राजनीति व्यंग्य कागज़ नहीं दिखाएंगे January 21, 2020 / January 21, 2020 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ “युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में डिग्री लेकर पास आउट […] Read more » कागज़ नहीं दिखाएंगे
व्यंग्य कंबल है कि पद्श्री अलंकरण ! January 18, 2020 / January 18, 2020 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल गरीबी और ठंड का रिश्ता जन्म जन्मांतर का है। जिस तरह लैला का मजनू से स्वाती का पपीहे से है। ठंड और गरीबी एक दूजे के लिए बने हैं। कहते हैं कि जोड़ियां बनकर आती हैं। भगवान ने ठंड और […] Read more » पद्श्री अलंकरण
व्यंग्य मेरा वो मतलब नहीं था January 14, 2020 / January 15, 2020 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय” देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही देते हैं तो क्यों ना वास्तव में वो देश […] Read more » मेरा वो मतलब नहीं था
व्यंग्य हे भाय! तेरे से अच्छा मेरा वाद ? January 13, 2020 / January 13, 2020 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल ? आजकल अपन के मुलुक में वादियों का जमाना है। साहब! वादी तो वादी ही हैं। वह चाहे विचारवादी हों या अलगाववादी। काफी हाउस से लेकर शहर के टी-स्टालों और अखबार की सुर्खियों में बस एक ही चर्चा है। वह है वादियों […] Read more » अंबेडकरवादी कबंलवादी गांधीवादी गुंडावादि गोलीवादी डंडावादी नकाबवादी नेहरुवादी पटेलवादी बमवादी लाठीवादी सावरकरवादी सुभाषवादी हाकीवादी
व्यंग्य ब्रज नही बचो कान्हा के समय जैसों January 2, 2020 / January 2, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment (ब्रजदर्शन के बाद ) जे वृन्दावन धाम नहीं है वैसो, कान्हा के समय रहो थो जैसो समय बदलते सब बदले हाल वृन्दावन हुओ अब बेहाल। कान्हा ग्वालो संग गईया चराई, वो जंगल अब रहो नही भाई निधि वन सेवाकुंज बचो है, राधाकृष्ण ने जहाॅ रास रचो है। खो गयी गलियाॅ खो गये द्वारे, नन्दगाॅव की […] Read more » कान्हा
व्यंग्य डर दा मामला है December 30, 2019 / December 30, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है –हरिशंकर परसाई”। फिल्मों की “द फैक्ट्री “चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने विभिन्न प्रयोग किये […] Read more » डर दा मामला है
व्यंग्य खुदाई मेरा राष्ट्रीय दायित्व है ! December 29, 2019 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल खुदाई हमारी संस्कार में रची बसी है। हमारे पुरखों की यह विरासत रही है। खुदाई की वजह से हमने ऐतिहासिक सभ्यताएं हासिल की हैं, जिनका महत्व हमारी इतिहास की मोटी-मोटी किताबों मंे दर्ज है। खुदाई से निकली ऐसी सभ्यताओं पर […] Read more » Digging is my national responsibility
व्यंग्य आपको क्या तकलीफ है December 24, 2019 / December 24, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | 1 Comment on आपको क्या तकलीफ है रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-“बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है”?बच्चा हँसते हुये-“अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता “।रिपोर्टर -आपकी सरकार से क्या डिमांड है ?बच्चा -सरकार […] Read more » आपको क्या तकलीफ है
व्यंग्य “कौआ कान ले गया “ December 19, 2019 / December 19, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए”इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद दिलाने की कवायद शुरू कर दी।नागरिकता […] Read more » कौआ कान ले गया
व्यंग्य पापा नहीं मानेंगे December 11, 2019 / December 11, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,” एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नहीं था कि खुदा किसी […] Read more » Father will not ask papa will not agree पापा नहीं मानेंगे
व्यंग्य “ये कैसे हुआ” December 5, 2019 / December 5, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती है एक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है “।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो […] Read more » किसानों की आर्थिक स्थिति
व्यंग्य स्वर्ग में ऑखों देखी हिंसा भी नहीं छपवा पाये पत्रकार November 21, 2019 / November 21, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीवस्वर्ग में लोकतंत्र नहीं राजतंत्र है। इन्द्र वहॉ के लोकपाल है जिनके राजकाज में कोई भी स्वर्गवासी या देवता दखल नहीं देते सभी खुश है, आनन्द से है मानो ब्रम्हानन्दी हो गये है। होशंगाबाद के पत्रकार प्रश्न कर चुके थे कि अगर सब आनंन्दमय है तो […] Read more » स्वर्ग में ऑखों देखी हिंसा