लेख साहित्य मुगल वंश से पहले ही हो गया था कश्मीर का पीड़ादायक धर्मांतरण April 14, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment हैदरशाह का विश्वास पात्र भ्रत्यपूर्ण नामक एक नापित था। वह लोगों का अंग विच्छेद करवा देता था, यह उसके लिए एक साधारण बात हो गयी थी। उसने ठक्कुर आदि जैनुल आबेदीन के विश्वासपात्रों को आरों से चिरवा दिया था। राह चलते लोगों को अनायास पकडक़र पांच-पांच, छह-छह को एक साथ सूली पर चढ़वा दिया। वैदूर्य और भिषग को दूषक तथा परपथगामी जानकर हाथ, नाक और ओष्ठ पल्लव कटवा दिये। शिख, नोनक आदि संभ्रांत पांच छह व्यक्तियों की जीभ, नाक व हाथ कटवा दिये। लोग इतने आतंकित हो गये थे कि भय से स्वयं वितस्ता व झेलम में डूबकर भीम व जज्ज के समान प्राण विसर्जन कर देते थे। (भीम एवं जज्ज इन दोनों लब्धप्रतिष्ठित पंडितों ने नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या की थी) राजा स्वयं भी इन क्रूर हत्याओं के लिए प्रेरणा देता था। Read more » conversion of hindus to muslims in Kashmir Featured कश्मीर का धर्मांतरण मुगल वंश
लेख साहित्य वैद्यराज श्री भट्ट के प्रयासों से कश्मीर फिर से बन गया था स्वर्ग April 9, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment ‘‘सामान्य रूप से यही समझा जाता है कि जौहर की प्रथा केवल राजपूतों में ही विद्यमान थी। परंतु ग्रीक सैनिकों ने भारतीय वीरों के इस आत्मोत्सर्ग से अभिभूत होकर उसका जो वर्णन किया है, उससे स्पष्ट है कि राजपूतों से पूर्व भी अपने देश में भारतीय वीरों में जौहर की तेजस्वी परंपरा कायम थी। जौहर शब्द की उत्पत्ति भी संभवत: जयहर शब्द से हुई हो। समरांगण में जीवन और मृत्यु का सौदा करने वाले भारतीय वीरों के अधिदेव थे-हर अर्थात महादेव। इसीलिए जयहर का घोष करती हुई भारतीय वीरों की वाहिनियां समरांगण में शत्रु सैन्य पर टूट पड़ती थीं। आगे चलकर मराठों का भी रणघोष ‘हर-हर महादेव’ ही प्रचलित हुआ। Read more » Featured कश्मीर फिर से बन गया स्वर्ग वैद्यराज श्री भट्ट
लेख साहित्य भारत राष्ट्र April 2, 2017 by सुरेन्द्र नाथ गुप्ता | Leave a Comment सुरेंद्र नाथ गुप्ता भारतीय संस्कृति ने अखिल ब्रह्मांड के कण-कण में अनन्त चेतन परमब्रह्म परमात्मा का दर्शन किया है। भारत ने मानव ही नही वरन सम्पूर्ण प्राणी मात्र -जल चर, थल चर, नभ चर एवम् बनस्पतियों के भी कल्याण का आदर्श अपनाया है, इसीलिये ऋग्वेद में घोषणा की गयी कि सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। […] Read more » भारत राष्ट्र
लेख साहित्य धर्म का सत्य —- विज्ञान का सत्य March 22, 2017 by गंगानन्द झा | Leave a Comment सबसे सुन्दर और गम्भीर अनुभूतियाँ, जिनका हम अनुभव कर सकते हैं, अध्यात्म की सिहरन है। यह विज्ञान की शक्ति है। — एलबर्ट आइंस्टिन भगवान और भूत तमाम मानव सभ्यताओं में प्रारम्भ से मौजूद रहे हैं। इनके जरिए आदमी अपनी प्रासंगिकता समझता रहा है। प्राचीन सभ्यताएँ जीवों के साथ नदी, पर्वत, तथा हवा जैसी निर्जीव वस्तुओं […] Read more » dharam and science religion and science धर्म का सत्य विज्ञान का सत्य
लेख साहित्य यकीऩ मानिए, आपके शब्द आपको महान बना देंगे March 22, 2017 by शालिनी तिवारी | 1 Comment on यकीऩ मानिए, आपके शब्द आपको महान बना देंगे यकीनन् यह हमें मानना ही होगा कि हम सब कुछ विशेष कार्य के निमित्त जन्में हैं. जीवन को व्यसनों, कुविचारों और अन्धकार में बिताने से तो ठीक ही है कि अपने मनो-मस्तिष्क एवं शब्दों को पवित्र रखें. हाँ कुछ लोग आज यह जरूर बोलते हैं कि अब इमानदारी का जमाना नहीं रहा. वह शायद आज यह भूल चुके हैं कि दुनियाँ को चलाने वाला सर्वशक्तिमान पहले भी वही था और आज भी वही है. Read more » Featured शब्द शब्द आपको महान बना देंगे
लेख साहित्य विश्वकाव्य दिवस के अवसर पर हिन्दी के कवियों का स्मरण भी आवश्यक March 22, 2017 / March 22, 2017 by डाॅ. कृष्णगोपाल मिश्र | Leave a Comment सुयश मिश्र 21 मार्च विश्वकाव्य दिवस के अवसर पर हिन्दी के एक बड़े अखबार (दैनिक भास्कर) जो कि स्वयं को देश का सबसे विश्वसनीय और नंबर-1 अखबार’ घोषित करता है, ने ‘ये हैं दुनियाँ की अब तक की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं’ शीर्षक से बड़ा समाचार प्रकाशित किया। इस समाचार में विलियमशेक्सपियर कृत ‘सानेट-18’, जानडन कृत डेथ, […] Read more » विश्वकाव्य दिवस
लेख साहित्य एक बार फिर … March 20, 2017 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on एक बार फिर … तुम्हारा वक्तव्य पढ़ कर (चूँकि स्त्रियाँ इस मार्ग पर आ गयी हैं इसलिये ब्रह्मचर्य चिरजीवी नहीं होगा और सद्धर्म केवल पाँच सौ वर्षों तक चलेगा.“)पहले तो मैं यह समझने का यत्न करती रही कि इसके लिये दोषी किसे मानें -स्त्रियों को, सद्धर्म में दीक्षित ब्रह्मचर्य निभानेवाले को , या मानव की स्वाभाविक वृत्तियाँ को ? Read more »
लेख साहित्य इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा है वीरांगना अवंतीबाई लोधी का नाम March 18, 2017 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment वीरांगना अवंतीबाई लोधी ने वीरांगना झाँसी की रानी की तरह ही अपने पति विक्रमादित्य के अस्वस्थ्य होने पर ऐसी दशा में राज्य कार्य संभाल कर अपनी सुयोग्यता का परिचय दिया और अंग्रेंजों की चूलें हिला कर रख दी। सन 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम छिडा तो क्रान्तिकारियो का सन्देश रामगढ भी पहुंचा। रानी तो अंग्रेजो से पहले से ही जली भुनी बैठी थी। क्योकि उनका राज्य भी झाँसी की तरह कोर्ट कर लिया गया था। Read more » Featured वीरांगना अवंतीबाई वीरांगना अवंतीबाई लोधी
लेख शख्सियत साहित्य देह के बाद अनुपम March 4, 2017 by अरुण तिवारी | 2 Comments on देह के बाद अनुपम अरुण तिवारी जब देह थी, तब अनुपम नहीं; अब देह नहीं, पर अनुपम हैं। आप इसे मेरा निकटदृष्टि दोष कहें या दूरदृष्टि दोष; जब तक अनुपम जी की देह थी, तब तक मैं उनमें अन्य कुछ अनुपम न देख सका, सिवाय नये मुहावरे गढ़ने वाली उनकी शब्दावली, गूढ से गूढ़ विषय को कहानी की तरह […] Read more » Anupam Mishra death of Anupam Mishra Featured अनुपम मिश्र परंपरागत वर्षा जल-संरक्षण
कला-संस्कृति लेख साहित्य होली के रंगों का आध्यात्मिक महत्व March 2, 2017 by ललित गर्ग | Leave a Comment श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय बन जाते हैं। ज्योतिकेंद्र पर श्वेत रंग, दर्शन-केंद्र पर लाल रंग और ज्ञान-केंद्र पर पीले रंग का ध्यान करने से क्रमशः शांति, सक्रियता और ज्ञानतंतु की सक्रियता उपलब्ध होती है। होली के ध्यान में शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न रंगों का ध्यान कराया जाता है और इस तरह रंगों के ध्यान में गहराई से उतरकर हम विभिन्न रंगों से रंगे हुए लगने लगा। Read more » होली
लेख स्मारकों के सुरक्षा में हम कितने सफल February 28, 2017 / February 28, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा.राधेश्याम द्विवेदी स्मारक किसे कहते हैं:- कोई वस्तु या रचना जो किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति या घटना की स्मृति को बनाए रखने के लिए हो, स्मारक कहलाता है, जैसे- शहीद स्मारक, मकबरा, समाधि, स्तूप और निशानीय स्मृति चिह्न आदि। राष्ट्रीय स्मारक एक एसा स्मारक होता है जिसे उस देश के इतिहास, राजनीति या उसके लोगों के […] Read more » स्मारकों के सुरक्षा
कला-संस्कृति लेख जहां कण-कण में बिखरी है ऋषि वाल्मिकी की स्मृतियां…!! February 27, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा — सीता ने व्यतीत किया था अज्ञातवास — लव-कुश का हुआ था जन्म आधुनिकता के उच्चतम शिखर पर जहां आज भी मानव जीवन के चिह्न नदारद हो वहां सदियों पहले मानवीय दिनचर्या की उपस्थिति किसी को भी देवत्व प्रदान करने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में सामान्य जीवन यापन […] Read more » Featured ऋषि वाल्मिकी पश्चिम मेदिनीपुर जिला अंतर्गत नयाग्राम के तपोवन