लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-32 January 6, 2018 / January 8, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज भारत ने ऐसे ही समदर्शी विद्वानों को उत्पन्न करने का कारखाना लगाया, और उससे अनेकों हीरे उत्पन्न कर संसार को दिये। भारत के जितने भर भी महापुरूष, ज्ञानी-ध्यानी तपस्वी, साधक, और सन्त हुए हैं वे सभी इसी श्रेणी के रहे हैं। इन लोगों ने गीता […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग गीता का पांचवां अध्याय विश्व समाज
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-31 January 6, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज वह इनके बीच में रहता है, पर इनके बीच रहकर भी इनके दुष्प्रभाव से या पाप पंक से स्वयं को दूर रखने में सफल हो जाता है। श्रीकृष्णजी अर्जुन से कह रहे हैं कि जो कर्मयोगी नहीं है, वह कामना के वशीभूत होकर […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य सांझ सकारे सूर्योदय January 5, 2018 by अरुण तिवारी | Leave a Comment बच्चों और बुजुर्गों के साझे और संवाद को प्रेरित करता एक प्रसंग अरुण तिवारी राजनाथ शर्मा, वैसे तो काफी गंभीर आदमी थे। लेकिन जब से पचपन के हुए, उन पर अचानक जैसे बचपन का भूत सवार हो गया। जब देखो, तब बचपन की बातें और यादें। रास्ते चलते बच्चों को अक्सर छेड़ देते। रोता हो, तो हंसा […] Read more » सांझ सकारे सूर्योदय
आर्थिकी लेख विश्व व्यापार संगठन और भारतीय कृषि January 3, 2018 by दुलीचंद कालीरमन | Leave a Comment दुलीचन्द रमन 164 सदस्य देशों वाले विश्व व्यापार संगठन का 11वां मंत्री स्तरीय सम्मेलन अर्जेटिना के ब्यूनेस आयर्स में 13 दिसंबर 2017 को सम्पन्न हो गया। इस सम्मेलन के नतीजों का आंकलन करें तो इस विश्व संस्था के भविष्य पर सवालिया निशान लग जाते है। विश्व व्यापार संगठन के आलोचकों ने 1995 में इसके गठन […] Read more » Indian Agriculture World Trade Organization भारतीय कृषि विश्व व्यापार संगठन
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-30 January 3, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का पांचवां अध्याय और विश्व समाज कर्मयोग श्रेष्ठ या ज्ञानयोग श्रेष्ठ है जैसे आजकल विभिन्न सम्प्रदायों की तुलना करते समय एक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति सभी धर्मों अर्थात सम्प्रदायों को श्रेष्ठ बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है और वह उनमें से किसी के भी अनुयायी या मानने वाले को निराश […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-29 January 3, 2018 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य   गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज गीता में आगे गीताकार श्रीकृष्णजी के मुखारविन्द से कहलवाता है कि हे पार्थ! इस संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आहार को सन्तुलित और नियमित करके अपने प्राणों से प्राणों में ही आहुति देेते हैं। (भारतवर्ष में ऐसे ऐसे योगी भी […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य भैया! , सही सही लगाओ January 1, 2018 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा “सस्ता रोये बार बार, मँहगा रोये एक बार” यह कहावत सदियो से (पैदल)चली आ रही है लेकिन इस कहावत से पूंजीवादी होने की बदबू, 1600 CC इंजन वाली गाडी की गति की तरह तेज़ आती है, जो हमारे समाजवादी समाज की नाक में दम और दमा दोनों करने का माद्दा रखती है। इस […] Read more » मोलभाव
लेख साहित्य कर्मफल January 1, 2018 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी भारतीय संस्कृति कर्मफल में विश्वास करती है । हमारे यहाँ कर्म की गति पर गहन विचार किया गया है और बताया गया है कि जो कुछ फल प्राप्त होता है, वह अपने कर्म के ही कारण होता हैः- मनुष्याः कर्मलक्षण( म.भा. अश्वमेघ पर्व 43- 21) अर्थात् मनुष्य का लक्षण कर्म ही है […] Read more » कर्मफल
लेख शब्द January 1, 2018 by राजेश करमहे | Leave a Comment काल “कलयति संख्याति सर्वान् पदार्थान् स कालः।” [जो जगत् के सब पदार्थो और जीवों को आगे बढ़ने को बाध्य करता है और उनकी संख्या (आयु) करता है, वही काल है।] ‘कल संख्याने’ धातु में ‘अच’ प्रत्यय करने से ‘काल’ शब्द बनता है। ‘कल’ का दो अर्थ है – १. गिनना या गिनती करना और २. […] Read more » काल
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-28 December 30, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज अर्जुन! तुझे याद रखना चाहिए कि जो व्यक्ति सहज प्राप्त वस्तु से सन्तुष्ट है, सुख-दु:खादि द्वन्द्वों से दूर है उनसे परे हो गया है अर्थात उन्हें अपने पास फटकने तक नहीं देता और न स्वयं उधर कभी जाता हुआ देखा जाता है अर्थात चोरी करते […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख साहित्य गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-27 December 30, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य गीता का चौथा अध्याय और विश्व समाज इसी आनन्दमयी सांसारिक परिवेश को ‘विश्वशान्ति’ कहा जाता है। जिनका चित्त मैला कुचैला है, हिंसक है, दूसरों पर अत्याचार करने वाला है-उनका भीतरी जगत उपद्रवी और उग्रवादी होने से हिंसक हो जाता है, जिसमें शुद्घता नाम मात्र को भी नहीं होती। फलस्वरूप उनका बाहरी जगत […] Read more » Featured geeta karmayoga of geeta आज का विश्व गीता गीता का कर्मयोग
लेख वर्ण धर्म और भक्ति : हरि को भजे सो हरि का होई December 28, 2017 / December 28, 2017 by डॉ. चंदन कुमारी | Leave a Comment डॉ. चंदन कुमारी क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर– इन पंचभूतों की समनिर्मिति है समग्र सृष्टि फिर भेद-भाव वाली द्वैतबुद्धि का औचित्य कैसा ! गोस्वामी तुलसीदास के काव्य में वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा झलकती है | उस वर्णाश्रम धर्म का मूल स्वरूप मानो आज धूमिल हो गया है और उसके भ्रामक संस्करण को गले लगाकर […] Read more » caste caste Religion and Devotion Devotion Religion धर्म भक्ति वर्ण