व्यंग्य साहित्य घर की मुर्गी लेकिन उपचार बराबर April 3, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हर मर्ज़ का इलाज़ हम अपनी मर्ज़ी से करते है। अगर किसी बीमारी का कोई घरेलू इलाज़ हमारे पास उपलब्ध नहीं है तो मतलब वो बीमारी गैरसंवैधानिक है और वो बीमारी सभ्य समाज के लायक नहीं है। घरेलू उपचार अब घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रह गए है वो रोज़ वाट्सएप और फेसबुक के ज़रिए लोगो के मोबाइल में अपनी जगह और पैठ बना चुके है। सोशल मीडिया पर ये उपचार "फॉरवर्ड" कर करके हम इतने ज़्यादा "फॉरवर्ड" हो चुके है अब बीमारी का आविष्कार होने से पहले ही उपचार की खोज कर लेते है ताकि बीमारी आने पर तुरंत उपचार को "केश" और "पेश" किया जा सके। Read more »
व्यंग्य सोशल मीडिया के रास्ते प्रसिद्धी के वैकल्पिक सौपान March 28, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment सिद्धी की इतनी सहज उपलब्धता ने कई लोगो को असहज बना दिया है । प्रसिद्ध लोग जब अपनी 1000-2000 लाइक वाली किसी पोस्ट पर किसी कमेंट का रिप्लाई करते है तो अपने शब्दों से ऐसा आभामंडल रचते है मानो कमेंट नहीं कर लाखो लोगो की सभा को संबोधित कर रहे हो। हालाँकि अपनी हर पोस्ट पर 1K/2K लाइक लेने वाले इन सेलिब्रिटीज के सारे पोस्ट्स चोरी "के" होते है। Read more » Featured प्रसिद्धी के वैकल्पिक सौपान
व्यंग्य साहित्य लेखक और सम्मान March 26, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment लेखक होना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम होता है क्योंकि आपको जबान ना चलाकर अपनी कलम चलानी होती है। सामाजिक सरोकारों की गठरी कंधो पर उठाए ,ज़बान को लगाम देकर,कलम के घोड़े दौड़ना एक चुनौतीपूर्ण कार्यक्रम है जिसे उचित क्रम में फॉलो करना होता है। जिस तरह से भगवान केवल भाव के भूखे होते है उसी […] Read more » लेखक लेखक और सम्मान सम्मान
व्यंग्य साहित्य सही गलत की नौकरी ! March 26, 2017 by सुप्रिया सिंह | Leave a Comment राजनीति और चुनाव मे नेताओं की क्रियाकलाप की आलोचना करना गलत नही है या यूँ कहे कि बिल्कुल भी गलत नही है और तो और ये तो आपका अधिकार भी है लेकिन ये गलत तब गलत हो जाता है जब अधिकार – अधिकार चिल्लाकर अधिकार के शोर मे कृत्वयों को धूमिल करने का प्रयास किया जाता है । घर के बाहर सही जगह पर कचरा न फेंकने वाले गन्दगी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते है , ट्रैफिक पर सिंग्लन तोड़ कर जाने वाले दुर्घटना का शिकार होने पर सड़को की आड़ लेकर सरकार को कोसते है । Read more » Featured सही गलत
व्यंग्य आहत होने की चाहत March 24, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment राजनीती, खेल, बॉलीवुड,धर्म या अन्य किसी भी क्षेत्र से जुडी कोई भी घटना हो या इन से जुड़े किसी भी सेलेब्रिटी या किसी व्यक्ति का कोई भी बयान हो वो रोज़ सोशल मीडिया की भट्टी में ईंधन रूपी कच्चे माल के रूप में झोंक दिया जाता है जो "ट्रेंड"की शक्ल में बाहर निकल कर लोगो को कोमल भावनाए आहत करने का अपना क़र्ज़ और फ़र्ज़ अदा करता है। Read more » wish to get hurted आहत आहत होने की चाहत
व्यंग्य कुछ दिन तो गुजारो ; गुजरात ( माडल ) में March 23, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment मित्रों , अब तो अमिताभ बच्चन का कहा मानकर कुछ दिन तो गुजारो गुजरात (माडल) में । हाँ , पर चीख चीख कर यू पी चुनाव में ई वी एम मशीन पर सवाल उठाने वाली मायावती जी की बात भी सुन लो, कहीं वहाँ भी गुजराती माडल का प्रयोग तो नहीं किया गया है । क्योकि गुजराती माडल देता है परीक्षा में 100 % सफलता की गारंटी Read more »
व्यंग्य नेता वही जो वोट दिलाये March 19, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment होली आते ही मौसम सुहावना हो जाता है। हर तरफ बसंती उल्लास। नाचते-गाते लोग। मस्ती करते पशु और चहचहाते पक्षी। स्वच्छ धरती और मुक्त आकाश। डालियों पर हंसते फूल और कलियां। शीतल और गुनगुनी हवा में अठखेलियां करती गेहूं की बालियां। ऐसा लगता है मानो अल्हड़ नवयौवनाएं एक दूसरे के गले में हाथ डाले पनघट […] Read more » नेता वही जो वोट दिलाये
व्यंग्य छेड़छाड़ : हमारा राष्ट्रीय स्वभाव March 19, 2017 by अमित शर्मा (CA) | 1 Comment on छेड़छाड़ : हमारा राष्ट्रीय स्वभाव हम छेड़छाड़ के परंपरागत तरीको से आगे बढ़ चुके है, साइबर फ्रॉड, क्रेडिट कार्ड क्लोनिंग, हैकिंग जैसे नए "हथियारो" ने छेड़छाड़ का "मेकओवर" कर दिया है। छेड़छाड़ के लिए हाई-टेक और डिजिटल साधनो का प्रयोग हो रहा है जिससे कम समय में अधिक परिणाम आ रहे है और हमने प्रति घंटा छेड़छाड़ करने के अपने पिछले औसत को काफी पीछे छोड़ दिया। तकनीक ने हर चीज़ को बदल कर रख दिया लेकिन तकनीक हर जगह अंगुली करने की हमारी आदत को नहीं बदल पाई, अंतर केवल इतना आया है कि अब हम हर जगह अंगुली, टच-स्क्रीन के माध्यम से करते है। Read more » छेड़छाड़ हमारा राष्ट्रीय स्वभाव
व्यंग्य यह मैने नहीं मेरी कलम ने लिखा …!! March 6, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | 2 Comments on यह मैने नहीं मेरी कलम ने लिखा …!! तारकेश कुमार ओझा मैं एक बेचारे ऐसे अभागे जो जानता हूं जिसे गरीबी व भूखमरी के चलते उसके बड़े भाई ने पास के शहर में रहने वाले रिश्तेदार के यहां भेज दिया। जिससे वह मेहनत – मजदूरी कर अपना पेट पाल सके। बेचारा जितने दिनों तक उसे काम ढूंढने में लगे, उतने दिन मेजबान की […] Read more »
व्यंग्य निज़ाम-ए मुस्तफा March 5, 2017 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment बापू की एक और इच्छा थी ,,,,वे कहते थे जब मेरा काम यहाँ पूरा हो जायेगा मैं पाक चला जाऊंगा। बापू की अधूरी इच्छा को पूरा करना अब गाँधी भक्त कांग्रेसियो और अफ़ज़ल गैंग के आज़ादी परस्त छात्रों और उनको उकसाने वाले बुद्धिजीवी अवार्डवापसी गैंग का है पाक जाएं और अपने आकाओं की बिरियानी का हक़ अदा करें और निज़ाम-ए मुस्तफा कायम करने में अपना योगदान दें !!!! Read more » Featured निज़ाम-ए मुस्तफा
व्यंग्य साहित्य मिलावट का व्याकरण March 4, 2017 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment देश के प्रतिष्ठित नक्कालों, कालाबाजारियों और मिलावट विशेषज्ञों को इसका सदस्य बनाया जाएगा I ये सदस्य विभिन्न वस्तुओं की नक़ल बनाने एवं मिलावट की आधुनिक प्रविधि के संबंध में बहुमूल्य सुझाव देंगे I हमारा शोध संस्थान डुप्लीकेट चैनल नामक एक टी वी चैनल आरम्भ करेगा जिसके माध्यम से अलंकृत शैली और काव्यमय – अनुप्रासयुक्त शब्दावली में विज्ञापनबालाओं द्वारा उत्पादों का विज्ञापन किया जाएगा I Read more » मिलावट मिलावट का व्याकरण
व्यंग्य जनजागरण की लीला March 4, 2017 / March 4, 2017 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment देखा जाये तो जनजागरण शब्द राष्ट्रवादी है क्योंकि अभी तक किसी अन्य ने इस पर अपना अधिकार नहीं जताया है। ऐसा मैं इसलिये कह रहा हूं क्योंकि हमारी दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों की आपसी लड़ाई का केंद्र ही गांधी और पटेल पर अपने अपने आधिपत्य को लेकर रहा है। मैं तो कहूंगा न केवल यह […] Read more » जनजागरण