Category: लेख

लेख साहित्‍य

मुगल वंश से पहले ही हो गया था कश्मीर का पीड़ादायक धर्मांतरण

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हैदरशाह का विश्वास पात्र भ्रत्यपूर्ण नामक एक नापित था। वह लोगों का अंग विच्छेद करवा देता था, यह उसके लिए एक साधारण बात हो गयी थी। उसने ठक्कुर आदि जैनुल आबेदीन के विश्वासपात्रों को आरों से चिरवा दिया था। राह चलते लोगों को अनायास पकडक़र पांच-पांच, छह-छह को एक साथ सूली पर चढ़वा दिया। वैदूर्य और भिषग को दूषक तथा परपथगामी जानकर हाथ, नाक और ओष्ठ पल्लव कटवा दिये। शिख, नोनक आदि संभ्रांत पांच छह व्यक्तियों की जीभ, नाक व हाथ कटवा दिये। लोग इतने आतंकित हो गये थे कि भय से स्वयं वितस्ता व झेलम में डूबकर भीम व जज्ज के समान प्राण विसर्जन कर देते थे। (भीम एवं जज्ज इन दोनों लब्धप्रतिष्ठित पंडितों ने नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या की थी) राजा स्वयं भी इन क्रूर हत्याओं के लिए प्रेरणा देता था।

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लेख साहित्‍य

वैद्यराज श्री भट्ट के प्रयासों से कश्मीर फिर से बन गया था स्वर्ग

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‘‘सामान्य रूप से यही समझा जाता है कि जौहर की प्रथा केवल राजपूतों में ही विद्यमान थी। परंतु ग्रीक सैनिकों ने भारतीय वीरों के इस आत्मोत्सर्ग से अभिभूत होकर उसका जो वर्णन किया है, उससे स्पष्ट है कि राजपूतों से पूर्व भी अपने देश में भारतीय वीरों में जौहर की तेजस्वी परंपरा कायम थी। जौहर शब्द की उत्पत्ति भी संभवत: जयहर शब्द से हुई हो। समरांगण में जीवन और मृत्यु का सौदा करने वाले भारतीय वीरों के अधिदेव थे-हर अर्थात महादेव। इसीलिए जयहर का घोष करती हुई भारतीय वीरों की वाहिनियां समरांगण में शत्रु सैन्य पर टूट पड़ती थीं। आगे चलकर मराठों का भी रणघोष ‘हर-हर महादेव’ ही प्रचलित हुआ।

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