाई दे रहा है। उक्त 50 करोड़ से अधिक बचत खातों में 50 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए हैं, अर्थात अब भारतीय महिलाएं, ग्रामीण महिलाओं सहित, भी आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। भारी मात्रा में खोले गए इन बचत खातों के माध्यम से गरीब वर्ग के नागरिकों का बैकिंग सम्बंधी इतिहास भी धीरे धीरे विकसित हो रहा है, जिससे इस वर्ग के नागरिकों को बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में आसानी होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा बैकों के माध्यम से लागू की जा रही विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाओं का लाभ भी अब गरीब वर्ग को मिलने लगा है। कोरोना महामारी के तुरंत बाद जब देश में स्थितियां सामान्य बनने की ओर अग्रसर हो रहीं थीं तब केंद्र सरकार ने खोमचा वाले, रेहड़ी वाले एवं ठेलों पर अपना सामान बेचकर छोटे छोटे व्यवसाईयों द्वारा अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने के उद्देश्य से एक विशेष ऋण योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत उक्त वर्णित छोटे छोटे व्यवसाईयों को बैंक द्वारा आसानी से ऋण प्रदान किया गया था क्योंकि इस वर्ग के नागरिकों के पूर्व में ही बैकों में बचत खाते खुले हुए थे। बैकों द्वारा यह ऋण बगैर किसी व्यक्तिगत गारंटी के प्रदान किया गया था। और, हजारों की संख्या में छोटे छोटे व्यवसाईयों ने निर्धारित समय सीमा में इस ऋण को अदा कर, पुनः बढ़ी हुई राशि के ऋण बैकों से लिए थे और अपने व्यवसाय को तेजी से आगे बढ़ाया था। बैकों में खोले गए बचत खातों से गरीब वर्ग को इस प्रकार के लाभ भी हुए हैं। भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना ने देश के हर गरीब नागरिक को वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ा है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीबतम व्यक्तियों को भी इस योजना का लाभ मिला है। आजादी के लगभग 70 वर्षों के बाद भी भारत के 50 प्रतिशत नागरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात बैकों से नहीं जुड़े थे। प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खाताधारकों को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ भी भारी मात्रा में नागरिकों ने उठाया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से 15.99 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 49 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का जीवन बीमा केवल 436 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना से 33.78 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 48 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा केवल 20 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। अटल पेंशन योजना से 5.20 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं। मुद्रा योजना के अंतर्गत 40.83 करोड़ नागरिकों को ऋण प्रदान किया गया है प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बैंकिंग व्यवस्था को आसान बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने का कार्य भी सफलतापूर्वक किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड प्रदान किया गया है। यह रूपे कार्ड उपयोगकर्ता द्वारा समस्त एटीएम, पोस टर्मिनल एवं ई-कामर्स वेबसाइट पर लेनदेन करने की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। वर्ष 2016 में 15.78 करोड़ बचत खाताधारकों को रूपे कार्ड प्रदान किया गया था एवं अप्रेल 2023 तक यह संख्या बचकर 33.5 करोड़ तक पहुंच गई है। प्रहलाद सबनानी Read more » Poverty alleviation in India was not given serious attention in the past.
आर्थिकी राजनीति अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया? May 7, 2024 / May 7, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment अमेरिका में वर्ष 2023 में 3 बैंक (सिलिकन वैली बैंक, सिगनेचर बैंक, फर्स्ट रिपब्लिक बैंक) डूब गए थे एवं वर्ष 2024 में भी एक बैंक (रिपब्लिक फर्स्ट बैंक) डूब गया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, द्वारा ब्याज दरों में की गई वृद्धि के चलते बैंकों के असफल होने की यह परेशानी बहुत बढ़ गई है। सिलिकन वैली बैंक ने कई तकनीकी स्टार्ट अप एवं उद्यमी […] Read more » Why are American banks going bankrupt? अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया
आर्थिकी राजनीति आर्थिक क्षेत्र में नित नए विश्व रिकार्ड बनाता भारत May 3, 2024 / May 3, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment दिनांक 1 मई 2024 को अप्रेल 2024 माह में वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण से सम्बंधित जानकारी जारी की गई है। हम सभी के लिए यह हर्ष का विषय है कि माह अप्रेल 2024 के दौरान वस्तु एवं सेवा कर का संग्रहण पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए 2.10 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो निश्चित ही, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में वस्तु एवं सेवा कर का औसत कुल मासिक संग्रहण 1.20 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो वित्तीय वर्ष 2023 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपए हो गया एवं वित्तीय वर्ष 2024 में 1.70 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार कर गया। अब तो अप्रेल 2024 में 2.10 लाख करोड़ रुपए के स्तर से भी आगे निकल गया है। इससे यह आभास हो रहा है कि देश के नागरिकों में आर्थिक नियमों के अनुपालन के प्रति रुचि बढ़ी है, देश में अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण हो रहा है एवं भारत में आर्थिक विकास की दर तेज गति से आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले 2/3 वर्षों में 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। भारत में वर्ष 2014 के पूर्व एक ऐसा समय था जब केंद्रीय नेतृत्व में नीतिगत फैसले लेने में भारी हिचकिचाहट रहती थी और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की हिचकोले खाने वाली 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। परंतु, केवल 10 वर्ष पश्चात केंद्र में मजबूत नेतृत्व एवं मजबूत लोकतंत्र के चलते आज वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है। आज भारत आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक मंच पर नित नए रिकार्ड बना रहा है। वैश्विक स्तर पर विदेशी प्रेषण के मामले में आज भारत प्रेषण प्राप्तकर्ता के रूप में प्रथम स्थान पर पहुंच गया है। भारत में आज सबसे बड़ा सिंक्रोनाईजड बिजली ग्रिड है। बैकिंग क्षेत्र में वास्तविक समय लेनदेन की सबसे बड़ी संख्या आज भारत में ही सम्पन्न हो रही है। भारत आज विश्व में दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है एवं भारत आज पूरे विश्व में मोबाइल फोन का निर्माण करने वाला दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है। भारत में आज विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेट्वर्क है। मात्रा की दृष्टि से भारत में आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मासीयूटिकल उद्योग है। भारत में आज पूरे विश्व में तीसरा सबसे बड़ा मेट्रो नेट्वर्क है। भारत ने स्टार्टअप को विकसित करने के उद्देश्य से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र खड़ा कर लिया है। भारत का स्टॉक बाजार, पूंजीकरण के मामले में, विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। भारत में आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेट्वर्क है। विश्व में पैटेंट हेतु आवेदन किए जाने वाले देशों में भारत आज छठे स्थान पर आ गया है। आर्थिक क्षेत्र में भारत को यह सभी उपलब्धियां पिछले 10 वर्षों के दौरान प्राप्त हुई हैं। पिछले केवल 10 वर्षों के दौरान शेयर बाजार में निवेशकों को अपार सफलता हासिल हुई है और सेन्सेक्स ने 200 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज की है, इसी प्रकार निफ्टी भी इसी अवधि में 206 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि दर्ज करने में सफल रहा है। यह स्थानीय एवं विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपना विश्वास जता रहा है। भारत में शेयर बाजार में व्यवहार करने के उद्देश्य से खोले जाने वाले डीमेट खातों की संख्या वर्ष 2014 में 2.2 करोड़ थी जो वर्ष 2024 में बढ़कर 15.13 करोड़ हो गई है अर्थात इन 10 वर्षों में 7 गुणा से अधिक की वृद्धि दर अर्जित की गई है। देश का प्रत्येक उद्यमी/उपक्रमी/व्यवसायी बहुत उत्साह में है कि देश में व्यापार करने हेतु वातावरण में बहुत सुधार हुआ है एवं ईज आफ डूइंग बिजनेस में काफी सुधार हुआ है। आज भारत ही नहीं बल्कि भारतीय कम्पनियों द्वारा विदेश में भी पूंजी उगाहना बहुत आसान हो गया है। अतः एक प्रकार से उद्यमियों के लिए पूंजी की समस्या तो नहीं के बराबर रह गई है। भारतीय नागरिकों में आज स्व का भाव जगाने में भी कामयाबी मिली है, जिसके चलते स्वदेश में निर्मित वस्तुओं का उपयोग बढ़ रहा है एवं अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात कम हो रहे हैं। इसके चलते भारत के विदेशी व्यापार घाटे में सुधार दृष्टिगोचर है। आज भारत से विभिन्न उत्पादों के निर्यात में मामूली वृद्धि दर्ज हो रही है तो कई उत्पादों के आयात में कमी दिखाई देने लगी है। इसे भारतीय नागरिकों के आत्म निर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम के रूप में देखा जा सकता है। फरवरी 2024 माह में भारत का व्यापारिक निर्यात 11.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4140 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया, जो पिछले 20 महीनों में उच्चतम स्तर पर है। इसके अतिरिक्त, सेवा निर्यात 3210 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। फरवरी 2024 माह में माल एवं सेवाओं को मिलाकर कुल निर्यात 7355 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो फरवर 2023 की तुलना में 14.2 प्रतिशत अधिक है। इसी कारण से, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी आज 64,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। आज भारतीय नागरिकों ने सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत को विकसित एवं मजबूत बनाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा लिए हैं। आज भारत में प्रत्येक नागरिक का औसत जीवन वर्ष 2022 के 62.7 वर्ष से बढ़कर 67.7 वर्ष हो गया है। यह भारत में लगातार हो रही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के चलते ही सम्भव हो सका है। संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिवेदन के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में पिछले 12 महीनों के दौरान 6.3 प्रतिशत की वृद्ध दर्ज हुई है। इसी प्रकार, एक सर्वे के अनुसार, आज भारत में 36 प्रतिशत कम्पनियां आगामी 3 माह में नई भर्तियां करने पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं, इससे भारत में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते दिखाई दे रहे हैं। गरीब वर्ग को भी केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुंचाये जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। जल जीवन मिशन ने पूरे भारत में 75 प्रतिशत से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करके एक बढ़ा मील का पत्थर हासिल कर लिया है। लगभग 4 वर्षों के भीतर मिशन ने 2019 में ग्रामीण नल कनेक्शन कवरेज को 3.23 करोड़ घरों से बढ़ाकर 14.50 करोड़ से अधिक घरों तक पहुंचा दिया गया है। इसी प्रकार, पीएम आवास योजना के अंतर्गत, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक पक्के मकान बनाए गए हैं एवं सौभाग्य योजना के अंतर्गत देश भर में 2.8 करोड़ घरों का विद्युतीकरण कर लिया गया है। विश्व भर के सबसे बड़े सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना – के अंतर्गत 55 करोड़ लाभार्थियों को माध्यमिक एवं तृतीयक देखभाल एवं अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है। साथ ही, पीएम गरीब कल्याण योजना के माध्यम से मुफ्त अनाज के मासिक वितरण से 80 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ प्राप्त हो रहा है। पीएम उज्जवल योजना के अंतर्गत 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान किये गए हैं। इन महिलाओं के जीवन में इससे क्रांतिकारी परिवर्तन आया है क्योंकि ये महिलाएं इसके पूर्व लकड़ी जलाकर अपने घरों में भोजन सामग्री का निर्माण कर पाती थीं और अपनी आंखों को खराब होते हुए देखती थीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भी 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कर महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को कायम रखा जा सका है। जन धन खाता योजना के अंतर्गत 52 करोड़ से अधिक खाते खोलकर नागरिकों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में लाया गया है। इससे गरीब वर्ग के नागरिकों के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला है। पूरे भारत में 11,000 से अधिक जनऔषधि केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो 50-90 प्रतिशत रियायती दरों पर आवश्यक दवाएं प्रदान कर रहे हैं। अंत में यह कहा जा सकता है कि भारत आर्थिक क्षेत्र में आज पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रहा है एवं अपनी विकास दर को 10 प्रतिशत के ऊपर ले जाने के भरसक प्रयास कर रहा है। इससे निश्चित ही भारत शीघ्र ही पहिले विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं इसके बाद वर्ष 2027 तक भारत एक विकसित राष्ट्र भी बन जाएगा। प्रहलाद सबनानी Read more » India creates new world records every day in the economic field
आर्थिकी लेख भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती उत्पादों की मांग April 30, 2024 / April 30, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत में आज भी लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है एवं अपने जीवन यापन के लिए मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र पर ही आश्रित रहती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार किये जा रहे विकास कार्यों के चलते इन क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत व्यय की जाने वाली राशि में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। इससे, ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर निर्मित होने लगे हैं एवं ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कुछ कम हुआ है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के खंडकाल में शहरों से ग्रामीण इलाकों की ओर शिफ्ट हुए नागरिकों में से अधिकतर नागरिक अब ग्रामीण क्षेत्रों में ही बस गए हैं एवं अपने विशेष कौशल का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को प्रदान कर रहे हैं। हाल ही में जारी किए गए कुछ सर्वे प्रतिवेदनों के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग की एक नई कहानी लिखी जा रही है क्योंकि अब विभिन्न उत्पादों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। उपभोक्ता वस्तुओं एवं ऑटो निर्माता कम्पनियों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल ही के समय में उपभोग की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं एवं दोपहिया एवं चार पहिया वाहनों (ट्रैक्टर सहित) की मांग में तेजी दिखाई दे रही है, जो कि वर्ष 2023 में लगातार कम बनी रही थी। यह संभवत: रबी फसल के सफल होने के चलते भी सम्भव हो रहा है। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने भी हाल ही में सम्पन्न अपनी द्विमासिक मोनेटरी पॉलिसी की बैठक में रेपो दर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं की है, ताकि बाजार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बाजार में, उत्पादों की मांग विपरीत रूप से प्रभावित नहीं हो, ताकि इससे अंततः वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश के आर्थिक विकास की दर भी अच्छी बनी रहे। भारत में पिछले कुछ समय से ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों की मांग, शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध मांग की तुलना में कम ही बनी रही है। परंतु, वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के बाद से इसमें कुछ परिवर्तन दिखाई दिया है एवं अब ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में तेजी दिखाई देने लगी है। यह तथ्य विकास के कुछ अन्य सूचकांकों से भी उभरकर सामने आ रहा है। जनवरी-फरवरी 2024 माह में दोपहिया वाहनों की बिक्री में, पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान की बिक्री की तुलना में, 30.3 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान दोपहिया वाहनों की बिक्री में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है, जो हाल ही के कुछ वर्षों में अधिकतम वृद्धि दर मानी जा रही है। दोपहिया वाहनों की बिक्री ग्रामीण इलाकों (लगभग 10 प्रतिशत) में शहरी इलाकों (लगभग 7 प्रतिशत) की तुलना में अधिक रही है। महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले रोजगार के अवसरों की मांग में भी फरवरी-मार्च 2024 माह के दौरान 9.8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को रोजगार के अवसर अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध हो रहे हैं। इसी प्रकार, ट्रैक्टर की बिक्री में भी जनवरी-फरवरी 2024 माह के दौरान 16.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में कुल 892,313 ट्रैक्टर की बिक्री हुई है जो पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 की तुलना में 7.5 प्रतिशत अधिक है। भारत के मौसम विभाग द्वारा जारी की गई भविष्यवाणी के अनुसार, वर्ष 2024 के मानसून मौसम के दौरान भारत में मानसून की बारिश के सामान्य से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना है। इससे भारत के किसानों में हर्ष व्याप्त है क्योंकि मानसून के अच्छे होने से खरीफ की फसल के भी बहुत अच्छे रहने की सम्भावना बढ़ गई है। मौसम विभाग के सोचना है कि इस वर्ष अल नीनो के स्थान पर ला नीना का प्रभाव दिखाई देगा। अल नीनों के प्रभाव में देश में बारिश कम होती है एवं ला नीना के प्रभाव में देश में बारिश अधिक होती है। साथ ही, भारतीय किसान अब तिलहन, दलहन एवं बागवानी की फसलों की ओर भी आकर्षित होने लगे हैं। दालों, वनस्पति, फलों एवं सब्जियों के अधिक उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि दृष्टिगोचर है। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए ई-पोर्टल के बनाए जाने के बाद से तो भारतीय किसान अपनी फसलों को वैश्विक स्तर पर सीधे ही बेच रहे हैं और अपने मुनाफे में वृद्धि दर्ज कर रहे हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों की मांग अब वैश्विक स्तर पर भी होने लगी है एवं खाद्य पदार्थों के निर्यात में भी नित नए रिकार्ड बनाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग सामान्यतः अच्छे मानसून के पश्चात अच्छी फसल एवं विभिन्न सरकारों, केंद्र एवं राज्य सरकारों, द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों पर किए जा रहे खर्चो में बढ़ौतरी के चलते ही सम्भव होती है। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लागू की गई विकास की विभिन्न योजनाओं पर व्यय में लगातार वर्ष दर वर्ष वृद्धि की जा रही है एवं इसके लिए केंद्रीय बजट में भी बढ़े हुए व्यय का प्रावधान प्रति वर्ष किया जा रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं इन इलाकों में विभिन्न उत्पादों की मांग भी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। नीलसन द्वारा किए गए एक सर्वे के यह बताया गया है कि जनवरी एवं फरवरी 2024 माह में भारत में विभिन्न उत्पादों की शहरी क्षेत्रों में मांग 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। विशेष रूप से फरवरी 2024 के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादों की मांग में वृद्धि लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है। रबी की फसल के भी अच्छे रहने की सम्भावना बलवती हुई है जिसके कारण किसानों की मनोदशा भी सकारात्मक बन रही है और यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश की आर्थिक वृद्धि दर को बलवती करने के मुख्य भूमिका निभाने जा रही है। आज देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है यदि ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत नागरिकों की मनोवृत्ति सकारात्मक हो रही है तो निश्चित ही वित्तीय वर्ष 2024-25, आर्थिक विकास की दृष्टि से अतुलनीय परिणाम देने वाला वर्ष साबित होने जा रहा है। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी राजनीति विकसित देश भारत के आर्थिक दर्शन को लागू कर अपनी आर्थिक समस्याओं का हल निकाल सकते हैं April 20, 2024 / April 20, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment विश्व के कुछ विकसित देश, विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन, भारत को समय समय पर आर्थिक क्षेत्र में अपना ज्ञान प्रदान करते रहे हैं। परंतु, अब विश्व के आर्थिक धरातल पर परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं और भारत की स्थिति इस संदर्भ में बहुत सुदृढ़ होती जा रही है वहीं विकसित देशों की स्थिति लगातार बिगड़ती […] Read more » Developed countries can solve their economic problems by implementing India's economic philosophy.
आर्थिकी राजनीति भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है April 18, 2024 / April 18, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वर्ष 1991 में भारत के पास केवल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था जो केवल 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। वहीं, आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है एवं यह पूरे एक वर्ष भर के आयात के लिए पर्याप्त है। आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार […] Read more » भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
आर्थिकी राजनीति वित्तीयवर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा 36 प्रतिशत कम हुआ April 17, 2024 / April 17, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी दर्ज हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत के व्यापार घाटे में आई 36 प्रतिशत की कमी के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है। भारत का कुल व्यापार घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 के 12,162 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम होकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में वस्तुओं का कुल आयात 67,724 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 71,597 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.41 प्रतिशत कम है। जबकि वस्तुओं के कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मामूली 3.11 प्रतिशत गिरकर 43,706 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं। देश के कुल निर्यात एवं आयात के बीच के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान देश में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के अंतर का व्यापार घाटा 24,017 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। परंतु, यदि वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़ों में सेवाओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़े भी जोड़ दिए जाएं तो स्थिति बहुत अधिक सुधर जाती है। भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष के उच्चत्तम रिकार्ड स्तर से भी आगे बढ़कर 77,668 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है, यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में 77,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान किया गया सेवाओं का निर्यात, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 33,962 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, भी शामिल है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, औषधियों एवं इंजीनीयरिंग वस्तुओं का अच्छा प्रदर्शन रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,355 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2,912 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.64 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार, दवाओं एवं औषधियों का निर्यात भी 9.67 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,539 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2,785 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, इंजीनीयरिंग वस्तुओं का निर्यात भी 2.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10,932 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। कुल मिलाकर, भारत से वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान निर्यात में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, दवाएं एवं चिकित्सा, इंजीनियरिंग उत्पादों, लौह अयस्क (वृद्धि दर 117.74 प्रतिशत), सूती धागा (यार्न एवं फैब्रिक में वृद्धि दर 6.71 प्रतिशत), फल एवं सब्जी (वृद्धि दर 13.86 प्रतिशत), तम्बाकू (19.46 प्रतिशत), मांस, डेयरी और पौलट्री उत्पाद (12.34 प्रतिशत), अनाज एवं विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं (8.96 प्रतिशत), मसाला (12.30 प्रतिशत), तिलहन (7.43 प्रतिशत), आयल मील्स (7.01 प्रतिशत), हथकरघा उत्पाद एवं सेरेमिक उत्पाद तथा कांच के बर्तनों (14.44 प्रतिशत) के निर्यात के चलते सम्भव हो सकी है। साथ ही, यह वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के प्रमुख निर्यात बाजार में अमेरिका, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूरोपीयन यूनियन देशों, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, नीदरलैंड, चीन व जर्मनी जैसे देशों के शामिल होने से भी सम्भव हो सका है। वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव के चलते भी विशेष रूप से मार्च 2024 माह में तो भारत से वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने उच्चत्तम स्तर 4,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वस्तुओं के आयात मार्च 2024 माह में 5.98 प्रतिशत की कमी दर्ज करते हुए हुए 5,728 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर नीचे आ गए हैं। इस प्रकार मार्च 2024 माह में वस्तुओं का व्यापार घाटा लगातार कम होकर केवल 1,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रह गया है। इसकी पूर्ति सेवाओं के क्षेत्र से निर्यात में हो रही लगातार बढ़ौतरी से सम्भव हो रही है। अब तो सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत कुल विदेश व्यापार में आधिक्य की स्थिति भी हासिल कर ले। वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के साथ एवं वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात में लगातार हो रही कमी के चलते यह सम्भव हो सकता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कुल व्यापार घाटे (वस्तुओं एवं सेवाओं को मिलाकर) में आई भारी कमी के चलते अब यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की मांग भी बढ़ सकती है और पिछले कई दशकों के दौरान भारतीय रुपए में आ रही लगातार गिरावट को रोककर अब भारतीय रुपया न केवल स्थिर हो जाएगा (वैसे पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान भारतीय रुपया 83 रुपए प्रति डॉलर के आसपास लगभग स्थिर तो हो ही चुका है) बल्कि भारतीय रुपए की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती है। भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के साथ विनिमय दर वर्ष 1982 में 9.46 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से 31 मार्च 2023 में 82.17 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई थी। परंतु, पिछले एक वर्ष के दौरान यह विनिमय दर लगभग स्थिर ही रही है। दूसरे, अब कई देश भारत के साथ विदेशी व्यापार को रुपए एवं उन देशों की स्वयं की मुद्रा में करने को सहमत हो रहे हैं। जिसके कारण भारत एवं इन देशों के बीच होने वाले विदेशी व्यापार का भुगतान करने हेतु अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होगी, बल्कि भारतीय रुपए में ही भुगतान सम्भव हो सकेगा। इस प्रकार के व्यवहार यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते हैं तो विश्व में विडालरीकरण की प्रक्रिया को भी गति मिल सकती है। भारतीय रुपए में व्यापार करने हेतु रूस, सिंगापुर, ब्रिटेन, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर सहित लगभग 32 देशों ने भारत के साथ समझौता किया है एवं भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना वोस्ट्रो खाता भी खोल लिया है ताकि इन देशों को भारत के साथ किए जाने वाले विदेशी व्यवहारों के निपटान को भारतीय रुपए में करने में आसानी हो सके। प्रहलाद सबनानी Read more »
आर्थिकी लेख भारत का सकल घरेलू उत्पाद अगले 50 वर्षों में 52 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने की सम्भावना April 15, 2024 / April 15, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment गोल्डमेन सेच्स नामक अंतरराष्ट्रीय निवेश संस्थान ने अपने एक रिसर्च पेपर में बताया है कि आगे आने वाले 50 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 52 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। इस प्रकार भारत इस संदर्भ में अमेरिका को भी पीछे छोड़ते हुए विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। वर्तमान में भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक आदि विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने भी आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक वृद्धि दर को 7.2 प्रतिशत रहने की प्रबल संभावनाएं जताईं हैं। जबकि, आज विश्व के कई देश, विशेष रूप से ब्रिटेन, जर्मनी आदि, आर्थिक संकुचन के दौर से गुजर रहे हैं। रूस यूक्रेन युद्ध के चलते कई विकसित देश तो ऊर्जा की कमी के संकट से जूझ रहे हैं। भारत के विदेशमंत्री, डॉक्टर एस जयशंकर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व के लगभग समस्त सशक्त देशों के साथ अच्छे सम्बंध बनाने में सफल रहे हैं। आज रूस को भी भारत की आवश्यकता है तो अमेरिका को भी। रूस, भारत को कच्चे तेल एवं सुरक्षा के लिए भारी मात्रा में शस्त्र उपलब्ध कराता है। वर्ष 2022 में भारत ने रूस से 4,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सामान आयात किया था। वर्ष 2023 में यह बढ़कर 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर होने की प्रबल सम्भावना है। वहीं अमेरिका, भारत को अपना स्ट्रेटेजिक सहयोगी मानता है। आज विश्व की समस्त बड़ी शक्तियां भारत के साथ सौहार्द पूर्ण सम्बंध चाहती हैं। रूस, अमेरिका, यूरोपीयन देश एवं अरब देश भारत के साथ अपने व्यापार को विस्तार देना चाहते हैं। रूस भी भारत के साथ अच्छे सम्बंध चाहता है तो यूक्रेन भी। उधर इजराईल भी भारत के साथ अच्छे सम्बंध चाहता है तो इरान भी। भारत जी-20 समूह का सदस्य है तो भारत यू2आई2 एवं ब्रिक्स का भी सदस्य है। इस प्रकार कुल मिलाकर भारत का डंका आज पूरे विश्व में बज रहा है। आज भारत के पास विश्व की चौथी सबसे बड़ी फौज है। पश्चिमी बॉर्डर पर चीन से युद्ध की स्थिति में भारत आज इससे निपटने को पूर्णत: तैयार है। भारत के पास आज युवा जनबल है। भारत की 66 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष की कम आयु की है। 40 प्रतिशत जनसंख्या 13 से 35 वर्ष के बीच में है। भारत के पास 35 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या अमेरिका की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। इसके विपरीत चीन, जापान, इटली, फ्रान्स आदि कई देशों की जनसंख्या अब धीमे धीमे कम हो रही है। इन देशों में आर्थिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए आज युवाओं की सख्त आवश्यकता है जो पूरे विश्व में केवल भारत ही उपलब्ध करा सकता है। वर्ष 2064 तक भारत की जनसंख्या बढ़ती रहेगी, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार वैश्विक स्तर पर भारत विश्व में विकास के इंजन के रूप में अपनी भूमिका लम्बे समय तक निभाता रहेगा। उक्त संदर्भ में दूसरा सबसे बड़ा कारण बताया गया है, भारत में हाल ही के समय में किया गया डिजिटलीकरण। इससे देश के ग्रामीण इलाकों में भी नागरिकों की दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ गई है। भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की वित्तीय एवं बैंकिंग संस्थानों द्वारा भरपूर आर्थिक सहायता की जा रही है इससे यह उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं एवं देश में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित कर रहे हैं। पूर्व में केवल बड़े उद्योगों को ही बैकों द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती रही है परंतु भारत में अब यह ट्रेंड बदला है। कोविड महामारी के बाद से तो इस सम्बंध में बड़ा बदलाव देखने में आया है। डिजिटलीकरण के कारण छोटे छोटे व्यवसाईयों की क्रेडिट हिस्ट्री निर्मित हो रही है जिसके कारण बैकों को इन छोटे छोटे व्यापारियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में आसानी हो रही है। ‘आधार’ ने तो देश के समस्त नागरिकों की एक अलग पहचान ही बना दी है। यूपीआई प्लेटफोर्म ने भी इस संदर्भ में ग्रामीण इलाकों में रोकड़ के उपयोग को कम कर डिजिटल प्लेटफोर्म पर वित्तीय व्यवहारों को हस्तांतरित किया है। छोटे छोटे व्यवसाईयों, किसानों, सामान्य नागरिकों को भी वित्तीय प्लेटफोर्म पर लाने में यह डिजिटलीकरण बहुत सफल रहा है। इससे वित्तीय समावेशन का कार्य भी आसान बन पड़ा है। भारत में डिजिटल व्यवहारों की संख्या आज संयुक्त रूप से अमेरिका, चीन एवं यूरोप से भी अधिक है। जबकि अमेरिका, चीन एवं यूरोप के देश भारत से अधिक विकसित देश हैं। इससे यह झलकता है कि भारत ने डिजिटलीकरण के मामले में पूरे विश्व को पीछे छोड़ दिया है। अब तो भारत का यूपीआई सिस्टम अमेरिका के स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम को भी पीछे छोड़कर वैश्विक स्तर पर डिजिटलीकरण के मामले में अपनी धाक जमाने की ओर आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत का यूपीआई सिस्टम सिंगापुर, फ्रान्स, श्रीलंका एवं यूएई में लागू किया जा चुका है। भारत के प्रधानमंत्री ने फ्रान्स में भारतीय यूपीआई सिस्टम का उद्घाटन किया था, ताकि फ्रान्स में जाने वाले पर्यटक यूपीआई सिस्टम के माध्यम से फ्रान्स में वित्तीय व्यवहार कर सकें। न्यूजीलैंड में भी यूपीआई को लागू किए जाने पर विचार किया जा रहा है। उक्त संदर्भ में तीसरा सबसे बड़ा कारण है चीन के, विस्तरवादी नीतियों के चलते, विश्व के अन्य देशों के साथ लगातार खराब होते सम्बंध। आज विश्व के कई देश चीन के साथ आर्थिक व्यवहार करने से कतराने लगे हैं। यह स्थिति भारत के आर्थिक विकास को गति दे सकती है क्योंकि चीन+1 की नीति का अनुपालन विश्व के कई विकसित देश आज करने लगे हैं एवं ये देश भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में अपनी इकाईयों को स्थापित करते जा रहे हैं। ताईवान आदि देशों पर चीन की नीति की पूरे विश्व में भर्त्सना हो रही है। चीन के अपने बॉर्डर पर लगने वाले लगभग समस्त देशों के साथ चीन के सम्बंध अच्छे नहीं हैं। इन देशों का चीन पर अब भरोसा समाप्त सा होता जा रहा है। ऐपल एवं टेस्ला जैसी कम्पनियां अब भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं। ऐपल ने तो अपने आईफोन-15 का उत्पादन भारत में चालू भी कर दिया है। इससे भारत में न केवल रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं बल्कि विदेशी निवेश भी बढ़ रहा है। आज भारत में विदेशी मुद्रा भंडार 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आसपास रिकार्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। साथ ही, आज भारत का पूंजी बाजार (स्टॉक मार्केट) विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है। भारत द्वारा अपने बुनियादी ढांचे को विकसित करने में भारी भरकम राशि खर्च की जा रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 11.11 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का बजट बुनियादी ढांचे के लिए निर्धारित किया गया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि इस मद पर खर्च की गई थी। अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार, जम्मू कश्मीर जैसे अन्य कई धार्मिक स्थलों को विकसित किया जा रहा है ताकि धार्मिक पर्यटन को भारत में बढ़ावा दिया जा सके। इन शहरों के बुनियादी ढांचे का अतुलनीय विकास किया जा रहा है। जिससे रोज़गार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। एयरपोर्ट की संख्या पिछले 10 वर्षों में दुगने से भी अधिक होकर 150 तक पहुंच गई है और इसे वर्ष 2025 तक 200 की संख्या तक ले जाया जा रहा है। रेल्वे का विद्युतीकरण किया गया है। रेलगाड़ियों की स्पीड बढ़ाई गई है, जिससे देश में कार्यक्षमता के स्तर में सुधार हो रहा है। भारत के बड़े शहरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है। आज भारत का रोड नेट्वर्क चीन से भी अधिक होकर विश्व में केवल अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर आ गया है। भारत सरकार की वर्ष 2024 से वर्ष 2030 के बीच देश के बुनियादी ढांचे को विकसित करने पर 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च करने की योजना है। इस प्रकार भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्ष 2027 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, ऐसी सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है। प्रहलाद सबनानी Read more » India's GDP likely to reach US$52 trillion in next 50 years
आर्थिकी राजनीति मोदी 3 की आर्थिक चुनौतियाँ April 15, 2024 / April 15, 2024 by शिवेश प्रताप सिंह | Leave a Comment – शिवेश प्रताप पिछले कुछ समय से तमाम अंतरराष्ट्रीय आर्थिक पंडितों को धता बताते हुए भारत, वैश्विक अपेक्षाओं से भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है। इसी के फलस्वरुप पूरी दुनिया अब भारत को निर्विवाद रूप से सबसे तेजी से प्रगति करने वाली अर्थव्यवस्था मान चुकी है। इसी क्रम में भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के बाद तेजी से चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। परंतु इसी के साथ अपने प्रतिस्पर्धी एवं पड़ोसी देश चीन के साथ अपनी तुलना करने पर हमें कुछ कठोर यथार्थ का भी सामना करना पड़ता है। आज नहीं तो कल वैश्विक मंच पर चीन को पछाड़ने के लिए हमें ऐसे कठोर यथार्थ को स्वीकार करते हुए उन सभी मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जहां हम चीन से पीछे रह गए हैं। एक और जहां चीन का प्रति कैपिटा इनकम 12000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है वहीं दूसरी ओर भारत का प्रति कैपिटा इनकम मात्र 2200 अमेरिकी डॉलर है। एक तरफ चीन ने अपने देश से गरीबी का उन्मूलन कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर भारत में गरीबी एक यक्ष प्रश्न है। देश की आजादी के समय भारत की स्थिति चीन से काफी बेहतर थी, परंतु भारत के अर्थव्यवस्था के विकास में हुई कुछ भारी गलतियों के कारण हम चीन से विकास की रफ्तार में बहुत पीछे छूट गए थे जिसे पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में सरकार के अथक प्रयासों के बलपर बदतर होने से रोकते हुए सुधारों की प्रक्रिया प्रारम्भ हो पाई है और दुनिया उसके प्रारंभिक रुझान कुछ समय से देख रही है। परन्तु मोदी-3 के लिए भी आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियाँ कम नहीं […] Read more » Economic challenges of Modi 3 मोदी 3 की आर्थिक चुनौतियाँ
आर्थिकी राजनीति भारतीय अर्थव्यवस्था लम्बी छलांग लगाने को तैयार April 4, 2024 / April 4, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही (अक्टोबर-दिसम्बर 2023) में भारत में आर्थिक विकास की दर 8.4 प्रतिशत रही है। कुछ विदेशी अर्थशास्त्री भारत की आर्थिक विकास दर को कमतर आंकते हुए दिखाई दे रहे हैं जबकि यह लगातार तिमाही दर तिमाही आगे बढ़ती ही जा रही है। अब तो विश्व की कई आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों ने भी वर्ष 2024 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर के सम्बंध में अपने अनुमानों को बेहतर किया है, परंतु अभी भी इन संस्थानों के यह अनुमान वास्तविक आर्थिक विकास दर की तुलना में बहुत कम हैं। दरअसल, विदेशी आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा विशेष रूप से भारत की आर्थिक विकास दर को आंके जाने के सम्बंध में उपयोग किए जा रहे मॉडल अब बोथरे साबित हो रहे हैं। हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। उदाहरण के लिए अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं। परंतु, यह तथ्य विदेशी आर्थिक एवं वित्तीय संस्थानों को दिखाई नहीं दे रहा है, जो कि केवल भारत की ही विशेषता है। उक्त तथ्यों के अतिरिक्त अन्य कई कारक भी भारत की आर्थिक विकास दर को अब 9 से 10 प्रतिशत की सीमा में ले जाने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। आज भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत से आगे चल रही विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में ठहराव आ गया है। जैसे अमेरिका एवं यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं आगे आने वाले समय में प्रतिवर्ष केवल 2 अथवा 3 प्रतिशत की दर से ही आगे बढ़ पाएंगी। इसी प्रकार चीन की अर्थव्यवस्था भी अब ढलान पर दिखाई दे रही है। जापान एवं जर्मनी की अर्थव्यवस्थाओं में तो आर्थिक मंदी देखी जा रही है। इस प्रकार विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत के अमृत काल में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही तेज गति आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। वैसे भी भारत में अमृत काल तो अभी शुरू ही हुआ है एवं यह अगले 23 वर्षों अर्थात वर्ष 2047 तक यह खंडकाल जारी रहेगा। कुछ अर्थशास्त्री तो भारत के अमृत काल के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था के इसी तरह तेज गति से आगे बढ़ते रहने की संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं क्योंकि भारत में वर्ष 1991-92 में प्रारम्भ किए आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र के सुधार कार्यक्रम को अब 32 वर्ष पूर्ण हो गए हैं, हालांकि वर्ष 1991-92 के बाद भी भारत में आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्रों में सुधार कार्यक्रम लगातार जारी रहे हैं। अत: स्थिर हो चुके इन सुधार कार्यक्रमों के फल खाने का समय अब आ गया है। भारत द्वारा वर्ष 1947 में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, पिछले 77 वर्षों के दौरान भारत में लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है एवं आज पूरे विश्व में भारत इस दृष्टि से प्रथम पायदान पर खड़ा है। भारत में लोकतंत्र के लगातार मजबूत होते जाने से विदेशी निवेशकों का भारत में विश्वास बढ़ा है जिसके चलते भारत में उद्योग जगत को पूंजी की कमी नहीं के बराबर रही है। पर्याप्त पूंजी की उपलब्धता के चलते भारत में आर्थिक विकास को गति ही मिली है। भारत में लगातार तेज हो रही आर्थिक विकास की दर के कारण भारत में बिलिनियर (100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति वाले नागरिक) की संख्या में सुधार हुआ है। पिछले वर्ष भारत में 94 नए बिलिनियर बने हैं। जबकि चीन में 115 बिलिनियर कम हुए हैं। विश्व में बिलिनियर की संख्या के मामले में भारत चीन एवं अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है। भारत में आज 271 बिलिनियर हैं जबकि चीन में 814 एवं अमेरिका में 800 बिलिनियर हैं। मुंबई महानगर में तो अब 92 बिलिनियर निवास कर रहे हैं, जो चीन के बीजिंग महानगर के 91 बिलिनियर से अधिक है। इस प्रकार अब एशिया के किसी भी महानगर में सबसे अधिक बिलिनियर भारत के मुंबई महानगर में निवास कर रहे हैं। पूरे विश्व भारत के मुंबई महानगर से आगे अब केवल अमेरिका का न्यूयॉर्क महानगर (119 बिलिनियर) एवं ब्रिटेन का लंदन महानगर (97 बिलिनियर) ही है। वर्ष 2022-23 में चीन में बिलिनियर की संख्या घटी है। चीन में बिलिनियर की सम्पत्ति 15 प्रतिशत से कम हुई है। जबकि भारत में बिलिनियर की सम्पत्ति में वृद्धि दर्ज हुई है। यह भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास दर के चलते सम्भव हो सका है। एक और कारक जो आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक विकास दर को लगातार उच्च स्तर पर बनाए रखने में सहायक हो सकता है वह है भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय का लगभग 2500 अमेरिकी डॉलर का होना है जो चीन में 13,000 से 14,000 अमेरिकी डॉलर के एवं दक्षिणी कोरीया में 32,000 से 33,000 अमेरिकी डॉलर के बीच की तुलना में बहुत कम है। इस दृष्टि से भारत को अभी बहुत आगे तक जाना है और यह केवल आर्थिक विकास की औसत दर को 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष के आसपास बनाए रखने से ही सम्भव होगा। इस प्रकार भारतीय नागरिकों में अपनी औसत आय को विकसित देशों की तुलना में बेहतर करने की अभी बहुत गुंजाईश है और यह भावना भारत की आर्थिक विकास दर को बढ़ाए रखने में सहायक होगी। दूसरे, भारत में तकनीकी क्षेत्र विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास की दर बहुत प्रभावकारी है, डिजिटल क्षेत्र में तो भारत आज पूरे विश्व को ही राह दिखाता नजर आ रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के चलते भारत में विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों, व्यवसाईयों, प्रबंधकों, कृषकों आदि की उत्पादकता में भी सुधार दृष्टिगोचर है जो निश्चित ही भारत में आर्थिक विकास की गति को तेज करने में सहायक होगा। आज अमेरिका एवं कनाडा में निवासरत एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीय मूल के नागरिक वापिस भारत आकर बसने के बारे में गम्भीरता से विचार कर रहे हैं क्योंकि अब अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में लगातार तेज हो रही आर्थिक विकास की दर उन्हें आकर्षित कर रही है। उन्हें आज भारत में अधिक आय अर्जन के अतिरिक्त साधन उत्पन्न होते दिखाई दे रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, लगभग 38,000 भारतीय जो अमेरिका में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं वे अब भारत वापिस आना चाहते हैं क्योंकि अमेरिका में कई कम्पनियां (गूगल, एमेजोन, माइक्रोसोफ्ट एवं मेटा सहित) अपने कर्मचारियों की छंटनी करती दिखाई दे रही हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था तो स्पष्टत: आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुकी है। जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने अक्टोबर-दिसम्बर 2023 की तिमाही में 8.4 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल की है। कई विदेशी वित्तीय संस्थानों ने वर्ष 2024 में भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमान को आगे बढ़ा दिया है। अब तो भारत में, ग्रामीण इलाकों सहित, विभिन्न उत्पादों के खपत का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा विकास कार्यों के लिए अपने बजट में खर्च को लगातार बढ़ाया जा रहा है जिससे सामान्य नागरिकों के हाथों में अधिक पैसा पहुंच रहा है तथा इससे नागरिकों के बीच विभिन्न उत्पादों के खपत का स्तर बढ़ता दिखाई दे रहा है। शहरी उपभोक्ता तो रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं के साथ साथ चार पहिया वाहन एवं मकान आदि खरीदने पर भी भारी मात्रा में पैसा खर्च कर रहे हैं। घरेलू खपत में बढ़ौतरी के साथ ही भारत से निर्यात में भी तेजी देखी जा रही है। फरवरी 2024 माह में निर्यात का स्तर पिछले 11 माह में सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार का अनुमान है कि भारत वित्तीय वर्ष 2023-24 में निर्यात के क्षेत्र में अपने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगा। मोर्गन स्टैनली के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर यह है कि भारत में निवेश : सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में एक बार फिर सुधार दिखाई दे रहा है। यह अनुपात आज 34 प्रतिशत तक पहुंच गया है और उम्मीद की जा रही है वित्तीय वर्ष 2027 तक यह बढ़कर 36 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। जिससे भारत की आर्थिक विकास दर को और अधिक बल मिलेगा। हां, भारत में एक क्षेत्र अभी भी ऐसा है जिसके लिए चिंता होना स्वाभाविक है। वह क्षेत्र है आय की असमानता का। भारत की 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की 77 प्रतिशत सम्पत्ति जमा हो गई है। एक रिसर्च पेपर में यह बताया गया है कि भारत में आर्थिक विकास के साथ साथ आर्थिक असमानता भी बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक भारत की एक प्रतिशत आबादी की देश की कुल आय एवं सम्पत्ति में 22.6 प्रतिशत एवं 40.1 प्रतिशत की भागीदारी रही है। आय की असमानता को देश में आर्थिक विकास को गति देकर ही दूर किया जा सकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रहलाद सबनानी Read more » भारतीय अर्थव्यवस्था लम्बी छलांग लगाने को तैयार
आर्थिकी प्रवक्ता न्यूज़ राजनीति भारत में तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने चौंकाया है March 1, 2024 / March 1, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने भारत सहित विश्व के समस्त आर्थिक विश्लेशकों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत में सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है जबकि प्रथम तिमाही के दौरान वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत एवं द्वितीय तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की रही थी। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही थी। साथ ही, क्रेडिट रेटिंग संस्थान इकरा ने इस वर्ष तृतीय तिमाही में 6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान एवं भारतीय स्टेट बैंक ने भी 6.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान जताया था। कुल मिलाकर, लगभग समस्त वित्तीय संस्थानों के अनुमानों को झुठलाते हुए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत की रही है। हम सभी के लिए हर्ष का विषय तो यह है कि विनिर्माण इकाईयों की वृद्धि दर 4.8 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही में 11.6 प्रतिशत हो गई है तथा निर्माण के क्षेत्र में वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत की रही है। साथ ही, खनन के क्षेत्र में वृद्धि दर 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.5 प्रतिशत की रही है। यह तीनों ही क्षेत्र रोजगार सृजन के क्षेत्र माने जाते हैं। अतः देश में अब रोजगार के नए अवसर भी निर्मित हो रहे हैं। विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों में वृद्धि दर आकर्षक रही है। कृषि का क्षेत्र जरूर, विपरीत मानसून एवं अल नीनो के प्रभाव के चलते, विपरीत रूप से प्रभावित हुआ है एवं कृषि के क्षेत्र में वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत ऋणात्मक रही है। हालांकि वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 2022-23 तक कृषि के क्षेत्र में औसत वृद्धि दर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष से अधिक की रही है। परंतु, प्रकृति के आगे तो किसी की चलती नहीं है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के विशेष रूप से उद्योग क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर के आंकड़ों को देखकर तो अब यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारत आगे आने वाले वर्षों में 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर हासिल करने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं अगले लगभग 4 साल के अंदर ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, वर्तमान में भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। साथ ही, भारतीय शेयर बाजार भी बाजार पूंजीकरण के मामले में वर्तमान में विश्व में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। क्योंकि, भारत में आर्थिक विकास की तीव्र गति को देखते हुए विदेशी निवेशक एवं विदेशी निवेश संस्थान, दोनों ही भारतीय पूंजी बाजार में अपने निवेश को निश्चित ही बढ़ाएंगे। भारत में वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही में अनुमानों से कहीं अधिक वृद्धि दर हासिल करने के पीछे दरअसल हाल ही के समय में आर्थिक क्षेत्र के साथ साथ सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन भी मुख्य भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं, इस ओर सामान्यतः विदेशी अर्थशास्त्रियों एवं वित्तीय संस्थानों का ध्यान शायद नहीं जा रहा है। हाल ही के समय में भारत में अब विभिन्न त्यौहार अत्यधिक उत्साह के साथ मनाए जा रहे हैं। इन त्यौहारों के मौसम एवं शादियों के मौसम में भारतीय परिवारों, विशेष रूप से मध्यम वर्गीय एवं उच्च वर्गीय परिवारों के खर्च में अपार वृद्धि हो रही है। इस खर्च का पूरा पैसा भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रहा है, जिससे आर्थिक वृद्धि दर में तेजी दिखाई देने लगी है। वर्ष 2023 में दीपावली त्यौहार के दौरान लगभग 4 लाख करोड़ रुपए की राशि भारतीय परिवारों द्वारा खर्च की गई थी। शादियों के दौरान भारतीय परिवारों द्वारा अतिरिक्त खर्च किया जाना भी केवल भारत की ही विशेषता है, अन्य देशों में शादियों के दौरान इस प्रकार के खर्च नहीं होते हैं। दूसरे, भारत में हाल ही के समय में धार्मिक पर्यटन में अपार वृद्धि देखने में आई है, क्योंकि इन क्षेत्रों की आधारभूत संरचना में आमूल चूल सुधार हुआ है। पर्यटन के बढ़ने से न केवल रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी अपार बल मिल रहा है। अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार, वृंदावन आदि धार्मिक स्थलों पर पर्यटकों की अपार वृद्धि दिखाई दे रही है। अयोध्या में तो प्रभु श्रीराम के मंदिर के शिलान्यास के बाद से लगातार औसतन प्रतिदिन 2 लाख से अधिक पर्यटक अयोध्या पहुंच रहे हैं। इससे न केवल स्थानीय बल्कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी बल मिल रहा है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में लगातार किए जा रहे सुधारों के चलते एवं पूंजीगत खर्च में लगातार की जा रही बढ़ौतरी से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में केंद्र सरकार द्वारा 10 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद पर खर्च की गई है जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में इस मद पर 7.5 लाख करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी। वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में पूंजीगत खर्च की राशि को बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। दूसरे, भारत में कर (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) के संग्रहण में भी अपार सुधार दिखाई दे रहा है। कर ढांचे को आसान बनाकर सम्बंधित नियमों के अनुपालन में सुधार कर, कर संग्रहण में 20 प्रतिशत के आसपास की वृद्धि हासिल की गई है। देश में अनौपचारिक क्षेत्र भी तेजी से औपचारिक क्षेत्र में बदल रहा है, इससे कर संग्रहण के साथ साथ रोजगार के अवसर भी औपचारिक क्षेत्र में अधिक निर्मित हो रहे हैं तथा विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ मिलते दिखाई दे रहे है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के खंडकाल के बाद से (वित्तीय वर्ष 2022 से वित्तीय वर्ष 2024 के बीच) भारत में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 38,257 रुपए की वृद्धि दर्ज हुई है एवं अब यह प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपए को पार कर गई है। इस दौरान प्रति व्यक्ति बचत एवं पूंजी निर्माण में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है। भारत में सकल बचत की दर वित्तीय वर्ष 2023 में 30.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 32.3 प्रतिशत से अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है, जो वित्तीय वर्ष 2014 के बाद से सबसे अधिक दर रहने वाली है। अब देश में पूंजी का उपयोग अधिक दक्षता के साथ किया जा रहा है। जिससे क्रमिक पूंजी-उत्पाद अनुपात में पर्याप्त सुधार हुआ है। यह अनुपात दर्शाता है कि अतिरिक्त उत्पाद के निर्माण में कितनी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होने वाली है। वित्तीय वर्ष 2012 में क्रमिक पूंजी-उत्पाद अनुपात 7.5 प्रतिशत था जो वित्तीय वर्ष 2023 में घटकर 4.4 प्रतिशत हो गया है। अतः देश में वर्तमान बचत दर को देखते हुए भारत आसानी से 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की विकास दर हासिल कर सकता है। कुल मिलाकर, अब भारतीयों को आर्थिक क्षेत्र में लगातार अच्छे समाचार मिलने लगे हैं क्योंकि भारत रोजाना किसी न किसी क्षेत्र में नित नए रिकार्ड बनाता दिखाई दे रहा है। इस प्रकार, अब भारतीयों को नित नए रिकार्ड सुनने की आदत बना लेनी चाहिए। प्रहलाद सबनानी Read more » भारत में तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने चौंकाया है