कविता तो कोरोना क्यों होय || March 20, 2020 / March 20, 2020 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment साबुन से सब धोइये,अपने दोनों हाथ |कोरोना से छूट जायेगा,तुम्हारा साथ || जनता कर्फ़यु लगाईये,आगामी रविवार |कम हो जायेगा तुम पर,कोरोना का वार || डॉक्टर्स,नर्स का करो तुम प्रगट आभार |ये लोग सदा करते ,तुम्हारा ही उपकार || बुजर्गो को मत भेजिए,घर से तुम बाहर |झेल न पात है,ये कोरोना का तीखा वार || करो […] Read more »
कविता साहित्य क्यों राम नहीं तुम बन सके March 19, 2020 / March 19, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment क्यों राम नहीं तुम बन सके कारण तो बतला दो भैईया ? मातपिता से क्यों मुंह मोड़ा कारण तो समझा दो भैईया ? कमी कहॉ हुई उनकी ममता में क्यों बोलना वे भूले भैईया ? बहिन भाई से क्यों प्रीति तोड़ी अनमोल खजाना क्या पाया भैईया? जिस माता पिता ने जन्म दिया, अंधेरी उनकी हर […] Read more » क्यों राम नहीं तुम बन सके
कविता कवि सम्मेलन March 19, 2020 / March 19, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment स्वार्थपरायण होते आयोजक संग प्रचारप्रिय प्रायोजक भव्य मंच हो या कोई कक्ष उपस्थित होते सभी चक्ष सम्मुख रखकर अणुभाष करते केवल द्विअर्थी संभाष करता आरंभ उत्साही उद्घोषक समापन हेतु होता परितोषक करते केवल शब्दों का शोर चाहे वृद्ध हो या हो किशोर काव्य जिसकी प्रज्ञा से परे होता आनन्दित दिखते वही श्रोता करतल ध्वनि संग […] Read more » कवि सम्मेलन
कविता बेर कहाँ हैं झरबेरी के March 17, 2020 / March 17, 2020 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बाल वीर या पोगो ही, देखूंगी ,गुड़िया रोई। चंदा मामा तुम्हें आजकल, नहीं पूछता कोई। आज देश के बच्चों को तो, छोटा भीम सुहाता। उल्टा चश्मा तारक मेहता, का भी सबको भाता। टॉम और जेरी की जैसे, धूम मची है घर में। बाल गणेशा उड़ कर आते, अब बच्चों के मन में। कार्टून की गंगा […] Read more » बेर कहाँ हैं झरबेरी के
कविता तुम सबसे अंनूठी हो मॉ March 14, 2020 / March 14, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment तुम सबसे अंनूठी हो मॉ दुख आया तो दवा नहीं ली हारी नहीं, तू खुद से लडी थी पिताजी देखे, सख्त बहुत थे तनखा लाकर वे दादी को देते पाई पाई को तू तरसा करती मजबूरी थी तू मजदूरी करती बेकार हुये जब कपड़े पिता के झट सिलवाती,,रहे न हम उघडे वे भी क्या दिन […] Read more » तुम सबसे अंनूठी हो मॉ
कविता पिता के अश्रु March 14, 2020 / March 14, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment बहने लगे जब चक्षुओं से किसी पिता के अश्रु अकारण समझ लो शैल संतापों का बना है नयननीर करके रूपांतरण पुकार रहे व्याकुल होकर रो रहा तात का अंतःकरण सुन सकोगे ना श्रुतिपटों से हिय से तुम करो श्रवण अंधियारा कर रहे जीवन में जिनको समझा था किरण स्पर्श करते नहीं हृदय कभी छू रहे […] Read more » पिता के अश्रु
कविता खण्डहर लगता पुराना मकान March 12, 2020 / March 12, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment सदैव अपने बच्चों के भविष्य के लिए हर पिता बनाता है एक सुंदर सा मकान जिसमें वह अधिष्ठित करता है अपने इष्टदेव अपने कुलदेवता को । साल दिन महीने वर्ष के साथ बदलती है ऋतुए, सर्दी गर्मी ओर बरसात हर साल वह देवों को सुलाता है होली दीवाली नवरात्रि मनाता है गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी […] Read more » खण्डहर लगता पुराना मकान
कविता क्योंकि मैं सत्य हूं March 9, 2020 / March 9, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment मैं कल भी अकेला था आज भी अकेला हूं और संघर्ष पथ पर हमेशा अकेला ही रहूंगा मैं किसी धर्म का नहीं मैं किसी दल का नहीं सम्मुख आने से मेरे भयभीत होते सभी जानते हैं सब मुझको परंतु स्वीकार करना चाहते नहीं मैं तो सबका हूं किंतु कोई मेरा नहीं फिर भी मैं किसी […] Read more » क्योंकि मैं सत्य हूं
कविता शीशे का शहर होशंगाबाद March 7, 2020 / March 7, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment नर्मदातट पर बसा होशंगाबाद एक पारदर्शी शीशे का शहर है महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें कुछ ऊंचे लोग बसते है जो शहरवासियों को दुर्भावनाओ षडयंत्रो ओर दुरभिसंधिओ के काँच से निहार, पत्थर बने है ॥ आधे अधूरे गुमनाम से ये लोग एक नहीं दो-दो पहचान रखते है सत्ता के गलियारे ओर दरवाजे पर गिरगिट […] Read more » Glass town hoshangabad शीशे का शहर होशंगाबाद होशंगाबाद
कविता यही तो इश्क है। March 2, 2020 / March 2, 2020 by अजय एहसास | Leave a Comment दुनिया में उसको छोड़ ना परवाह किसी की आ जाये बिना बुलाये कभी याद किसी की तस्वीर गर जो आंखों में बस जाय किसी की कहते है दुनिया वाले कि यही तो इश्क है। दीदार उनका करने को जो दिल रहे बेताब उनके बगैर दुनिया में सब कुछ लगे खराब मिलते ही खुद बखुद अगर […] Read more » यही तो इश्क है।
कविता हम इंसान कहलाने योग्य कब होंगे ? February 28, 2020 / February 28, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment दिल्ली सुलग रही है ओर देश चुप है देश का आम आदमी चुप है पता नहीं क्यों कुछ विशेष आततायी भीड़ मे घिनोना चेहरा लिए आसानी से फूँक देते है मकान-दुकान जला देते है राष्ट्र की संपत्ति । उखाड़ फैकते है पीढ़ी दर पीढ़ी रह रहे लोगों के इंसानी रिश्ते फूँक देते है उनके आशियाने […] Read more » हम इंसान कहलाने योग्य कब होंगे ?
कविता बोलिये…. प्यारी-प्यारी बोलियाँ… February 27, 2020 / February 27, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment अब कहाँ बोली जाती है, लोगों में रसीली बोलियाँ जहाँ देखों वहीं मिलती है, लोगों में बनावटी बोलियाँ । भले प्रेमियों की आँखों में बँसी हो, प्रेमसनी अनकही बोलियाँ भले नाते-रिश्तों में घुली हुई हो, मिश्री सी मीठी बोलियाँ। बिखरे से है सभी साबुत लोग, बोलते है आपस में अटपटी बोलियाँ। व्हाटसअप’-फेसबुक के हजारों मित्र […] Read more » बोलिये…. प्यारी-प्यारी बोलियाँ...