लेख तब था धरती पर अंधकार अध्याय – 14 April 19, 2025 / April 22, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू (डिस्कवरी ऑफ इंडिया की डिस्कवरी ) डॉ राकेश कुमार आर्य नेहरू जी द डिस्कवरी ऑफ इंडिया अर्थात हिंदुस्तान की कहानी नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ 101 पर मैक्स मूलर के इस कथन को भारत के संदर्भ में बड़े गर्व के साथ लिखते हैं कि- “अगर हम सारी दुनिया की खोज […] Read more » इतिहास का विकृतिकरण इतिहास का विकृतिकरण और नेहरू
आर्थिकी लेख अमेरिका के टैरिफ का चीन पर प्रभाव April 17, 2025 / April 17, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा चीन की पूरी अर्थव्यवस्था और जीडीपी एक्सपोर्ट आधारित है. चीन दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी जीडीपी का 65% एक्सपोर्ट से आता है. इतना बड़ा एक्सपोर्ट दुनिया में कोई भी देश नहीं करता जितना बड़ा एक्सपोर्ट चीन करता है. अमेरिका चीन के लिए सबसे बड़ा बाजार था. अमेरिका के किसी भी मॉल में […] Read more » Impact of US tariffs on China अमेरिका के टैरिफ
लेख ‘काफिर’ शब्द की गलत व्याख्या व उपयोग किसी भी समाज की एकता के लिए खतरनाक April 16, 2025 / April 16, 2025 by गौतम चौधरी | Leave a Comment गौतम चौधरी शब्दों में रिश्तों को प्रभावित करने बेहतर क्षमता होती है। यही नहीं, शब्दों में लोगों की धारणा को बदलने और लोगों को एक साथ लाने या उन्हें अलग करने की भी अपार क्षमता होती है। आज हम एक ऐसे शब्द पर चर्चा करने वाले हैं जिसकी न केवल गलत तरीके से व्याख्या की जाती […] Read more » काफिर
लेख सही नहीं धर्म राष्ट्र एवं संप्रदाय को व्यापार से जोड़ना April 16, 2025 / April 16, 2025 by डॉ घनश्याम बादल | Leave a Comment डॉ घनश्याम बादल बाबा रामदेव एक बार फिर चर्चा में हैं । वैसे वे ऐसे बाबा हैं जिन्हें चर्चा में रहने के ‘फन’ में उस्तादी हासिल है । कभी साइकिल के करियर पर लकड़ी की संदूकची रखकर चूरण और दवाइयां बेचने वाला हरियाणा का दुबला पतला यदुवंशी दाढ़ीधारी रामदेव नाम का साधु जैसा व्यक्ति किस […] Read more » धर्म राष्ट्र एवं संप्रदाय को व्यापार से जोड़ना
लेख समाज वफ़ा के लिए तड़पते मर्द और बेवफ़ाई पर चुप समाज, आखिर क्यों ? April 16, 2025 / April 16, 2025 by पारसमणि अग्रवाल | Leave a Comment वफ़ा के लिए तड़पते मर्द पारसमणि अग्रवाल जब भी कोई रिश्ता टूटता है, समाज बिना सुने, बिना समझे और बिना परखे सीधे लड़के को कठघरे में खड़ा कर देता है। लड़की रोती है, वो मासूम है। लड़का चुप है – वो गुनहगार है। लड़की रिश्ता तोड़े – स्वतंत्रता की मिसाल। लड़का रिश्ता छोड़े – बेवफा। […] Read more » Men yearn for loyalty and society remains silent on infidelity वफ़ा के लिए तड़पते मर्द
लेख मनुष्य के दुश्मन नहीं, हितकारी हैं समस्त पशु-पक्षी ! April 14, 2025 / April 16, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला सोशल नेटवर्किंग साइट्स के फायदे भी बहुत हैं। हाल ही में फेसबुक पर राजस्थान के एक स्थानीय यू-ट्यूब रील्स कलाकार(कामेडियन) की एक फेसबुक पोस्ट देखी। पोस्ट ने इस लेखक को बहुत अधिक प्रभावित किया। दरअसल, यह पोस्ट भीषण गर्मी में रेगिस्तान में पशुओं को पानी पिलाने के संदर्भ में थी। राजस्थान में […] Read more » हितकारी हैं समस्त पशु- पक्षी
लेख बेहाल वृद्धों के लिये आयोग बनना एक सराहनीय कदम April 14, 2025 / April 16, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग –केरल भारत का पहला राज्य बन गया है जिसने वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयोग स्थापित करने के लिए एक कानून पारित किया है। यह एक सराहनीय एवं स्वागत योग्य पहल होने के बावजूद एक बड़ा सवाल भी खड़ा करती है कि आखिर भारत के बुजुर्ग इतने उपेक्षित एवं प्रताड़ित क्यों है? केरल […] Read more » Formation of a commission for distressed elderly is a laudable step वृद्धों के लिये आयोग
लेख प्राइवेट सिस्टम का खेल: आम आदमी की जेब पर हमला April 11, 2025 / April 11, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकार आज निजी संस्थानों के लिए मुनाफे का जरिया बन चुके हैं। प्राइवेट स्कूल सुविधाओं की आड़ में अभिभावकों से मनमाने शुल्क वसूलते हैं—ड्रेस, किताबें, यूनिफॉर्म, कोचिंग—सब कुछ महँगा और अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं, प्राइवेट हॉस्पिटल डर और भ्रम का माहौल बनाकर मरीजों से मोटी रकम […] Read more » The game of the private system: Attack on the common man's pocket प्राइवेट सिस्टम का खेल
लेख हिंदी दिवस हिन्दी की गिनतियों को सरल बनाने, सुधार आवश्यक ! April 10, 2025 / April 10, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव वरिष्ठ पत्रकार संसार की प्रचलित भाषाओं का वर्गीकरण करें तो देवभाषा संस्कृत सभी की जननी है जिसके वंशानुगत अन्य सभी भाषाएँ सहित देवनागरी लिपि हिन्दी भी है। मनुष्यों के कुल गौत्र की भांति अगर भाषाओं को विभक्त करे तो हिन्दी, अँग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं के कुल, उपकुल, शाखाओं, उपशाखाओं तथा समुदायों में विभक्त कर समस्त […] Read more »
लेख जाति की जंजीरें: आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी April 10, 2025 / April 10, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment आस्था पेशाब तक पिला देती है, जाति पानी तक नहीं पीने देती। कैसे लोग अंधभक्ति में बाबा की पेशाब को “प्रसाद” मानकर पी सकते हैं, लेकिन जाति के नाम पर दलित व्यक्ति के छूने मात्र से पानी अपवित्र मान लिया जाता है। इन समस्याओं की जड़ें धर्म, राजनीति, शिक्षा और मीडिया की भूमिका में छिपी […] Read more » आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी
लेख समाज भारतीय जनमानस कहां जा रहा है April 10, 2025 / April 10, 2025 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा भारत जैसा देश जहां विभीषण और जामवंत जैसे नीतिज्ञ हुए जिनकी परंपरा का निर्वहन करते हुए विदुर से लेकर कौटिल्य तक हमारे आदर्श हुए,आज उन्हीं मनीषियों के देश का युवा निर्णयहीन सा दिखता है। पंचतंत्र और हितोपदेश पढ़ने वाले देश का युवा आज तर्कशीलता और वाक्पटुता का आचरण तक नहीं जानता। ध्रुव, प्रह्लाद, नचिकेता और आदिशङ्कर के देश में जन्मा युवा आज मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। जिस देश में ‘यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता’ पढ़ाया जाता हो,उस देश में महिला अपराध का वर्ष दर वर्ष बढ़ना एक खतरनाक संकेत है। जिस देश में स्त्री का उदाहरण सीता, सती और सावित्री हों, वहां की नारी दहेज और एल्युमनी का केस करती है । जिस देश में राम,शिव और कृष्ण जैसे पुरुष का उदाहरण हो जिन्होंने स्त्री को सदैव पुरुष के समतुल्य माना, उस देश में पुरुष का स्त्री को सिर्फ घर और भोग तक सीमित रखना अजीब लगता है । रामायण और गीता पढ़ने वाले देश में अवसादग्रस्त युवा, योद्धाओं के वाङ्मय पढ़कर जवान हुआ युवा अपने अंतर्द्वंद्व से हार जा रहा है। भारत में बीते दशकों में हुई संचार क्रांति ने भारत के संयुक्त परिवार को एकल परिवार और परिवार नियोजन से लेकर आईवीएफ तक पहुँचा दिया है। सभी के हाथ का फोन स्मार्ट हो गया और सब भोले बन गए। फोन पतला होकर स्लिम ट्रिम और फिट हो रहा है और युवा बेडौल होते जा रहे हैं। खुद के शरीर में जंक फूड डाल रहे हैं और हर हफ़्ते समय से फोन का जंक क्लियर करते हैं। फैमिली टाइम नगण्य या शून्य हो रहा है और स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है।आज सिर ऊपर करके बात किए घंटों बीत जाते हैं। गर्दन के दोनों किनारे की मसल्स पुश करना अच्छा लगता है क्योंकि युवा बेवज़ह के तनाव में हैं। चाय या सिगरेट पीते वक्त यहां तक कि अब लोग टायलेट में भी अपने फोन की स्क्रीन स्क्रॉल कर रहे हैं। यहां सब कुछ उपलब्ध है जो लोग देखना चाहते हैं, अश्लील साहित्य, पोर्न, क्राइम रिलेटेड, रिलेशनशिप, मोटिवेशनल हर तरह के वीडियोज और उनकी रील्स। एक डेटा के अनुसार औसत भारतीय दिन के पांच घंटे रील्स देख रहा है और पंद्रह सेकेंड में यह तय कर ले रहा है कि यह रील देखनी है या नहीं। फिर उसे स्क्रॉल करके आगे बढ़ जा रहा है। लेकिन यही भारतीय एक निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखता। वह कम से कम बीस लोगों से उसका अच्छा और बुरा पूछता है। आज हम आप या अन्य कोई भी हो, देर रात जागते हैं, कारण बढ़ती अनिद्रा जिसका कारण भी हाथ का फोन है। इस फोन ने लोगों मौन कर दिया है। हम घर आकर किसी से बात तक नहीं करते न कोई घरवाला बात करना चाहता है। किसी को यह चिंता नहीं कि कैसे हैं। आज ऑफिस में या कालेज या अन्य जहां भी हैं वहां क्या हुआ ? साथी आपके साथ कैसे हैं? किसी को इन सबसे कोई मतलब नहीं। सबको महीने की पगार या मार्कशीट से मतलब है। सभी अपने-अपने फोन में व्यस्त हैं। लोग इसी अकेलेपन से जूझते हुए अपने फोन को अपना साथी बना लेते हैं, मजबूरन। लेकिन लोग किन चिंताओं की चिता पे लेट रहे हैं, किसी को कोई परवाह नहीं। फिर अचानक हुई आत्महत्या के बाद लोग कहते हैं, सब कुछ अच्छा था। रोज हंसता हुआ आता-जाता था।ऐसा अचानक कैसे हुआ? कुछ भी अचानक से नहीं हुआ है। वह व्यक्ति अपने मन की बात कहना चाहता था जिसे सुनने वाला कोई नहीं था। अगर वो बात समय पर किसी से कह देता तो आज उसका पंचनामा न हो रहा होता। वह ऐसी बात थी जिसे सबसे कहना उचित नहीं समझता था और शायद सामाजिक बदनामी से भी डरता था। किसी को दिया उधार,कोई प्रेम प्रसंग, किसी विषय में फेल होने का अपराधबोध ऐसे तमाम कारण होते हैं जिसे हम सबसे साझा नहीं कर सकते और यही हमारी मानसिक अस्वस्थता का रुप लेते हैं। आज मानसिक तनाव से हर पांचवां भारतीय ग्रसित है। हर कोई पीड़ित होने के बाद आत्महत्या नहीं करता हैं। कुछ जगह संबंध-विच्छेद और अपराध के भी मामले देखे जाते हैं। विदेशों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्पेशल कोर्स,दवाएं और कुछ विशेष अस्पतालों का निर्माण किया गया है जहां पीड़ित व्यक्ति को परिवार जैसा देखभाल देने की तैयारी की गई है जबकि भारत में लोगों को मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना ऐसा लगता है कि पागलों की बात कर रहा है। कुछ बुद्धिमान मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दे देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य मनोचिकित्सकों के लिए ऐसा है,जैसे फल की दुकान में सब्जी बेची जाए। राजनीति, तंत्र और व्यापार से इतर एक सत्य यह है कि अगले कुछ वर्षों बाद भारत में मानसिक स्वास्थ्य का व्यापार हजारों करोड़ का होने वाला है। क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं ? शिवानंद मिश्रा Read more »
आर्थिकी लेख शेयर मार्केट में निवेशक: धोखे से कैसे बचें April 10, 2025 / April 10, 2025 by पंकज जायसवाल | Leave a Comment पंकज गांधी जायसवाल डिजिटलीकरण ने मोबाइल सबके हाथ में पकड़ा दिया है और इस यंत्र के सहारे शेयर मार्किट अब देश के आम आदमी की मुट्ठी में आ गया है. एक दशक पूर्व शेयर मार्किट में निवेश करना एक क्लिक बटन दबाने जैसा नहीं था. डिजिटल इंफ़्रा के विकास ने इसे शहरों से लगायत गांव […] Read more » How to avoid fraud in share market Investors in the stock market