व्यंग्य साहित्य #लाल_बत्ती_भाई_को_मेरा_ख़त April 21, 2017 by अश्वनी कुमार, पटना | Leave a Comment #लाल_बत्ती भाई, इतने दिनों तक नेताओं, अफसरों और अमीरों के सर पर चढ़े रहने के बावजूद भी तुम्हें देश याद नहीं करता था| जो देश की सवारी करता था तुम उसकी सवारी करते थे, इसलिए हम तुम्हें याद कर रहे हैं, देश याद कर रहा है| क्योंकि तुम 1 मई से किसी कबाड़ख़ाने में पड़े […] Read more » #लाल_बत्ती
व्यंग्य साहित्य नींद क्यों रात भर नहीं आती April 18, 2017 / April 18, 2017 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment ड़ोस में नई नई उसारी गई मस्जिदों से लाउड स्पीकरों से 'आज़ान ' अल्लाहो अकबर के कर्कश आगाज़ से जगा देती है ..... पी जी आई के सबसे बड़े ख्याति प्राप्त न्यूरो डाक्टर हैरान हैं ..... कि यह शख्स सोता क्यों नहीं ..... इस बार तो डाक्टर साहेब ने दुखी हो कर मेरा केस 'पागलों 'के एक्सपर्ट को रैफर कर दिया है .... मैं सोचता हूँ 'वह ' भी क्या करेगा ..... फिर से ग़ालिब की याद ! ...... मौत का एक दिन मय्यन है ...नींद क्यों रात भर नहीं आती। Read more » Featured
व्यंग्य दिमागीन सर्विस सेंटर April 15, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment बचपन में एक कहावत सुनी थी, ‘सिर बड़े सरदारों के, पैर बड़े कहारों के।’ बुजुर्ग बताते थे कि सरदार यानि सिख पगड़ी बांधते हैं, इसलिए उनका सिर बड़ा दिखायी देता है। दूसरी ओर कहार दिन भर सामान उठाकर इधर-उधर भागता रहता है। पैरों पर अधिक बोझ पड़ने के कारण उसके पैर बड़े हो जाते हैं। […] Read more » दिमागीन सर्विस सेंटर
व्यंग्य लिबरल्स की दुखती रग पर देशभक्ति के पग April 12, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अक्षय कुमार को अपनी फ़िल्म “रुस्तम” के लिए नेशनल अवार्ड क्या मिला लिबरल खेमे में रुदाली शुरू हो गई। वैसे लिबरल खेमे के लिए दुःख की बात ये है कि अक्षय कुमार को नेशनल अवार्ड देने का निर्णय अप्रैल में लिया गया, अगर यही निर्णय मार्च में ले लिया जाता तो सारे लिबरल्स “मार्च-एंडिंग” में […] Read more » देशभक्ति
व्यंग्य साहित्य सुबह लाठी, शाम चपाती …!! April 11, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment बिल्कुल बचपन में देखी गई उन फिल्मों की तरह कि जब मार - कुटाई की औपचारिकता पूरी हो जाए और हीरो पक्ष के लोग एक - दूसरे के गले मिल रहे होते तभी सायरन बजाती पुलिस की जीप वहां पहुंचती। अक्सर ऐसा होताा भी था। कभी किसी के पीछे हाथ धो कर पड़ जाते और जब बेचारा शिकार की तरह आरोपी बुरी तरह फंस जाता तो खुद ही वकील बन कर उसे बचाने भी पहुंच जाते। Read more »
व्यंग्य जनकल्याणकारी क्रोध से रचनात्मक हवाई चिंतन पर बैन April 10, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment बैन के दौरान, सांसद महोदय को जो मानसिक संताप झेलना पड़ा और कष्टपूर्ण रेल यात्रा करनी पड़ी उसकी ज़िम्मेदारी लोकतंत्र का कौनसा खंभा उठाएगा ? इस बैन की वजह से सांसद जी के रचनात्मक हवाई चिंतन में जो व्यवधान आया इसके लिए संसद के कौन से सदन में शून्यकाल के दौरान निंदा प्रस्ताव लाया जाएगा? क्या सबसे बड़े लोकतंत्र के जनप्रतिनिधि अब इतने निःसहाय कर दिए जाएंगे की उन्हें मूड फ्रेश करने के लिए की गई मारपीट और हाथापाई के बाद कानूनी कार्यवाही और प्रतिबंध झेलना पड़ेगा? Read more » Featured हवाई चिंतन पर बैन
व्यंग्य सेल्फी सेल्फी सेल्फी April 9, 2017 by आरिफा एविस | Leave a Comment एक महाशय सुबह से इसी बात पे नाराज थे कि जिसे देखो वो सेल्फी खींच कर डालने पर अड़ा है, पड़ा है सड़ा है . सेल्फी देख देखकर कुढा रहे थे.’ मैंने भी पूछ ही लिया -“क्या हुआ भाई क्यों बडबडा रहे हो… बैठे बैठे.’ ‘क्या बताएं मैडम जिसे देखो वो सेल्फी लेकर फेसबुक और […] Read more » सेल्फी
व्यंग्य टांग खींचने की बीमारी April 9, 2017 by अशोक गौतम | Leave a Comment तभी साहब ने सचिव को बीच में रूकने का इशारा कर गंभीर हो कहा,‘ पर हां! एक बात का जयपुर से टांगें लाते हुए विशेश ख्याल रखा जाए। जो भी वहां टांगें खरीदने जाए वह असली का आभास देने वाली टांगें ही लाए ताकि सभी असली सी टांगें खींचने का समान रूप से मजा ले सकें। और हां! इसके बाद असली टांगें खींचना गैर कानूनी माना जाएगा। फिर मत कहना मैंने किसीकी एसीआर में रेड एंट्री कर दी । शर्मा जी! आपसे और आपके सहयोगियों से तब तक खास निवेदन है कि......’कह साहब ने उनकी ओर हाथ जोड़े। Read more » Featured the disease of leg pulling टांग खींचने की बीमारी
व्यंग्य हम और अहम April 8, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हम "अहम" के बिना अधूरे है। गुरुर का सुरूर बहुत मुश्किल से उतरता है। हम हिंदुस्तानी, "ज़िंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा" की सनातन परंपरा के वाहक है और इस परंपरा को हमने अनादिकाल से जीवित रखा है जो परंपराओ के प्रति हमारे समर्पण और बिना शोषित हुए उन्हें पोषित करने की कला को दर्शाती है। Read more » हम और अहम
व्यंग्य आईने, चेहरे और चरित्र April 7, 2017 by अशोक गौतम | Leave a Comment आखिर मन मसोस कर सरकार ने जनहित में चेतावनी जारी की,’ देश के तमाम तबके के चेहरों को सूचित किया जाता है कि वे आईने के सामने आने से बचें। आईनों ने देश के तमाम चेहरों के विरूद्ध उनका चेहरा सजाने के बदले उनके चरित्र को दिखाने की जो मुहिम छेड़ी है ,वह राष्टर विरोधी है। सरकार अखिल समाज आईना संघ के इस निर्णय की हद से अधिक निंदा करती है। Read more » आईने चरित्र चेहरे
व्यंग्य साहित्य मार्च एंडिंग की मार्च पास्ट April 3, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment मार्च का महीना बैंक और कंपनियो के लिए वार्षिक खाताबंदी का भी होता है। वर्ष की शुरुवात में जो खाते शुरू किए जाते है, वो पर्याप्त समय और दिमाग खाने के बाद बंद कर दिए जाते है। खाताबंदी करते वक़्त बंदा या बंदी में फर्क नहीं किया जाता है और समान रूप से उनके पेशेंश का एंड कर मार्च एंडिंग करवाई जाती है। डेबिट-क्रेडिट कर खातो को बंद किया जाता है लेकिन इसका क्रेडिट हमेशा बॉस को मिलता है। खाताबंदी, नोटबंदी और नसबंदी से भी ज़्यादा तकलीफ देती है और ये दिल मांगे मोर (तकलीफ) कहते हुए हर साल मार्च में आ जाती है। खाताबंदी, नोटबंदी, नसबंदी और नशाबंदी, सरकार चाहे तो इन सारी "बंदियों" को "लिंगानुपात" संतुलित करने में भी उपयोग में ला सकती है। Read more » मार्च एंडिंग
व्यंग्य साहित्य बेवकूफी का तमाशा April 3, 2017 by आरिफा एविस | 2 Comments on बेवकूफी का तमाशा अरे जमूरे ! आजकल के बुद्धिजीवी और लेखक भी तो लोगों का अप्रैल फूल बनाते हैं. ऐसे मुद्दों पर लिखते और ऐसे विषयों पर चर्चा करते हैं जिसका अवाम से कुछ भी लेना देना नहीं होता.लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध जरूर पूरा हो जाये अवाम पर लिखकर . अरे भाई अगर उनको अवाम के बारे में सोचना ही होता तो वो बुद्धिजीवी ही क्यों कहलाते, बुद्धिजीवी सिर्फ विमर्श करते, फर्श पर कुछ नहीं करते.' Read more » बेवकूफी का तमाशा