कविता तेरे चमन में दोस्त November 12, 2013 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” क्या क्या अभी है बाकी, इस अंजुमन में दोस्त , चाहत भी मोहब्बत भी, तेरे चमन में दोस्त…………. इस ओर सियासत है, और बेरहम है दोस्त, उस ओर अदावत है, और बस चुभन है दोस्त, कहते हैं जिसको अच्छा, वो बदचलन है दोस्त, मुझको जो मयस्सर है, वो बस घुटन है दोस्त, […] Read more » तेरे चमन में दोस्त
कविता स्मृतियाँ November 7, 2013 / November 7, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment बीनू भटनागर समृति के जब जुड गये तार, पंहुच गये कई वर्षो पार। मां की ममता कभी मनुहार, कभी कड़कती हुई फटकार। बचपन की वो भोली यादें, कभी यौवन की बिसरी बातें। सखी सहेलियों की बारातें, चुपके चुपके मनकी बातें। सुख समृद्दि वाले दिन रात, या दुख की जब हुई बरसात। ये जीवन चलचित्र समान, […] Read more »
कविता कविता : दीप जलाएँ November 2, 2013 by हिमकर श्याम | 1 Comment on कविता : दीप जलाएँ दिल से दिल के दीप जलाएँ मानव-मानव का भेद मिटाएँ दिल से दिल के दीप जलाएँ आंसू की यह लड़ियाँ टूटे खुशियों की फुलझड़ियाँ छूटे शोषण, पीड़ा, शोक भुलाएँ कितने दीप जल नहीं पाते कितने दीप बुझ बुझ जाते दीपक राग मिलकर गाएँ बाहर बाहर उजियारा है भीतर गहरा अंधियारा है […] Read more »
कविता घनश्याम काका October 14, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment घनश्याम काका को, बहुत शिकायत हैं, अपने बेटे बहू से, शिकायतों की पूरी लिस्ट है जिसे, वो हर आये गये से शेयर करते हैं, जैसे ‘’मेरे पास बैठने का किसी के पास वख़्त नहीं है, मेरी दवाइयाँ कोई समय पर लाकर नहीं देता, ठंडा खाना खाना पड़ता है वगैरह वगैरह बच्चो की पढ़ाई की वजह […] Read more » घनश्याम काका
कविता हिमालय के इस आँगन में October 14, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment हिमालय के इस आँगन में उषा की प्रथम किरणे अभिनन्दन करती हुई हिम से ढके पर्वतों को सफ़ेद मोतियों से पिरोती हुई श्यामल नभ में छोटे छोटे बादल के कण हिम पर्वतों को चादर सी ढकती हुई मदमस्त हो रही हैं धीरे धीरे पहाड़ियां आती जाती घटाओं में बर्फीली हावाओं में कुछ बारिश की बूदें […] Read more »
कविता चाँद तारे October 12, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment बीनु भटनागर चाँद ने थोड़ी सी रौशनी, सूरज से उधार लेकर, हर रात को थोड़ी थोड़ी बाँट दी। अमावस की रात तारों ने, चाँद के इंतज़ार मे, जाग कर गुजार दी। अगले दिन चाँद निकला, थका सा पतला सा, तारों ने चाँद की, आरती उतार ली। ‘’महीने मे एक बार लुप्त होना, मजबूरी है मेरी, […] Read more » चाँद तारे
कविता कविता : जीवन का हिसाब October 12, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा तुमसे बेहतर तुम्हें जाने कौन मुझसे बेहतर मुझे जाने कौन लोग कहें न कहें मानें न मानें जानें न जानें पहचानें न पहचानें क्या फर्क पड़ेगा जैसे हम हैं वैसे हम हैं जैसा आगे करेंगे वैसा ही बनेंगे सच है, झूठ से सच कैसे साबित करेंगे गलत तरीके से जब जोड़ेंगे संपत्ति […] Read more » कविता : जीवन का हिसाब
कविता भारती का भाल October 10, 2013 by अनिल सैनी ‘अनि’ | 3 Comments on भारती का भाल भारती के भाल को लज्जा रहा है देश क्यों ? बेटों के शिश मुण्ड को देख कर भी चुप है क्यों ? क्यों मुख अब रक्तलाल नहीं, क्या वीरों के रक्त में उबाल नहीं ? क्यों बार-बार विवश है हम, क्या हम में स्वाभिमान नहीं ? अब छोड दो खुला इन रणबाकुरों कों, इन्हे मदमस्त […] Read more » भारती का भाल -
कविता कविता : खिलौना October 8, 2013 / October 8, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ एक बार फिर खून से रंगे पड़े हैं दर्जनभर दबे-कुचले लोगों को मारकर आधे दर्जन दबंग असलहों के साथ सैकड़ों मूक दर्शकों के सामने निकल पड़े हैं वीर ( ? ) बने राजनीतिक बयानबाजी का टेप बजने लगा है अनवरत इधर, सत्ता प्रतिष्ठान की आँखों से बह निकली […] Read more » कविता : खिलौन
कविता नीड़ October 4, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment तिनके, पत्ते थे साथ चुने धागे थे अरमानों के बुने हल्का झोंका भी सह न सका सूखे पत्तों सा बिखर गया वह नीड़ अचानक उजड़ गया। हमने, तुमने मिलकर जिसकी रचना की थी अपने खूं से सपना ही कहें तो अच्छा है जब आंख खुली तो सिहर गया वह नीड़ अचानक उजड़ गया। गलती मेरी […] Read more » नीड़
कविता कविता : नया खेल October 2, 2013 / October 2, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा तिकड़म सब हो गए फेल नेताजी पहुँच ही गए जेल बनने लगे हैं नए समीकरण बाहर शुरू हो गया है नया खेल खूब खाया था, खिलाया था पीया था, खूब पिलाया था राजनीति को ढाल बनाया था परिवार को आगे बढ़ाया था जिनका खूब साथ दिया उन्होंने ही दगा किया […] Read more » कविता : नया खेल
कविता हिन्दी दिवस पर कविता October 2, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment राम आश्रय पिता और गिरिराज में , नाता भूत अटूट । हर दम रखते लाज ये , दोनों धरती के पूत ॥ सर्द रात में पहरा देता , हर बैरी को रखता दूर । सीना खोल दुश्मन से लड़ता , करता उसकी हिम्मत चूर । गर्म हवा से हमें बचाता , हमको प्यार देता भरपूर […] Read more » हिन्दी दिवस पर कविता