व्यंग्य गुड बाय! टेक केयर!! January 14, 2013 by अशोक गौतम | Leave a Comment सुबह सुबह फिटनेस के बहाने सरोजनी नगर की पटड़ी पर ताक झांक करने निकला था कि डिपो के पास के मंदिर के बाहर समान बांधे कोर्इ दिखा। पहले तो सोचा कि मंदिर का पुजारी घर जा रहा होगा। सर्दियों में वैसे भी मंदिर में धंधा कम हो जाता है। लोग घर से ही भगवान को […] Read more »
व्यंग्य पुस्तक लोकार्पण संस्कार January 13, 2013 / January 13, 2013 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव किताब से जिसका इतना-सा भी संबंध हो जितना कि एक बच्चे का चूसनी से तो वह समझदार व्यक्ति पुस्तक लोकार्पण के कार्यक्रम से जरूर ही परिचित होगा। भले ही वह इस कार्यक्रम की बारीकियां न जानता हो। यह कार्यक्रम लेखक क्यों करता है और कैसे –कैसे करता है इसकी केमिस्ट्री का उसे […] Read more » book release ceremony
व्यंग्य कैंडील मार्च करा लो… January 13, 2013 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव कभी रहा होगा भारत कृषि प्रधान देश। इक्सवींसदी में तो यह बाकायदा विश्व का टॉप मोमबत्ती प्रधान देश बन चुका है। जो मोमबत्तीमस्त देश भी है और मोमबत्तीग्रस्त और मोमबत्तीत्रस्त देश भी। मोमबत्तियां हमारे देश के लोकतंत्र का श्रंगार हैं। पब्लिक जब कभी सरकार पर गुस्सयाती है,लाल-पीली मोमबत्तियां लेकर वो तड़ से […] Read more » candle march
व्यंग्य प्रभु मोहे मन की मक्खी मिले December 25, 2012 / December 25, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव हमें गर्व है कि हम उस मक्खी-प्रधान देश के वासी हैं जिसे कि मक्खियों के मामले में दुनिया में एक विकसित सुपरपावर देश का दर्जा हासिल है। मक्खी हमारे दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मक्खी के बिना हमारी ज़िंदगी वैसी ही बेमतलब है जैसे गोरेपन की क्रीम के बिना रेशमी त्वचा। […] Read more » प्रभु मोहे मन की मक्खी मिले
व्यंग्य व्यंग्य बाण : भाषण की दुकान December 4, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार अंग्रेजी की एक कहावत के अनुसार खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह कहावत संभवतः बच्चों और युवाओं के लिए बनाई गयी होगी; पर शर्मा जी ने जब से अवकाश लिया है, तब से यह उन पर भी फिट बैठ रही है। उनके इस खालीपन से सबसे अधिक परेशान शर्मानी मैडम हैं। […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : पुस्तक का गर्भकाल December 4, 2012 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य बाण : पुस्तक का गर्भकाल विजय कुमार प्राणी शास्त्र के विद्यार्थियों को यह बताया जाता है कि किस प्राणी का गर्भकाल कितना होता है ? अंडे से जन्म लेने वाले प्राणियों का विकास मां के पेट के अंदर तथा फिर बाहर भी होता है। जो प्राणी सीधे मां के पेट से जन्मते हैं, उनमें से कोई छह मास गर्भ में […] Read more » पुस्तक
व्यंग्य यमराज-कसाब संवाद November 28, 2012 / November 28, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on यमराज-कसाब संवाद चित्रगुप्त, कर्मो का लेखा-जोखा करने बैठे ही थे,कि एक युवक सलाम ठोकता हुआ आ खड़ा हुआ । इतनी सुबह-सुबह कौन हो भार्इ? प्रश्न अभी हवा में ही था कि यमराज भी आसंदी पर विराजमान हो गये! चित्रगुप्त! कौन है यह प्राणी?इस समय तो किसी आत्मा का आगमन होना नहीं था। जनाब मैं कसाब! अजमल आमिर […] Read more »
व्यंग्य स्वच्छंदजी बोले November 21, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम हम जैसों को तो नरक की न जिंदे जी चिंता होती है न मरने के बाद, क्योंकि हमें पता होता है कि हमें हर समय ही भोगना है पर अपने शहर के कम्युनिटी हाल में शहर के धनाढयों द्वारा मरने के बाद नरक से मुकित हेतु कराए जा रहे सप्ताह के चौथे दिन […] Read more »
व्यंग्य कवि और कल्पना November 5, 2012 / November 5, 2012 by बीनू भटनागर | 4 Comments on कवि और कल्पना कविता भी क्या चीज़ है कल्पना की उड़ान कवि को किसी दूसरी ही दुनियाँ मे पंहुचा देती है। एक कवि की दुनियाँ और एक उस व्यक्ति की दुनियाँ। यह इंसान कभी भी एक दुनियाँ से निकल कर दूसरी दुनियाँ मे ऐसे आता जाता रहता है जैसे कोई एक कमरे से दूसरे कमरे मे जाता हो। […] Read more » कवि और कल्पना
व्यंग्य व्यंग्य/ शाहों वाले संकट मोचक October 29, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम अब देखो न भैया! आम आदमी हैं तो कुछ बने या न पर उल्लू तो बनेंगे ही! इहां आम आदमी जिंदगी में कुछ बने या न बने पर मुआ कम से कम उल्लू होकर तो देह त्यागता ही है। हम तो जन्म से मरण तक उल्लू बनाने वालों की राह फटी आंखों से […] Read more »
व्यंग्य जय हो बाजार की! October 26, 2012 / October 26, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment डिस्काउंटों से भरे बाजारों , अखबारों में अखबारों से बड़े छपे विज्ञापनों को देख अब मुझे भीतर ही भीतर अहसास हो गया है कि हे राम ! तुम बनवास काट, घर के भेदी से लंका ढहवा अयोध्या की ओर लखन, सीता सहित कूच कर गए हो। और हम खालिस मध्यमवर्गीय तुम्हारे आने की खुषी में […] Read more » satire by Ashok Gautam
टॉप स्टोरी व्यंग्य नौकरी के नौ सिद्धान्त – अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र October 25, 2012 / October 25, 2012 by विपिन किशोर सिन्हा | 6 Comments on नौकरी के नौ सिद्धान्त – अशोक खेमका के नाम एक खुला पत्र विपिन किशोर सिन्हा प्रिय खेमका जी, हमेशा खुश रहिए। दिनांक १६ अक्टुबर के पहले न मैं आपको जानता था और न आप मुझे। लेकिन अब तो मैं ही क्या सारा हिन्दुस्तान आपको जान गया है। मुझे जानने की आपको कोई जरुरत नहीं। वैसे भी नौकरशाही के शीर्ष पर बैठे किसी भी अधिकारी को अपने से […] Read more » नौकरी के नौ सिद्धान्त