Category: व्यंग्य

व्यंग्य साहित्‍य

घर की मुर्गी लेकिन उपचार बराबर

| Leave a Comment

हर मर्ज़ का इलाज़ हम अपनी मर्ज़ी से करते है। अगर किसी बीमारी का कोई घरेलू इलाज़ हमारे पास उपलब्ध नहीं है तो मतलब वो बीमारी गैरसंवैधानिक है और वो बीमारी सभ्य समाज के लायक नहीं है। घरेलू उपचार अब घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रह गए है वो रोज़ वाट्सएप और फेसबुक के ज़रिए लोगो के मोबाइल में अपनी जगह और पैठ बना चुके है। सोशल मीडिया पर ये उपचार "फॉरवर्ड" कर करके हम इतने ज़्यादा "फॉरवर्ड" हो चुके है अब बीमारी का आविष्कार होने से पहले ही उपचार की खोज कर लेते है ताकि बीमारी आने पर तुरंत उपचार को "केश" और "पेश" किया जा सके।

Read more »

व्यंग्य

छेड़छाड़ : हमारा राष्ट्रीय स्वभाव

| 1 Comment on छेड़छाड़ : हमारा राष्ट्रीय स्वभाव

हम छेड़छाड़ के परंपरागत तरीको से आगे बढ़ चुके है, साइबर फ्रॉड, क्रेडिट कार्ड क्लोनिंग, हैकिंग जैसे नए "हथियारो" ने छेड़छाड़ का "मेकओवर" कर दिया है। छेड़छाड़ के लिए हाई-टेक और डिजिटल साधनो का प्रयोग हो रहा है जिससे कम समय में अधिक परिणाम आ रहे है और हमने प्रति घंटा छेड़छाड़ करने के अपने पिछले औसत को काफी पीछे छोड़ दिया। तकनीक ने हर चीज़ को बदल कर रख दिया लेकिन तकनीक हर जगह अंगुली करने की हमारी आदत को नहीं बदल पाई, अंतर केवल इतना आया है कि अब हम हर जगह अंगुली, टच-स्क्रीन के माध्यम से करते है।

Read more »