लेख भारतीय शोधार्थियों को प्रोत्साहन की जरूरत September 23, 2025 / September 23, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment संदर्भः शोध विकास संस्थानों के बजट में कमीप्रमोद भार्गवपक्षियों के पंख अपने आप में संपूर्ण रूप में विकसित होते हैं, लेकिन हवा के बिना कोई भी पक्षी उड़ान नहीं भर सकता। यही स्थिति भारत में नवाचारी प्रयोगधर्मियों के साथ रही है। उनमें कल्पनाशील असीम क्षमताएं हैं, लेकिन कल्पनाओं को आकार देने के लिए प्रोत्साहन एवं वातावरण नहीं […] Read more » Indian researchers need encouragement भारतीय शोधार्थियों को प्रोत्साहन की जरूरत
लेख भारत के इतिहास के गौरव : छावा संभाजी अध्याय – १ September 23, 2025 / September 23, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment संभाजी के पिता छत्रपति शिवाजी मैथिलीशरण गुप्त जी भारत के स्वर्णिम अतीत को रेखांकित करते हुए लिखते हैं :- उनके चतुर्दिक-कीर्ति-पट को है असम्भव नापना,की दूर देशों में उन्होंने उपनिवेश-स्थापना ।पहुँचे जहाँ वे अज्ञता का द्वार जानो रुक गया,वे झुक गये जिस ओर को संसार मानो झुक गया॥” भारत के जिन वीर इतिहास नायकों के […] Read more » Pride of Indian History: Chhava Sambhaji छावा संभाजी
राजनीति लेख एकात्म मानववाद की दृष्टि से अंत्योदय और नारी उत्थान: पंडित दीनदयाल उपाध्याय का संदेश September 23, 2025 / September 23, 2025 by डा. शिवानी कटारा | Leave a Comment डा. शिवानी कटारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी भारतीय राजनीति और चिंतन के उन युगदृष्टा विचारकों में गिने जाते हैं जिन्होंने समाज और राष्ट्र को केवल आर्थिक नज़रिए से नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा, सांस्कृतिक आत्मा और सामाजिक समरसता की दृष्टि से देखा। उनका दर्शन—एकात्म मानववाद—हमें यह सिखाता है कि जीवन को खंडों में बाँटकर नहीं, बल्कि […] Read more » Antyodaya and women's upliftment from the perspective of Integral Humanism: The message of Pandit Deendayal Upadhyaya एकात्म मानववाद की दृष्टि से अंत्योदय और नारी उत्थान
लेख चरमपंथी अपने हितों के लिए पवित्र धार्मिक ग्रंथों की तोड़-मरोड़ कर करते हैं व्याख्या September 23, 2025 / September 23, 2025 by गौतम चौधरी | Leave a Comment गौतम चौधरी किसी भी आस्था के साथ खिलवाड़ किया जा सकता है। यह आसान है और इसे करना कठिन नहीं है। धर्म मानवता को संमृद्ध करने और समाज को आगे बढ़ाने के लिए काम करने वाला चिंतन है लेकिन इसी चिंतन को कभी-कभी चरमपंथी अपने हितों के लिए उपयोग करने लगते हैं। यह किसी भी […] Read more » Extremists distort sacred religious texts to suit their own interests. चरमपंथी
लेख झूठे दुष्कर्म के मामलों में पिसता पुरुष समाज September 22, 2025 / September 22, 2025 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी जब दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था तो पूरे देश में महिलाओं से होने वाले दुष्कर्म के प्रति गुस्सा भर गया था और जनता सड़कों पर आ गई थी । इस कांड के बाद ही संसद ने ऐसे मामलों को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया था लेकिन ऐसे मामले रुक नहीं […] Read more » Male society suffers in false rape cases झूठे दुष्कर्म के मामलों में पिसता पुरुष समाज झूठे दुष्कर्म में पिसता पुरुष समाज
लेख समाज संवादहीनता: परिवार और समाज की चुनौती September 22, 2025 / September 22, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment आज के व्यस्त और डिजिटल जीवन में संवादहीनता परिवार और समाज की बड़ी चुनौती बन गई है। बातचीत की कमी भावनात्मक दूरी, गलतफहमियाँ और मानसिक तनाव बढ़ाती है। परिवार में बच्चे और बड़े एक-दूसरे की भावनाओं को साझा नहीं कर पाते, जबकि समाज में सहयोग और सामूहिक प्रयास कमजोर पड़ते हैं। इसका समाधान नियमित संवाद, […] Read more » Lack of communication: A challenge for family and society संवादहीनता
लेख गाँव और शहर का रिश्ता कैसा हो September 19, 2025 / September 20, 2025 by शम्भू शरण सत्यार्थी | Leave a Comment शम्भू शरण सत्यार्थी मनुष्य का जीवन केवल उसके व्यक्तिगत अस्तित्व तक सीमित नहीं है. वह अपने आसपास के समाज, संस्कृति और वातावरण से गहराई से जुड़ा हुआ है। मानव सभ्यता की यात्रा आरम्भ से लेकर आज तक एक लम्बा और संघर्षपूर्ण इतिहास समेटे हुए है। इस यात्रा में गाँव और शहर दोनों की अपनी-अपनी भूमिका […] Read more »
लेख सरकारी नौकरी: सुरक्षा या मानसिकता? September 19, 2025 / September 20, 2025 by अमरपाल सिंह वर्मा | Leave a Comment राजस्थान में चपरासी के 53 हजार 749 पदों पर भर्ती के लिए लाखों उच्च शिक्षित युवाओं के आवेदन करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं अमरपाल सिंह वर्मा राजस्थान में हाल ही में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (चपरासी) के 53 हजार 749 पदों पर भर्ती के लिए जो आवेदन आए, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इन पदों के लिए कुल 24 लाख 75 हजार बेरोजगार युवाओं ने आवेदन किया है। इस भर्ती के लिए निर्धारित शैक्षणिक योग्यता दसवीं कक्षा पास है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि आवेदकों में से करीब 75 प्रतिशत अभ्यर्थी दसवीं पास से कहीं ज्यादा शिक्षित हैं, यानी इंजीनियरिंग, प्रबंधन, वाणिज्य, कम्प्यूटर विज्ञान में स्नातक से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई करने वाले युवा भी अब चपरासी बनने की कतार में खड़े हैं। यह तस्वीर केवल राजस्थान की नहीं है बल्कि पूरे देश में बेरोजगारी का यही स्वरूप दिखाई देता है। जब लाखों पढ़े-लिखे युवा एक मामूली चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी शिक्षा व्यवस्था, रोजगार नीति और सामाजिक सोच युवाओं को किस दिशा में ले जा रही है? हमारे समाज में सरकारी नौकरी को अब भी सबसे सुरक्षित और सम्मानजनक कॅरियर माना जाता है। अब तो कन्या पक्ष विवाह के लिए भी सरकारी नौकरी वाले लडक़े को ही तरजीह देता है। स्थाई वेतन, पेंशन जैसी सुविधाएं और सामाजिक प्रतिष्ठा युवाओं को इस ओर आकर्षित करती है लेकिन आज चपरासी बनने के लिए भी जिस हद तक भीड़ उमड़ रही है, उसे जाहिर है कि सरकारी नौकरी के प्रति मोह एक जुनून बन चुका है। युवा वर्ग स्वरोजगार, निजी क्षेत्र या पैतृक व्यवसाय की बजाय सरकारी नौकरी पाने के लिए वर्षों तक परीक्षाओं की तैयारी में अपनी ऊर्जा खर्च कर रहा है। खेती की ओर तो अब किसान पुत्र भी नहीं झांक रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि लाखों युवा न तो समय पर रोजगार पा रहे हैं और न ही अपनी क्षमता का सही उपयोग कर पा रहे हैं। कई बार तो योग्यताओं के असंतुलन के कारण स्थिति और भी विकट हो जाती है। जब एक एमबीए या बीटेक छात्र चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करता है तो वह केवल खुद को ही नहीं बल्कि एक वास्तविक दसवीं पास बेरोजगार को भी प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देता है। राजस्थान में चपरासी भर्ती के लिए उच्च शिक्षित युवाओं की भीड़ उमडऩे से एक और गंभीर सवाल खड़ा हो गया है कि क्या हमारी शिक्षा युवाओं को वास्तव में रोजगार दिलाने लायक बना रही है? अगर लाखों स्नातक और स्नातकोत्तर केवल चपरासी बनने की चाह रखते हैं तो इसका सीधा मतलब है कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी नहीं रही। शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री बांटना नहीं होना चाहिए बल्कि छात्रों को ऐसा कौशल और आत्म विश्वास देना चाहिए कि वे अपने दम पर रोजगार खड़ा कर सकें। दुर्भाग्य से आज अधिकांश युवा डिग्रीधारी तो हैं लेकिन कौशलहीन हैं। इसी वजह से वे निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते और अंतत: सरकारी नौकरी की दौड़ में लग जाते हैं। सरकार ने कौशल भारत मिशन और अन्य योजनाओं के जरिए कौशल विकास पर जोर तो दिया है लेकिन उसकी पहुंच और असर अब भी सीमित है। आईटी, कृषि, निर्माण, स्वास्थ्य और सेवा क्षेत्र में असीमित संभावनाएं हैं लेकिन वहां प्रशिक्षित और दक्ष लोगों की कमी बनी हुई है। आज स्टार्टअप संस्कृति पूरे देश में फैल रही है पर हमारे ग्रामीण और कस्बाई इलाकों के लाखों युवा इससे वंचित हैं। बड़ा सवाल है कि इस समस्या का समाधान क्या है? इसके लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। अगर उच्च शिक्षा के साथ युवाओं को कौशल आधारित प्रशिक्षण दिया जाए तो वे न केवल आत्म निर्भर बनेंगे बल्कि स्वरोजगार और उद्यमिता की राह भी चुन सकेंगे। सरकार की रोजगार नीतियों को व्यावहारिक बनाना होगा। समाज को भी सरकारी नौकरी की मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है। हर जिले में उच्च स्तरीय कौशल केंद्र विकसित कर आईटी, कृषि, निर्माण, मशीनरी और सेवा क्षेत्र की जरूरतों के अनुसार युवाओं को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यदि सरकार युवाओं को छोटे उद्योग-व्यवसाय शुरू करने के लिए आसान ऋण, तकनीकी सहयोग और बाजार उपलब्ध कराए तो उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। राजस्थान में चपरासी बनने के लिए लाखों युवाओं के उमडऩे से साफ है कि बेरोजगारी केवल आंकड़ों का खेल नहीं है बल्कि यह हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक सोच की विफलता का परिणाम है। स्वरोजगार भी सरकारी नौकरी जितना ही सम्मानजनक और सुरक्षित हो सकता है, युवाओं को यह भरोसा दिलाना होगा। परिवार और समाज को यह स्वीकार करना होगा कि रोजगार केवल सरकारी नौकरी तक सीमित नहीं है। स्वरोजगार, निजी क्षेत्र और पैतृक व्यवसाय भी उतने ही सम्मानजनक हैं। इनके जरिए न केवल आजीविका बल्कि समाज में मान-सम्मान भी हासिल किया जा सकता है। अमरपाल सिंह वर्मा Read more » सरकारी नौकरी
लेख विश्ववार्ता शरणार्थियों के स्वागत का निर्णय आज जर्मनी की सबसे बड़ी समस्या बन कर उभरा है September 19, 2025 / September 19, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे जर्मनी पहले और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यह देश दुनिया के बेताज बादशाह था। उसके बाद के दिनों में भी यह यूरोप की एक सबसे बड़ी ताकत थी लेकिन बीते एक दशक में यहां बहुत कुछ बदला है। कई बार ऐसा होता है कि सदियों से चली आ रही चीजें महज कुछ वर्षों […] Read more » The decision to welcome refugees has emerged as Germany's biggest problem today. शरणार्थियों के स्वागत का निर्णय
Tech लेख इंजीनियरिंग शिक्षा: अब कम होगी कंप्यूटर साइंस की सीटें September 19, 2025 / September 19, 2025 by राजेश जैन | Leave a Comment राजेश जैन पिछले दशक में इंजीनियरिंग की कंप्यूटर साइंस, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस, मशीन लर्निंग जैसी टेक्नोलॉजी उन्मुख शाखाएं छात्रों और कॉलेजों, दोनों की पहली पसंद बन गयी थीं। कारण स्पष्ट हैं — उच्च सैलरी, नौकरी के ग्लोबल अवसर, इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी उद्योग की होड़ और डिजिटल इंडिया की महत्वाकांक्षाएं। इस सफलता की चमक ने यह सोच दी कि जितना हो सके सीएसई […] Read more » Engineering Education: Computer Science seats will now be reduced इंजीनियरिंग शिक्षा
लेख समाज सार्थक पहल दिव्यांगजन की आवाज़: मुख्यधारा से जुड़ने की पुकार September 19, 2025 / September 19, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment (सहानुभूति से परे, कानून, शिक्षा, रोज़गार, मीडिया और तकनीक के माध्यम से बराबरी व सम्मान की ओर) भारत में करोड़ों दिव्यांगजन आज भी शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सार्वजनिक जीवन में हाशिए पर हैं। संवैधानिक अधिकारों और 2016 के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के बावजूद सामाजिक पूर्वाग्रह, ढांचागत बाधाएँ और मीडिया में विकृत छवि उनकी गरिमा को […] Read more » Voice of the Disabled: A Call to Join the Mainstream दिव्यांगजन की आवाज़
लेख विधि-कानून न्यायिक ढांचे में विस्तारक विकेन्द्रीयकरण जरूरी September 18, 2025 / September 18, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment धीतेन्द्र कुमार शर्मा गुजरे 12 सितम्बर को राजस्थान की वकील बिरादरी में तूफानी हलचल थी। राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर और जयपुर दोनों पीठ, राजधानी जयपुर, और कोचिंग कैपिटल कोटा, झीलों की नगरी उदयपुर के अलावा कई स्थानों पर बार एसोसिएशनों (अधिवक्ताओं के संगठन) ने तल्ख प्रदर्शनों के साथ हड़ताल (न्यायिक कार्य बहिष्कार) रखी। वजह बना केन्द्रीय कानून […] Read more » न्यायिक ढांचे में विस्तार