व्यंग्य साहित्य राजनीति का भूत March 21, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी की इच्छा थी कि मोहल्ले में उनका कद कुछ बढ़े। उनके भाव भी थोड़े ऊंचे हों। असल में नगर पंचायत के चुनाव पास आ रहे थे। उनका मन था कि इस बार वे भी किस्मत आजमाएं। यद्यपि इससे पहले उनका कोई राजनीतिक कैरियर नहीं था। 40 साल सरकारी दफ्तर में पैर पीटने के […] Read more » Featured राजनीति का भूत
व्यंग्य साहित्य आम आदमी का आधार… खास का पासपोर्ट …!! March 13, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा अपने देश व समाज की कई विशेषताएं हैं। जिनमें एक है कि देश के किसी हिस्से में कोई घटना होने पर उसकी अनुगूंज लगातार कई दिनों तक दूर – दूर तक सुनाई देती रहती है। मसलन हाल में चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद त्रिपुरा में प्रतिमा तोड़ने की घटना की प्रतिक्रिया […] Read more » Featured आधार आम आदमी खास का पासपोर्ट
व्यंग्य साहित्य बैंकों का घुमावदार सीढ़ियां … !! March 8, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा तब तक शायद बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था। बचपन के बैक बाल मन में भारी कौतूहल और जिज्ञासा का केंद्र होते थे। अपने क्षेत्र में बैंक का बोर्ड देख मैं सोच में पड़ जाता था कि आखिर यह है क्या बला। बैंकों की सारी प्रक्रिया मुझे अबूझ और रहस्यमय लगती। समझ […] Read more » Curved stairs of banks ... !! Featured घुमावदार सीढ़ियां बैंक बैंकों का घुमावदार सीढ़ियां
व्यंग्य साहित्य दिदी की मासिक धर्मनिरपेक्षता के पुनर्पाठ का स्कूली प्रसंग March 7, 2018 by मनोज ज्वाला | 2 Comments on दिदी की मासिक धर्मनिरपेक्षता के पुनर्पाठ का स्कूली प्रसंग रामकृष्ण परमहंस की तपोभूमि और विवेकानन्द की ज्ञानभूमि पश्चिम बंगाल में वहां के शासन की धर्मनिरपेक्षता इन दिनों फिर उफान पर है । सियासत की तिजारत में वामपंथियों को परास्त कर चुकी ममता दिदी अपनी धर्मनिरपेक्षता का एक नया कीर्तिमान स्थापित करने में लगी हुई हैं । इस बावत हिंसक जेहाद का प्रशिक्षण देने के […] Read more » Featured Mamta Banerjee secularism of Didi दिदी
व्यंग्य साहित्य होली और बुरा ना मानो महोत्सव March 1, 2018 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment होली, भारत का प्रमुख त्यौहार है, क्योंकि इस दिन पूरे भारत मे बैंक होली-डे रहता है अर्थात अवकाश रहता है जिसकी वजह से बैंक में घोटाले होने की संभावना नही रहती है, मतलब होली के दिन केवल आप रंग लगा सकते है, चूना लगाना मुश्किल होता है। इसी कारण से होली देश की समरसता के […] Read more » बुरा ना मानो महोत्सव होली
व्यंग्य साहित्य लानत की होम डिलीवरी February 20, 2018 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment बत्रा जी , भौगोलिक और गणितीय दृष्टि से हमारे पड़ौसी है। उनसे हमारे संबंध उतने ही अच्छे है जितने भारत के संबंध पाकिस्तान से है। पाकिस्तान की तरह, बत्रा जी भी आए दिन सीज़फायर का उल्लंघन करते रहते है जिसका ज़वाब समय-असमय पर सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में उन्हें मिलता रहता है। पूरे मौहल्ले में […] Read more » Featured लानत लानत की होम डिलीवरी होम डिलीवरी
व्यंग्य साहित्य साथी हाथ छुड़ाना रे। February 10, 2018 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा (CA) हर कार्यालय की लय,वहाँ कार्य से फ़र्ज़ी एनकाउंटर करने वाले कर्मचारियों की कुशलता में लीन रहकर अंततोगत्वा अपने प्रारब्ध में ही विलीन हो जाती है। कार्यालय में कार्य करने वाले आपके सहकर्मी, कार्यस्थल को घटनास्थल बनाने के लिए दिल और जान को उचित मात्रा में मिलाकर मास्टरशेफ के रूप में अपनी महत्वपूर्ण […] Read more » साथी
व्यंग्य मोबाइल न छूटे… February 3, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment आजकल तो देश के कई भागों में पानी की किल्लत होने लगी है; पर सौ साल पहले चेरापूंजी सबसे अधिक और राजस्थान सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र था। इसीलिए राजस्थान में पानी पर सैकड़ों लोकगीत, कहानियां और कहावतें बनी हैं। उन दिनों पानी भरने तथा कपड़े धोने का काम महिलाएं ही करती थीं। इस बहाने […] Read more » Featured मोबाइल
व्यंग्य साहित्य चंद्र धरा दिनकर का लुकाछिपी महोत्सव January 31, 2018 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गाँधी आज विश्व के अर्वाचीन अलौकिक प्रेमियों का क्षितिज में लुकाछिपी महोत्सव है …….. अनंतकाल से धरा अपने प्रेमी दिनकर की परिक्रमा में नृत्य निमंगम ….. दिन रात अपने प्रियतम की ग्रीषम किरणों से ऊर्जा प्राप्त कर उसे नुहारती और निहारती है ….दिनकर भी अपनी इस अलौकिक प्रेमिका को अपनी किरणों के बाहुपाश में जकड कर […] Read more » lunar eclipse चंद्र दिनकर धरा लुकाछिपी महोत्सव
व्यंग्य साहित्य ग्रीन शासन, क्लीन प्रशासन January 30, 2018 by अशोक गौतम | Leave a Comment अबके दीवाली को जब कसौली के साथ लगते गांव का गंगा कुम्हार अपने गोरू गधे की पीठ पर दीवाली के दीए लाद कालका के बाजार में बेचने गया था तो दीए आढ़ती को बेचने के बाद खुद कालका का बाजार घूमने, घर का जरूरी सामान लेने गधे ये यह कह बाजार हो लिया कि वह […] Read more » Featured क्लीन प्रशासन ग्रीन शासन
व्यंग्य साहित्य थानेदार मुर्गा January 29, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment इस शीर्षक को पढ़कर मुर्गा नाराज होगा या थानेदार, ये कहना कठिन है; पर कुछ घटनाएं पढ़ और सुनकर लग रहा है कि भविष्य में ऐसे दृश्य भी दिखायी दे सकते हैं। असल में पिछले दिनों म.प्र. के बैतूल नगर में एक अजीब घटना हुई। वहां दो लोग मुर्गे लड़ा रहे थे। भीड़ देखकर पुलिस […] Read more » Featured मुर्गा
व्यंग्य वाकई ! कुछ सवालों के जवाब नहीं होते … !! January 28, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा वाकई इस दुनिया में पग – पग पर कंफ्यूजन है। कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाब तो मिलते नहीं अलबत्ता वे मानवीय कौतूहल को और बढ़ाते रहते हैं।हैरानी होती है जब चुनावी सभाओं में राजनेता हर उस स्थान से अपनापन जाहिर करते हैं जहां चुनाव हो रहा होता है। चुनावी मौसम […] Read more » Featured