कविता चुनाव राजनीति चुनावी मौसम April 5, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment आज कल तो जैसे हर सू है त्यौहार का मौसम वादों और उम्मीदों का इक खुशगवार सा मौसम रौशन तकरीरो की जवां अंगड़ाइयां सियासी तब्बसुम की ये अठ्ठखेलियां आबे गौहर सी सियासती शोखियां बाग़े उम्मीद की गुलनारी मस्तियां सियासी महक से सरोबार हर कोना न कही मातम न किसी बात का रोना लगता ही नहीं […] Read more » election season satiric poem on election चुनावी मौसम
कविता राष्ट्रबंधुजी April 4, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment मिला एक दिन दादाजी से, वह दादा हैं राष्ट्रबंधुजी| बच्चों की खातिर सब करने, आमादा हैं राष्ट्रबंधुजी| नहीं कोई छल छंद दिखावा, बस, सादा हैं राष्ट्रबंधुजी, बच्चों का संसार सुनहरा, एक वादा हैं राष्ट्रबंधुजी| Read more » poem on nation-unity राष्ट्रबंधुजी
कविता राजनीति April 3, 2014 / April 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -राम सिंह यादव- बहुत सारे चेहरे हैं कुछ मुस्कुरा रहे हैं कुछ चिल्ला रहे हैं कुछ भोले से दिख रहे हैं… कुछ चेहरों मे छिपा लोभ है कुछ चेहरों में ठेकेदारी है कुछ तो धर्म के पूरक हैं… काटते, छांटते और बांटते आदमी चिल्लाते हैं वोट दो…. पानी लो, बिजली लो, विकास लो,,, मैं ट्रेन दूंगा, मैं रोड दूंगा, […] Read more » poem on politics राजनीति
कविता प्रेम April 3, 2014 / April 3, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on प्रेम -विजय कुमार- हमें सांझा करना था धरती, आकाश, नदी और बांटना था प्यार मन और देह के साथ आत्मा भी हो जिसमें ! और करना था प्रेम एक दूजे से ! और हमने ठीक वही किया ! धरती के साथ तन बांटा नदी के साथ मन बांटा और आकाश के साथ आत्मा को सांझा […] Read more » poem on affection प्रेम
कविता गरमी मई की जून की April 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आई चिपक पसीने वाली, गरमी मई की जून की| चैन नहीं आता है मन को, दिन बेचेनी वाले | सल्लू का मन करता कूलर , खीसे में रखवाले | बातें तो बस उसकी बातें , बातें अफलातून की | दादी कहतीं सत्तू खाने , से जी ठंडा होता | जिसने बचपन से खाया है, तन […] Read more » poem on summer गरमी मई की जून की
कविता आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए March 30, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए कड़ी राहों से हँसते हुए गुज़रे हम सब के लिए कि हमारे लिए ज़रूरी थी आज़ादी हमारी ! आज़ादी के बाद शहीद हुए हमारे गांधी कि हम नव-आज़ाद लोगों को शायद ज़रूरत न थी उस रहबरी की अब कि वह रोकती मनचाही आज़ादी हमारी ! आज़ादी के […] Read more » Poem on Martyrs आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए
कविता व्यंग्य मिक्सिंग और फिक्सिंग March 27, 2014 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on मिक्सिंग और फिक्सिंग -मिलन सिन्हा- उसने पहले ढंग से जाना गेम का सब ट्रिक्स फिर मैच को अच्छे से किया फिक्स जब शोर हुआ तब राजनीति से किया उसे मिक्स पकड़ा गया फिर भी शर्म नहीं किसी बात का कोई गम नहीं क्योंकि उसे मालूम है यहां मैच को करके मिक्स और फिक्स कैसे मारा जाता है सिक्स […] Read more » satire poem on match fixing मिक्सिंग और फिक्सिंग
कविता अहंकार बलिदान बड़ा है, देह के बलिदान से March 27, 2014 by डॉ. मधुसूदन | Leave a Comment -मधुसूदन- मिट्टी में जब, गड़ता दाना, पौधा ऊपर, तब उठता है। पत्थर से पत्थर, जुड़ता जब, नदिया का पानी, मुड़ता है। अहंकार दाना, गाड़ो तो, राष्ट्र बट, ऊपर उठेगा, कंधे से कंधा, जोड़ो तो, इतिहास का स्रोत, मुड़ेगा। अहंकार-बलिदान, बड़ा है, देह के, बलिदान से, इस रहस्य को,जान लो, जीवन सफल, होकर रहेगा इस अनन्त […] Read more » poem on inspiring human being अहंकार बलिदान बड़ा है देह के बलिदान से
कविता सूरज का डोला March 24, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- चिड़ियों ने जब चूं-चूं बोला, पूरब ने अपना मुंह खोला| उदयाचल अपने कंधे पर, ले आया सूरज का डोला| पीपल पर कोयल चिल्लाई, तब कौओं को भी सुध आई| कांव-कांव कहकर चिल्लाये, उठो सबेरा जागो भाई| फूलों पर भौंरे मंडराये, लगी भूख है रस मिल जाये| जीने का आधार चाहिये, थोड़ा सा ही […] Read more » poem on early morning सूरज का डोला
कविता समझ लेना युवा है… March 18, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on समझ लेना युवा है… अन्यायों से लड़ता, सूर्य सा सुलगता, जो हो कर्तव्य निभाता, अपना पथ स्वयं बनाता, समझ लेना युवा है… हुँकार अपनी भरता, आँधियों को चीरता, समर को खदेड़ता, विद्रोही स्वर दिखाता, समझ लेना युवा है… प्रेम में उलझा हुआ, सपनों से झुलसा हुआ, बहुत दूर तक उड़ने को संकल्पित हुआ, पर अपनों की आशाओं से बंधा […] Read more » समझ लेना युवा है...
कविता रंग नहीं होली के रंगों में March 15, 2014 by हिमकर श्याम | 2 Comments on रंग नहीं होली के रंगों में -हिमकर श्याम- फिर बौरायी मंजरियों के बीच कोयल कूकी, दिल में एक टीस उठी पागल भोरें मंडराने लगे, अधखिली कलियों के अधरों पर पलाश फूटे या आग किसी मन में, चूड़ी की है खनक कहीं, कहीं थिरकन है अंगों में, ढोल-मंजीरों की थाप गूंजती है कानों में मौसम हो गया है अधीर, बिखर गये चहूं […] Read more » Poem on Holi रंग नहीं होली के रंगों में
कविता भोलाराम का प्रजातंत्र March 13, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- जब पवित्र पावक मनमोहक दिन चुनाव का आता है भोलाराम निकलकर घर से वोट डालने जाता है| किसे चुने या किसे वोट दें नहीं समझ वह पाता है सौ का नोट उसे जो देता वह उसका हो जाता है| दो दिन पहले तक चुनाव के लोग कई घर आते हैं लालच देकर हाथ […] Read more » poem on reality of democracy भोलाराम का प्रजातंत्र