कविता उम्मीद से… July 24, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on उम्मीद से… -बीनू भटनागर- भाजपा को देश की जनता ने, बड़ी उम्मीदों से, केंद्र की सत्ता दिलाई थी… कांग्रेस के दस साल के शासन के बाद, कुछ अच्छा होगा, ऐसी आस लगाई थी। पर हम और आप तो, वहीं है… कुछ बिगड़ा ही है, बना तो कुछ नहीं… शायद शासक की भी ये सच, जान चुके हैं। […] Read more » उम्मीद से कविता हिन्दी कविता
कविता हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो July 23, 2014 by श्रीराम तिवारी | 1 Comment on हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो -श्रीराम तिवारी- हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो! मां की तस्वीर हो, माथे कश्मीर हो, धोए चरणों को सागर का पानी हो। पुरवा गाती रहे, पछुआ गुनगुन करे, मानसून की सदा मेहरवानी हो। सावन सूना न हो, भादों रीता न हो, नाचे वन-वन में मोर- मीठी वाणी हो। यमुना कल-कल करे, गंगा निर्मल बहे, […] Read more » कविता हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो हिन्दी कविता
कविता वक्त कैसा ये आया, खराब यार रे July 23, 2014 by कुमार सुशांत | Leave a Comment -कुमार सुशांत- वक्त कैसा ये आया, खराब यार रे, वक्त कैसा ये, सबकी नीयत यहां, है बेकार यार रे। अपनी बहनों की इज्जत खतरे में है, कैसा इंसा हुआ जा रहा यार रे। गोरे आए गुलाम हमें कर गए, उनकी राह क्यूं जाता है तू यार रे। वो है नारी जो शक्ति का रूप है, […] Read more » कुमार सुशांत कविता वक्त कैसा ये आया
कविता उठ जाग चलो फिर से, हमें देश बचाना है July 23, 2014 by कुमार सुशांत | Leave a Comment -कुमार सुशांत- उठ जाग चलो फिर से, हमें देश बचाना है, भारतमाता का यूं, हमें फर्ज निभाना है। ये देश है वीरों का, हमें शान से चलना है, उनके बलिदानों का, हमें कर्ज चुकाना है। ना समझो कि हम अब भी, आज़ाद हैं बिल्कुल ही, खतरे में है सभ्यता, हमें राष्ट्र बचाना है। जंजीरों में […] Read more » उठ जाग चलो फिर से कुमार सुशांत कविता देशभक्ति कविता हमें देश बचाना है
कविता कैसा ये बन गया समाज July 22, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- कैसा ये बन गया समाज, क्या है इसकी परिभाषा, हर तरफ बढ़ गया अपराध, बन रहा खून का प्यासा। मर्डर चोरी बलात्कार, बन गया है इसका खेल, जो नही खाता है देखो, इक सभ्य समाज से मेल। बदलती लोगों की मानसिकता, टूट रही घर घर की एकता, जिधर भी देखो घूम रही है, […] Read more » कैसा ये बन गया समाज समाज
कविता तेरे बिन July 22, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- तू मोहब्बत है मेरी, तू मेरी संगिनी है। तू इमारत का वो हिस्सा है, जिस पर मेरे ख्वाब टिकते हैं। तू वो आशियाना है, जहां मेरी उम्मीदें रहती है। तेरी मुस्कराहटें, मेरी आवारगी है। तेरी खामोशी, मेरी बैचेनी है। तेरी खुशी, मेरी जिंदगी है। तेरी इबादत, मेरी आस्था है। तेरे लफ्ज़, मानो […] Read more » कविता तेरे बिन हिन्दी कविता
कविता आज बूंदों से कर लें दो बातें… July 21, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- आज नहीं करेंगे, रोज़ की बाते… काम वाली अब तलक, क्यों नहीं आई! आज खाने में क्या बनाऊं? या बाज़ार से सब्ज़ी ले लाऊं? आज बूंदों से, करले दो बातें, कुछ उनकी सुनें, कुछ अपनी कह डालें। तुम बादलों से गिरती हो… चोट नहीं लगती? तुम्हारे आने की, प्रतीक्षा में, हम आंखें बिछाते […] Read more » आज बूंदों से कर लें दो बातें कविता हिन्दी कविता
कविता दरिंदगी July 21, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- समाज में फैल गई गंदगी, हर तरफ दिख रही दरिंदगी, नारी के शोषण में तो, देश रहा है अब तक झेंप, कड़ी सज़ा मिले उन सबको, जो करते हैं महिलाओं का रेप। नहीं नज़र आती है उनको, उस नारी में बहन बेटी, अपनी इज्ज़त को को इज्ज़त समझे, दूसरों की करते हैं बेइज्ज़ती। […] Read more » कविता दरिंदगी हिन्दी कविता
कविता किस्मत से जंग July 18, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- किस्मत के साथ मेरी, चल रही इक जंग है, न कोई हथियार है, न कोई संग है। कभी भारी पलड़ा उसका तो कभी मेरा रहा, उसके दिए रह चोट का दर्द तो मैने सहा। तोड़ना वो चाहती मुझको, कर के अपने तो सितम, उसके हर वार को सहने का तो मुझमें है तो […] Read more » किस्मत कविता किस्मत से जंग
कविता उड़ान July 17, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- एक दिन बैठकर मैं, बस यही सोचता था, किस तरह से उड़ते हैं पक्षी, क्या उनकी उड़ान है। गिरने का न डर है उनको, उनकी यह पहचान है, सोचते-सोचते आखिर, पहुंच गया उस दौर तक, पंख तो होते हैं उनके, पर उनके हौसलों में जान है। कभी यहां तो कभी वहां, क्या गज़ब […] Read more » उड़ान पक्षी पक्षी कविता
कविता महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता July 15, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता -गोपाल बघेल ‘मधु’- हम रहे आनन्द की आशा बने (मधुगीति सं. २२९२) हम रहे आनन्द की आशा बने, हम रहे ब्रह्मांड की भाषा बने; अण्डजों की आत्म की सुषमा बने, पिण्डजों की गति की ख़ुशबू बने । समय में चलना कभी चाहे हमीं, पूर्व के कुछ दृश्य लख चाहे कभी; भविष्यत की झांकियां चाहे कभी, […] Read more » कविता महकता मेरा गुलिस्तां सदा रहता हिन्दी कविता
कविता भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से July 14, 2014 / July 14, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से -क़ैस जौनपुरी- रमज़ान का महीना है भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से दुनियाभर के मुसलमान एक साथ रोज़ा रखते हैं सुना है रोज़े में हर दुआ क़ुबूल भी होती है अल्लाह मियां के पास काम बहुत बढ़ गया होगा आख़िर इतने लोगों की दुआएं जो सुननी हैं और फिर सिर्फ़ मुसलमान ही क्यूं उन्हें तो […] Read more » कविता भीड़ में क्या मांगूं ख़ुदा से हिन्दी कविता