कविता साधो हर नेता मधु कोडा.. – गिरीश पंकज November 4, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 1 Comment on साधो हर नेता मधु कोडा.. – गिरीश पंकज साधो हर नेता मधु कोडा. जिसे मिला वो डट कर खाए, नहीं किसी ने मौका छोडा. साधो हर नेता मधु कोडा……. (१) मौका पा कर नेता लूटे, क्या जाने कब कुर्सी छूटे. राजनीति में अपराधी है. बहुत बड़ी अब ये व्याधी है. जनता अब तो जागे थोडा…. साधो हर नेता मधु कोडा….. (२) राजनीति अब […] Read more » Girish Pankaj गिरीश पंकज
कविता इल्जाम October 21, 2009 / December 26, 2011 by हिमांशु डबराल | 2 Comments on इल्जाम वो इस कदर गुनगुनाने लगे है, के सुर भी शरमाने लगे है… हम इस कदर मशरूफ है जिंदगी की राहों में, के काटों पर से राह बनाने लगे है… इस कदर खुशियाँ मानाने लगे है, के बर्बादियों में भी मुस्कुराने लगे है… नज्म एसी गाने लगे है, की मुरझाए फूल खिलखिलाने लगे है… चाँद ऐसा […] Read more » Himanshu Dabral Ilzam इल्जाम हिमांशु डबराल
कविता मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है…गिरीश पंकज… October 16, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 2 Comments on मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है…गिरीश पंकज… मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है, वरना इस महंगाई में तो रूखी-सूखी थाली है।। जो गरीब है, वह भी तो त्यौहार मनाया करता है, लेकिन पूछो तो खुशियाँ वह कैसे लाया करता है। भीतर आँसू हैं, बाहर मुस्कान दिखाई देता है, पीड़ा भी धन वालों को इक गान सुनाई देता है। सच […] Read more » excitement उत्साह
कविता दीवाली पर एक गीत..- गिरीश पंकज October 15, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | Leave a Comment जिस दिन ऐसी दुनिया देखो, समझो तब सच्ची दीवाली. . हर चेहरा मुस्कान भरा हो, हर आँगन नाचे खुशहाली, जिस दिन ऐसी दुनिया देखो, समझो तब सच्ची दीवाली. . जिनके घर में अँधियारा है, उनको भी उजियारा बाँटें. कदम-कदम पर दुःख के पर्वत, आओ उनको मिल कर काटें. जीवन का है लक्ष्य यही हम, हर […] Read more » Diwali दीवाली
कविता अंधेरे के विरुद्ध इरोम शर्मीला छानू… October 12, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | Leave a Comment इरोम शर्मीला छानू…अब किसी परिचय की मोहताज नही है. वह पिछले आठ वर्षो से आमरण-अनशन पर है। उसकी एक सूत्री मांग है-मणिपुर में फौज को मिले विशेषाधिकार को समाप्त किया जाए। पूरा देश जानता है कि अपने विशेषाधिकार के कारण वहाँ फौज ने नागरिकों पर कितने कैसे-कैसे अत्याचार किए हैं. अत्याचार की इंतिहा को समझाने […] Read more » irom-sharmila इरोम शर्मीला
कविता साहित्य कविता \ रंग October 9, 2009 / December 26, 2011 by हिमांशु डबराल | Leave a Comment रंग बदल जाते है धुप में, सुना था फीके पड़ जाते है, सुना था पर उड़ जायेंगे ये पता न था! हाँ ये रंग उड़ गए है शायद… जिंदगी के रंग इंसानियत के संग, उड़ गए है शायद… अब रंगीन कहे जाने वाली जिंदगी, हमे बेरंग सी लगती है, शक्कर भी हमें अब फीकी सी […] Read more » poem कविता
कविता छोड़ दो थोड़ा-सा दूध थनों में : प्रणय प्रियंवद October 9, 2009 / December 26, 2011 by जयराम 'विप्लव' | Leave a Comment छोड़ दो थोड़ा-सा दूध थनों में गायों के बच्चों के लिए पेड़ में कुछ टहनियां छोड़ दो नई कोपलों के आने के लिए Read more » Jairam जयराम "विप्लव"
कविता साहित्य सुशील कुमार पटियाल की दो कविताएं October 7, 2009 / December 26, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on सुशील कुमार पटियाल की दो कविताएं बांधो ना मुझे तुम बंधन में बांधो न मुझे तुम बंधन में, बंधन में मैं मर जाऊंगा ! उन्मुक्त गगन का पंछी हूं, उन्मुक्त ही रहना चाहूंगा ! मिल जाए मुझे कुछ भी चाहे , पर दिल को मेरे कुछ भाए ना ! मैं गीत खुशी के गाता था, मैं गीत ये हरदम गाऊंगा ! […] Read more » Susheel Kumar Patiyala सुशील कुमार पटियाल
कविता साहित्य कविता : पंख फैलाकर वो उड़ गया…..!! October 6, 2009 / December 26, 2011 by शालिनी अग्रहरि | 12 Comments on कविता : पंख फैलाकर वो उड़ गया…..!! आसमान से एक पक्षी गिरा, फिर शुरू हुआ उसके जीवन का सिलसिला जब-जब वो उड़ना चाहे, तब-तब वो नीचे गिर जाए जब-जब उसने पंख फैलाए तब-तब उसके दर्द उभर आये, उसके थे बस इतने अरमान, वो बने सबके दिल का मेहमान, उसकी नहीं टूटी आस, उसको था खुद पर विश्वास, उसका विश्वास हिम्मत बन गया, […] Read more » poem कविता
कविता साहित्य विजयादशमी हमारे आत्म-मंथन का दिन है September 27, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 3 Comments on विजयादशमी हमारे आत्म-मंथन का दिन है हम पराजित किस्म के लोग विजयादशमी मनाकर खुश होने का स्वांग भरते रहते हैं. बहुत-कुछ सोचना-विचारना है हमको. कुछ लोग तो यह काम करते है. इसीलिए वे प्रवक्ता के रूप में सामने आते है. लेकिन ज्यादातर लोग क्या कर रहे हैं..? ये लोग उत्सव प्रेमी है. उत्सव मनाने में माहिर. खा-पीकर अघाये लोग… उत्सव के […] Read more » Dussehra विजयादशमी
कविता साहित्य नवरात्र पर विशेष कविता : स्त्री September 26, 2009 / December 26, 2011 by गिरीश पंकज | 7 Comments on नवरात्र पर विशेष कविता : स्त्री नवरात्र का महापर्व चल रहा है. देवी की आराधना हो रही है. स्त्री भी देवी का ही एक रूप है. समाज में तरह-तरह के लोग है. किसी लम्पट आदमी ने औरत को जला दिया, या बलात्कार कर लिया तो इससे औरत का महत्त्व कम नहीं हो जाता. उथली मानसिकता से ग्रस्त लोगो द्वारा अकसर व्यंग्य […] Read more » Navratra नवरात्र
कविता कविता : रोकते क्यों हो-मैं रामदेव हूं September 26, 2009 / December 26, 2011 by स्मिता | Leave a Comment रोकते क्यों हो रूक पाऊँगा इतनी शक्ति नहीं तुम मुझको रोको माँ के आँचल में पिता के स्नेह में घर के आँगन में सात किताबें पढे हो चापलूसी और परिक्रमा से आठ सीढियां चढ़े हो गरीबों की रोटी छीन अपनी कोठियां भरे हो घमंड इसका, जरा सोच मातृछाया से दूर परमपिता की छांह में खुले […] Read more » Ramdev रामदेव