कविता योग की महिमा July 1, 2015 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’ योग ऋत है , सत् है, अमृत है। योग बिना जीवन मृत है।। 1. योग जोड़ है, वेदों का निचोड़ है। योग में ही व्याप्त सूर्य नमस्कार बेजोड़ है।। 2. योग से मिटती हैं आधियाँ व्याधियाँ। योग से मिटती हैं त्वचा की कोढ़ आदि विकृतियां।। 3. योग जीवन को जीने की जडी […] Read more » योग की महिमा
कविता विविधा उड़ान June 19, 2015 / June 19, 2015 by श्रद्धा सुमन | Leave a Comment कोई बता दे मुझे मेरी पहचान क्या है हूँ दीया कि बाती, या फिर उसकी पेंदी का अंधकार, हूँ तिलक उनकी ललाट पर या बस म्यान में औंधी तलवार… है आज द्वंद उठी, आंधी सवालों की एक हूक थी दबी जो अब मार रही चित्कार… हूँ कलश पल्लव से ढ़की, या बस चरणोदक या फिर […] Read more » Featured उड़ान
कविता आज भी न बरसे कारे कारे बदरा June 13, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment -श्रीराम तिवारी- आज भी न बरसे कारे कारे बदरा, आषाढ़ के दिन सब सूखे बीते जावे हैं । अरब की खाड़ी से न आगे बढ़ा मानसून , बनिया बक्काल दाम दुगने बढ़ावे है। वक्त पै बरस जाएँ कारे–कारे बदरा , दादुरों की धुनि पै धरनि हरषावे है।। कारी घटा घिर आये ,खेतों में बरस जाए , सारंग की धुनि संग सारंग भी गावै है। बोनी की बेला में जो देर करे […] Read more » Featured आज भी न बरसे कारे कारे बदरा कविता बारिश कविता
कविता परिंदे June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनोज चौहान- 1) कविता / परिंदे मैं करता रहा, हर बार वफा, दिल के कहने पर, मुद्रतों के बाद, ये हुआ महसूस कि नादां था मैं भी, और मेरा दिल भी, परखता रहा, हर बार जमाना, हम दोनों को, दिमाग की कसौटी पर । ता उम्र जो चलते रहे, थाम कर उंगली, वो ही […] Read more » Featured कविता परिंदे
कविता मौत एक गरीब की June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 3 Comments on मौत एक गरीब की -मीना गोयल ‘प्रकाश’- कुछ वर्ष पहले हुई थी एक मौत… नसीब में थी धरती माँ की गोद … माँ का आँचल हुआ था रक्त-रंजित… मिली थी आत्मा को मुक्ति… सुना है आज अदालत में भी… हुई हैं कुछ मौतें… है हैरत की बात… नहीं हुई कोई भी आत्मा मुक्त… होती है मुक्त आत्मा… मर […] Read more » Featured कविता मौत एक गरीब की
कविता मां June 8, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment -विजय कुमार सप्पाती- “माँ / तलाश” माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा; वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी .. ! लेकिन अपने गाँव/छोटे शहर की गलियों में , मैं अक्सर छुप जाया करता था ; और माँ ही हमेशा मुझे ढूंढ़ती थी ..! और मैं छुपता भी इसलिए था […] Read more » Featured कविता मां मां कविता मां पर कविता
कविता सबसे खूबसूरत हो तुम June 8, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- बाहर से जितनी मासूम , मन से भी उतनी खूबसूरत हो तुम , एक कलाकार की पूरी मेहनत से तराशी गयी जैसे मूरत हो तुम। एक कवि की सबसे प्यारी कल्पना , चित्रकार की सबसे बड़ी रचना , कभी सबसे अच्छा ख़्वाब और कभी सबसे प्यारी हकीकत हो तुम। जैसे खिलता […] Read more » Featured कविता सबसे खूबसूरत हो तुम
कविता बस, मैं और चाँद June 5, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- थोड़ी सी बूँदे गिरने से, धूल बूँदों मे घुलने से, हर नज़ारा ही साफ़ दिखता है। रात सोई थी मैं, करवटें बदल बदल कर, शरीर भी कुछ दुखा दुखा सा था, पैर भी थके थके से थे, मन अतीत मे कहीं उलझा था। खिड़की की ओर करवट लिये, रात सोई थी मैं। […] Read more » Featured कविता चांद कविता बस मैं और चाँद
कविता तुझे भुलाने की कोशिश में… June 4, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -बीना रौतेला- तुझे भुलाने की कोशिश मे, खुद को ही मैं भुल गयी। दूर जाने की कोशिश मे, पास तेरे मैं आ गयी॥ मिटाकर तेरी यादे जब, दूर हो जाने लगी। कदम बढ़ाया था जो मैंने, खुद पीछे हो जाने लगी॥ तुझे भुलाने की कोशिश मे, खुद को ही मैं भुल गयी। […] Read more » Featured तुझे भुलाने की कोशिश में... कविता
कविता जादूगरी जो जानते June 2, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०५२६-५) जादूगरी जो जानते, स्मित नयन बस ताकते; जग की हक़ीक़त जानते, बिन बोलते से डोलते। सब कर्म अपने कर रहे, जादू किए जैसे रहे; अज्ञान में जो फिर रहे, उनको अनौखे लग रहे । हैं नित्य प्रति आते यहाँ, वे जानते क्या है कहाँ; बतला रहे बस वही तो, आते […] Read more » Featured कविता जादूगरी जो जानते
कविता झकझोरता चित चोरता (मधुगीति १५०५०५-३) May 29, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- झकझोरता चित चोरता, प्रति प्राण प्रण को तोलता; रख तटस्थित थिरकित चकित, सृष्टि सरोवर सरसता । संयम रखे यम के चखे, उत्तिष्ठ सुर उर में रखे; आभा अमित सुषमा क्षरित, षड चक्र भेदन गति त्वरित । वह थिरकता रस घोलता, स्वयमेव सबको देखता; आत्मा अलोड़ित छन्द कर, आनन्द हर उर फुरकता । […] Read more » Featured कविता झकझोरता चित चोरता
कविता मैं संस्कृति संगमस्थल हूँ May 29, 2015 by नरेश भारतीय | Leave a Comment –नरेश भारतीय- बनती बिगड़ती आई हैं युगों से सुरक्षित, असुरक्षित टेढ़ी मेढ़ी या समानांतर जोर ज़बरदस्ती या फिर व्यापार के बहाने, घुसपैठ के इरादे से वैध अवैध लांघी जाती रहीं अंतर्राष्ट्रीय मानी जाने वालीं सीमाएं प्रवाहमान हैं मानव संस्कृतियाँ सीमाओं के हर बंधन को नकारती समसंस्कृति संगम स्थल को तलाशतीं. सीमाओं को तो […] Read more » Featured कविता मैं संस्कृति संगमस्थल हूँ संस्कृति कविता