गजल मचलती तमन्नाओं ने December 14, 2018 / December 14, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ मचलती तमन्नाओं ने आज़माया भी होगा बदलती रुत में ये अक्स शरमाया भी होगा पलट के मिलेंगे अब भी रूठ जाने के बाद लड़ते रहे पर प्यार कहीं छुपाया भी होगा अंजाम-ए-वफ़ा हसीं हो यही दुआ माँगी थी इन जज़्बातों ने एहसास जगाया भी होगा सोचना बेकार जाता रहा बेवजह के शोर में तुम […] Read more » मचलती तमन्नाओं ने
गजल यकीं का यूँ बारबां टूटना September 25, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ यकीं का यूँ बारबां टूटना आबो-हवा ख़राब है मरसिम निभाता रहूँगा यही मिरा जवाब है मुनाफ़िक़ों की भीड़ में कुछ नया न मिलेगा ग़ैरतमन्दों में नाम गिना जाए यही ख़्वाब है दफ़्तरों की खाक छानी बाज़ारों में लुटा पिटा रिवायतों में फँसा ज़िंदगी का यही हिसाब है हार कर जुदा, जीत कर भी कोई तड़पता रहा नुमाइशी हाथों से फूट गया झूँठ का हबाब है धड़कता है दिल सोच के हँस लेता हूँ कई बार तब्दील हो गया शहर मुर्दों में जीना अज़ाब है ये लहू, ये जख़्म, ये आह, फिर चीखो-मातम तू हुआ न मिरा पल भर इंसानियत सराब है फ़िकरों की सहूलियत में आदमियत तबाह हुई पता हुआ ‘राहत’ जहाँ का यही लुब्बे-लुबाब है Read more » यकीं का यूँ बारबां टूटना ये आह ये जख़्म ये लहू
गजल न रख इतना नाजुक दिल September 19, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ इश्क़ किया तो फिर न रख इतना नाज़ुक दिल माशूक़ से मिलना नहीं आसां ये राहे मुस्तक़िल तैयार मुसीबत को न कर सकूंगा दिल मुंतकिल क़ुर्बान इस ग़म को तिरि ख़्वाहिश मिरि मंज़िल मुक़द्दर यूँ सही महबूब तिरि उल्फ़त में बिस्मिल तसव्वुर में तिरा छूना हक़ीक़त में हुआ दाख़िल कोई हद नहीं बेसब्र दिल जो कभी था मुतहम्मिल गले जो लगे अब हिजाब कैसा हो रहा मैं ग़ाफ़िल तिरे आने से हैं अरमान जवाँ हसरतें हुई कामिल हो रहा बेहाल सँभालो मुझे मिरे हमदम फ़ाज़िल नाशाद न देखूं तुझे कभी तिरे होने से है महफ़िल कैसे जा सकोगे दूर रखता हूँ यादों को मुत्तसिल Read more » इश्क तसव्वुर न रख इतना नाज़ुक दिल
गजल जवानी जो आई बचपन की हुड़दंगी चली गई September 4, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment रूपेश जैन ‘राहत जवानी जो आई बचपन की हुड़दंगी चली गई दफ़्तरी से हुए वाबस्ता तो आवारगी चली गई शौक़ अब रहे न कोई ज़िंदगी की भागदौड़ में दुनियाँ के दस्तूर में मिरि कुशादगी चली गई ज़िम्मेदारियों का वज़न ज्यूँ बढ़ता चला गया ईमान पीछे छूट गया और शर्मिंदगी चली गई भागते भागते दौलतें न […] Read more » आवारगी जवानी जो आई बचपन की हुड़दंगी चली गई शर्मिंदगी
गजल मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है September 4, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है उम्र के साथ जिन्दगी के ढंग बदलते देखा है वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान उनको भी पाँव उठाने के लिये सहारे के लिये तरसते देखा है जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग उन्ही नजरों को बरसात […] Read more » इंसान एक गजल -मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है पत्तो रोज जमाने
गजल मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था September 3, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ. रूपेश जैन मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ इज़हार करना चाहा था धुएँ सी उड़ा दी आरज़ू पल में यार ने मिरि तिरा इस्तिक़बाल शानदार करना चाहा था भले लोगो की बातें समझ न आईं वक़्त पे मैंने तो हर लम्हा जानदार करना चाहा था तिरे काम आ सकूँ इरादा था बस इतना सा तअल्लुक़ आपसे आबदार करना चाहा था इंतिज़ार क्यूँ करें फ़स्ल-ए-बहाराँ सोचकर चमन ये ‘राहत’ खुशबूदार करना चाहा था Read more » ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ फ़स्ल-ए-बहाराँ मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था
गजल एक गजल रक्षाबंधन पर August 24, 2018 / August 30, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment रिश्ते है कई दुनिया में,बहन का रिश्ता खास है बाँधती है जो धागा बहन,वह धागा कोई खास है लगाये रखती है बहन टकटकी,रक्षाबंधन के पर्व पर आयेगा उसका भाई जरुर,उसका यह एक विश्वास है सजाती है बहन जब थाली,राखी रोली और मिठाई से लगाती है जब प्यार से टीका,वह प्यार भी खास है खा […] Read more » एक गजल रक्षाबंधन पर बहन बाँधती है जो धागा बहन वह धागा कोई खास है
गजल एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी August 4, 2018 / August 4, 2018 by आर के रस्तोगी | 7 Comments on एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी खुद को जलाकर,दूसरो की जिन्दगी जलाती हूँ मैं बुझ जाती है माचिस,जलकर राख हो जाती हूँ मैं पीकर फेक देते है रास्ते में,इस कदर सब मुझको चलते फिरते हर मुसाफिर की ठोकरे खाती हूँ मैं करते है वातावरण को दूषित पीकर जो मुझे लेते है लुत्फ़ जिन्दगी का बदनाम होती हूँ मैं लिखी है वैधानिक […] Read more » एक अजीब रिश्ता पाती हूँ मैं एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी कागज तम्बाकू मैं उनकी सगी बहन हूँ
गजल एक गजल सच्चाई पर July 13, 2018 / July 13, 2018 by आर के रस्तोगी | 5 Comments on एक गजल सच्चाई पर कोई टोपी कोई पगड़ी कोई इज्जत अपनी बेच देता है मिले अच्छी रिश्वत,जज भी आज न्याय बेच देता है वैश्या फिर भी अच्छी है उसकी हद है अपने कोठे तक पुलिस वाला तो बीच चौराहे पर अपनी वर्दी बेच देता है जला दी जाती है,अक्सर बिटिया सुसराल में बेरहमी से जिस बेटी के खातिर बाप […] Read more » अस्तपताल एक गजल सच्चाई पर कोई टोपी कोई पगड़ी पुलिस बेनाम शहीदों
गजल कश्मीर समस्या समाधान पर एक गजल July 5, 2018 / July 5, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment 370 धारा क्या मिली कश्मीर को हिंदुस्तान से वह अपने आप को अलग समझने लगा हिंदुस्तान से कश्मीर पर ज्यादा खर्च करना अब मुनासिब नहीं दोस्तों गीत गाता है पाकिस्तान का,खाता है वह हिंदुस्तान से कश्मीर एक ऐसी बेवफा औरत है अपने आप में नैन मैटटके करने लगी है वह अब पाकिस्तान से कश्मीर छिनाल […] Read more » 370 धारा कश्मीर समस्या कश्मीरी पंडितो पाकिस्तान समाधान पर एक गजल
गजल कमी है परवरिश में इसलिए मनद्वार ऐसे हैं, May 14, 2018 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment कमी है परवरिश में इसलिए मनद्वार ऐसे हैं, नई कलियाँ मसलते हैं, कई किरदार ऐसे हैं। नहीं जलते वहाँ चूल्हे, यहाँ पकवान हैं ताजा, हमारी भी सियासत के नए हथियार ऐसे हैं। हकीकत जान पाए ना, वहम से ही शिला तोड़ी, यहाँ अच्छे भले से लोग कुछ बीमार ऐसे हैं। सिसक होगी ज़रा सी बस […] Read more » गुलाब चाँद धर्म पुरुष कुंठा बादशाह सिकन्दर महफ़िल शक्ल
गजल आज फिर बेटी लूटी है मौत ने उसको छुआ, May 14, 2018 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment कुलदीप विद्यार्थी 4.गज़ल आज फिर बेटी लूटी है मौत ने उसको छुआ, मुल्क मेरा हो चला जैसे कि, अपराधी कुँआ, जाति के झगड़े कहीं तो हैं कहीं दंगे यहाँ, मुस्कुराते देश को जैसे लगी हो बददुआ, दूर से सब देखने वालों सभी से प्रार्थना, मौत के नजदीक है यह मुल्क सब कीजे दुआ, दंश जिसको […] Read more » चूल्हा जाति झगड़े तब जले दंश बेटी लूटी मिला