कविता तुम पास आ गई हो,दिल को चैन आ गया है August 1, 2018 / August 1, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment तुम पास आ गई हो,दिल को चैन आ गया है पुरानी यादो का मुझे,आज ध्यान आ गया है छोड़ना ना मुझे तुम,कहीं जाना न अब तुम आखरी मोड़ पर मिले,साथ निभाना अब तुम बड़ी मुद्दतों के बाद,ऊपर वाला मेहरबा हो गया है तुम पास आ गई हो,दिल को अब चैन आ गया है कहाँ चली […] Read more » तुम पास आ गई हो दिल को करार आ गया है दिल को चैन आ गया है
कविता आ गया सावन,सजन घर नहीं आये July 31, 2018 / July 31, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी आ गया सावन,सजन घर नहीं आये क्या करू अब मै,मन कुछ नहीं भाये भेजे उनको कितनी बार मैंने सन्देशे हर बार हो गये मेरे सन्देशे अनदेखे क्या करू मुझको कोई तो बतलाये क्या करू मेरे सजन घर नहीं आये पड गया झूले सजन मेरे नहीं आये क्या करू मै,मुझे कोई तो समझाये […] Read more » आ गया सावन सजन घर नहीं आये साजन सावन सावन में शरारत
कविता मिलना अपने श्याम से,ये सोच कर आये है July 30, 2018 / July 30, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मिलना अपने श्याम से,ये सोच कर आये है दर्शन करने को हम सब लौट कर आये है छटा तुम्हारी सारे संसार में बिखरी है माया तुम्हारी सारी दुनिया में दिख रही है अनाथो के नाथ हो तुम,नाथ बनाने आये है तेरे दर्शन को हम सब लौट कर आये है तीनो लोक के मालिक हो,मृत्यु लोक […] Read more » तीनो लोक के मालिक हो मिलना अपने श्याम से मृत्यु लोक तुम्हारा है ये सोच कर आये है
कविता लगे ना ग्रहण मेरे चाँद को,उसे दिल में छिपा लिया July 28, 2018 / July 28, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment लगे ना ग्रहण मेरे चाँद को,उसे दिल में मैंने छिपा लिया पड़े ना बुरी निगाह राहू-केतू की,उसे नयनों में समां लिया आयेगा जब बुरा वक्त मेरे चाँद पर,लडूंगी आखरी वक्त तक उसने मुझे दिल में समा लिया,मैंने उसे दिल में समां लिया कहते है लोग मेरे चाँद पे काले धब्बे दिखाई देते है अनेक ये […] Read more » उसे दिल में छिपा लिया चाँदनी को चाँद राहू-केतू लगे ना ग्रहण मेरे चाँद को
कविता कर पाते कहाँ वे विकास ! July 28, 2018 / July 28, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८०७२४) कर पाते कहाँ वे विकास, कर के कुछ प्रयास; वे लगाते रहे क़यास, बिना आत्म भास ! विश्वास कहाँ आश कहाँ, किए बिन सकाश; संकल्प कहाँ योग कहाँ, धारणा कहाँ ! है ध्येय कहाँ ज्ञेय रहा, गात मन थका; उद्देश्य सफल कहाँ हुआ, ना मिली दुआ ! बेहतर है प्रचुर कर्म करें, ज्ञान सृष्टि कर; सृष्टा को ध्यान कर के वरें, अपने कलेवर ! उर उनकी सुने चलते रहें, बृह्म भाव रस; ‘मधु’ के प्रभु के कार्य करें, उनके हृदय बस ! रचनाकार: गोपाल बघेल ‘मधु’ Read more » कर पाते कहाँ वे विकास ! ज्ञान सृष्टि मधु संकल्प
कविता करता हूँ नमन कोटि कोटि कारगिल के अमर शहीदों को July 27, 2018 / July 27, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment करता हूँ नमन कोटि कोटि कारगिल के अमर शहीदों को देश के खातिर जिन्होंने परवाह नहीं की अपने वजिदो को किसी ने माँ की गोद सूनी की किसी ने पत्नि की माँग को किसी ने बहन की राखी को,किसी ने माँ-बाप के प्यार को ऐसे थे वीर बलिदानी,जिन्होंने न्योछावर कर दिया जान को आओ हम […] Read more » अमर शहीदों कारगिल कुर्बानियों जवान मां
कविता रक्तिम – भँवर July 24, 2018 / July 24, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment रक्तिम – भँवर आलोक पाण्डेय भर – भर आँसू से आँखें , क्या सोच रहे मधुप ह्रदय स्पर्श , क्या सोच रहे काँटों का काठिन्य , या किसी स्फूट कलियों का हर्ष ? मन्द हसित , स्वर्ण पराग सी , विरह में प्रिय का प्रिय आह्वान , या सोच रहे किस- क्रुर प्रहार से छुटा […] Read more » उर निकुंज कुंकुम कुसुम - कलेवर घुँघरू प्रणय के आस बिन्दी रक्तिम - भँवर रोली विलुलित आँचल सब कुछ डूब भँवर जाने दो ; सान्ध्य-रश्मियों का विहार
कविता पर्यावरण को कैसे स्वच्छ बनाये July 23, 2018 / July 23, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी आओ सब मिलकर पेड़ लगाये इस पर्यावरण को स्वच्छ बनाये वाहन जो सडक पर डीजल से चलते अपने मुहं से जो धुआं उगलते यही धुआँ वायु को दूषित करता सब को साँस लेने में मुश्किल करता और पर्यावरण को करता अपंग कैसे इससे छुटकारा पाये हम इन सब वाहनों पर बैन लगाये […] Read more » कारखानों गंदगी शहर पर्यावरण को कैसे स्वच्छ बनाये पेड़ लगाये बिजली
कविता पल्लवित प्रफुल्लित बगिया ! July 23, 2018 / July 23, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचनाकार: गोपाल बघेल ‘मधु’ (मधुगीति १८०७१६ स) पल्लवित प्रफुल्लित बगिया, प्रभु की सदा ही रहती; पुष्प कंटक प्रचुर होते, दनुजता मनुजता होती ! हुए विकसित सभी चलते, प्रकाशित प्रकृति में रहते; विकृति अपनी मिटा पाते, वही करने यहाँ आते ! बिगड़ भी राह कुछ जाते, समय पर पर सुधर जाते; अधर जो कोई रह जाते, धरा पर लौट कर आते ! प्रवाहित समाहित होते, कभी वे समाधित होते; ऊर्ध्व गति अनेकों चलते, नज़र पर कहाँ वे आते ! प्रतीकों के परे दुनियाँ, कभी है सामने आती; ‘मधु’ भव माधुरी चखते, माधवी सृष्टि लख जाती ! Read more » ‘मधु’ भव माधुरी दनुजता मनुजता पल्लवित प्रफुल्लित बगिया ! पुष्प कंटक
कविता साहित्य गीतों का कारवाँ गुजर गया July 20, 2018 / July 20, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी आज गीतकार नीरज नहीं रहे और हम खड़े खड़े देखते रहे गीतों का कारवाँ गुजर गया और हम गुब्बार देखते रहे उसके गीतों में एक दर्द था उसके प्यार में एक मर्द था वह कभी राह में रुका नहीं वह कभी किसी से झुका नहीं वह गीतों की दुनिया में बढ़ता रहा […] Read more » Featured गीतों का कारवाँ गुजर गया
कविता पाक में मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा हे July 19, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment अब तो पाक में भी मोदी का नाम लिया जा रहा है पाक में मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है पाक के नेता मोदी के नाम का भी खौफ दिखा रहे है पाक की जनता से मोदी के नाम से वोट मांग रहे है अभी तक तो भारत में ही मोदी […] Read more » election in pakistan election in pakistan in the name of modi पाक
कविता सावन में शिव-भक्ति July 18, 2018 / July 18, 2018 by आर के रस्तोगी | 2 Comments on सावन में शिव-भक्ति सावन का है महीना,शिवे भक्तो का हैअब जोर बम बम भोले बाबा का,चारो तरफ मचा है शोर हर तरफ भंडारे लगे हुये,शिव भक्तो का है शोर शिव भक्त ऐसे नाच रहे,जैसे बन में नाचे मोर कोई लपेटे हुये है तोलिये,कोई पहने हुए हाफ पेंट केसरिया वस्त्र पहने हुए है,सब शिवे भक्तो के सैंट भक्त तांडव […] Read more » डमरू बजा भांग धतुरा शिव भक्त शिव शंकर सावन में शिव-भक्ति