लूट सके तो लूट

1
114

 

बचपन में हम लोग प्रायः अंत्याक्षरी खेला करते थे। इसकी शुरुआत कुछ ऐसे होती थी –

 

समय बिताने के लिए करना है कुछ काम

शुरू करो अंत्याक्षरी लेकर हरि का नाम।

 

अंत्याक्षरी से कई लाभ थे। जहां एक ओर गर्मी में भीषण लू से बचत होती थी, वहां मनोरंजन और दिमागी कसरत भी हो जाती थी। इसमें फिल्मी गाने से लेकर श्रीरामचरितमानस की चौपाई, रहीम और रसखान के दोहे, गिरधर कविराय की कुंडलियां, कबीर और सूर के छंद से लेकर हिन्दी पुस्तकों में लिखी कविताओं तक का मुक्त प्रयोग होता था। इसके कारण सैकड़ों दोहे और छंद याद हो गये, जो आज भी कभी-कभी काम आ जाते हैं।

 

अंत्याक्षरी में अंतिम अक्षर का विशेष महत्व है। चूंकि विपक्षी को उसी से शुरू होने वाला छंद बोलना पड़ता था। इसलिए ट और च वर्ग के अक्षरों से शुरू या खत्म होने वाले छंद विशेष रूप से याद कराए जाते थे। ट पर समाप्त होने वाला एक दोहा बहुत प्रचलित था –

 

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट

अंत काल पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट।

 

आप कहेंगे कि बुढ़ापे में इस बेवक्त की अंत्याक्षरी का कारण क्या है ? असल में आजकल सब तरफ लूट, टूट और छूट का ही मौसम है। इसलिए अच्छा यही है कि शर्म का कुरता उतार कर उसमें जो समेटा जा सके, समेट लो।

 

बात बिहार से शुरू करें। पिछले दिनों चाराप्रेमी लालू जी के बड़े सपूत तेजप्रताप का विवाह हुआ। भगवान नवयुगल को स्वस्थ और प्रसन्न रखे। सात बेटियों के बाद आठवें नंबर पर तेजप्रताप और नौवें नंबर पर तेजस्वी जी अवतरित हुए थे। इसलिए शादी धूमधाम से होनी ही थी। दो मुख्यमंत्री, एक उपमुख्यमंत्री, एक मंत्री और न जाने कितने सांसद और विधायकों वाले इस खानदान का देश में बड़ा नाम है। वर्तमान, पूर्व, भूतपूर्व और अपने कुकर्मों से अभूतपूर्व हो चुके लोगों की भीड़ है यहां। जिस घर में तेजप्रताप की शादी हुई, वहां भी राजनेताओं की कमी नहीं है। शादी ऐसे ही परिवारों में अच्छी लगती है और इसके सफल होने की संभावना भी अधिक होती है।

 

लेकिन इस समारोह में शादी से भी अधिक चर्चा खाने के लिए हुई लूट की रही। यद्यपि कन्या पक्ष ने 25 हजार की व्यवस्था की थी; पर पहुंच गये 50 हजार। कई तरह के पंडाल थे। किसी में खास तो किसी में बहुत खास लोगों के खानपान की व्यवस्था थी। अब लालू जी ठहरे बिहार के बड़े नेता। शादी के लिए उन्हें जेल से बस तीन दिन की ही छुट्टी मिली थी। इसलिए हजारों लोग वहां पहुंच गये। सब अपने प्रिय नेता को एक नजर देखना भर चाहते थे। पता नहीं वे जेल से अब आयेंगे या नहीं; आयेंगे तो कब आयेंगे; 20 साल बाद अगर आये भी, तो दर्शन देने और लेने लायक बचेंगे या नहीं ? ये प्रश्न सबके मन में थे।

 

पर उनके आने से पहले ही लालू परिवार वहां जा चुका था। इसलिए भीड़ गुस्से में आ गयी। आखिर थे तो वे लूटपाट प्रेमी लालू जी के ही समर्थक। उन्होंने भोजन पंडालों पर धावा बोल दिया। लालू प्रेमियों का रौद्र रूप देखकर भोजन करने वालों ने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी। फिर तो भीड़ अपनी असलियत पर उतर आयी। उन्होंने कुछ खाया, बाकी गिराया और फिर मेज कुर्सी से लेकर महंगी क्राकरी तक तोड़ डाली। जो बचा, उसे वे लूटकर ले गये। आखिर ऐसे मौके कब-कब आते हैं ?

 

सुना है इसके बाद रात में पशु प्रजाति के सैकड़ों जीव भी वहां आये। लालू जी से उनका प्रेम कौन नहीं जानता ? यद्यपि वहां चारा नहीं था; पर जो कुछ मिला, उसे ही उदरस्थ कर उन्होंने तेजप्रताप को वैवाहिक जीवन और लालू को लम्बे जेल जीवन की शुभकामनांए दीं और लौट गये।

 

लूट का ऐसा ही माहौल इन दिनों कर्नाटक में भी है। वहां ताजे चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। यों तो कांग्रेस और कुमारस्वामी मिलकर खुद को बहुमत में बता रहे हैं; पर दिल्ली में बैठे नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से वे बहुत भयभीत हैं। उन्हें लग रहा है कि ये दोनों उनकी पार्टियों में फूट डलवा कर उनके कुछ विधायक लूट लेंगे। उनका कहना है कि विधायकों को लालच भी दिया जा रहा है। इसलिए अधिक संख्या के बावजूद वे अपने लोगों को छिपाते फिर रहे हैं। मजे की बात ये है कि कम संख्या के बावजूद ऐसा डर भा.ज.पा. और येदुयुरप्पा को नहीं है। असल में चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर, कटता खरबूजा ही है।

 

टूट, फूट और लूट का ये दौर कब समाप्त होगा, ये तो भगवान जाने या अमित शाह। हमें तो इस समय अंत्याक्षरी वाला वही दोहा याद आ रहा है –

 

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट

अंत काल पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट।

 

– विजय कुमार

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर, पढ़ मजा आ गया| बुढ़ापे में हमने बिना कुर्ता उतारे लेख नाम की लूट को झोली में ही भर लिया है!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,046 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress