कंबल है कि पद्श्री अलंकरण !

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                           प्रभुनाथ शुक्ल

गरीबी और ठंड का रिश्ता जन्म जन्मांतर का है। जिस तरह लैला का मजनू से स्वाती का पपीहे से है। ठंड और गरीबी एक दूजे के लिए बने हैं। कहते हैं कि जोड़ियां बनकर आती हैं। भगवान ने ठंड और गरीबों की जोड़ी काफी शोध के बाद बनाई है। हरजाई ठंड भी रईसजादों को घास नहीं डालती। जबकि गरीब की झोपड़ी में बेहिचक पहुंच जाती है। झोपड़ी वाला भी ठंड से बेइंतहा मोहब्बत करता है। उसकी मोहब्बत में यू-र्टन हो जाता है। हमारे यहां जिस तरह बुखार मापने का यंत्र थर्मामीटर होता है उसी तरह ठंड लिए गरीबमापी यंत्र है। क्योंकि गरीबों की खोज का भी विशेष मौसम होता है जिसे हम ठंड या चुनावी मौसम के नाम से जातने हैं। सरकार हो या समाजसेवी ठंड का मौसम आते ही रैन बसेरों से लेकर अनाथालयों में गरीबों की खोज में निकल पड़ते हैं। गरीबों को ठंड से निजात दिलाने के लिए कंबल वितरण का आयोजन किया जाता है। जितना खर्च कम्बल खरीद पर नहीं होता उसका कई गुने का हिसाब- किताब बन जाता है। कम्बल खरीद की उपकृत राशि का कोई आडिट भी नहीं करना पड़ता है। हमारे देश में वैसे गरीबता की पहचान लालवाला राशनकार्ड है लेकिन विकल्प के तौर पर सरकारी कबंल का भी प्रमाण दिखाया जा सकता है। क्योंकि गरीबी की पहचान का यह मौसमी और वैकल्पिक सर्टीफिकेट है।हमारे मुलुक में ठंड के मौसम में सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भव्य कबंल वितरण समारोह आयोजित किए जाते हैं। ऐसे समारोहों में जनतंत्र के महानायक सफेदपंथियों की मौजूदगी प्रमुख रुप से होती है। सफेदपंथी के हाथ एक काला कंबल पाकर गरीब धन्य हो जाता है। कंबल वितरण समारोह को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि जैसे गरीबों को गोया कंबल के बजाय पद्मश्री या फिर दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जा रहा है। उस दौरान ताड़ियों की गड़गड़ाहट के बीच एक-एक गरीबों को सम्मानित किया जाता है और सम्मानित करने वाले सफेदपंथी नायकों के समर्थन में गगनभेदी जयघोष का शंखनाद किया जाता है। ऐसा लगता है कि इस देश से अब गरीबी मिट जाएगी या ठंड। इस पद्श्री सम्मान के दौरान भी गरीब उसी जमींन पर बैठता है जबकि दौलतपंथी, सफेदपंथी विशालकाय मंच पर विराजमान होता है। अपने पवित्र हाथों से जैसे ही गरीब के कंधे पर पवित्र कंबल डालता है वैसे ही सैकड़ों की संख्या में कैमरे एक्शन मोड में होते हैं। भीड़ से कैमरामैन बोलता है सर प्लीज! इस्माइल और सफेदपंथी खींस निपोर देता है। इस बीच सैंकड़ों तालियों बीच तड़ातड़ शाट ओके होते है। हमारे मुलुक में गरीबी मिटाने के अनगिनत शौर्य गाथाएं हैं। जिसमें कंबल वितरण भी शामिल है। गरीबी और कंबल का चोली दामन का साथ रहा है। ठंड, कबंल और गरीबी का समिश्रण एक ट्रिपल इंजन वाला फार्मूला तैयार करता है। देश में आजकल ट्रिपल इंजन वाली सरकार चलाने का भी फार्मूला चल निकला है। अपन की दिल्ली में यह खूब बिक रहा है। क्योंकि अपन की दिल्ली युगों-युगों से गरीबी मिटाने का नारा देती आई है। दिल्ली गरीबों का बेहद खयाल रखती है और गरीब भी उसका बेहद खयाल रखते हैं।लेकिन गरीबों की हैसियत इतनी अमीरीवाली हो गई है कि उसकों मिटाने वाले ही मिट जाते हैं, लेकिन गरीबी मिटती ही नहीं है। गरीबी पर शोध करने वाले कुछ शोधार्थी मित्रों का दावा है कि बदलते दौर में गरीबी भी सियासत की तरह रंग बदलने लगी है। वह कभी सेकुलर से दक्षिण तो कभी वामपंथी हो जाती है। तभी बगल खड़े एक हमारे एक दोस्त ने कहा सच कहते हो भाई! अब यह भरोसे लायक नहीं है। जब यह सेक्युलरवादियों की नहीं हुई तो हमारी क्या होगी। तीसरे दोस्त ने कहा ठीक कहते हो तुम! शेयर बाजार की तरह इसका रेट और वेट लेफ्ट-राइट कर रहा है। अब कंबल के झांसे में आने वाली नहीं है। अब यह भी पढ़ी- खिली हो गई है, हमारे सांझे में नहीं आने वाली है। इसने सभी पंथियों की पोथी पढ़ लिया है। तभी एक दोस्त ने कहा भईया यह आजादी चाहती है। अब काहे कि आजादी। किससे और कितनी आजादी। जहां देखों वहीं आजादी का शोर मचाए जाय रही है। लेफ्ट से चाहती है या राइट से। सेक्युलवाद से या दंगावाद से। ठंड से या फिर कंबल से। फिलहाल यह तो दिल्ली ही बता सकती है। क्योंकि गरीबी और गरीबों को समझने का उसका अनुभव सबसे अच्छा रहा है।

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