कविता अब के सावन में July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment अब के सावन मेंबूँदें सिर्फ़ पानी नहीं रहीं,वो सवाल बनकर गिरती हैंछतों, छायाओं और चेतना पर। अब के सावन मेंन कोई प्रेम पत्र भीगा,न कोई हथेली मेंहदी से लिपटी,बस मोबाइल स्क्रीन पर टपकी बारिश की रील। अब के सावन मेंकविताएं भीगने से डरती हैं,काग़ज़ गल जाए तो?या भाव उड़ जाए तो? पर फिर भी,जब एक […] Read more » अब के सावन में
कविता सावन की सिसकी July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment भीग गया मन फिर चला, तेरी यादों की ओर,सावन ने फिर छेड़ दिया, वो भीगा सा शोर।टपक रही हर साँझ में, कुछ अधूरी बात,छत पर बैठी पाती पढ़े, भीगी-भीगी रात। झूला झूले याद में, पीपल की वह छाँव,तेरे संग सावन जिया, अब लगता बेजान।बूँद-बूँद में नाम तेरा, भीगा पत्र पुराना,तेरे बिना हर मौसम में, खालीपन […] Read more » सावन की सिसकी
कविता सावन बोल पड़ा July 7, 2025 / July 7, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment सावन बोल पड़ा —“मैं वो साज़ हूँ, जो मन को छूता है।मैं वो गीत हूँ, जो बिन बोले गूंजता है।मैं भीगते बालकों की हँसी हूँ,और चुपचाप रोते खेतों की तृप्ति भी।” सावन फिर बोला —“मुझमें पनपता है प्रेम,और मिटती है दूरी।मैं झोपड़ी का गीत हूँ,और महलों की चुप्पी भी।” सावन बोला —“मेरे संग बहती हैं […] Read more »
कविता भजन: राम राज्य महिमा June 27, 2025 / June 27, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment ब्रज लोक गीत मु: राजा राम की आई सरकार -२अब घर घर आनंद छाय रहे -२झूमे सब नर और नार,सब प्राणी मंगल गाय रहे -२राजा राम की आई सरकार__ अंत १: राजा राम जानकी हैं रानी,आनंद कंद अवध रजधानी।लक्ष्मण भारत शस्त्रुघन भैया,चरणों में इनके अंजनी छैया।।मि: ये ब्रम्ह का लगा दरबार,हर्षित हैं अवध अपार।सब प्राणी […] Read more » भजन: राम राज्य महिमा
कविता रिक्त संपादकीय June 27, 2025 / June 27, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment डॉ. सत्यवान सौरभ स्याही की धार थम गई,शब्दों ने आत्महत्या कर ली,अख़बार का कोना ख़ाली है,जैसे लोकतंत्र ने मौन धर ली। न सेंसर की मुहर लगी,न टैंक चले, न हुक्मनामा,फिर भी हर कलम काँप रही है —शायद डर का रंग बदला है अबकी दफ़ा। जो लिखता है, वो बिकता है,जो चुप है, वही अब ज़िंदा […] Read more » रिक्त संपादकीय
कविता भजन: शोभा यात्रा June 25, 2025 / June 25, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment तर्ज: फूलों में सज रहे हैं मु: अवध में है निकली, राजा राम की सवारी।और साथ में हैं इनके, राजा जनक की दुलारी।।अवध में है निकली __ अंत १: भारत लक्ष्मण शस्त्रुधन, तीनों ही प्यारे भैया।चल रहे हैं निज अष्वों पर, साथ साथ तीनों मैया ।।मि: और नृत्य कर रहे हैं बजरंग गदा धारी।अवध में […] Read more » भजन: शोभा यात्रा
कविता भजन: शिव शंकर June 25, 2025 / June 25, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment तर्ज: छम छम नाचै वीर हनुमाना मु: झूम झूम नाचै भोला हमारा।कहते हैं इसको पारवती का प्यारा।।झूम झूम नाचे _ अंत १: कैलाश पर डमरू बजा कर नाचै।राम जी की मस्ती में मस्त हो कर नाचै।।मि : भांग के नशे में, लागै है सबसे न्यारा।झूम झूम नाचे _ अंत २ : अंग अंग पर भस्मी, […] Read more » शिव शंकर
कविता इस मोबाइल ने आदमी को अलग जीव जन्तु बना दिया June 24, 2025 / June 24, 2025 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकइस मोबाइल फोन ने आदमी कोकुछ अलग सा जीव जन्तु बना दियाघर बैठे दुनिया का एक प्राणी घुमंतू बना दिया! इस फोन ने अपने भाई बहन बहनोई साले रिश्तेएक झटके में खा पका कर सीधे-सीधे पचा दियाइस मोबाइल ने सच को मार झूठ को बचा लिया! जिससे उम्मीद नहीं की जानी चाहिए अपनेपन […] Read more » इस मोबाइल ने आदमी को अलग जीव जन्तु बना दिया
कविता योग साधना June 21, 2025 / June 22, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment योग भगाए रोग सब, करता हमें निरोग।तन-मन में हो ताजगी, सुखद बने संयोग।। योग साधना जो करे, भागे उसके भूत।आलस रहते दूर सब, तन रहता मजबूत।। खुश रहते हर पल सदा, जीवन में वो लोग।आत्म और परमात्म का, सदा कराते योग।। योग करें तो रोग सब, भागे कोसों दूर।जीवन सुखदाई बने, चमके खुशियां नूर।। योगासन […] Read more » योग साधना
कविता कर्म June 18, 2025 / August 25, 2025 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment सौ वर्षों की बातें सोचें,तब तो व्यर्थ आज की बारिश।आज धरा का रूप अलग है,कल सूरज सब जल हर लेगा।मिट्टी तो कल सूख जाएगी,मेघ आज का क्या कर लेगा। ये किसलय जो नव रंगों के,कल को पीले हो जाएंगे।अगले वर्ष तक ये घन गर्जन,हर स्मृति से खो जाएंगे।नव मेघों का जिक्र रहेगा,सब जोहेंगे उनकी राहें […] Read more » कर्म
कविता लोरी June 16, 2025 / August 25, 2025 by डॉ राजपाल शर्मा 'राज' | Leave a Comment आ जा ओ निंदिया रानी, तुझको बुलाऊं।काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं। माता अब बुढ़ी मेरी, गा नहीं पायेगी।अपने आंचल में मुझको, कैसे सुलाएगी।तन्हा-तन्हा-सा मैं, सोया घबराऊं।काहे को रूठी मुझ से, लोरी सुनाऊं। पहले तो निंदिया कितनी, अच्छी होती थी तू।मेरे नन्हें नैनों में, अच्छे से सोती थी तू।बचपन के प्यारे सपने ला मैं […] Read more » लोरी
कविता क्या हो गया है इन औरतों को? June 10, 2025 / June 10, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment क्या हो गया है इन औरतों को?अब ये आईना क्यों नहीं झुकातीं?क्यों चलती हैं तेज़ हवा सी,क्यों बातों में धार रखती हैं?कल तक जो आंचल से डर को ढँकती थीं,अब क्यों प्रश्नों की मशालें थामे हैं?क्या हो गया है इन औरतों को —जो रोटी से इंकलाब तक पहुंच गईं?कोमल थीं, हाँ, थीं नर्म हथेलियाँ,अब उनमें […] Read more »